पोस्टल बैलेट की गिनती कब होती है?
तेजस्वी यादव की दोबारा पोस्टल बैलेट गिनने की माँग कितनी जायज़
- सरोज सिंह
- बीबीसी संवाददाता
बिहार चुनाव परिणामों के बाद पहली बार बोलते हुए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने गुरुवार को चुनाव आयोग से उन पोस्टल बैलेट की दोबारा गिनती की माँग की जहाँ इन्हें अंत में गिना गया. उन्होंने कहा कि मतगणना में गड़बड़ी की गई है और जनमत महागठबंधन के पक्ष में आया है लेकिन चुनाव आयोग के नतीजे एनडीए के पक्ष में आए हैं.
इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने चुनाव आयोग से सवाल किया कि पोस्टल बैलेट को पहले क्यों नहीं गिना गया और कई सीटों पर इन वोटों को अमान्य घोषित कर दिया गया.
तेजस्वी ने कहा कि 20 सीटों पर महागठबंधन बेहद कम अंतर से हारा और कई सीटों पर 900 पोस्टल बैलेट को अमान्य घोषित किया गया. तेजस्वी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पैसे, ताक़त और धोखे का सहारा लिया फिर भी वो 31 साल के युवा को रोक नहीं पाए, वो आरजेडी को सबसे बड़ी पार्टी बनने से रोक नहीं पाए.
कुल मिला कर कहें तो तेजस्वी यादव के दो मुख्य आरोप हैं और एक माँग है-
पहला पोस्टल बैलेट को क्यों नहीं पहले गिना गया?
दूसरा कई जगह पर ग़लत तरीके से इन्हें अमान्य बताया गया.
और इसलिए उन्होंने पोस्टल बैलेट को दोबारा गिने जाने की माँग की है.
आख़िर तेजस्वी यादव द्वारा लगाए गए इन आरोपों में कितना दम है? पोस्टल बैलेट पर चुनाव आयोग के दिशा निर्देश क्या कहते हैं और इन्हें कब अमान्य घोषित किया जा सकता है और कब नहीं?
इन तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए बीबीसी ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त रहे ओपी रावत से बात की. बीबीसी के पाठकों के लिए उन्होंने आसान भाषा में इसे समझाया है.
पोस्टल बैलेट क्या होते हैं और इनका इस्तेमाल कौन करता है?
पोलिंग ड्यूटी पर तैनात होने की वजह से या फिर किसी दूसरी स्पेशल कैटेगरी की वजह से कुछ वोटर जो पोलिंग बूथ पर जाकर वोट नहीं कर पाते. चुनाव आयोग द्वारा ऐसे लोगों के लिए पोस्टल बैलेट की व्यवस्था की जाती है ताकि वो अपने मताधिकार का उपयोग कर सकें.
लेकिन चुनाव में अगर आपकी ड्यूटी उसी विधानसभा सीट पर है, जिसके आप मतदाता है, पर पोलिंग बूथ अलग है, तो ऐसे सरकारी कर्मचारी पोस्टल बैलेट का इस्तेमाल नहीं करते. उनके लिए इलेक्शन ड्यूटी सर्टिफ़िकेट (EDC) का प्रावधान होता है.
अमूमन चार तरह के लोग वोट देने के लिए पोस्टल बैलेट का इस्तेमाल कर सकते हैं.
- स्पेशल वोटर (जैसे कोरोना महामारी में ज़्यादा उम्र वाले)
- सर्विस वोटर (सेना के जवान)
- ऐसे वोटर जो चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा हों (चुनाव में ड्यूटी पर तैनात)
- ऐसे वोटर जो कुछ ख़ास कारणों से नज़रबंद (प्रिवेंटिव डिटेंशन) हों.
पोस्टल बैलेट कैसे भर के भेजे जाते हैं? कब अमान्य क़रार दिए जाते हैं?
एक पोस्टल बैलेट की चार पर्चियाँ होती हैं.
• एक फॉर्म होता है, जिसमें आप अपना वोट डालते हैं.
• उसके साथ एक दूसरा फॉर्म होता है जो आपके पहचान पत्र के तौर पर काम करता है. इसे मताधिकार का प्रयोग करने वाले किसी सीनियर द्वारा साइन और प्रमाणित किया जा सकता है. अगर कोई स्पेशल वोटर है, तो वो किसी भी गैज़ेटेड ऑफ़िसर से साइन करवा कर इसे भर सकता है. इसके लिए उसे अपने उम्र का फ़ोटो पहचान पत्र दिखाना होगा.
• इसके ऊपर एक तीसरा कवर होता है, जो रिटर्निंग ऑफिसर के नाम भेजा जाता है.
• साथ ही चौथा पर्चा होता है, जिसमें पोस्टल बैलेट इस्तेमाल करने के पूरे नियम लिखे होते हैं.
