भारत-चीन तनाव: 'बेटा शहीद हो गया लेकिन सरकार अभी तक चुप है'
''मेरा बेटा चीन के बॉर्डर पर शहीद हो गया लेकिन सरकार अभी तक चुप है. यह दुख की बात है. अब बेटा गंवा चुके. सामने 15 दिन की नवजात पोती (सैनिक की बेटी) है. दो साल पहले शादी करके लाई गई बहू है. बताइए हमलोग क्या करें? हमारे ऊपर ऐसी विपत्ति आई है कि अब हमें कुछ भी समझ नहीं आ रहा है. हमारे सामने घना अंधेरा है. बाहर तेज़ बरसात हो रही है और हमलोग अंदर रो रहे हैं. हमारा सबकुछ बर्बाद हो गया है. अब मुझे मेरे बेटे के शव का इंतजार है.''
बीबीसी से ये बातें कहते हुए भवानी देवी रोने लगती हैं.
भवानी देवी भारतीय सेना में शामिल कुंदन कांत ओझा की मां हैं. महज 26 साल के कुंदन पिछले दो सप्ताह से लद्दाख रेंज के गलवान घाटी में तैनात थे. सोमवार की रात चीनी सैनिकों से हुई झड़प में उनकी मौत हो गई.
मंगलवार की दोपहर तीन बजे भारतीय सेना के एक अधिकारी ने फोन कर उन्हें इसकी सूचना दी. तब से पूरे घर में मातम है. सबका रो-रोकर बुरा हाल है.
भवानी देवी ने बताया, ''फ़ोन करने वाले ने मुझसे पूछा कि मैं केके (कुंदन) की क्या लगती हूं. मैंने उनसे कहा कि वह मेरा बेटा है. फिर उन्होंने पूछा कि क्या आप इस वक्त बात कर सकेंगी. मेरे हां कहने पर उन्होंने बताया कि कुंदन चीन के बॉर्डर पर शहीद हो गए हैं. वो लोग मेरे बेटे का शव भेजने की कोशिश में लगे हैं. मुझे उनकी बात पर पहले तो भरोसा ही नहीं हुआ. तब मैंने अपने भैंसुर (पति के बड़े भाई) के बेटे मनोज से उस नंबर पर फोन कराया. उस अफ़सर ने फिर वही बात कही. अब हमलोग बेबस हैं और इससे आगे कुछ भी नहीं कह सकते.''
15 दिन पहले पिता बने थे कुंदन झा
कुंदन ओझा की पत्नी नेहा ने पिछले एक जून को बेटी को जन्म दिया है. यह बच्ची इस दंपति की पहली संतान है. अभी उसका नामकरण भी नहीं हुआ है. कुंदन उसे देखने घर आते, इससे पहले ही वे सरहद पर मारे गए. यह नवजात बच्ची अब कभी अपने पिता से नहीं मिल पाएगी. नेहा और कुंदन की शादी सिर्फ दो साल पहले हुई थी.
लॉकडाउन नहीं हुआ होता, तो कुंदन अपने गांव आ गए होते. उनकी मां भवानी देवी ने बताया कि पत्नी के गर्भवती होने के कारण उनकी छुट्टी 10 मई से तय थी लेकिन लॉकडाउन के कारण कैंसिल कर दी गई. तब से वो वहीं पर थे. इस बीच एक जून को बेटी होने पर कुंदन ने अपनी मां से अंतिम बार बात की थी. उसके बाद वे गलवान घाटी में प्रतिनियुक्त कर दिए गए थे. वहां नेटवर्क नहीं होने के कारण उन्होंने पिछले 15 दिनों से अपना फोन बंद कर रखा था. वह फोन अभी भी बंद है.
कुंदन ओझा के चचेरे भाई मनोज ओझा ने बीबीसी को बताया कि कुंदन अपने तीन भाइयों में दूसरे नंबर पर थे. साल 2011 में वो भारतीय सेना में शामिल हुए थे. उनके पिता रविशंकर ओझा किसान हैं. यह परिवार झारखंड के साहिबगंज ज़िले के डिहारी गांव में रहता है. उऩका गांव साहिबगंज के बाहरी इलाके में स्थित है. उनके दोनों भाई नौकरीपेशा हैं.
सेना का फ़ोन आने के बाद भवानी देवी ने मनोज से ही उस नंबर पर कॉलबैक कराया था. इसके बाद ही पुष्टि हो सकी कि कुंदन ओझा अब इस दुनिया में नहीं हैं.
सरकार को आधिकारिक सूचना नहीं
इस बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कुंदन ओझा की मौत पर शोक व्यक्त किया है. मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर कहा कि उन्हें झारखंड के वीर सपूत कुंदन ओझा और दो दूसरे सैनिकों की शहादत पर गर्व है.
उन्होंने लिखा, ''मैं उन्हें सैल्यूट करता हूं. झारखंड सरकार और पूरा राज्य कुंदन के परिवार वालों के साथ खड़ा है.''
वहीं साहिबगंज के उपायुक्त (डीसी) वरुण रंजन ने बीबीसी से कहा कि हमें सेना की तरफ से अभी तक (रात 9.49 बजे तक) कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है.
उन्होंने कहा, ''कुंदन ओझा के परिवार वालों से ही हमें यह जानकारी मिली. हमने सेना से इसकी आधिकारिक सूचना देने का अनुरोध किया है. वहां नेटवर्क की भी समस्या है. ऐसे में बुधवार सुबह तक हमें आधिकारिक पत्र मिल जाने की उम्मीद है. हालांकि, इस सूचना के बाद मैंने अपने कुछ पदाधिकारियों को उनके घर भेजकर परिवार वालों से बातचीत की है. हम उनके संपर्क में हैं. उन्हें हर तरह की मदद की जाएगी.''
डीसी वरुण ने कहा कि क्योंकि वहाँ की परिस्थितियां दुरुह हैं और उनकी कोई आधिकारिक बातचीत भी नहीं हुई है. ऐसे में कुंदन ओझा के शव के गुरुवार तक आने के आसार हैं.
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