#Corona की तैयारी के आगे सरकारी तैयारी धरी के धरी रह गई....
कोरोना वायरस ने सिर्फ़ मुझे लाचार नहीं किया, मेरे परिवार को भी बर्बाद कर दिया'
मेरी भांजी खुशाली तामैची को जिस समय उसकी 12वीं कक्षा का अंक प्रमाण पत्र मिला, उसकी आंखों में आंसू थे. वो अपने बैच के उन कुछ बच्चों में से एक थी जो प्रथम श्रेणी से पास हुए थे.
उसे जानने वाला हर शख़्स इसकी वजह जानता था. यही वो दिन था जिसके लिए उसके पिता ज़िंदा थे. उसके पिता उमेश तामैची की कुछ दिन पहले ही कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मौत हो गई थी.
उमेश 44 साल के थे. वो अहमदाबाद मेट्रो कोर्ट में बतौर वरिष्ठ अधिवक्ता थे.
12 मई को उनका टेस्ट हुआ जिसमें वो कोरोना पॉज़िटिव पाए गए. यह सोमवार देर शाम 11 मई की बात थी जब उन्हें सांस लेने में तकलीफ़ महसूस हुई. जिसके बाद मेरी बहन शेफ़ाली उन्हें पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल ले गई.
आनंद सर्जिकल अस्पताल को कुछ दिन पहले ही अहमदाबाद नगर निगम ने कोविड-19 के मरीज़ों के लिए सूचीबद्ध किया था. यह काफ़ी जाना माना अस्पताल है. शेफ़ाली ने मुझे अस्पताल से ही फ़ोन किया और सारी जानकारी दी.
मैंने शेफ़ाली को शांत रहने और धीरज बांधने को कहा. मैंने आनंद सर्जिकल अस्पताल में कुछेक लोगों को फ़ोन कॉल किया. उन्होंने मुझे बताया कि भले ही यह अस्पताल कोरोना मरीज़ों के लिए हो लेकिन उनके पास अभी तक कोरोना मरीज़ों के लिए तैयार कोई आइसोलेशन रूम नहीं है.
उनके पास वेंटिलेटर भी नहीं है और डॉक्टर भी नहीं, जो कोरोना मरीज़ों का इलाज कर सकें. मैंने शेफ़ाली से कहा कि वो किसी और अस्पताल में जाने की कोशिश करे.
उसने एक के बाद एक कई अस्पतालों से संपर्क किया लेकिन कोई भी अस्पताल तैयार नहीं हुआ. यहां तक कि कोई भी अस्पताल उमेश को शुरुआती इलाज देने के लिए भी तैयार नहीं हुआ.
पास में ही एक दूसरा अस्पताल था जिसने उमेश के सांस ना ले पाने के सही कारणों की जांच के लिए सीने का एक्स-रे करवाने में मदद की. एक्स-रे के मुताबिक़, उमेश की छाती में कफ़ जमा हो गया था. अब आशंका स्पष्ट हो गई थी कि वो कोरोना वायरस संक्रमण से पीड़ित हो सकता है.
अधिकारियों ने कहा था, पूरी तैयारी है
मेरी बहन शेफ़ाली भारत की एक जानी-मानी आईटी कंपनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत है. वो कुबेरनगर के छारानगर में अपने परिवार के साथ रहती है. यह इलाक़ा मुंबई के धारावी का छोटा प्रारूप सा है.
एक के ऊपर एक चढ़े हुए घर, संकरी सड़कें-गलियां, कोई नागरिक सुविधा नहीं, गंदे मकान और बेतरतीब निर्माण. छारानगर इलाक़ा अवैध शराब के लिए बदनाम है और मध्यम वर्ग के लिए यह एक गंदा स्थान माना जाता है.
हम छारानगर में एक साथ पले-बढ़े. कुछ वक़्त बाद मैं दूसरे इलाक़े में शिफ़्ट हो गया लेकिन शेफ़ाली ने छारानगर में ही रहने का फ़ैसला किया.
इस जोड़े ने, यानी उमेश और शेफ़ाली ने बहुत मेहनत की और छारानगर के नवकोली इलाक़े में एक मकान बनाया था. उमेश-शेफ़ाली की दो बेटियां हैं और दोनों ही कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती हैं.
