जरूर जानें ! नरेंद्र मोदी के पीएम केयर्स फंड और उसको लेकर बने रहस्य ?
नरेंद्र मोदी के पीएम केयर्स फंड को लेकर इतना रहस्य क्यों
भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पहली बार लॉकडाउन शुरू होने के कुछ ही दिन बाद 27 मार्च को नरेंद्र मोदी ने पीएम केयर्स फंड का गठन किया.
एक दिन के बाद पीएम मोदी ने सभी भारतीयों से इसमें दान देने की अपील की. मोदी ने ट्वीट पर कहा, "मेरी सभी भारतीयों से अपील है कि वो पीएम केयर्स फंड में योगदान दें." उन्होंने ये भी कहा कि उनके डोनेशन से कोरोना के ख़िलाफ़ भारत की लड़ाई और मज़बूत होगी और स्वस्थ्य भारत बनाने की दिशा में ये एक लंबा रास्ता तय करेगा.
पीएम मोदी की अपील के बाद कई क्षेत्रों से डोनेशन आने शुरू हो गए. उद्योगपति, सेलिब्रिटीज़, कंपनियाँ और आम आदमी ने भी इसमें अपना योगदान किया. रिपोर्टों के मुताबिक़ एक सप्ताह के अंदर इस फंड में 65 अरब रुपए इकट्ठा हो गए. माना ये जा रहा है कि अब ये राशि बढ़कर 100 अरब रुपए हो चुकी है.
लेकिन पीएम केयर्स फंड शुरू से ही विवादों में भी रहा है. कई लोगों ने इस पर सवाल उठाया कि जब 1948 से ही पीएम नेशनल रिलीफ़ फंड (पीएमएनआरएफ़) मौजूद है, तो नए फंड की क्या आवश्यकता थी.
विपक्षी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सलाह दी कि पीएम केयर फंड में जमा राशि को पीएमएनआरएफ़ में ट्रांसफ़र कर देना चाहिए. कांग्रेस ने ये भी कहा कि इस फंड का इस्तेमाल प्रवासी मज़दूरों के कल्याण के लिए करना चाहिए.
प्रवासी मज़दूरों की समस्या
जिस दिन पीएम केयर्स फंड का गठन हुआ था, उसी दिन भारत में एक बड़ा मानवीय संकट पैदा हो गया था. एकाएक हुई लॉकडाउन की घोषणा से लाखों की संख्या में प्रवासी मज़दूरों ने शहरों से अपने गाँवों की ओर पलायन शुरू कर दिया. इन मज़दूरों में कई काफ़ी ग़रीब भी थे. कई दिनों तक इन मज़दूरों ने सैकड़ों मील की दूरी तय की. कुछ ने लंबी-लंबी दूरियाँ पैदल तय की.
भूखे प्यासे इन मज़दूरों की तस्वीरें लंबे समय तक सुर्ख़ियों में बनी रहीं. इस दौरान 100 से ज़्यादा मज़दूरों की जान चली गई.
ये माना गया कि सरकार इस फंड की कुछ राशि उन लोगों पर ख़र्च करेगी, जो शहर से पलायन करने को मजबूर हो गए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसी वजह से एक विपक्षी सांसद ने तो पीएम केयर्स फंड के बारे में यहाँ तक कह दिया कि पीएम वास्तव में केयर नहीं करते.
पीएम केयर्स फंड के गठन के कुछ दिनों के अंदर ही ये सवाल भी उठने लगे कि किस तरह इस फंड को बनाया गया है और इसे कैसे मैनेज किया जा रहा है, कितना पैसा अभी तक इकट्ठा हुआ है और ये किसके लिए और कैसे इस्तेमाल होगा?
लेकिन पीएम केयर्स की वेबसाइट इन सवालों के कोई जवाब नहीं हैं. इस फंड को मैनेज करने वाले प्रधानमंत्री कार्यालय ने किसी तरह की सूचना देने से इनकार कर दिया. अब विपक्षी नेता, कई कार्यकर्ता और पत्रकार ये सवाल पूछ रहे हैं कि क्या सरकार कुछ छिपा रही है?
सूचना का अभाव
अदालतों में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत याचिकाएँ दायर की गईं कि इस मामले में और पारदर्शिता लाई जाए. लेकिन अभी तक यही कहा गया है कि पीएम केयर्स फंड एक पब्लिक अथॉरिटी नहीं है. इसका मतलब ये है कि न ही सरकार की ओर से इसे पर्याप्त वित्तीय मदद मिलती है और न ही इस पर उसका नियंत्रण है. इसलिए ये आरटीआई के दायरे में नहीं आता. इसका मतलब ये भी हुआ कि इसकी जाँच सरकारी ऑडिटर्स भी नहीं कर सकते.
