धर्म-परिवर्तन कर होने वाली शादी समस्या है या राजनीति?

 


  • सुशीला सिंह
  • बीबीसी संवाददाता
लव-जिहाद
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सांकेतिक तस्वीर

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषण में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश का उल्लेख करते हुए कहा है कि 'शादी-ब्याह के लिए धर्म-परिवर्तन आवश्यक नहीं है, नहीं किया जाना चाहिए और इसको मान्यता नहीं मिलनी चाहिए. सरकार भी निर्णय ले रही है कि हम लव-जिहाद को रोकने के लिए सख़्ती से कार्य करेंगे. एक प्रभावी क़ानून बनाएंगे.'

हालांकि 'लव-जिहाद' शब्द की कोई क़ानूनी हैसियत नहीं है. इसे ना ही अबतक किसी क़ानून के तहत परिभाषित किया गया है और न ही केंद्र या राज्य की किसी एजेंसी ने किसी क़ानूनी धारा के तहत इम मामले में कोई केस दर्ज किया है.

गृह मंत्रालय भी कहता है कि जबरन अंतरजातीय विवाह को 'लव-जिहाद' कहा जा रहा है.

एक सांसद के सवाल पर गृह राज्य मंत्री जी कृष्ण रेड्डी ने ये जवाब दिया था और संविधान में उल्लेखित धर्म की आज़ादी पर अनुच्छेद 25 का भी उल्लेख किया था.

योगी ने हाल ही में मल्हनी (जौनपुर) सीट पर होने वाले उपचुनाव के प्रचार के दौरान जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, ''छद्म भेष में चोरी-छिपे, नाम छिपाकर, स्वरूप छिपाकर जो लोग बहन-बेटियों की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करते हैं, उनको पहले से मेरी चेतावनी है कि अगर वे सुधरे नहीं तो राम-नाम सत्य है की यात्रा अब निकलने वाली है. मिशन शक्ति को इसलिए चला रहे हैं कि हम बेटी-बहन को सुरक्षा की गारंटी देंगे. उसके बावजूद किसी ने दुस्साहस किया तो ऑपरेशन शक्ति अब तैयार है. ऑपरेशन शक्ति का उद्देश्य यही है कि हम हर हाल में उनकी सुरक्षा करेंगे, उनके सम्मान की रक्षा करेंगे इसलिए ऑपरेशन शक्ति के कार्यक्रम को बढ़ाने के लिए हम चल रहे हैं, न्यायालय के आदेश का पालन भी होगा और बहन-बेटियों का भी सम्मान होगा."

जनसभा को दिए संबोधन में मुख्यमंत्री योगी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश और मिशन-शक्ति का उल्लेख किया.

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उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले महीने नवरात्र के दौरान मिशन-शक्ति की घोषणा की थी जिसके तहत महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई क़दम उठाए गए हैं लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट के जिस आदेश का योगी ज़िक्र कर रहे हैं उसका संदर्भ क्या था?

दरअसल, अदालत के समक्ष एक अंतरजातीय वैवाहिक जोड़े ने रिट याचिका दायर कर पुलिस सुरक्षा माँगी थी.

इस याचिका को ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा था कि शादी के लिए धर्म-परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है. उत्तर प्रदेश के इस जोड़े ने अदालत से गुहार लगाई थी कि अदालत महिला के पिता को उनकी शांतिपूर्ण शादीशुदा ज़िंदगी में दख़ल देने से रोक.

याचिका सुनने के बाद अदालत ने पाया कि महिला मुस्लिम थी और उन्होंने शादी से पहले धर्म-परिवर्तन किया था. एक सदस्यीय बेंच का कहना था कि धर्म-परिवर्तन शादी के लिए हुआ था. इस बेंच ने वर्ष 2014 के एक आदेश का उल्लेख करते हुए कहा, ''शादी के लिए धर्म-परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत वो ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है और इस याचिका को रद्द करती है.''

स्पेशल मैरेज एक्ट

संविधान में सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं जिसमें से एक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी शामिल है. इसके अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने, पालन करने व प्रचार करने की स्वतंत्रता है. कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को कोई विशेष धर्म मानने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.

वहीं स्पेशल मैरेज एक्ट भी है जिसमें अलग-अलग धर्म से आने वाले लड़के और लड़की बिना अपना धर्म बदले शादी कर सकते हैं. हालांकि इसके लिए कई प्रावधान भी किए गए हैं जिसे पूरा करने के बाद ही आप शादी कर सकते हैं.

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद हरियाणा सरकार के मंत्री भी कह रहे हैं कि वे क़ानून लेकर आएंगे.