यह बात अपने आप में थोड़ी दुर्लभ थी क्योंकि यह एक ऐसा इलाक़ा है जहां लोग बेटियों की पढ़ाई पर पैसे ख़र्च करना पसंद नहीं करते हैं. उमेश-शेफ़ाली की बड़ी बेटी खुशाली ने कुछ वक़्त पहले ही बारहवीं की परीक्षा दी थी और वो नीट की तैयारी कर रही थी. छोटी बेटी उर्वशी 15 साल की है. उर्वशी ने दसवीं की परीक्षा दी है और वो बड़ी होकर अपने पिता की तरह अधिवक्ता बनना चाहती है.
एक्स रे की रिपोर्ट मिलने के बाद शेफ़ाली ने मुझे फ़ोन किया और कहा कि रेडियोलॉजिस्ट को आशंका है कि उमेश को कोरोना संक्रमण है.
इससे कुछ दिन पहले, मैंने कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार की समग्र तैयारियों पर एक कहानी की थी और स्वास्थ्य आयुक्त जयप्रकाश शिवहरे और अहमदाबाद सिविल अस्पताल के तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक जीएच राठौड़ का साक्षात्कार भी किया था.
अधिकारियों का कहना था कि महामारी से निपटने के लिए उनकी ओर से पूरी तैयारी है. उन्होंने ये भी कहा कि उनके पास अच्छी गुणवत्ता के वेंटिलेटर हैं और अहमदाबाद सिविल अस्पताल में उनके पास ट्रेंड स्टाफ़ भी हैं.
भर्ती कराने का संघर्ष
शेफ़ाली से बात करते हुए मेरे दिमाग़ में तुरंत ये बात कौंधी. मैंने शेफ़ाली से कहा कि वो उमेश को प्राइमरी इलाज के लिए सिविल अस्पताल लेकर जाए.
अस्पताल में कोरोना मरीज़ों के लिए बने ओपीडी पूरी तरह से भरे हुए थे. इससे पहले की शेफ़ाली वहां पहुंचती, मैंने पहले से ही मेडिकल सुप्रीटेंडेंट को फ़ोन कर दिया था.
साथ ही वहां मरीज़ों के लिए मौजूद डॉक्टरों से भी बात कर ली थी. उन्होंने कहा कि वे मरीज़ को देख लेंगे और अगर ज़रूरत लगी तो वो उसे भर्ती भी कर लेंगे.
छाती का एक्स रे देखने के बाद डॉक्टरों ने सलाह दी कि उमेश को भर्ती कर लेते हैं. उमेश को पहले सस्पेक्टेड वॉर्ड में रखा गया और उसके बाद उसे कोरोना वॉर्ड में शिफ़्ट कर दिया गया.
मैं आशंकित था कि उमेश को शायद बेहतर इलाज नहीं मिल रहा हो. मैंने इस सोच के साथ उप मुख्यमंत्री नितिनभाई से बात की. नितिनभाई उप-मुख्यमंत्री होने के साथ ही राज्य के स्वास्थ्य मंत्री भी हैं. उन्होंने बड़े ही अच्छे से मेरी सारी बात सुनी और असरवा स्थित सिविल अस्पताल के डॉक्टरों को निर्देश दिया कि वे उमेश का ध्यान रखें.
आमतौर पर मरीज़ की स्थिति के बारे में संबंधित डॉक्टर मरीज़ के रिश्तेदारों को सूचित करते हैं लेकिन यहां डॉक्टरों की तरफ़ से किसी भी तरह की सूचना मरीज़ के परिवार को नहीं दी गई. परिवार और डॉक्टरों के बीच टेलीफ़ोन पर कोई बातचीत नहीं हुई.
मंगलवार की दोपहर जब उमेश की हालत बिगड़ गई तो उसे आईसीयू में शिफ़्ट कर दिया गया. मैं सिविल अस्पताल में उसे मिल रहे इलाज और देखभाल को लेकर बहुत आशान्वित नहीं था और कोशिश कर रहा था कि उसे किसी प्राइवेट अस्पताल में शिफ़्ट करवा दूं.
