बांग्लादेश की जीडीपी ग्रोथ भारत से बेहतर कैसे?

 


  • सरोज सिंह
  • बीबीसी संवाददाता
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना

भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) इस साल -10.3 प्रतिशत जा सकती है, जब से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ का ये अनुमान सामने आया है, देश में भारत की जीडीपी से ज़्यादा चर्चा बांग्लादेश की जीडीपी की चल रही है.

आईएमएफ़ का अनुमान ये भी है कि प्रति व्यक्ति जीडीपी में आने वाले दिनों में बांग्लादेश भारत को पीछे छोड़ कर आगे निकल जाएगा. इसी मुद्दे पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को एक ट्वीट भी किया.

उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "बीजेपी सरकार के पिछले छह साल के नफ़रत भरे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सबसे ठोस उपलब्धि यही रही है: बांग्लादेश भी भारत को पीछे छोड़ने वाला है."

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इसके साथ ही उन्होंने एक ग्राफ़ भी ट्वीट किया, जिसमें बांग्लादेश, भारत और नेपाल के प्रति व्यक्ति जीडीपी का तुलनात्मक अध्ययन दिखाया गया है.

इस ग्राफ़ में साल 2020 के लिए बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति जीडीपी 1876.5 डॉलर दिखाया गया है और भारत के लिए 1888.0 डॉलर दिखाया गया है.

इस पर जाने माने अर्थशास्त्री कौशिक बासु ने ट्विटर पर लिखा, "आईएमएफ़ के अनुमान के मुताबिक़ प्रति व्यक्ति जीडीपी में बांग्लादेश भारत को 2021 में पीछे छोड़ देगा. उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देश इतना अच्छा कर रहे हैं, ये अच्छी ख़बर है. लेकिन भारत के लिए ये आँकड़े चौंकाने वाले हैं. पाँच साल पहले तक बांग्लादेश भारत से 25 फ़ीसदी पीछे था. देश को बोल्ड राजकोषीय/ मौद्रिक नीति की ज़रूरत है."

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भारत, बांग्लादेश के जीडीपी की तुलना कितनी सही

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की जीडीपी का अनुमान -10.3 प्रतिशत लगाया है, वहीं बांग्लादेश के लिए ये अनुमान 3.8 प्रतिशत का है. बांग्लादेश के अलावा चीन और म्यांमार की जीडीपी के बारे में पॉज़िटिव अनुमान लगाया गया है.

अर्थव्यवस्था के लिहाज से चीन, भारत से हमेशा बेहतर स्थिति में रहा है. इसलिए लोग अब बांग्लादेश के साथ ही भारत की तुलना करने में लगे हैं.

ऐसे में ये जानना ज़रूरी है कि ये तुलना कहीं सेब और संतरे के बीच की तुलना तो नहीं है.

ग्राफ़

राहुल गांधी के ट्वीट के बाद भारतीय मीडिया में सरकारी सूत्रों के हवाले से ख़बर छपी कि भारत की जनसंख्या बांग्लादेश के मुक़ाबले 8 गुना बड़ी है. दूसरी बात ये कि 2019 में भारत की पर्चेज़िंग पावर पैरिटी यानी ख़रीदने की क्षमता 11 गुना अधिक थी. मतलब ये कि बांग्लादेश के ये आँकड़े 'अस्थायी' बात है, इससे भारत को घबराने की ज़रूरत नहीं है.

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प्रति व्यक्ति जीडीपी यह बताती है कि किसी देश में प्रति व्यक्ति के हिसाब से आर्थिक उत्पादन कितना है. इसकी गणना किसी देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी को उस देश की कुल जनसंख्या का भाग देकर निकाला जाता है.

स्पष्ट है कि जिस देश की जनसंख्या ज़्यादा होगी, उस देश के लिए आँकड़ा कम होगा. ये सीधा गणित है.

प्रोफ़ेसर प्रबीर डे इंटरनेशनल ट्रेड और इकोनॉमी के जानकार हैं. भारत में रिसर्च एंड इंफ़ॉर्मेशन सिस्टम फ़ॉर डेवलपिंग कंट्री (आरआईएस) में प्रोफ़ेसर हैं.

ग्राफ़

बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, "इन आँकड़ों को केवल राजनीति से प्रेरित हो कर पेश किया जा रहा है. वो मानते हैं कि भारत की गिरावट अस्थायी है. थोड़े समय बाद इसमें सुधार देखने को मिलेगा. ऐसा इसलिए कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भारत के मुक़ाबले छोटी है. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था फ़िलहाल 250 बिलियन अमरीकी डॉलर के आसपास की है, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था तकरीबन 2.7 ट्रिलियन डॉलर की है."

वो कहते हैं कि सबसे पहले ये जान लीजिए कि आईएमएफ़ ये आँकड़े ख़ुद से नहीं निकालता, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश अपने जीडीपी के आँकड़े उनसे साथ साझा करते हैं, जिसके आधार पर वो अनुमान निकालते हैं.

