BiharElection2020 || #NitishKumar के सामने क्या क्या विकल्प || नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ चले जाएँ और सरकार बना लें?
बिहार चुनाव: 43 सीटों के साथ नीतीश कुमार के सामने क्या हैं विकल्प?
- सरोज सिंह
- बीबीसी संवाददाता
"बीजेपी एक साथ यहाँ तीन गठबंधन में काम कर रही थी. पहला था, एनडीए गठबंधन, जिसके बारे में सब जानते और मानते थे. बीजेपी का दूसरा गठबंधन लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के साथ था और तीसरा गठबंधन AIMIM के साथ था. इन दोनों गठबंधन के बारे में भी सब जानते थे, लेकिन कोई मानता नहीं था. उम्मीद है कि नीतीश इस बात को अब समझेंगे."
बिहार चुनाव के नतीजों के बाद राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा अब आम है.
बात बहुत छोटी सी है. इसे प्रमाणित करने के लिए बिहार चुनाव के विश्लेषक कई आँकड़े भी गिना रहे हैं. मसलन, कैसे चिराग ने तक़रीबन 20-30 सीटों पर नीतीश की पार्टी जेडीयू को नुक़सान पहुँचाया और कैसे ओवैसी की पार्टी ने तेजस्वी की आरजेडी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी की.
पर जो बात स्थानीय नेताओं को समझ आ गई, क्या 15 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले नीतीश कुमार को समझ नहीं आई होगी? इस पर बहुत से जानकारों को संदेह है.
बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा सब ने ट्वीट किया. सबने बिहार की जनता को धन्यवाद दिया. बीजेपी के कई नेताओं ने आज भी बयान दिए हैं कि बिहार के अगले मुख्यमंत्री नीतीश ही होंगे.
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'बिहार के होने वाले मुख्यमंत्री' नीतीश कुमार ने भी ट्वीट किया, "जनता मालिक है. उन्होंने एनडीए को जो बहुमत प्रदान किया, उसके लिए जनता-जनार्दन को नमन है. मैं पीएम नरेंद्र मोदी से मिल रहे उनके सहयोग के लिए धन्यवाद करता हूं."
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बुधवार की शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही सरकार बनाने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि नीतीश जी के नेतृत्व में ही संकल्प सिद्ध करेंगे.
बावजूद इसके नीतीश कुमार के पास चूँकि विधायकों की संख्या बीजेपी की तुलना में बेहद कम हैं लिहाजा उनके सामने क्या विकल्प हैं? इसी सवाल के जवाब में सारा गणित छुपा है.
विकल्प 1: नीतीश अपनी शर्तों पर मुख्यमंत्री बनें
इसका मतलब ये कि 'छोटा भाई' होते हुए भी उनकी हैसियत 'बिग ब्रदर' की हो और सरकार चलाने में उन्हें खुली छूट मिले. मंत्रिमंडल के बँटवारे में ज़्यादा हक़ मिले और चिराग पासवान ने जेडीयू के लिए जो नुक़सान किया है, उसकी भरपाई हो. कुछ ऐसी शर्तें मुख्यमंत्री बनने के लिए नीतीश कुमार बीजेपी के सामने रख सकते हैं.
बीबीसी से बातचीत में जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने कहा, "नीतीश कुमार बिहार के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे. ये फ़ैसला एनडीए गठबंधन का है, नीतीश कुमार का नहीं है."
बीजेपी की जेडीयू से 31 सीटें ज़्यादा है फिर सरकार में नीतीश कुमार की कैसे चलेगी? इस सवाल पर केसी त्यागी कहते हैं, "ये चिंता सरकार चलाने वाले को होनी चाहिए, पत्रकारों को नहीं. इस देश में कई बार ऐसी सरकारें पहले भी चली हैं. सरकार कैसे चलाना है, वो नेता के मोराल पर और उसकी क्षमता पर निर्भर करता है."
वो कहते हैं, "नीतीश कुमार 15 साल मुख्यमंत्री रहे हैं. उनके पास अनुभव भी है और क्षमता भी है. सीटों के नंबर कम रहे हों या ज़्यादा, अब तक गठबंधन में पूरी ज़िम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई है. ऐसा ही हम अब करेंगे. हमारे सामने कोई दिक़्कत नहीं आएगी."
2015 के विधानसभा चुनाव में भी जेडीयू की सीटें आरजेडी से कम आई थीं लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने थे. वरिष्ठ पत्रकार निस्तुला हेब्बार कहती हैं कि बीजेपी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना देगी. लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस सूरत में बनना है या नहीं ये उनको तय करना है.
चर्चा है कि जेडीयू चाहती है चिराग को एनडीए से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए.
मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश को सरकार चलाने में खुली छूट देने के लिए बीजेपी को अपने काम करने की रणनीति में बदलाव करना होगा.
बिहार की राजनीति और बीजेपी की कवर करने वाले पत्रकार मानते हैं कि ये थोड़ा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है. बिहार बीजेपी के नेताओं का भी केंद्रीय नेतृत्व पर दवाब होगा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है.
बीजेपी को बिहार में इस बार 74 सीटें मिली हैं. अगर बीजेपी अगला विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का मन बनाती है तो कुछ समझौते करने पड़ सकते हैं. नीतीश उनके लिए बिहार में मजबूरी है और केंद्र में ज़रूरी भी हैं.