अभी कुछ दिन पहले ही हरियाणा के बल्लभगढ़ में निकिता तोमर नाम की लड़की को गोली मार दी गई थी और ये गोली तौसीफ़ नाम के युवक ने उनपर चलाई थी. इस पूरे मामले को 'लव जिहाद' के मामले की तरह पेश करने की कोशिश की जा रही है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह मानते हैं कि "लव जिहाद टर्म का इस्तेमाल केरल राज्य से शुरू हुआ. जहां से ऐसे मामले आए जिसमें कई सही भी थे, कुछ में लड़कियां ख़ुद धर्म परिवर्तन करना चाहती हैं. ये कहा जा सकता है जहां लड़कियों का धर्म परिवर्तन हुआ है, ऐसे मामले बढ़ रहे हैं या ऐसे मामले ज़्यादा उजागर हो रहे हैं लेकिन ऐसे में दोनों समुदायों को एक हल निकालने की ज़रूरत है."

वे कहते हैं कि अंतरजातीय विवाह होने चाहिए लेकिन धर्म-परिवर्तन की बात नहीं होनी चाहिए. उनके अनुसार अगर ऐसे विवाह धोखाधड़ी या संगठित तरीक़े से किए जा रहे हैं तो क़ानून बनाने की ज़रूरत है फिर चाहे सत्ता में कोई भी पार्टी रहे क्योंकि ये समस्या तो रहेगी.

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वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन कहती हैं कि "यूपी में क़ानून-व्यवस्था बिल्कुल चरमरा गई है. वहां आए दिन बलात्कार, हत्या, फिरौती की ख़बरें आती ही रहती हैं. लव-जिहाद, बीजेपी और ख़ासकर योगी के काल में मुख्य एजेंडा रहा है. ये रह-रह कर उठता रहता है और उत्तर प्रदेश में ये देखा गया है कि ज़्यादातर हिंदू- मुस्लिम शादियों में हिंसा हुई है."

वे कहती हैं कि यूपी सरकार क़ानून व्यवस्था से लोगों का ध्यान हटाने के लिए इसे मुद्दा बना रही है क्योंकि वो जानती है कि सांप्रदायिक मुद्दे कहीं न कहीं क्लिक करते हैं, फिर चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो.

उनके अनुसार, ''उत्तरप्रदेश के बाद अब हरियाणा में क़ानून लाने की बात हो रही है. शादी एक निजी मामला है. अगर कोई हिंदू-मुस्लिम शादी करना चाहते हैं तो किसी का बीच में आने का कोई अधिकार नहीं है. हिंदू-मुस्लिम में रिश्ते होना कोई नायाब बात तो नहीं है. लेकिन इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश हो रही है और बीजेपी को लगता है कि ये सही समय है ऐसे क़ानून के लिए दबाव बनाने का. आप देखिए कि गोहत्या विरोधी क़ानून लाया गया उसका विरोध ही नहीं हुआ. अब लव-जिहाद पर क़ानून लेकर आते हैं तो कोई भी विपक्षी पार्टी कांग्रेस, सपा, बसपा कुछ नहीं बोलेगी. बीजेपी को अपने लिए यही वातावरण सही लग रहा है तो ये लाने में कोई परेशानी भी नहीं होगी.''

हाल ही में आभूषण बनाने वाली कंपनी तनिष्क का एक विज्ञापन विवादों में आ गया था जिसमें एक हिंदू महिला की शादी मुस्लिम घर में हुई थी. विवाद के बाद तनिष्क को अपना विज्ञापन वापस लेना पड़ गया था.

प्रदीप सिंह कहते हैं कि कई ऐसे मामले भी होते हैं जहां धर्म-परिवर्तन कर लोग दूसरी शादी कर लेते हैं और इसके कई उदाहरण हैं.

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके भजनल लाल के बेटे चंद्र मोहन बिश्नोई ने दूसरी शादी के लिए स्वयं का और महिला का धर्म परिवर्तन किया था और मुस्लिम धर्म अपना लिया था.

पत्रकार प्रदीप सिंह कहते है कि अंतरजातीय विवाह के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट भी है.

तो क्या ये पहला क़दम है यूनिफ़ार्म सिविल कोड की तरफ़ और क्या इसे लाया जाना चाहिए?

प्रदीप सिंह कहते हैं, "इस पर बहस होनी चाहिए, समिति बने और इस मुद्दे पर विचार करें और क़ानून बनाने की कोशिश हो जो संविधान और क़ानून के हिसाब से हो. जो विभिन्न समुदायों की चिंताएं हैं उसको ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए. वरना क़ानून क़ागज़ पर ही रह जाता है."

मुख्यमंत्री योगी ने क़ानून को लेकर अपनी मंशा ज़ाहिर की है. क़ानून का मसौदा आए तो पता चलेगा कि इरादा क्या है. क्या इसका इरादा समस्या को दूर करना है या इसके पीछे सिर्फ़ राजनीति है?

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