अस्पतालों के चक्कर लगाती रही गर्भवती महिला, किसी ने नहीं किया भर्ती, एंबुलेंस में मौत
समीरात्मज मिश्र
तीस वर्षीय गर्भवती महिला के परिजन नोएडा और ग़ाज़ियाबाद के अस्पतालों में उसे लेकर घंटों घूमते रहे, आठ अस्पतालों के चक्कर लगाए, मिन्नतें कीं लेकिन अस्पतालों ने महिला को भर्ती नहीं किया.
आख़िरकार महिला ने अपने गर्भस्थ शिशु के साथ एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया. यह पूरी घटना राजधानी दिल्ली से लगे उत्तर प्रदेश के दो सबसे हाई प्रोफ़ाइल कहे जाने वाले ज़िलों में हुई है. इस पूरी घटना का संज्ञान लेते हुए नोएडा के डीएम सुहास एलवाई ने जांच के आदेश दिए हैं.
ग़ाज़ियाबाद ज़िले की खोड़ा कॉलोनी निवासी नीलम कुमारी आठ महीने की गर्भवती थीं. तबीयत ख़राब होने की वजह से नीलम कुमारी के पति ब्रजेंद्र अपने भाई के साथ अस्पताल ले जाने लगे.
मृतका के जेठ (पति के बड़े भाई) शैलेंद्र कुमार ने बीबीसी को बताया कि शुक्रवार को सुबह छह बजे से लेकर शाम साढ़े सात बजे तक वो लोग अस्पताल दर अस्पताल घूमते रहे लेकिन कहीं भी उसे भर्ती नहीं किया गया.
शैलेंद्र बताते हैं, "मैं ऑटो चलाता हूं. ऑटो पर बैठाकर हम लोग पहले ईएसआईसी अस्पताल ले गए लेकिन वहां से उसे सेक्टर तीस स्थित ज़िला अस्पताल में रेफ़र कर दिया गया. ज़िला अस्पताल ने यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि हम लोग कंटेनमेंट ज़ोन से आ रहे हैं इसलिए वो भर्ती नहीं कर सकते हैं. इसके बाद हम लोग नोएडा सेक्टर 51 स्थित शिवालिक हॉस्पिटल ले गए जहां उसका पहले भी इलाज हुआ था. लेकिन उन लोगों ने कहा कि मरीज की हालत ज़्यादा गंभीर है इसलिए किसी बड़े अस्पताल में ले जाइए. फिर हम फ़ोर्टिस अस्पताल ले गए."
मृतका नीलम के पति ब्रजेंद्र एक मीडिया हाउस के मेंटिनेंस विभाग में काम करते हैं और नीलम भी किसी प्राइवेट कंपनी में काम करती थीं. नीलम के पास ईएसआई कार्ड भी था.
शैलेंद्र कुमार ने बताया कि ईएसआईसी अस्पताल में कुछ देर तक नीलम को ऑक्सीजन दी गई लेकिन उसके बाद उन्होंने इलाज की सुविधा न होने का हवाला देकर ज़िला अस्पताल भेज दिया लेकिन ज़िला अस्पताल में नीलम को किसी डॉक्टर ने या किसी अन्य स्टाफ़ ने देखा तक नहीं.
शैलेंद्र कहते हैं कि फ़ोर्टिस अस्पताल वालों ने यह कहकर उन्हें मना कर दिया कि उनके यहां इलाज का ख़र्च बहुत ज़्यादा आएगा जिसे आपलोग दे नहीं सकते हैं. शैलेंद्र बताते हैं, "फ़ोर्टिस की डॉक्टर ने कहा कि वेंटिलेटर पर डाल देंगे तो पांच छह लाख रुपये का बिल आएगा. आप लोग पैसा दे नहीं पाओगे और फिर झगड़ा करोगे. मैंने उनसे कहा कि आप भर्ती कर लीजिए, हम जैसे भी संभव होगा, बिल चुकाएंगे लेकिन उन लोगों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया."
फ़ोर्टिस अस्पताल के बाहर शैलेंद्र कुमार ने 112 नंबर पर पुलिस को भी फ़ोन किया. वो बताते हैं कि पुलिस वाले आए और उन्होंने भी काफ़ी कोशिश की कि मरीज भर्ती हो जाए लेकिन अस्पतालों ने किसी की नहीं सुनी. हालांकि फ़ोर्टिस अस्पताल के कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन विभाग के प्रमुख अजेय महराज इस आरोप को सिरे से ख़ारिज करते हैं.
बीबीसी से बातचीत में अजेय महराज कहते हैं, "हमारे अस्पताल में मरीज को क़रीब 11 बजे सुबह गंभीर हालत में लाया गया था. आईसीयू के आइसोलेशन वॉर्ड में कमरा उपलब्ध नहीं था, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल के वेटिंग एरिया में ही ऑक्सीजन और नेबुलाइज़र उपलब्ध कराई. मरीज़ के पति को डॉक्टरों ने समझाया कि उन्हें तत्काल किसी दूसरे अस्पताल में लाइफ़ सपोर्ट उपकरणों वाली एसीएलएस एंबुलेंस में ले जाएं. मरीज के पति ने इसके लिए मना कर दिया और ऑटो रिक्शा से ही वे लोग मरीज को अस्पताल से बाहर लेते गए."