पूरे शहर में एक बेड नहीं मिला
मैंने स्टरलिंग अस्पताल में संपर्क किया. ये अस्पताल ख़ासतौर पर कोरोना मरीज़ों के लिए नामित किया गया है. इस अस्पताल में भर्ती हो पाना इतना आसान नहीं था.
संपर्क करने पर मुझे जवाब मिला कि यह अस्पताल भरा हुआ है. इसके बाद मैंने एचसीजी अस्पताल को संपर्क किया. वहां से भी यही जवाब मिला कि अस्पताल फ़ुल है. इसके बाद चंदखेड़ा के एसएमएस अस्पताल से जवाब मिला कि वो सिविल अस्पताल से लौटे मरीज़ को अपने यहां भर्ती नहीं करेंगे, ये उनके नियमों के ख़िलाफ़ है.
इसके बाद तपन अस्पताल, सीआईएमएस अस्पताल, नारायणी अस्पताल में तो किसी ने फ़ोन कॉल तक का जवाब नहीं दिया. एक-एक करके मैंने ना जाने कितने प्राइवेट अस्पताल में सिर्फ़ एक बेड के लिए फ़ोन किया लेकिन पूरे शहर में एक बेड नहीं मिला.
मैंने अपने कुछ पत्रकार दोस्तों को फ़ोन किया. क्राइम रिपोर्टर, हेल्थ रिपोर्टर सभी को. उन्होंने भी मेरे लिए भरपूर कोशिश की लेकिन उन्हें भी कामयाबी नहीं मिली.
12 मई और 13 मई को हमारी लाख कोशिशों के बावजूद हमें किसी भी अस्पताल में एक बेड नहीं मिला. कहीं कोई कमरा खाली नहीं था. इसके बाद मैंने शहर के मेयर को संपर्क किया.
उन्होंने कहा कि किसी प्राइवेट अस्पताल में इस समय बेड मिल पाना बहुत मुश्किल है लेकिन वो सिविल अस्पताल के सुप्रीटेंडेंट से बात करेंगी और उन्हें कहेंगे कि वे उमेश का अच्छी तरह से इलाज करें. मैं यक़ीन करता हूं कि उन्होंने ऐसे किया भी होगा.
किसी प्राइवेट अस्पताल में बेड मिलने को लेकर जब मैं चारों ओर से पूरी तरह निराश हो गया तो मैंने मन बनाया कि अब सिविल अस्पताल में ही उमेश के बेहतर इलाज पर ध्यान देता हूं.
मेरे बहुत से पत्रकार दोस्तों ने कहा भी कि ऐसे समय में सिविल अस्पताल एक अच्छा विकल्प है. मैंने कोविड अस्पताल के रेज़िडेंट मेडिकल ऑफ़िसर से बात करना शुरू किया, जिसने शुरू के तीन दिन तो मेरे फ़ोन कॉल्स का आराम से जवाब दिया.
हालांकि उस वक़्त भी उमेश की हालत ख़राब थी और बाहरी स्रोत से ऑक्सीजन पर उसकी निर्भरता बढ़ती जा रही थी.
वो सांस नहीं ले पा रहा था
इससे पहले कि उमेश को लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम पर शिफ़्ट किया जाता मुझे डॉक्टर कमलेश उपाध्याय की तरफ़ से एक फोन आया. उन्होंने बताया कि उमेश की सांस अभी स्थिर नहीं हो पा रही है इसलिए उसे वेंटिलेटर पर शिफ़्ट कर रहे हैं.
वीडियो कॉल के ज़रिए उन्होंने मुझे उमेश को दिखाया. जो ऑक्सीजन लेने के लिए संघर्ष कर रहा था. वो बोल भी नहीं पा रहा था. वो सिर्फ़ अपने हाथों से इशारा करके अपनी बात कर रहा था. वो सांस नहीं ले पा रहा था.
