बांग्लादेश की भारत से बढ़ती दूरी हाल के दिनों में बांग्लादेश के अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट चीन को मिले हैं और चीन ने बांग्लादेश के माल को कई तरह के करों से छुटकारा देकर दोनों देशों के साझा व्यापार को भी बढ़ाया है. बांग्लादेश पाकिस्तान की तरह चीन के बेल्ट और रोड प्रोग्राम का भी हिस्सा है. बांग्लादेश में एक भावना ये भी है कि उसने पूर्वोत्तर भारत के कई उग्रवादी गुटों को अपने यहां पनाह न देने और उन्हें भारत के हवाले करने में जिस तरह पड़ोसी मुल्क (भारत) की मदद की, भारत उसके बदले तीस्ता और दूसरी साझा नदियों के पानी के बंटवारे तक को लेकर समझौता नहीं कर पाया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने बीते साल भारत के नए नागरिकता संशोधन अधिनियम को ग़ैरज़रूरी बताया था. बांग्लादेश राजनीति को क़रीब से समझने वाले बीबीसी के पूर्व संवाददाता सुबीर भौमिक कहते हैं भारत में मुसलमानों के अलावा कुछ पड़ोसी मुल्कों के दूसरे समुदायों को नागरिकता देनेवाला सीएए और भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं के बोल, जिसमें उन्होंने भारत में रह रहे ग़ैर-क़ानूनी लोगों और बांग्लादेशियों को पर्यायवाची बना दिया है, उससे बांग्लादेश में बहुत नाराज़गी है.
भारत का ये कदम क्या बांग्लादेश से दूरियों को पाट पाएगा?
भारतीय विदेश सचिव हर्ष वी. श्रृंगला ने बांग्लादेश के एक दिवसीय दौरे के दौरान बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना से मुलाकात की.
समाचार एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि दोनों देशों के बीच कोरोना महामारी से जंग, वैक्सीन और कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशों समेत अन्य मामलों पर बातचीत हुई.
माना जा रहा है कि इस दौरे का उद्देश्य दोनों देशों के बीच रिश्तों को बेहतर बनाना था. कोरोना संकट और लॉकडाउन के बाद यह श्रृंगला का पहला विदेश दौरा था.
इस दौरे की वजह बांग्लादेश के चीन के साथ बढ़ती क़रीबी को भी माना जा रहा है.
दरअसल, बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन, बांग्लादेश को तीस्ता नदी से जुड़े प्रोजेक्ट पर एक बिलियन डॉलर की मदद करने वाला है.
इन रिपोर्ट्स के बाद भारत के विदेश सचिव का ये दौरा और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि लंबे समय से भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर बातचीत चल रही थी.
बीते साल भारत सरकार के नागरिकता संशोधन क़ानून मसले पर बांग्लादेश की तरफ़ से कड़ी प्रतिक्रिया आई थी. दिसंबर में बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन और गृह मंत्री असदुज़्ज़मान ख़ान ने अपना भारत दौरा रद्द भी कर दिया था.
इसके बाद भारत और बांग्लादेश के सम्बन्धों में तनाव की बातें सामने आ रही थी. ऐसे में इस दौरे को दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की दिशा में अहम क़दम के तौर पर देखा जा रहा है.
क्या है तीस्ता जल बंटवारा मामला?
तीस्ता नदी भारत से बांग्लादेश जाने वाली 54 नदियों में से एक है. तीस्ता का उद्गम सिक्किम से होता है और ये पश्चिम बंगाल से होती हुई असम में जाकर बह्मपुत्र नदी में मिल जाती है और इस तरह बांग्लादेश तक जाती है.
बांग्लादेश चाहता है कि तीस्ता का पानी दोनों देशों में बराबर बांटा जाए. तीस्ता नदी के पानी को लेकर बांग्लादेश और भारत के बीच होने वाले समझौते पर मुख्य आपत्ति मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ही है.
उनका कहना है कि अगर तीस्ता का पानी बांग्लादेशा से साझा किया गया तो पश्चिम बंगाल में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी. ममता का कहना है कि तीस्ता नदी के सहारे सिक्किम में कई पनबिजली परियोजनाएं चल रही हैं.
इन परियोजनाओं के लिए ज़रूरी पानी के बाद ही पश्चिम बंगाल में इसका पानी आता है. तीस्ता की धारा भी काफ़ी कमज़ोर है. पश्चिम बंगाल का तर्क है कि इतना पानी नहीं बचता है कि उसका बांग्लादेश के साथ बँटवारा किया जा सके.
साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे के बाद से ही ये संभावना प्रबल हो गई थी कि दोनों देशों के बीच नदी को लेकर समझौता हो जाएगा लेकिन बीतते वक़्त के साथ इस दिशा में कोई तेज़ी दिखाई नहीं दी.
बांग्लादेश की भारत से बढ़ती दूरी
हाल के दिनों में बांग्लादेश के अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट चीन को मिले हैं और चीन ने बांग्लादेश के माल को कई तरह के करों से छुटकारा देकर दोनों देशों के साझा व्यापार को भी बढ़ाया है. बांग्लादेश पाकिस्तान की तरह चीन के बेल्ट और रोड प्रोग्राम का भी हिस्सा है.
बांग्लादेश में एक भावना ये भी है कि उसने पूर्वोत्तर भारत के कई उग्रवादी गुटों को अपने यहां पनाह न देने और उन्हें भारत के हवाले करने में जिस तरह पड़ोसी मुल्क (भारत) की मदद की, भारत उसके बदले तीस्ता और दूसरी साझा नदियों के पानी के बंटवारे तक को लेकर समझौता नहीं कर पाया है.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने बीते साल भारत के नए नागरिकता संशोधन अधिनियम को ग़ैरज़रूरी बताया था.
बांग्लादेश राजनीति को क़रीब से समझने वाले बीबीसी के पूर्व संवाददाता सुबीर भौमिक कहते हैं भारत में मुसलमानों के अलावा कुछ पड़ोसी मुल्कों के दूसरे समुदायों को नागरिकता देनेवाला सीएए और भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं के बोल, जिसमें उन्होंने भारत में रह रहे ग़ैर-क़ानूनी लोगों और बांग्लादेशियों को पर्यायवाची बना दिया है, उससे बांग्लादेश में बहुत नाराज़गी है.
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