#CoronaVirus ! एक शोध के अनुसार चीन से नहीं फैला कोरोना
कोरोना वायरस चीन से फैलना शुरू नहीं हुआ- अमेरिकी शोध
आज से क़रीब एक साल पहले वैज्ञानिकों को कोविड-19 बीमारी फैलने वाले Sars-CoV-2 कोरोना वायरस के बारे में तब पता चला जब चीन के वुहान में कुछ लोगों के इससे संक्रमित होने की ख़बर आई.
लेकिन एक नए शोध के अनुसार महामारी का कारण बना ये वायरस इससे कई सप्ताह पहले लोगों को संक्रमित कर चुका था.
अमेरिका के सेंटर्स फ़ॉर डीज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेन्शन (सीडीसी) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस शोध के नतीजों को क्लिनिकल इन्फ़ेक्शियस डीज़ीज़ नाम की पत्रिका में प्रकाशित किया गया है.
अब तक मौजूद जानकारी के अनुसार आधिकारिक तौर पर वैज्ञानिकों को कोरोना वायरस के बारे में 31 दिसंबर 2019 को तब जानकारी मिली जब चीन के वुहान के हुबेई प्रांत के स्वास्थ्य अधिकारियों ने एक चेतावनी जारी कर कहा कि यहां कई ऐसे मामले दर्ज किए जा रहे हैं जिनमें निमोनिया के गंभीर लक्षण हैं. उन्होंने इसे अजीब तरह की सांस लेने से संबंधित बीमारी कहा.
लेकिन महामारी के शुरू होने के ग्यारह महीनों बाद अब शोधकर्ताओं का कहना है कि अमेरिका के तीन राज्यों में 39 ऐसे लोग हैं जिनके शरीर में कोरोना वायरस के एंटीबॉडीज़ मिले हैं. ये एंटीबॉडीज़ चीन के कोरोना वायरस से जुड़ी चेतावनी देने के दो सप्ताह पहले उनके शरीर में मौजूद थे.
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हालांकि अमेरिका में Sars-Cov-2 का पहला मामला 21 जनवरी 2020 को ही दर्ज किया गया था.
शोध के नतीजे क्या कहते हैं?
इस शोध के अनुसार अमेरिका में 13 दिसंबर 2019 से लेकर 17 जनवरी 2020 के हुए ब्लड डोनेशन में कुल 7,389 लोगों ने ख़ून दिया था. इनमें से 106 लोगों के ख़ून के नमूनों में कोरोना वायरस की एंटीबॉडीज़ मिली हैं.
किसी व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडीज़ मिलने का मतलब है कि वो व्यक्ति वायरस से संक्रमित हुआ है और उसके रोग प्रतिरोधक तंत्र ने उस वायरस से निपटने के लिए एंटीबॉडीज़ बनाई हैं.
कैलिफ़ोर्निया, ओरेगॉन और वॉशिंगटन में 13 से 16 दिसंबर के बीच लिए गए ख़ून के नमूनों में से 39 में कोरोना वायरस की एंटीबॉडीज़ हैं.
शोध के अनुसार 67 नमूने जनवरी के महीने में मैसेचुसैट्स, मिशिगन, रोड आइलैंड और विस्कॉन्सिन में जमा किए गए थे. ये इन राज्यों में महामारी का प्रकोप बढ़ने से कहीं पहले था.
अधिकतर लोग जो इस वायरस के संपर्क में आए थे वो पुरुष थे और उनकी औसत उम्र 52 साल थी.
शोधकर्ताओं का मानना है कि हो सकता है कि इन लोगों के शरीर में पहले से ही मौजूद किसी कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ एंटीबॉडीज़ बन गई हों. हालांकि उनका कहना है कि शोध के अनुसार अधिकतर लोग जिनमें एंटीबॉडीज़ मिले हैं उनमें से कई लोगों में उस वक्त कोविड-19 के लक्षण भी मौजूद थे.