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विकल्प 2: नीतीश केंद्र की राजनीति में चले जाएँ और राज्य में बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बना दें
कुछ इसी तरह का इशारा केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे कर चुके हैं. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि उनका निजी मत है कि अगर नीतीश चाहेंगे तो केंद्र में मंत्री पद संभाल सकते हैं. अगर केंद्र में आएँगे तो मोदी सरकार को मज़बूती देंगे.
लेकिन पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस के प्रोफ़सर डीएम दिवाकर को लगता है कि इससे बिहार में जेडीयू टूट जाएगी. जेडीयू में नीतीश के बाद दूसरी पंक्ति के नेता नहीं है. इससे न तो नीतीश को फ़ायदा होगा, न ही बीजेपी को.
अश्विनी चौबे के इस ऑफ़र को केसी त्यागी सिरे से नकारते हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि अश्विनी चौबे बीजेपी के असल नेता नहीं हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा बीजेपी के असल नेता है. तीनों ने पब्लिक में ये कमिटमेंट दिया है, इसलिए नीतीश मुख्यमंत्री बनेंगे.
वरिष्ठ पत्रकार निस्तुला हेब्बार को भी नहीं लगता कि नीतीश ऐसे विकल्प को नहीं स्वीकार करेंगे. उनके मुताबिक़, "बिहार में नतीज़ों के बाद भी सरकार के गठन में थोड़ा सस्पेंस बरक़रार है. जेडीयू खेमे में इस बात को लेकर नाराज़गी है कि अगर चिराग फै़क्टर नहीं होता तो जेडीयू आसानी से 50 के आँकड़े को पार कर लेती. चौथी बार मुख्यमंत्री के लिए इतनी सीटों के साथ जेडीयू तब ज़्यादा बेहतर स्थिति में होती."
"सत्ता विरोधी लहर का जो नैरेटिव खड़ा किया गया था, वो 50 सीटों के साथ ध्वस्त हो जाता. लेकिन ये सब हो ना सका. इसलिए जेडीयू के कार्यकर्ताओं में नाराज़गी और नीतीश खेमे में शांति है."
बीजेपी को 74 सीटों पर जीत मिली है जबकि जेडीयू केवल 43 सीटें ही जीत पाई.
निस्तुला कहती हैं कि बीजेपी से नीतीश की नाराज़गी सीटों के इस फासले को लेकर है. कहीं न कहीं पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को लगता है उनकी जीत का वैभव कम करने में बीजेपी का हाथ है. दोनों सत्ता में साथ आ भी गए तो एक 'विश्वास की कमी' हमेशा बनी रहेगी.
विकल्प 3: नीतीश कुमार 'रबर स्टैम्प' मुख्यमंत्री बन जाएँ
नीतीश कुमार पर हमेशा ये आरोप लगते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के लिए हमेशा उन्होंने किसी न किसी पार्टी का सहारा लिया. पहले बीजेपी फिर आरजेडी और दोबारा से बीजेपी के साथ वो चुनाव में उतरे.
इसका निष्कर्ष जानकार यही निकालते हैं कि वो 'येन केन प्रकारेण' सत्ता में बने रहना जानते हैं. नीतीश के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है.
पिछले दिनों बिहार की राजनीति में कई ऐसे उदाहरण देखे हैं जब नीतीश कुमार ने केंद्र की नीतियों का राज्य में विरोध तो किया लेकिन संसद में वोटिंग के दौरान बायकॉट कर समर्थन भी दिया. सीएए, एनआरसी और अनुच्छेद 370 जैसे उदाहरण भी सामने हैं.
विकल्प 4 : नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ चले जाएँ और सरकार बना लें
वैसे तो आज की सूरत में ये दूर की कौड़ी है, लेकिन भारतीय राजनीति में ऐसे कई उतार-चढ़ाव पहले भी देखे हैं. इसके लिए पहल महागठबंधन की तरफ़ से भी करनी होगी और इस ऑफ़र के लिए नीतीश कुमार को भी मानसिक तौर पर तैयार होना होगा. कांग्रेस नेता ऐसे ऑफ़र दे भी रहे हैं.
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ऐसा तभी सभंव है जब बीजेपी की तरफ़ से कोई ऐसी शर्त सरकार बनाने के लिए रखी जाए जो नीतीश कुमार को स्वीकार न हो.
चुनाव नतीजों के आने के बाद नीतीश की घंटों की चुप्पी इन सारे विकल्पों को जन्म दे रही है. अगले 24 घंटे बिहार की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण साबित होंगे.
विकल्प: 5 नीतीश कुमार मुख्यमंत्री न बनें और किसी और को सीएम बना दें, जैसा उन्होंने जीतन राम मांझी के साथ किया था
पुराने वाले नीतीश की राजनीति को ये विकल्प सूट भी करता है.
एक ट्रेन हादसे के बाद इस्तीफ़ा दे देने वाले नेता नीतीश कुमार के लिए ये करना आसान भले हो, लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए पहले आरजेडी और फिर बीजेपी के साथ समझौता करने वाले नीतीश कुमार ऐसा करेंगे, इस पर जानकारों को शक है. शायद इस विकल्प के लिए बीजेपी तैयार भी ना हो.
इस बीच निगाहें राजभवन पर टिकी हैं कि वहाँ सबसे पहले कौन और किसके समर्थन की चिट्ठी के साथ पहुँचता है.
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