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कोरोना और ब्रेस्ट कैंसर: तकलीफ़ भी, उम्मीद भी
- नितिन श्रीवास्तव
- बीबीसी संवाददाता
दिल्ली के तिलक नगर इलाक़े में गुरुनानकपुरा एक पुरानी कॉलोनी है जिसके भीतर पहुँचने के लिए आपको कई संकरी गलियों को पैदल पार करना होता हैं.
बिजली के तारों के झुंड से ढकी हुई एक तंग गली के तीन मंज़िला मकान की छत पर खड़ी एक महिला हमारा इंतज़ार कर रही थीं.
34 साल की राधा रानी ने इसी साल अगस्त महीने से दूसरी मंज़िल पर एक छोटा घर किराए पर ले रखा है जहाँ उनके दो बच्चे भी साथ रह रहे हैं.
उन्होंने बताया, "लॉकडाउन ख़त्म होने के दो महीने बाद ही मुझे ब्रेस्ट कैंसर होने का पता चला. हम जम्मू में थे जहाँ डॉक्टर ने दिल्ली आकर पहले सर्जरी और फिर इलाज कराने की सलाह दी."
राधा रानी के पति नौकरी करते हैं और इन दिनों श्रीनगर में तैनात हैं. दिल्ली में किराए का मकान लेकर इलाज कराने के अलावा कोई चारा नहीं था. लेकिन मुश्किलें और भी थीं.
उन्होंने कहा, "रिश्तेदारों ने कहा दिल्ली में ट्रीटमेंट नहीं लेना है, कोरोना फैला हुआ है. लेकिन हमको ट्रीटमेंट लेना था हम आ गए. सर्जरी के बाद मेरी कीमोथेरेपी शुरू होनी थी लेकिन उसके पहले कोविड टेस्ट में मेरा पॉज़िटिव आ गया. इसके चलते हमारी थेरेपी एक महीना आगे बढ़ानी पड़ी."
कोरोना वायरस और ब्रेस्ट कैंसर
इस साल के जनवरी महीने में भारत में कोरोना वायरस ने दस्तक दी थी जिसके चलते 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी.
एक तरफ़ जहाँ अस्पतालों और स्वास्थ्य कर्मियों का लगभग पूरा ध्यान इस वैश्विक महामारी की रोकथाम में लगा वहीं दूसरी तरफ़ नागरिकों को संक्रमण से बचे रहने की हिदायतें दी गईं.
इस प्रक्रिया में दूसरी जानलेवा बीमारियों का इलाज करा रहे लोगों पर ख़ासा असर पड़ा और अनुमान है कि कैंसर, ख़ासतौर से ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े क़रीब 40% ऑपरेशन टल गए.
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ साल 2018 के दौरान भारत में ब्रेस्ट कैंसर से क़रीब 87,000 मौतें हुईं थीं. जबकि महिलाओं को होने वाले कैंसर में से 28% मामले ब्रेस्ट कैंसर के ही थे. बढ़ते आँकड़ों के बीच कोरोना आ पहुँचा.
दिल्ली के मनिपाल अस्पताल में सर्जिकल ओंकोलोजी प्रमुख और ब्रेस्ट कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर वेदांत काबरा कहते हैं, "भारत में अमेरिका, इंग्लैंड या कनाडा जैसे उन्नत देशों की तरह कोई सरकारी स्क्रीनिंग प्रोग्राम नहीं है इस वजह से 60-70% ब्रेस्ट कैंसर के मरीज़ हमारे पास तीसरी-चौथी स्टेज में आते हैं."
उन्होंने बताया, "कोविड आने से जिनको जानकारी नहीं थी वो तो वैसे ही बैठे हुए थे लेकिन जिन्हें जानकारी थी वो भी ब्रेस्ट कैंसर या उनके लक्षणों के बारे में कोविड की वजह से इतने ज़्यादा डर गए थे कि लक्षणों के बावजूद अस्पताल नहीं आ रहे थे."
