राजस्थान संकट: सचिन पायलट बीजेपी में लैंड करेंगे, कांग्रेस में ही रहेंगे या कहीं और है ठिकाना
सचिन पायलट की नाराज़गी से राजस्थान की राजनीति में जो हलचल मची है, उसकी पटकथा इस गणित पर टिकी है -
विधानसभा सीटें कितनी हैं - 200
सरकार बनाने के लिए कितनी संख्या चाहिए - 101
कांग्रेस के पास कितनी संख्या है - अपने 107 विधायक + 15 निर्दलीय व अन्य = 122
बीजेपी के पास कितनी संख्या है - 73 + 3 सहयोगी = 76
यानी कांग्रेस के पास अभी बहुमत है, बीजेपी के पास नहीं है. और ये तस्वीर पलट सकती है कि नहीं, आज राजनीति के गलियारों में चर्चा इसी एक सवाल की होती रही है , साथ ही इस सवाल की कि अब सचिन पायलट का क्या होगा?
सचिन पायलट क्या इस आँकड़े को अलट-पलट कर सकते हैं? उनके सामने क्या-क्या रास्ते हैं, और उनसे उनके लिए या बीजेपी के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं? आइए ऐसे ही कुछ विकल्पों पर ग़ौर करें -
संभावना नंबर 1 - सचिन पायलट बीजेपी में चले जाते हैं, बीजेपी सरकार बना लेती है
इस संभावना की चर्चा सबसे ज़्यादा हो रही है क्योंकि इससे मिलता-जुलता प्रकरण पाँच महीने पहले मध्य प्रदेश में हो चुका है. सचिन पायलट की ही तरह कांग्रेस का एक युवा चेहरा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री कमलनाथ से नाराज़ हुए, पाला बदला, कांग्रेस की सरकार गई, बीजेपी सत्ता में लौट आई.
पर राजस्थान की तस्वीर मध्य प्रदेश से अलग है. इसमें सबसे बड़ा अंतर दिखता है गणित में, जो बीजेपी के पक्ष में नहीं दिखता, और ना ही सचिन पायलट के.
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कौशल कहते हैं कि अगर ऐसी स्थिति होती कि भाजपा गहलोत सरकार को विश्वास मत लेने के लिए बाधित कर हरा सकती, तब तो स्थिति अलग होती.
वो कहते हैं, "भाजपा दावा करती कि सरकार अल्पमत में आ चुकी है, वो राज्यपाल के पास जाते दल-बल के साथ कि आप गहलोत सरकार को विश्वास मत हासिल करने का निर्देश दीजिए. चूँकि भाजपा सामने नहीं आई इसलिए ये स्पष्ट है कि अभी तक संख्या कांग्रेस के पक्ष में है."
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी इससे इत्तेफ़ाक़ रखती हैं और कहती हैं कि सचिन के बीजेपी में जाने का फ़िलहाल कोई अर्थ दिखाई नहीं देता - ना ही बीजेपी के लिए, ना ही सचिन पायलट के लिए, और इसलिए ना बीजेपी बहुत सक्रिय हुई है, ना ही सचिन ने खुलकर कुछ कहा है.
नीरजा कहती हैं, "बीजेपी क्यों लेगी उनको अगर संख्या नहीं है उनके पास? लेकिन अगर मान लिया जाए कि उनके पास नंबर हैं तो भी बीजेपी उनको देगी क्या? सीएम की कुर्सी तो उनको देने वाली नहीं है. क्योंकि फिर वसुंधरा राजे सिंधिया से समस्या होगी."
नीरजा बताती हैं कि निश्चित तौर पर सचिन पायलट को कांग्रेस के भीतर कहीं ना कहीं घुटन हो रही थी. लेकिन पिछले डेढ़ साल से जो उनकी सोच रही है उससे यही लगता है कि वो बीजेपी की तरफ़ नहीं जाने वाले थे.
वो कहती हैं कि मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की स्थिति अलग थी, सचिन पायलट की स्थिति अलग है.
नीरजा सवाल करती हैं, "सचिन पायलट ये क्यों करेंगे कि वो बीजेपी में जाएँ और बैठ जाएँ? सिंधिया का तो समझ आ रहा था कि उनको राज्य सभा की सीट मिलेगी, उनके क़रीबी लोग मंत्री बन जाएँगे, उनकी राजनीति चल पड़ेगी, क्योंकि वो हाशिए पर चले गए थे. पर सचिन को क्या मिलेगा?"
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संभावना नंबर 2 - सचिन पायलट अलग हो जाएँ, या निकाल दिए जाएँ, और तीसरा मोर्चा बना लें
सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से बुलाई गई बैठक में शामिल नहीं हुए.
एक संभावना ये है कि सचिन पायलट ख़ुलकर बग़ावत कर दें और फिर पार्टी उनको निकाल दे जिसके बाद वो अपनी अलग पार्टी बना लें. लेकिन इस फ़ैसले के अपने नफ़ा-नुक़सान हैं.