किसी भी सूरत में अगर इनमें से कोई भी फ़ॉर्म जारी दिशा निर्देशों से अलग तरीके से भर दिया जाता है तो उस पोस्टल बैलेट को अमान्य घोषित करार दे दिया जाता है. जैसे सही तरह से पोस्टल बैलेट को प्रमाणित न किया जाना, सही लिफ़ाफे में बंद न करना, साइन ग़लत जगह करना, कोई एक पर्ची ख़ाली छोड़ दिया गया है आदि. पोस्टल बैलेट को सभी काउंटिंग एजेंट को दिखा कर ही अमान्य करार दिया जाता है.
तेजस्वी यादव पोस्टल बैलेट को अमान्य घोषित किए जाने पर सवाल उठा रहे हैं. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं कि अमान्य पोस्टल बैलेट पर चुनाव आयोग के निर्देश साफ़ कहते हैं कि अगर आपने वोट सही भी दिया हो, लेकिन पहचान पत्र या दूसरे फॉर्म को सही तरीक़े से नहीं भरा गया हो तब भी आपका पोस्टल बैलेट अमान्य होगा. रिटर्निंग ऑफ़िसर काउंटिंग एजेंट को दिखा कर उस वोट को अमान्य करार दे सकता है.
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पोस्टल बैलेट की गिनती कब होती है?
चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के मुताबिक़ पोस्टल बैलेट की गिनती वोटों की गिनती की शुरुआत में होना चाहिए.
ओपी रावत कहते हैं, "अगर आधे घंटे में पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी नहीं होती तो ईवीएम के वोटों की भी शुरू हो जानी चाहिए और दोनों गिनती साथ-साथ चल सकती है."
लेकिन तेजस्वी यादव आरोप लगा रहे हैं कि कई जगहों पर पोस्टल बैलेट की गिनती आख़िर में हुई है. क्या ऐसा हो सकता है?
इस सवाल के जवाब में ओपी यादव कहते हैं, इसके पीछे दो वजहें हो सकती हैं.
मतगणना के अंत में हमेशा VVPAT पर्चियों की काउंटिंग होती है. सुप्रीम कोर्ट का दिशानिर्देश हैं कि हर विधानसभा सीट के अंदर आने वाले किसी भी पाँच पोलिंग बूथ की पर्चियों को अंत में गिना जाए. शायद तेजस्वी यादव VVPAT काउंटिंग से कंफ्यूज़ हो गए हों.
दूसरी वजह ये भी हो सकती है कि कोरोना की वजह से चुनाव आयोग ने 80 साल से अधिक उम्र वालों को भी पोस्टल बैलेट से वोट की इजाज़त दी थी, तो पोस्टल बैलेट वाले मत ज़्यादा आ गए हों और उन्हें गिनते गिनते वक़्त ज़्यादा लग गया हो. ये भी संभव है कि पोस्टल बैलेट की गिनती और ईवीएम के वोटों की गिनती एक साथ ख़त्म हुई हो.
कोरोना महामारी की वजह से इस बार के चुनाव में वोटों की गिनती में ज़्यादा वक़्त लगा ये सब जानते हैं. चुनाव आयोग ने इस बारे में प्रेस कांफ्रेंस कर जानकारी भी दी थी. इससे पहले के चुनाव में पोस्टल बैलेट की गिनती ज़्यादा से ज़्यादा एक से दो घंटे ही चलती थी.
पोस्टल बैलेट की दोबारा गणना किन परिस्थितियों में होती है?
इस सवाल के जवाब में ओपी रावत कहते हैं अगर अमान्य पोस्टल बैलेट की संख्या जीत के अंतर से ज़्यादा होते हैं तो नियमों के मुताबिक़ रिटर्निंग ऑफ़िसर दूसरे ऑब्ज़र्वर के साथ काउंटिंग एजेंट के सामने दोबारा से उन पोस्टल बैलेट को वैरिफाई करें, काउंटिंग करें और दोबारा पुराने नंबर से टैली भी करें. अगर ऐसा करने पर थोड़ी भी गड़बड़ी मिले तो दूसरे सभी उम्मीदवारों के लिए ऐसा करना अनिवार्य होता है.
इसके अलावा भी अगर किसी उम्मीदवार को इनकी गणना के दौरान ज़रा सा भी शक हो, तो वे मतगणना केंद्र पर ही रिटर्निंग ऑफ़िसर के सामने इनकी दोबारा गणना की माँग कर सकते हैं. ऐसी सूरत में ये रिटर्निंग ऑफ़िसर के अधिकार क्षेत्र के अंदर आता है कि वो दोबारा गणना के आदेश देते हैं या नहीं. इस सूरत में चुनाव आयोग की कोई भूमिका नहीं होती है.
क्या पोस्टल बैलेट की दोबारा गणना के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जा सकता है?
कोई भी उम्मीदवार चुनाव में धांधली के आरोप पर सबूतों के आधार पर कोर्ट में इलेक्शन पीटिशन दायर कर सकता है. जिसने चुनाव न लड़ा हो वो कोर्ट नहीं जा सकता.
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