क़ानून के छात्र कंडुकुरी श्री हर्ष कहते हैं, "ये बिल्कुल बेकार की बात है कि पीम केयर्स पब्लिक अथॉरिटी नहीं है. लाखों लोगों ने ये सोचकर इस फंड में योगदान नहीं किया है कि ये एक प्राइवेट ट्रस्ट है. प्रधानमंत्री के नाम पर इस फंड में पैसा जमा किया गया है."
कुंडकुरी उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने आरटीआई के तहत पीएम केयर्स फंड के बारे में जानकारी मांगी थी. एक अप्रैल को दायर अपनी याचिका में उन्होंने उन दस्तावेज़ों की मांग की थी, जिससे ये पता चले कि ट्रस्ट का गठन कैसे हुआ और ये कैसे काम करता है.
उन्होंने इस पक्ष में कई दलीलें दी कि क्यों इस फंड को पब्लिक अथॉरिटी होना चाहिए. पहला तो ये कि सरकार इसका नियंत्रण करती है- क्योंकि पीएम इसके अध्यक्ष हैं, उनकी कैबिनेट के तीन सहयोगी इसके ट्रस्टी हैं और बाक़ी के तीन ट्रस्टियों का चयन पीएम ने किया है.
इसके साथ ही पीएम केयर्स की वेबसाइट में gov.in का इस्तेमाल होता है, तो आधिकारिक रूप से सरकारी डोमेन है. साथ ही इस फंड में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का इस्तेमाल होता है, जिसका इस्तेमाल सिर्फ़ सरकारी संस्थाएँ ही कर सकती हैं.
उनकी ये भी दलील है कि इस फंड को सरकार से पर्याप्त वित्तीय मदद मिलती है. बीजेपी के सभी सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्र के फंड से एक करोड़ रुपए देने को कहा गया है. संसदीय क्षेत्र फंड संवैधानिक रूप से गठित फंड है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने भी करोड़ों रुपए पीएम-केयर्स फंड में दान दिया है, इन कंपनियों पर भी सरकार का ही नियंत्रण है.
साथ ही सैनिकों, सिविल सेवा कर्मचारियों और जजों ने इस फंड में अपने एक दिन का वेतन अनिवार्य रूप से डोनेट किया है.
कंडुकुरी पूछते हैं, "सरकार इसमें अडंगा क्यों लगा रही है, इसमें छिपाने वाली क्या चीज़ हो सकती है?"
गंभीर आरोप
एक्टिविस्ट और पूर्व पत्रकार साकेत गोखले कहते हैं- छिपाने के लिए काफ़ी चीज़ें हैं. साकेत इस फंड को सरकार की दुखती रग और एक बड़ा घोटाला कहते हैं.
पीएम मोदी की पार्टी के सहयोगी फंड को लेकर किसी भी ग़लत काम से इनकार करते हैं. कई हफ़्तों से सरकार से फंड के इस्तेमाल को लेकर सवाल पूछे गए. हाल ही में अब प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि 50 हज़ार वेंटिलेटर्स के लिए 20 अरब रुपए ख़र्च किए जा रहे हैं, जबकि 10 अरब रुपए प्रवासी मज़दूरों की मदद के लिए दिए जा रहे हैं और एक अरब रुपए वैक्सीन विकसित करने में लगाए जाएँगे.
लेकिन प्रवासी मज़दूरों के लिए दी जाने वाली राशि को लेकर आलोचना हो रही है और कहा जा रहा है कि एक तो ये बहुत देर से फ़ैसला किया गया और दूसरे ये राशि भी काफ़ी कम है. वेंटिलेटर्स का चुनाव भी मुश्किल में पड़ गया है.
साकेत गोखले कहते हैं, "वेंटिलेटर्स के लिए कोई टेंडर नहीं निकाला गया, न ही कोई बोली लगी. ये फ़ैसला मनमर्ज़ी से किया गया है."
पिछले सप्ताह ही एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की ओर से नियुक्त किए गए दो पैनलों ने पीएम-केयर्स फंड के अंतर्गत ख़रीदे गए 10 हज़ार वेंटिलेटर्स की विश्वसनीयता और क्षमता को लेकर चिंता जताई है.