एक तंदुरुस्त आदमी जो नियमित तौर पर व्यायाम करता हो, जिसका शरीर मज़बूत हो, जिसे स्वास्थ्य से जुड़ी कोई शिकायत ना हो, जो दवाइयों से कहीं अधिक मन की ताक़त पर भरोसा करता हो, उसने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि किसी दूसरे देश से आया एक वायरस उसे अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड में पहुंचा देगा.
बजाय इसके कि वो अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य और उनके आज के लिए मेहनत करता, वो अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड में सांस लेने के लिए जद्दोजहद कर रहा था. वह टूटा-बिखरा हुआ सा लग रहा था, कमज़ोर और बिल्कुल ऐसा जैसे वो ये लड़ाई हार चुका हो. अगर वो बोल पा रहा होता तो ज़रूर यही कहता कि कुछ भी करके मुझे मेरे परिवार के पास ले चलो.
वहीं दूसरी ओर उसका परिवार एक दूसरी जंग से जूझ रहा था. शेफ़ाली छारा समुदाय की एक पढ़ी-लिखी महिला है. वो एक मज़बूत औरत है जो अपने सपनों के लिए लड़ना जानती है.
ऐसे में इस परिस्थिति में उसे टूटते हुए देखना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था. कुछ ऐसा, जो कोई भी भाई अपनी छोटी बहन के साथ होता हुआ नहीं देखना चाहेगा. वो बुरी तरह बिखर गई थी.
वो डरी हुई थी और कमज़ोर हो गई थी. परिवार के कई सदस्य पास में ही रहते हैं लेकिन कोई भी उससे मिलने नहीं जा सकता था. उसे ढांढस ही दे सके. वह अपनी दोनों बेटियों के साथ अकेली थी. दोनों बेटियां लगातार अपने पिता के वापस आने के लिए प्रार्थना कर रही थीं.
अभी कुछ दिन पहले ही तो उन दोनों ने अपनी तस्वीरों से सजा एक पोस्टर उमेश को गिफ़्ट किया था, जिस पर लिखा था - द बेस्ट पॉप. उमेश ने भी उसे गर्व के साथ ड्राइंग रूम में सजा दिया था.
कोई मदद नहीं मिली
एक ओर जहां उमेश का इलाज चल रहा था वहीं दूसरी ओर शेफ़ाली को लगा कि उसे भी अपना चेकअप करवा लेना चाहिए क्योंकि वो उमेश के सीधे संपर्क में थी. शेफ़ाली को हाई ब्लड प्रेशर है और वो डायबिटिक भी है.
उसने हेल्पलाइन 104 पर फ़ोन किया ताकि वो भी अपना टेस्ट करवा सके. मैंने कई अधिकारियों को शेफ़ाली के टेस्ट के लिए फ़ोन किया लेकिन मेरे किसी भी फ़ोन कॉल का कोई नतीजा नहीं निकला.
अगले तीन दिन तक भी उसका टेस्ट नहीं हो सका. हम बहुत डरे हुए थे क्योंकि शेफ़ाली डायबिटिक थी और अगर उसका टेस्ट पॉज़ीटिव आता है तो यह बहुत ही परेशानी की बात हो सकती थी.
सरकारी अधिकारी जवाब नहीं दे रहे थे तो उसके बाद हमने फ़ैसला किया कि हम कोरोना संक्रमण जांच के लिए नामित प्रयोगशालाओं में से किसी एक में शेफ़ाली का टेस्ट करवा लेते हैं.
निजी अस्पतालों में परीक्षण रोकने के लिए सरकार की ओर से जारी सर्कुलर अभी तक आया नहीं था. लैब वालों ने टेस्ट करने के लिए डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन मांगा. जिस इलाक़े में शेफ़ाली रहती है वो निम्न आय वर्ग वालों का क्षेत्र है.
उस इलाक़े के आसपास के सभी डॉक्टर ने अपनी-अपनी डिस्पेंसरी बंद कर दी थी. हालांकि किसी तरह मैंने अपने इलाक़े घाटलोदिया के एक प्राइवेट डॉक्टर से पर्चा बनवा लिया था. इसके बाद लैब टेक्नीशियन ने बताया कि सरकार ने उन्हें अब कोई भी सैंपल स्वीकार नहीं करने का आदेश दिया है.
