राजा मान सिंह जिन्होंने कांग्रेस के मंच और सीएम के हेलिकॉप्टर से भिड़ा दी थी जीप
यह लम्हों की ख़ता थी. मगर इसे फ़ैसले के मकाम तक पहुंचने में 35 साल लग गए.
यह 21 फरवरी ,1985 की घटना है. राजस्थान के भरतपुर ज़िले के डीग में चुनाव के दौरान उपजे एक विवाद के बाद पुलिस ने पूर्व रियासत के सदस्य मान सिंह को गोली चला कर मार डाला.
मान सिंह पर आरोप था कि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान अपनी जीप से पहले कांग्रेस की सभा का मंच धराशाई कर दिया और फिर तत्कालीन मुख्य मंत्री शिव चरण माथुर के हेलीकाप्टर को जीप से टक्कर मार कर क्षतिग्रस्त कर दिया.
मथुरा की एक अदालत ने अब इस मामले में 11 पुलिस कर्मचारियों को दोषी क़रार दिया है. अदालत के इस फैसले पर मान सिंह की पुत्री और पूर्व मंत्री कृषेन्द्र कौर दीपा ने संतोष व्यक्त किया है.
दीपा ने बीबीसी से कहा, "हमे इंसाफ के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. इस घटना के बाद पूर्वी राजस्थान और उससे लगते उत्तर प्रदेश के कई भागों में तनाव पैदा हो गया. भरतपुर में लोग सड़को पर आ गए. वहां कर्फ्यू लगाना पड़ा. आगजनी और हिंसा हुई. पुलिस को गोली चलानी पड़ी. इसमें लोग मारे गए. भरतपुर में फैले तनाव को देखते हुये तत्कालीन मुख्य मंत्री माथुर को अपना पद गवाना पड़ा. उस वक्त प्रधान मंत्री राजीव गाँधी के निर्देश पर माथुर ने इस्तीफ़ा दे दिया."
भरतपुर की पूर्व रियासत का डीग अपने खूबसूरत महलों, फव्वारों, किलेबंदी और वास्तुशिल्प के कारण जाना जाता है. लेकिन इस घटना ने उसे किसी और सबब से सुर्ख़ियों में ला दिया.
यह विवाद तब पैदा हुआ जब विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान कथित रूप से डीग में कांग्रेस समर्थकों ने लक्खा तोप के पास अपना परचम लहरा दिया.
मान सिंह डीग से निर्दलीय होकर चुनाव मैदान में थे. उनके समर्थकों को यह गवारा नहीं हुआ. इसके अलावा भी दोनों पक्ष के कार्यकर्ताओ में कटुता की कुछ और घटनाएं भी हुई. इससे मान सिंह कुपित हो गए. चुनाव प्रचार के दौरान 20 फरवरी को मुख्य मंत्री माथुर का दौरा था.
मान सिंह के दामाद कुंवर विजय सिंह कहते हैं, "हमारे झंडे की तौहीन की गई. यह बड़ा अपमानकारी लगा. लिहाज़ा मान सिंह जी ने कांग्रेस की सभा न होने देने की ठान ली. वे अपने कार्यकर्ताओ के साथ जीप में सवार होकर पहुंचे और मंच तोड़ दिया. फिर हेलीकाप्टर भी जीप का निशाना बना. मगर इसमें कोई चोटिल नहीं हुआ/मुख्य मंत्री माथुर सड़क मार्ग से वापस जयपुर लौट गए. पुलिस ने इस बारे में स्व सिंह के विरुद्ध मुकदमे दर्ज किये."
इसके अगले दिन 21 फरवरी 1985 को पुलिस ने डीग की अनाज मंडी में जीप पर सवार होकर जाते मान सिंह पर गोली चलाई. इसमें सिंह और उनके दो सहयोगी मारे गए. इस जीप में विजय सिंह साथ थे. लेकिन वे बच गए.
विजय सिंह ने बीबीसी से कहा, "हम निहत्थे थे. हमारे पास कोई हथियार नहीं थे. पुलिस ने गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया. पुलिस दल की अगुवाई उप अधीक्षक कान सिंह भाटी कर रहे थे. यह एक नियोजित हत्या थी."