ब्रिटेन की ब्रेस्ट कैंसर नाउ नामक चैरिटी संस्था के मुताबिक़ कोविड-19 महामारी के दौरान क़रीब दस लाख ब्रितानी महिलाओं को अपनी सालाना ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग जाँच छोड़नी पड़ी और अमेरिका और यूरोप से भी ऐसी ख़बरें आती रही हैं.
भारत में ब्रेस्ट कैंसर की स्थिति और ख़तरनाक हो सकती है क्योंकि पहले से ही महिलाओं में इसका प्रतिशत सबसे ज़्यादा है और जानकारों का मानना है कि अगले दस सालों में ब्रेस्ट कैंसर हर दूसरे कैंसर को पीछे छोड़ सकता है.
भारत में कैंसर रिसर्च से शुरुआत से जुड़े रहे और गंगाराम, अपोलो और आरटेमिस जैसे अस्पतालों में ओंकोलॉजी विभाग की कमान संभाल चुके डॉक्टर राकेश चोपड़ा कहते हैं कि 2019 की तुलना में इस साल आधे से भी कम कैंसर ऑपरेशन हुए और इसमें ब्रेस्ट कैंसर मामलों की तादाद बहुत है."
उन्होंने कहा, "कैंसर के मरीज़ों की इम्यूनिटी यानी शरीर के किसी भी संक्रमण से लड़ने की क्षमता दूसरों के मुक़ाबले बहुत कम होती है. इस डर के अलावा अगर ब्रेस्ट कैंसर के लिहाज़ से देखें तो आज भी ज़्यादातर ग्रामीण इलाक़ों या छोटे शहरों में महिलाएं, ख़ासतौर से शादी-शुदा, अपने बीमारियों से ज़्यादा अपने परिवार-बच्चों पर ध्यान देती हैं. ऊपर से कोरोना वायरस का डर बना रहा है जिससे हालात ख़राब होते चले गए."
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहने वाली अनुपमा (नाम बदला हुआ) दो साल पहले अपनी सास का इलाज कराने शहर के संजय गांधी पीजीआई अस्पताल जाया करती थीं.
बात-बात में एक दिन उन्होंने अपनी सास की महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर से कहा कि पिछले चार महीनों में उनका वज़न ख़ुद-ब-ख़ुद साढ़े चार किलो कम हुआ है.
डॉक्टर ने तुरंत उनकी जाँच की और शरीर के कई हिस्सों में छोटी-छोटी गठिया मिलने के बाद उसी शाम उनकी मैमोग्राफ़ी कराई तो उन्हें स्टेज-3 का ब्रेस्ट कैंसर निकला.
स्तन हटाने की सर्जरी के बाद उन्हें कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी दी गई लेकिन इसी साल फ़रवरी में हुए स्कैन में दोबारा कैंसर सेल्स दिखे.
इस बार उनका इलाज दिल्ली में शुरू हुआ लेकिन इसी बीच लॉकडाउन की घोषणा हुई और इलाज रोकना पड़ा.
अनुपमा ने बताया, "जून के पहले हफ़्ते में दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट आने पर पता चला कि कैंसर अब फेफड़ों तक फैल चुका था. हालांकि कुछ कैंसर मरीज़ों का इलाज लॉकडाउन में होता रहा लेकिन शायद हम ही लोग ज़्यादा डर गए थे. अब पता नहीं क्या होगा?".
दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में ब्रेस्ट कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर आर सरीन के मुताबिक़, "लॉकडाउन के पहले तक हर महीने क़रीब 200 ब्रेस्ट कैंसर मरीज़ हमारे यहाँ इलाज के बाद के फ़ॉलोअप में आते थे लेकिन अब इसमें 70% तक की गिरावट दिखी है."
भारत में कोरोना वायरस फैलने के शुरुआती दिनों में मरीज़ों के नाम-पते सार्वजनिक करने के दौरान ब्रेस्ट कैंसर जैसी आम होती बीमारी को भी बड़ा झटका लगा. ज़ाहिर है इसमें जागरूकता की ख़ासी ज़रूरत है जिस पर पिछले कई सालों से काम तो जारी है लेकिन असर अभी भी कम दिखा है.