साकेत गोखले ने फंड के ऑडिट के लिए एक प्राइवेट कंपनी SARC & Associates के चयन पर भी सवाल उठाए हैं. पीएम मोदी ने मार्च 2018 में पीएमएनआरएफ़ के ऑडिट के लिए इस कंपनी का चयन किया था. उसमें भी कोई नीलामी प्रक्रिया नहीं थी.
साकेत कहते हैं, "इसके साथ एक ही चीज़ है और वो है बीजेपी के साथ गहरे रिश्ते. इसकी अगुआई करने वाले एसके गुप्ता बीजेपी की नीतियों के मुखर पैरोकार रहे हैं. उन्होंने मेक इन इंडिया पर एक किताब लिखी है, जो पीएम मोदी का प्रिय प्रोजेक्ट है. वो विदेशों में सरकारी छत्रछाया में कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. उन्होंने पीएम केयर्स फंड में दो करोड़ रुपए भी दिए हैं. इसी कारण ऑडिटिंग को लेकर आशंकाएँ हैं."
एसके गुप्ता ने अपने ट्विटर अकाउंट के ज़रिए दो करोड़ रुपए के योगदान की घोषणा ख़ुद की थी. बीबीसी ने SARC & Associates को ऑडिट के लिए चुने जाने को लेकर लगाए जा रहे आरोपों पर एसके गुप्ता से जवाब मांगा, लेकिन उन्होंने इस पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
'पारदर्शिता की कमी नहीं'
लेकिन बीजेपी के प्रवक्ता नलिन कोहली ने फंड का बचाव किया. उन्होंने कहा कि पीएमएनआरएफ़ आम तौर पर प्राकृतिक आपदाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है. पीएम केयर्स फंड का गठन इसलिए किया गया ताकि इस महामारी से निपटने पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया जा सके.
नलिन कोहली ने बताया कि पीएमएनआरएफ़ का गठन भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कियाथा और उन्होंने ट्रस्टी में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को भी शामिल किया था.
उन्होंने कहा, "इस देश में कई राजनीतिक पार्टियाँ हैं और किसी एक पार्टी को सार्वजनिक उद्देश्य के लिए गठित पब्लिक फंडिंग में क्यों शामिल करना चाहिए?"
नलिन कोहली ने कहा कि नरेंद्र मोदी और अन्य शीर्ष मंत्री पीएम केयर्स में अपने पद के कारण शामिल हैं न कि किसी राजनीतिक पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में.
उन्होंने फंड में पारदर्शिता की कमी के आरोपों को भी ख़ारिज कर दिया. उन्होंने ज़ोर दिया कि SARC & Associates को सिर्फ़ योग्यता के कारण इस काम में लगाया गया है. उन्होंने ये भी कहा कि ये फंड सभी क़ानून का पालन करेगा.
बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा है कि विपक्ष के कुछ चुनिंदा लोग इस फंड को लेकर चिंता जता रहे हैं. उन्होंने कहा- ये फंड अभी नया है. एक ऐसे समय में जब हर कोई इस महामारी से संघर्ष करने में व्यस्त है, सार्वजनिक जवाबदेही की तत्काल आवश्यकता क्यों है?
लेकिन फंड को लेकर सवाल सिर्फ़ विपक्ष नहीं उठा रहा है, सुप्रीम कोर्ट के वकील सुरेंदर सिंह हुडा का कहना है कि सूचना देने में फंड मैनेजर्स की कथित अनिच्छा समझ से परे है. हुडा ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका भी दायर की थी. उन्हें अपनी याचिका कोर्ट से वापस लेनी पड़ी क्योंकि क़ानून के मुताबिक़ पहले उन्होंने पीएमओ से संपर्क नहीं किया था. अब उन्होंने पीएमओ को ईमेल किया है और अब फिर से जवाब के लिए कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.
सुरिंदर सिंह हुडा कहते हैं, "मैं चाहता हूँ कि वे अपनी वेबसाइट पर सूचनाएँ जारी करें. ये बताएँ कि उन्हें कितना पैसा मिला, कहाँ से मिला और उसे कहाँ ख़र्च किया गया."
उन्होंने कहा, 'ये सबको पता है कि सूरज का प्रकाश सबसे अच्छा कीटाणुनाशक है और सभी अवांछनीय गतिविधियाँ अंधेरे के आड़ में की जाती हैं. पारदर्शिता क़ानून के शासन का आधार है और अपारदर्शिता से गुप्त मक़सद की बू आती है.'
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