वहीं शैलेंद्र बताते हैं कि उसके बाद भी उन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और जेपी, शारदा अस्पताल और जिम्स में ले गए लेकिन किसी ने भी नीलम को भर्ती नहीं किया.
शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि शारदा अस्पताल में हमें कहा गया कि पहले कोविड-19 टेस्ट कराना पड़ेगा.
वो कहते हैं, "हम टेस्ट के लिए तैयार हो गए. हमसे टेस्ट के लिए 4500 रुपये लिए गए लेकिन उसके बाद हमें जिम्स अस्पताल रेफ़र कर दिया गया. अब नीलम की तबीयत बहुत ज़्यादा ख़राब होती जा रही थी. 108 नंबर पर फ़ोन करके एंबुलेंस बुलाई गई लेकिन एंबुलेंस नहीं मिली. उसके बाद हमने एक प्राइवेट ऐंबुलेंस बुलाई और उसके ऑक्सीजन सपोर्ट पर जिम्स अस्पताल लेकर गए लेकिन वहां भी खाली बेड नहीं मिले."
नीलम के परिजनों को शारदा अस्पताल इसलिए रेफ़र किया गया क्योंकि वहां कोरोना संक्रमित लोगों को भर्ती किया जाता है. हालांकि उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे लेकिन अस्पतालों ने बिना डॉक्टरों के देखे ही ये निर्णय ले लिया कि मरीज कोरोना संक्रमित हो सकता है.
शैलेंद्र कुमार कहते हैं कि अभी कुछ दिन पहले ही नीलम सेक्टर 51 स्थित शिवालिक अस्पताल में पांच दिन तक भर्ती रही लेकिन उस अस्पताल ने भी कोराना संदिग्ध मानते हुए भर्ती करने से मना कर दिया.
वो कहते हैं, "31 मई से लेकर चार जून तक वह शिवालिक में भर्ती रही. इस दौरान उसका कोई कोरोना परीक्षण नहीं किया गया. हज़ारों रुपये अस्पताल ने ले भी लिए और जब दोबारा बीमार पड़ी तो कोरोना का बहाना बनाकर अस्पताल में भर्ती करने से ही मना कर दिया."
इस दौरान नीलम के परिजन उन्हें लेकर वैशाली स्थित मैक्स अस्पताल भी ले गए और हार कर दोबारा जिम्स अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही नीलम ने दम तोड़ दिया.
शैलेंद्र कुमार रोते हुए कहते हैं, "इन अस्पतालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. हम तो बस यह चाहते हैं कि जैसा हमारे साथ हुआ, वैसा किसी दूसरे के साथ न हो."
नीलम का एक पांच साल का बेटा है. नौ जून को उसका जन्म दिन है. पूछ रहा है कि "मम्मी अस्पताल से कब आएंगी?"
शैलेंद्र कुमार अपने भाई के साथ नीलम को लेकर जिन-जिन अस्पतालों में भटकते रहे, उन अस्पतालों के पास इस सवाल के कोई जवाब नहीं हैं कि उन्होंने मरीज को भर्ती क्यों नहीं किया. कई अस्पतालों से हमने उनका पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया.
गौतमबुद्धनगर के ज़िलाधिकारी सुहास एलवाई ने इस मामले की जांच के लिए एक समिति बनाई है. उन्होंने अपर ज़िलाधिकारी वित्त एवं राजस्व मुनींद्र नाथ उपाध्याय और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर दीपक ओहरी को इसकी जांच सौंपी है.
शैलेंद्र कुमार को इस बात की जानकारी है कि डीएम ने जांच कमेटी बनाई है लेकिन वो चाहते हैं कि उन लोगों से इस बारे में पूरी जानकारी ली जाए.
वो कहते हैं, "कुछ जगहों पर ख़बर आ रही है कि अस्पतालों को इस बारे में जानकारी नहीं है. हमसे पूछा जाए तो हम बताएंगे कि इन अस्पतालों से हमें क्या जवाब मिला और किस तरीक़े से मिला. हर अस्पताल में सीसीटीवी कैमरा लगा होगा, उससे पता चल जाएगा कि हम यहां आए थे और हमने कितनी मिन्नतें कीं कि मरीज़ मर जाएगा, प्लीज़ भर्ती कर लो."
नोएडा के अस्पतालों में लापरवाही के इससे पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं. पिछले दिनों एक व्यक्ति अपने नवजात शिशु को लेकर ग्रेटर नोएडा और नोएडा के अस्पतालों में भटकता रहा लेकिन उसे भर्ती नहीं किया गया. बाद में बच्चे की मौत हो गई.
एक अन्य मामले में डॉक्टरों की कथित लापरवाही के कारण प्रसव पीड़ा से परेशान महिला ने अस्पताल के बाहर एक बच्ची को जन्म दिया लेकिन इलाज न होने के कारण नवजात शिशु की मौत हो गई. इन सभी मामलों की चल रही है.
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