पश्चिमी दिल्ली में रहने वाली शमीम ख़ान ने एक कैंसर सपोर्ट ग्रुप की शुरुआत की जिस दौरान उनके अपने परिवार में इस बीमारी ने दस्तक दी थी.
शमीम बताती हैं, "ब्रेस्ट कैंसर हो या कैंसर, भारत में आज भी इस पर पर्दा रखा जाता है. एक तो हममें झिझक बहुत है, शर्म बहुत है, हम डॉक्टरों को नहीं बताते, अपने घरों में भी नहीं बताते कि ब्रेस्ट कैंसर हुआ है. जब होता है तो हम इधर-उधर, हक़ीम-वकीम के पास जाते हैं. यानी जागरूकता की कमी है."
लिमफ़ोमा सपोर्ट ग्रुप की सह-संस्थापक शमीम के मुताबिक़, "मैं झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्तियों में काम करती हूँ और आज भी औरतें कहती हैं हम अपने ब्रेस्ट को कैसे दिखाएँ, कैसे बताएँ कि उसमें से ब्लीडिंग हो रही है या बदलाव हो रहे हैं."
उम्मीद की किरण
ब्रिटेन की जानी मानी पत्रिका 'द लैंसेट' के मुताबिक़ भारत में हर साल कैंसर के क़रीब दस लाख नए मामले सामने आते हैं और कोरोना काल में इनपर गहरा असर पड़ेगा.
लेकिन अस्पतालों और विशेषज्ञों ने इसी दौरान कैंसर ट्रीटमेंट में भी कुछ सफल प्रयोग किए हैं.
डॉक्टर वेदांत काबरा के अनुसार, "भारतीय महिलाओं में ब्रेस्ट और सरवाइकल कैंसर सबसे ज़्यादा हैं और विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस को देखते हुए इलाज में ज़रूरी बदलाव किए. मरीज़ों के अस्पताल आने में कमी लाने से लेकर थेरेपी देने की संख्या के अलावा उन्हें ये भरोसा दिलाया गया कि सर्जरी कराना सुरक्षित है, उससे बचने में नुकसान ज़्यादा है."
डॉक्टर राकेश चोपड़ा के मुताबिक़, "कोरोना के दौर में ही कैंसर विशेषज्ञों का एक बड़ा ग्रुप बनाया गया, ख़ासतौर से उन मरीज़ों के लिए जो दूर-दराज़ से दिल्ली या मुंबई या बड़े शहर इलाज कराने के लिए आते थे. भले ही उनके यहाँ सुविधाओं का स्तर बड़े शहरों जैसा नहीं है लेकिन हम लोग वहाँ के स्थानीय चिकित्सकों से लगातार बात करते हुए ये कोशिश करते हैं कि इलाज में बाधा न आए."
भारत सरकार की आयुष्मान स्वास्थ्य परियोजना के तहत साल 2020 की शुरुआत तक, क़रीब 70 लाख महिलाओं की ब्रेस्ट कैंसर और 30 लाख की सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग या जाँच हो चुकी है.
लगभग सभी कैंसर विशेषज्ञों का मत है कि इसे अब कई गुना तेज़ी से बढ़ाने की ज़रूरत है.
वैसे भारत सरकार ने इस बात को भी शुरू से ही साफ़ कह रखा है कि मरीज़ों की आवाजाही या इलाज पर लॉकडाउन या उसके बाद में किसी क़िस्म की पाबंदी नहीं लगाई जाएगी लेकिन जानकारों का मानना है कि सरकार को भी कोरोना से एक सीख लेने की ज़रूरत है.
डॉक्टर राकेश चोपड़ा कहते हैं, "सरकार ने जैसे मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग की कैम्पेन पूरे देश में चलाई उससे जागरूकता रातों-रात बढ़ी और कामयाब साबित हुई. ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारी के बारे में अगर इसका 50% भी दोहरा लेंगे, तभी ब्रेस्ट कैंसर की आने वाली सुनामी से बचा जा सकेगा."
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