प्राइवेट लैब जाने से एक दिन पहले ही शेफ़ाली पास के ही अर्बन हेल्थ सेंटर गई थी. वहां जाकर उसे सिर्फ़ लंबी कतार देखने को मिली थी. वहां स्टाफ़ का कोई शख़्स नहीं था जो टेस्ट कर रहा हो. वो अपनी दो बेटियों के साथ एक कोने में खड़ी थी कि शायद कोई स्टाफ़ आए और टेस्ट हो जाए.
लेकिन कोई नहीं आया. वो वापस लौट आई और उसके बाद उसने प्राइवेट लैब में टेस्ट कराने के बारे में सोचा था लेकिन अंत में टेस्ट वहां भी नहीं हो सका.
उसके साथ जो कुछ हो रहा था उसने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री को टैग करते हुए ट्वीट करूं और इन सारे हालातों के बारे में बताऊं. हालांकि मेरा ट्वीट कई बार री-ट्वीट हुआ लेकिन हमें वहां से भी कोई मदद नहीं मिली.
मेरे ट्वीट करने का मक़सद सरकार के किए जा रहे प्रयासों का अनादर करना बिल्कुल नहीं था. इस ट्वीट के माध्यम से सिर्फ़ उन्हें वो परेशानी बताना चाह रहा था जिससे मेरा परिवार गुज़र रहा था.
मेरे साथ काम करने वाले कुछ दोस्तों की मदद से 15 मई को शेफ़ाली का टेस्ट हो गया. अगले दिन हमे टेस्ट के रिज़ल्ट भी मिल गए. टेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक़, शेफ़ाली और उसकी छोटी बेटी उर्वशी का सैंपल पॉज़िटिव आया था. हमने तय किया कि हम उसे इलाज के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल भेजेंगे.
किसी ने बताया, उमेश की मौत हो गई...
16 मई का दिन था और शाम के क़रीब चार बज रहे थे. तभी शेफ़ाली 108 एंबुलेंस में बैठी. मैं उसे अपनी कार से फ़ॉलो कर रहा था. एंबुलेंस साइंस सिटी रोड स्थित सीआईएमएस अस्पताल पहुंची. ऑफ़िस के एक साथी की मदद से शेफ़ाली को उस हॉस्पिटल में भर्ती कर लिया गया.
अस्पताल जाने के रास्ते में जब हम सिविल हॉस्पिटल के सामने से गुज़र रहे थे तभी एक रिश्तेदार ने मुझे फ़ोन किया और कहा क्या मैं उमेश की हालत के बारे में एकबार मालूम कर सकता हूं.
मैंने उन्हें बताया कि मैं सुबह से डॉक्टरों से संपर्क करके उमेश की हालत जानने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन कोई भी जवाब नहीं दे रहा है.
मैंने उन्हें कहा कि मुझे नही मालूम कि अस्पताल के भीतर क्या कुछ चल रहा है. उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें कहीं से सूचना मिली है कि आज सुबह ही उमेश की मौत हो गई.
मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा था, मैं सोच तक नहीं पा रहा था, कुछ भी कर तक नहीं पा रहा था. मैं एंबुलेंस के पीछे-पीछे था और मैं अपनी कार को रोक नहीं सकता था. मैंने ख़ुद को समेटा और पूरी हिम्मत बटोरते हुए डॉक्टर कमलेश उपाध्याय को फ़ोन किया.
उन्होंने मुझसे कहा कि क्योंकि आज अस्पताल में उनकी शिफ़्ट नहीं है तो उन्हें उमेश के बारे में कुछ भी नहीं पता. उनका वो जवाब मेरे लिए किसी आघात से कम नहीं था. बहुत बाद में जाकर मेरे दिमाग़ में ये ख़याल आया कि उमेश के मामले में सिविल अस्पताल पर भरोसा करके मैंने ग़लती की.
इसके बाद मैंने कुछेक और लोगों को भी कॉल किया. मैंने डॉक्टर मैत्रयी गज्जर को फ़ोन किया, उन्होंने पुष्टि की कि उमेश ने शनिवार की सुबह अपनी आख़िरी सांस ली थी. मेरे फ़ोन करने से पहले तक अस्पताल के अधिकारियों द्वारा मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया गया था.