स्व सिंह की बेटी दीपा उन लम्हों को याद कर बताती है, "पुलिस ने जब मुकदमा दर्ज किया तो मेरे पिता ने मुझसे अग्रिम ज़मानत की अर्जी तैयार करने को कहा. हम इस काम को कर ही रहे थे कि उन्हें गोली मार दी गई. मुझे सूचना मिली कि उन पर गोली चलाई गई है. फिर पता लगा कि वे नहीं रहे. मैं सुन कर बहुत दुखी हुई."
भरतपुर में राकेश वशिष्ठ उस वक्त पत्रकारिता में थे. वे कहते हैं, "हम स्व सिंह के मोती झील आवास पर पहुंचे और मौके पर भी गए. हमें लग गया था यह हत्या है. पुलिस ने इसे आत्म रक्षा में गोली चलाना बताया. देखते-देखते हुजूम सड़कों पर उतर आया. हिंसा होने लगी. सरकार के लिए हालात काबू में करना मुश्किल हो गया. यह तनाव भरतपुर ज़िले तक सीमित नहीं रहा. राजस्थान से लगते उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में भी लोग सड़कों पर निकले, क्योंकि स्व सिंह काफी लोक प्रिय थे और वे सात बार विधान सभा के सदस्य रहे थे."
पुलिस के लिए स्थिति संभालना बड़ा मुश्किल रहा. स्व सिंह के दामाद कुंवर विजय सिंह कहते हैं, "भरतपुर में कोई हफ्ते भर तक कर्फ्यू रहा. ज़िले की सीमा को सील रखा गया. अलीगढ़ तक इसकी आंच पहुंची. स्व सिंह की शव यात्रा में शोकाकुल लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. इसमें फिर भीड़ और पुलिस में भिड़ंत हो गई. इसमें तीन लोगों की जान चली गई."
यह विधान सभा चुनावों का मौका था. तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी ने स्थिति को देखते हुए मुख्य मंत्री माथुर को पद से त्याग पत्र देने को कहा.
माथुर ने 22 फरवरी 1985 की आधी रात को इस्तीफ़ा दे दिया. इससे लोगों का गुस्सा कुछ शांत हुआ.
माथुर की जगह वरिष्ठ कांग्रेस नेता हीरालाल देवपुरा को मुख्य नियुक्त किया गया. लेकिन इससे कांग्रेस को चुनावों में बड़ा नुक़सान हुआ. डीग में चुनाव रोक दिए गए. सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी.
इसके अलावा न्यायिक जाँच के लिए आयोग भी बनाया गया. मगर वो कोई काम नहीं कर सका और बीच में ही भंग हो गया.
भरतपुर के नवीन शर्मा कहते हैं, "घटना की ख़बर मिलते ही वे भी डीग पहुंचे थे. सड़के और मार्ग भीड़ से पटने लगे थे. लोगों में घटना को लेकर काफी रोष था."
कुंवर विजय सिंह कहते हैं, "भरतपुर में पूर्व रियासत का परचम बहुत जज्बात से जुड़ा मुद्दा होता है. बात झंडे को लेकर ही शुरू हुई और फिर काफी तनाव पैदा हो गया था."
पुलिस कहती रही कि उसने आत्म रक्षा में गोली चलाई है. लेकिन विजय सिंह कहते हैं स्व सिंह के पास कोई हथियार नहीं था. वे प्रचार के लिए निकले थे. ऐसे में पुलिस ने निहत्थों पर गोली चलाई और उन्हें मौत की नींद सुला दिया.
लेकिन अब वे कहते हैं उन्हें न्याय पर संतोष है. पर कार्यवाही बहुत लंबी चली. पुलिस ने अपने पक्ष में 17 गवाह पेश किये जबकि स्व सिंह की तरफ से कोई 61 गवाह कार्यवाही से गुज़रे.
इस लंबी अवधि में 1700 से अधिक सुनवाई की तारीखें गुज़री और कोई एक हज़ार दस्तावेज भी अदलात की नज़रों से गुज़रे.
घटना भरतपुर की ज़िले की थी. मगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश में मथुरा की अदलात में हुई.
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