नीलकंठ भानु बने दुनिया के सबसे तेज़ 'ह्यूमन कैलकुलेटर'
आप कह सकते हैं कि गणित में नीलकंठ भानु प्रकाश उतने ही तेज़ हैं जितने रनिंग में यूसेन बोल्ट.
महज़ 20 साल की उम्र में उन्होंने मेंटल कैलकुलेशन वर्ल्ड चैम्पियनशिप्स में भारत को पहला गोल्ड दिलाया है.
वो कहते हैं कि गणित "दिमाग का एक बड़ा खेल" है और वो "गणित के फोबिया को पूरी तरह मिटाना" चाहते हैं.
हैदराबाद के नीलकंठ भानु "हर वक़्त अंकों के बारे में सोचते रहते हैं" और अब वो दुनिया के सबसे तेज़ ह्यूमन कैलकुलेटर हैं.
वो मेंटल मैथ्स की तुलना स्प्रिंटिंग से करते हैं. वो कहते हैं कि तेज़ दौड़ने वालों पर कोई सवाल नहीं उठाता, लेकिन मेंटल मैथ्स को लेकर हमेशा सवाल उठते हैं.
उन्होंने बीबीसी रेडियो 1 न्यूज़बीट से कहा, "यूसेन बोल्ट जब 9.8 सेकेंड में 100 मीटर की दौड़ पूरी कर लेते हैं तो हम उनकी तारीफ़ों के पुल बांधते हैं. लेकिन ये नहीं कहते कि कारों और विमानों की दुनिया में किसी के तेज़ भागने का क्या तुक है."
"ये लोगों को प्रेरित करता है कि आपका शरीर कुछ अकल्पनीय कर सकता है - और कैलकुलेशन और गणित के मामले में भी यही होता है."
'ये आपके दिमाग को व्यस्त रखता है'
आपको लग रहा होगा वो पैदाइशी मैथ्स जीनियस हैं, लेकिन भानु के मामले में ऐसा नहीं है.
गणित के साथ उनके इस सफ़र की शुरुआत पांच साल की उम्र में हुई. तब उनके साथ एक दुर्घटना हो गई थी. उनके सिर में चोट लगी और वो एक साल के लिए बिस्तर पर रहे.
"मेरे माता-पिता को कहा गया था कि मेरे देखने-सुनने-समझने की क्षमता पर असर पड़ सकता है."
"तब मैंने अपने दिमाग को व्यस्त रखने के लिए मेंटल मैथ्स कैलकुलेशन करना शुरू किया."
वो कहते हैं कि भारत के मध्य-वर्गीय परिवार से आने वाला शख़्स आम तौर पर सोचता है कि वो एक अच्छी जॉब लेकर सेटल हो जाए या अपना कारोबार शुरू कर ले. और गणित जैसे आला क्षेत्र में जाने के बारे में वो कम ही सोचता है.
लेकिन अंकों की तरफ उनका रुझान ही था, जिसकी वजह से भानु ने गणित में डिग्री लेने का सोचा और उनकी डिग्री पूरी भी होने वाली है.
'दिमाग का बड़ा खेल'
बड़े स्तर के अन्य प्रतियोगियों की तरह की भानु भी अपनी तैयारी को कामयाबी की वजह बताते हैं.
वो कहते हैं कि ये इतना आसान नहीं है कि आप एक टेबल पर बैठे हैं और पढ़ रहे हैं. बल्कि ये "दिमाग का एक बड़ा खेल है."
"मैंने ना सिर्फ ख़ुद को एक तेज़ गणितज्ञ के तौर पर बल्कि एक तेज़ सोचने वाले व्यक्ति के तौर पर भी तैयार किया है."
बचपन में भानु स्कूल से आने के बाद छह से साथ घंटों तक प्रेक्टिस करते थे.
लेकिन चैम्पियनशिप्स जीतने और रिकॉर्ड बनाने के बाद से वो हर दिन "इतनी फॉर्मल प्रेक्टिस" नहीं करते हैं.
इसके बजाए अब वो अलग तरह से प्रेक्टिस करते हैं, जिसमें वो कहते हैं कि "मैं हर वक़्त अंकों के बारे में सोचता रहता हूं."
भानु बताते हैं, "मैं तेज़ संगीत बजाकर प्रेक्टिस करता हूं, इस बीच लोगों से बात करता हूं, मिलता हूं और क्रिकेट भी खेलता हूं. क्योंकि इससे आपका दिमाग एक वक़्त में कई सारी चीज़ें एक साथ करने के लिए ट्रेन होता है."
उन्होंने ये भी दिखाया कि वो इस इंटरव्यू के बीच भी प्रैक्टिस जारी रखे हुए हैं.
"अपने नज़दीक से गुज़रने वाली हर टैक्सी के नंबर को मैं जोड़ता रहूंगा. अगर मैं किसी से बात कर रहा हूं तो मैं गिनता रहूंगा कि वो कितनी बार पलके झपका रहे हैं. सुनने में ये अजीब लग सकता है, लेकिन इससे आपका दिमाग लगातार चलता रहता है."
' लोगों को प्रेरित करना चाहता हूं '
सिर्फ रिकॉर्ड तोड़ते रहना भानु का मकसद नहीं है - हालांकि वो ये भी करना चाहते हैं.
वो कहते हैं, "रिकॉर्ड और कैलकुलेशन बस ये बताने का तरीक़ा है कि दुनिया को गणितज्ञों की ज़रूरत है. और गणित हमारे लिए मज़ेदार होना चाहिए, लोग कहें कि ये विषय हमें बहुत पसंद है."
उनका असली मकसद है कि वो लोगों में "गणित का डर ख़त्म कर दें." वो कहते हैं कि लोगों में अंकों को लेकर बहुत डर है.
"ये डर उनके करियर के चुनाव पर भी असर डालता है. कहने का मतलब है कि वो गणित से बचना चाहते हैं."
वो कहते हैं कि गणितज्ञों को "सामाजिक अनाड़ी और किताबी कीड़ा" समझा जाता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने का मतलब है कि गणित के मज़ेदार रूप को प्रमोट करना आपकी ड्यूटी है.
भानु ने अब तक चार विश्व रिकॉर्ड और कई अन्य उपलब्धियां अपने नाम की हैं. भानु के परिवार को अपने बेटे पर बहुत गर्व है.
वो अपने परिवार को उन्हें प्रोत्साहित करने और ज़मीन से जुड़ा रहने की प्रेरणा देना का श्रेय देते हैं.
"जब मैंने अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती तो मेरे अंकल ने कहा था कि मुझे इतना तेज़ बनना चाहिए, जितना आज तक कोई हो ही ना."
"मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं सबसे तेज़ ह्यूमन कैलकुलेटर बन जाऊंगा."
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