जिस तरह की परिस्थितियां बनीं उनके बारे में सोच भी नहीं सकते. कोरोना वायरस ने पहले ही परिवार को तोड़ दिया, उस पर भी अभी और दुख मिलना बाकी था. शेफ़ाली की एंबुलेंस सीआईएमएस हॉस्पिटल पहुंच चुकी थी लेकिन वो भर्ती नहीं हो सकी क्योंकि शायद उसे एकबार अपने पति को देखना था, भले ही वो दूर से ही क्यों ना हो.
पता नहीं किन परिस्थितियों में उमेश की मौत हुई
मेरे लिए सबसे मुश्किल था अपनी बहन को ये बताना कि उसका पति मर चुका है. वो आदमी जिसने पूरी ज़िंदगी उसे प्यार दिया, वो सिविल अस्पताल के आईसीयू वॉर्ड में आख़िरी सांस लेकर जा चुका है और उसका मृत शरीर घंटों से यूं ही बिना किसी की निगरानी में रख हुआ है. लेकिन मुझे उसे ये सबकुछ बताना तो था ही.
एंबुलेंस उसे वापस घर नहीं ले जाने वाली थी और कोई भी निजी साधन उपलब्ध नहीं था. ना ही मैं उसे अपनी कार में बैठने दे सकता था. ऐसे में उसका घर जाना एक बड़ी मुश्किल थी. मैंने किसी तरह एक स्कूटर का इंतज़ाम किया और उसे घर लौटने को कहा. मैं उसके पीछे-पीछे था. जब वो घर पहुंची तो उसे उमेश की मौत के बारे में पता चला.
एक दर्द भरी चीख़ के बाद उसने सिर्फ़ इतना कहा, ''भाई तुमने वादा किया था कि मेरा उमेश वापस आ जाएगा. मेरा उमेश कहां है?''
महज़ तीन दिनों में कोरोना वायरस ने उसके पूरे घर को बिखेर दिया था. वो घर जिसे उन दोनों ने मिलकर बीते 20 सालों में बनाया था. वो बिल्कुल अकेली रह गई थी. मेरे पास उसका सामना करने की ताक़त नहीं थी क्योंकि उसके पति को वापस लाने के लिए उसने मुझ पर यकीन किया था और मैं इसमें कामयाब नहीं हुआ.
बीते 20 सालों से मैं इस शहर में पत्रकार हूं. राज्य के बड़े नामचीन और प्रभावशाली लोगों तक पहुंच है. लेकिन बीते कुछ दिनों में मैंने अपने को बेहद लाचार महसूस किया. शर्मिंदा महसूस किया क्योंकि छोटी-छोटी बातों के लिए दर्जनों फ़ोन किए. ऐसे काम जो अपने आप हो जाने चाहिए थे. अहमदाबाद में कोरोना के ख़िलाफ़ कुछ भी काम नहीं किया.
उमेश की मौत के 20 दिन बाद तक मुझे ये नहीं पता चल सका कि उसे क्या इलाज दिया गया और उसकी मौत कब हुई. डॉक्टरों ने उसे बचाने के लिए आख़िरी प्रयास के तौर पर क्या किया. कौन सा वेंटिलेटर इस्तेमाल किया गया था. क्या वो धमन-1 था?
अनगिनत सवाल
बहुत से ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब अब तक नहीं मिल सका है. मेरी बहन के साथ अलग-अलग मंचों से मैं इन सवालों के जवाब मांगता रहूंगा. सिविल अधिकारी उमेश के खोए हुए मोबाइल, सिम कार्ड और उसकी कलाई घड़ी के सवाल पर भी कोई जवाब नहीं दे सके.
इस घटना के बारे में जब मैंने लोगों को बताया तो लगभग हर किसी ने यही कहा कि सोचो अगर ऐसा तुम्हारे साथ हो रहा है तो उनका क्या जो बेहद सामान्य लोग हैं. उन लोगों के बारे में सोचो जो किसी बड़े ओहदे वाले आदमी को नहीं जानते, उन लोगों के साथ क्या कुछ हो रहा होगा?