नीरजा चौधरी कहती हैं, "जब भी कांग्रेस में गांधी परिवार से अलग विकल्पों की बात उठी तो लोगों ने सिंधिया और पायलट का नाम लिया. पार्टी ने उनका इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन अगर ये एक क्षेत्रीय ताक़त बनते हैं, तो ये संभावना देखी जा सकती है. ये हो सकता है कि वो तीसरा मोर्चा बनाएँ और कांग्रेस की उस ज़मीन में आई शून्यता को भरने की कोशिश में निकल पड़ें. जो बहुत ही मुश्किल काम होगा, लेकिन ये विकल्प भी है. "
प्रदीप कौशल कहते हैं कि नई पार्टी खड़ा करना आसान नहीं, उन्हें देर-सबेर भाजपा के झंडे तले आना होगा.
वो कहते हैं, "जितने भी लोग भाजपा से निकले या कांग्रेस से निकले, उनमें चाहे जितने बड़े क़द्दावर नेता रहे हों, वो लंबे समय तक अपनी पार्टियाँ नहीं चला पाए, उसके लिए बड़े साधन चाहिए, बड़ा जातिगत आधार चाहिए, इन्हें भी गुर्जर समुदाय का समर्थन मिलेगा, लेकिन सवाल ये है कि वो कितना व्यापक है, कितनी सीट आप जीत सकते हैं?".
प्रदीप कौशल कहते हैं कि इस बात का अंदाज़ा सचिन पायलट को भी बख़ूबी होगा कि राजनीति में लोग अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए आते हैं, और वो तभी मुमकिन है जब आप किसी प्रमुख दल के साथ हों, चाहे तो उन लोगों के साथ हों जो सरकार बनाते हैं, या उन लोगों में हों जो भविष्य में सत्ता बनाने की दावेदारी वाली पार्टियों के साथ हों, जो दोनों में नहीं हैं, वो बाहर हो जाते हैं, वो राजनीति के स्वभाव के विपरीत है.
वो कहते हैं, "कोई ना कोई उनकी योजना तैयार होगी, ये भी संभव है कि भाजपा ने उनसे कोई वादा किया हो, और केंद्र में मंत्रिपद मिल सकता है, संगठन में बड़े पद पर आ सकते हैं, और तात्कालिक रूप से मुख्यमंत्री नहीं बनें, लेकिन असम में हेमंत बिस्वा सरमा की तरह उन्हें एक प्रमुख भूमिका दी जाए."
संभावना नंबर 3 - सचिन पायलट कांग्रेस में ही रह जाएँ, सुलह हो जाए?
अगर सचिन पायलट बीजेपी में नहीं जाते, अगर वो अपना अलग क्षेत्रीय दल नहीं खड़ा करते तो उनके सामने तीसरा विकल्प यही है कि वो कांग्रेस में ही रह जाएँ, जैसा है वैसा ही चलता रहे, या फिर कोई समझौता हो जाए.
लेकिन जस-का-तस की स्थिति ऐसी होगी, जैसे किसी योद्धा ने तलवार खींची, और फिर उसे वापस म्यान में डाल लिया, यानी ये विकल्प सचिन पायलट के क़द को कमज़ोर करने वाला होगा.
एक स्थिति ये है कि वो वापस लौटें और कोई समझौता हो जाए. पर समझौता किस बात का? सचिन पायलट तो उपमुख्यमंत्री हैं ही, कई विभागों के मंत्री भी, और उस पर से छह साल से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी. तो फिर डील किस चीज़ की होगी?
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प्रदीप कौशल कहते हैं, "उनकी तो लड़ाई ही मुख्यमंत्री बनने के लिए है, अगर कांग्रेस उनको मुख्यमंत्री बना दे, तो फिर तो वो पलट जा सकते हैं. लेकिन इसकी कोई संभावना नज़र नहीं आती क्योंकि अधिकतर विधायक अशोक गहलोत के साथ हैं. अगर ऐसा हुआ तो फिर दूसरी तरफ़ से विद्रोह हो जाएगा."
ऐसे में उनके लिए कांग्रेस में बने रहने का रास्ता बहुत मुश्किल लगता है, बिना कुछ हासिल हुए तेवर बदलने से उनके आत्मसम्मान और छवि को ठेस लगेगी, और दूसरी ओर अगर वो बाग़ी सुर बरक़रार रखते हैं तो गहलोत खेमा उनके लिए नई मुश्किल खड़ी कर सकता है.
प्रदीप कौशल कहते हैं, "कांग्रेस विधानसभा अध्यक्ष को शिकायत कर सकती है कि वो पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं इसलिए संविधान के अनुच्छेद-10 के अधीन उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जाए. ऐसे में सचिन पायलट ने भले ही विधानसभा के भीतर पार्टी के विरोध में मतदान ना किया हो, लेकिन गहलोत सरकार विधानसभा अध्यक्ष को सहमत करवा पाती है कि वो पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त थे, तो उनकी सदस्यता ख़ारिज भी हो सकती है."
नीरजा चौधरी भी मानती हैं कि कांग्रेस के भीतर सचिन पायलट ख़ुद को एक असहज स्थिति में पा रहे होंगे.
वो कहती हैं कि सचिन के पार्टी में बने रहने का विकल्प तो है ही, लेकिन इसमें हाईकमान को आकर सुलह-सफ़ाई करवाना पड़ेगा, वो हाईकमान ने अभी तक नहीं किया है.
नीरजा कहती हैं,"असली निराशा हाईकमान को लेकर है. आज कांग्रेस में हाईकमान है ही नहीं. ये समस्या तो पाँच मिनट में सुलझाई जा सकती है. सचिन से तो आप मिल ही नहीं रहे."
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