दूसरी बात ये कि कोरोना की वजह से पहली तिमाही के दौरान दक्षिण एशियाई देशों में भारत की जीडीपी सबसे ज़्यादा प्रभावित थी. ये (माइनस) -23.9 प्रतिशत तक पहुँच गई थी. जबकि बांग्लादेश और चीन की जीडीपी में गिरावट भारत के मुक़ाबले काफ़ी कम थी. भारत में जिस स्तर का लॉकडाउन लगाया गया था, वैसा दूसरे देशों में नहीं था. इसका भी असर आईएमएफ़ के ताज़ा अनुमान में देखने को मिला है.

लेकिन प्रबीर डे साथ ही ये भी कहते हैं कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से उभर रही है, इसमें कोई दो राय नहीं हैं.

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बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था

1971 में पाकिस्तान से आज़ादी के बाद बांग्लादेश ने कई त्रासदियों को झेला है. 1974 में भयानक अकाल देखा, भयावह ग़रीबी, प्राकृतिक आपदा और अब शरणार्थी संकट से बांग्लादेश जूझ रहा है. लाखों की संख्या में रोहिंग्या मुसलमान पड़ोसी बर्मा से अपना घर-बार छोड़ बांग्लादेश में आ गए हैं.

बांग्लादेश की जनसंख्या तकरीबन 17 करोड़ के आसपास है.

बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में दो बातों का सबसे बड़ा योगदान है. पहला कपड़ा उद्योग और दूसरा विदेशों में काम करने वाले लोगों का भेजा पैसा.

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मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में बांग्लादेश तेज़ी से प्रगति कर रहा है. कपड़ा उद्योग में बांग्लादेश चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. बांग्लादेश में बनने वाले कपड़ों का निर्यात सालाना 15 से 17 फ़ीसदी की दर से आगे बढ़ रहा है.

2018 में जून महीने तक कपड़ों का निर्यात 36.7 अरब डॉलर तक पहुँच गया. प्रधानमंत्री शेख़ हसीना का लक्ष्य है कि 2021 में बांग्लादेश जब अपनी 50वीं वर्षगांठ मनाए, तो यह आँकड़ा 50 अरब डॉलर तक पहुँच जाए.

दूसरी तरफ़ भारत में मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में पिछले दिनों सबसे ज़्यादा गिरावट देखने को मिली है. पहली तिमाही में मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर ग्रोथ -39.3 फ़ीसदी रहा था.

बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में विदेशों में काम करने वाले क़रीब 25 लाख बांग्लादेशियों की भी बड़ी भूमिका है. विदेशों से ये जो पैसे कमाकर भेजते हैं, उनमें सालाना 18 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो रही है और 2019 में ये राशि 19 अरब डॉलर तक पहुँच गई.

लेकिन कोरोना महामारी की वजह से दोनों ही क्षेत्रों में नकारात्मक असर पड़ा है.

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बांग्लादेश में कोरोना का हाल

बांग्लादेश में कोरोना का पहला मामला 8 मार्च 2020 को आया. 23 मार्च 2020 को वहाँ की सरकार ने एलान किया कि 26 मार्च से 30 मई तक सरकारी छुट्टी रहेगी. बैंक कम समय के लिए ही सही, वहाँ काम कर रहे थे. 8 अप्रैल को रोहिंग्या कैम्प में भी सरकारी पाबंदियाँ लगा दी गई थी. 31 मई से बांग्लादेश में ज़्यादातर चीज़े खुल गई थी.

जबकि भारत में जनवरी के अंत में कोरोना का पहला मामला सामने आया था. 24 मार्च 2020 से पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन लगाया गया. उससे पहले ही कई राज्यों ने अपने-अपने स्तर पर दूसरी पाबंदियाँ लगानी शुरू कर दी थी.

पहली बार लॉकडाउन के दौरान 15 अप्रैल 2020 से कुछ इलाक़ों में आर्थिक गतिविधियों की छूट दी गई. वहीं 30 सितंबर तक कई चीज़ों पर कोरोना महामारी की वजह से कुछ न कुछ पाबंदियाँ लगी ही रही.

आईएमएफ़ के मुताबिक़ बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था कोरोना के दौर में दो वजहों से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई है. पहला है रेमिटेंस (विदेशों में काम करने वाले देश में जो पैसा भेजते हैं) में कमी. रेमिटेंस का पैसा उनके देश की कुल जीडीपी का 5 प्रतिशत हिस्सा है.

दूसरी वजह है उनके रेडीमेड कपड़ों के निर्यात में कमी. रेडीमेड कपड़ों का निर्यात, बांग्लादेश के कुल निर्यात का 80 फ़ीसदी है. इसके अलावा बारिश और बाढ़ ने भी कृषि को वहाँ काफ़ी नुक़सान पहुँचाया है.

वहीं भारत के लिए आईएमएफ़ ने जीडीपी में भारी गिरावट की वजह कोरोना महामारी और देशभर में लगे लॉकडाउन को बताया है.

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना

कैसे फल फूल रही है बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था

बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग के लिए साल 2013 में राना प्लाज़ा आपदा किसी बड़े झटके से कम नहीं थी. कपड़ों की फ़ैक्टरी की यह बहुमंज़िला इमारत गिर गई थी और इसमें 1,130 लोग मारे गए थे. इसके बाद कपड़े के अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड कई तरह के सुधारों के लिए मजबूर हुए.