अहमदाबाद में कई पॉज़िटिव केस हैं. हर रोज़ कोरोना मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है और उसी के साथ बेड की उपलब्धता घट रही है. मौजूदा समय में सिर्फ़ उन लोगों की जांच हो रही है जिनमें लक्षण दिख रहे हैं. इसका मतलब ये हुआ कि जिस किसी का भी टेस्ट हो रहा है उसे बेड और डॉक्टर दोनों की ज़रूरत है लेकिन शहर में ना तो अतिरिक्त बेड हैं और ना ही डॉक्टर.
अहमदाबाद में जो हालात अभी हैं वो डराने वाले हैं. मैं ख़ुद कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव को भुगत चुका हूं और अब कोशिश कर रहा हूं कि दूसरों की मदद कर सकूं. उन्हें प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवा सकूं. बहुत से लोग मदद के लिए फ़ोन करते हैं.
हाल ही में मेरे सामने सूरसिंह बाजारंगे का एक मामला आया. उनकी उम्र 60 साल थी. उनका कोरोना टेस्ट पॉज़िटिव आया था. उनकी रिपोर्ट आने के बाद उनके बेटे विवेकांत बाजारंगे ने कोशिश की कि उन्हें प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवा सकें.
ऐसा लगता है कि सरकारी अस्पतालों को लेकर लोगों में विश्वास नहीं रह गया है. उसने सीआईएसएस, एचसीजी और कई दूसरे प्राइवेट अस्पताल में कोशिश कर ली थी लेकिन किसी भी असप्ताल में बेड नहीं थे. बहुत सारे फ़ोन कॉल के बाद, किसी तरह उन्हें सेवियर प्राइवेट अस्पताल में बेड मिल ही गया.
लाचारी और बेचारगी
ऐसे मौक़े पर जब मैं यह लेख लिख रहा हूं, उस वक़्त भी एक युवा निकुल इंद्रेकर की मां का जायदस अस्पताल में इलाज चल रहा है. और आज शाम तक उनके कोरोना टेस्ट का रिज़ल्ट भी आ जाएगा.
अगर उनका टेस्ट पॉज़िटिव आता है तो उन्हें शाम तक किसी दूसरे अस्पताल में शिफ़्ट कर दिया जाएगा. निकुल ने लगभग हर अस्पताल में कोशिश कर ली थी लेकिन किसी भी अस्पताल में एक बेड भी खाली नहीं मिला.
उसे सरकारी अस्पताल पर भरोसा नहीं और प्राइवेट में जगह नहीं. ऐेसे में वो सिर्फ़ इंतज़ार कर सकता है.
अहमदाबाद में इस तरह की लाचारी और बेचारगी हर रोज़ देखने को मिल रही है. बहुत से लोग हैं जो घर पर ही मर गए क्योंकि उन्हें बेड नहीं मिले. निकुल ने मुझसे कहा इस राज्य के विकास का क्या फ़ायदा जबकि मुझे मेरी मां के लिए अस्पताल में एक बेड तक नहीं मिल पा रहा.
कोरोना वायरस ने परिवारों को बिखेर दिया है. शेफ़ाली की तरह कइयों के परिवार बिखर गए होंगे. और ऐसा लगता है कि सरकार को समझ ही नहीं आ रहा कि वो इन परिस्थितियों को कैसे संभाले. हम सभी अच्छे इलाज के हक़दार हैं और गरिमापूर्ण मौत के भी.
बहरहाल शेफ़ाली को 18 मई को एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती किया गया. पांच दिन चले इलाज के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया गया. वहीं शेफ़ाली की 15 वर्षीय बेटी उर्वशी हमारी आंटी के साथ घर पर ही थी. वहीं खुशाली, जिसका टेस्ट नेगेटिव आ गया था, वो इन दिनों घर से दूर अकेली रह रही थी.
तीनों 23 मई को मिलीं और तबसे अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रही हैं. शेफ़ाली वर्क फ्ऱॉम होम शुरू करने की कोशिश कर रही हैं.
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