उसके बाद से बांग्लादेश सरकार ने नियम क़ानून में कई तरह के बदलाव किए, फ़ैक्टरियों को अपग्रेड किया गया और इसमें काम करने वाले कामगारों की स्थिति में बेहतरी के लिए कई क़दम उठाए गए.

बांग्लादेश में कपड़ों की सिलाई का काम व्यापक पैमाने पर होता है और इसमें बड़ी संख्या में महिलाएँ भी शामिल हैं. 2013 के बाद से अब ऑटोमेटेड मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है.

प्रोफ़ेसर प्रबीर डे का मानना है कि कई कारण है, बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के फलने फूलने के.

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पहली बात है कि बांग्लादेश अभी विकासशील देशों की लिस्ट में हैं. मतलब अभी विकास की गुंजाइश बची है.

दूसरी बात बांग्लादेश में भारत जैसे मतभेद नहीं है. भारत में केंद्र सरकार एक बात कहती है, तो कभी महाराष्ट्र सरकार इसका विरोध करती है, तो कभी पंजाब तो कभी दिल्ली.

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री ने जो बोल दिया, वो सब मानते हैं. राजनीतिक विरोध वहाँ भी होते हैं, लेकिन डोमिसाइल, जाति, भाषा, राज्य के आधार पर वहाँ विभाजन भारत जैसा नहीं हैं.

तीसरी बात अर्थ शास्त्री कौशिक बसु कहते हैं. वहाँ महिलाओं का सशक्तिकरण भी तेज़ी से हो रहा है. बांग्लादेश की सियासत में दो महिलाओं शेख हसीना और पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया का प्रभुत्व रहा है. कपड़ा उद्योग में भी महिलाओं की भागीदारी ख़ूब है. समाज में महिलाएँ जब आगे रहती हैं, तो समाज में प्रगति बेहतर होती है. प्रबीर डे भी ऐसा मानते हैं.

चौथी बात जो बांग्लादेश के पक्ष में है, वो है उनकी मार्केट वैल्यू. दुनिया भर में मेड इन बांग्लादेश कपड़ों की अलग और अच्छी पहचान है. इसके लिए बांग्लादेश सरकार के गवर्नेंस सिस्टम को श्रेय दिया जाना चाहिए. एक बार जिस देश को बांग्लादेश सामान बेचता है, वो देश दोबारा बांग्लादेश के पास जाता है.

बांग्लादेश सरकार का शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन पर ख़र्च बेहतर है. इस बात की तस्दीक अलग-अलग ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स भी करते हैं, जिसमें बांग्लादेश भारत से आगे हैं.

किसी भी देश की जीडीपी इस बात पर निर्भर करती है कि लोगों और सरकार के पास पैसा ख़र्च करने के लिए कितना है. वहाँ की सरकार ने अलग-अलग योजनाएँ चला कर पानी, बिजली, ग्रामीण इलाक़ों में बैंक, इन सब व्यवस्थाओं पर कितना ध्यान दिया है.

इस ख़र्च को सरकार ने अपने अकाउंट में दिखाया और उसी वजह से जीडीपी के आँकड़े बेहतर हैं.

सांकेतिक तस्वीर

हालाँकि प्रबीर डे कहते हैं, "एफडीआई' और 'ईज़ ऑफ़ डुइंग बिज़नेस' में बांग्लादेश थोड़ा पीछे है. परियोजनाओं के लिए वहाँ फ़ास्ट ट्रैक क्लियरेंस की सुविधा नहीं है. बांग्लादेश में केस टू केस आधार पर सरकार अनुमति देती है. फिर भी कोरोना के दौर में चीन से निकल कर 16 जपानी कंपनियों ने बांग्लादेश में अपनी इंडस्ट्री लगाई है. ढाका से 30 किलोमीटर की दूरी पर होंडा कंपनी ने अपना एक प्लांट हाल ही में लगाया है. ये सभी बातें बताती है कि वहाँ की सरकार के साथ बिज़नेस करने के लिए दूसरे देश इच्छुक हैं. लोकल कंपनियाँ को वहाँ 'भूमिपुत्र' की संज्ञा दी जाती है. ऐसी कंपनियाँ भी वहाँ काफ़ी बड़ी संख्या में फल फूल रही हैं."

बांग्लादेश की जीडीपी ग्रोथ भारत से बेहतर कैसे? इसका जवाब एक लाइन में प्रबीर देते हैं.

"बांग्लादेश की सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सीढ़ी के रास्ते ऊपर चढ़ने की कोशिश की है, ना कि भारत की तरह लिफ़्ट का रास्ता चुना. लिफ़्ट में तकनीकी ख़राबी से आप एक जगह रुक सकते हैं, लेकिन सीढ़ी हो तो उतरना-चढ़ना ज़्यादा आसान होता है."

यही है दोनों देश की अर्थव्यवस्था में बुनियादी फ़र्क.

वीडियो कैप्शन,

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