हालांकि शोधकर्ता कहते हैं कि अमेरिका में बड़े पैमाने पर वायरस का संक्रमण फ़रवरी के आख़िरी सप्ताह में ही फैलना शुरू हुआ. लेकिन अब तक वायरस की उत्पत्ति को लेकर जो जानकारी है क्या इस शोध से उसमें कोई बदलाव आएगा?
आख़िर वायरस सबसे पहले कहां पाया गया?
Sars-Cov-2 वायरस सबसे पहले कहां पाया गया, इस सवाल का उत्तर देना शायद कभी संभव न हो सके.
इस तरह के कई संकेत मिले हैं कि ये वायरस दिसंबर 2019 में चीन के वुहान में पाए जाने से कई सप्ताह पहले से ही दुनिया में मौजूद था.
लेकिन सीडीसी के शोधकर्ताओं का कहना है कि वो इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ कह नहीं सकते कि ये लोग अपने देश में ही संक्रमित हुए थे या फिर यात्रा के दौरान वो वायरस की चपेट में आए थे.
ब्लड डोनेशन कार्यक्रम का आयोजन करने वाली संस्था रेड क्रॉस का कहना है कि जिन लोगों के नमूने इकट्ठा किए गए थे उममें से केवल तीन फ़ीसद ने कहा था कि उन्होंने हाल में विदेश यात्रा की है. इसमें से पाँच फ़ीसद का कहना था कि वो एशियाई देश के दौरे से लौटे हैं.
इससे पहले हुए कुछ और शोध में भी चीन की चेतावनी देने से पहले दूसरे देशों के लोगों में कोरोना वायरस होने के सबूत मिले थे.
इसी साल मई में फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने कहा कि 27 दिसंबर को पेरिस के नज़दीक एक व्यक्ति का इलाज संदिग्ध निमोनिया मरीज़ के तौर पर किया गया था. ये व्यक्ति वास्तव में कोरोना वायरस से संक्रमित थे.
कई देशों में शोधकर्ताओं ने सीवर के पानी के नमूनों में कोरोना वायरस पाए जाने की बात की थी. ये नमूने महामारी की घोषणा से कई सप्ताह पहले लिए गए थे.
जून के महीने में इटली के वैज्ञानिकों ने कहा था कि मिलान शहर के सीवर के पानी में 18 दिसंबर को कोरोनो वायरस के निशान मिले थे. हालांकि यहां कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि काफी बाद में हुई थी.
स्पेन में हुए एक शोध के अनुसार बार्सिलोना में जनवरी के मध्य में सीवर के पानी के जो नमूने लिए गए थे, उनमें कोरोनो वायरस के निशान मिले. लेकिन यहां चालीस दिन बाद कोरोना के पहले मामले की पुष्टि हुई थी.
ये वायरस ब्राज़ील कैसे पहुंचा इसे लेकर भी कई तरह के सवाल उठाए गए हैं.
यहां कोरोना संक्रमण का पहला मामला 26 फरवरी 2020 को पाया गया था. साओ पाउलो के 61 साल के एक व्यापारी कोरोना के पहले मरीज़ जो कुछ दिनों पहले इटली की यात्रा से लौटे थे. उस वक्त तक इटली महामारी का दूसरा केंद्र बन चुका था.
हालांकि फ़ेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सैंटा कैटरीना (यूएफ़एससी) के शोधकर्ताओं के एक दल ने इससे कुछ महीने पहले 27 नवंबर 2019 को सीवर के पानी में वायरस पाए जाने की बात की थी.
ओस्वाल्डो क्रूज़ फ़ाउंडेशन द्वारा किए गए एक और शोध के अनुसार ब्राज़ील में आधिकारिक तौर पर कोरोना संक्रमण के पहले मरीज़ की पुष्टि होने से क़रीब एक महीने पहले 19 से 25 जनवरी के बीच यहां Sars-Cov-2 संक्रमण का पहला मामला मिला था. हालांकि अब तक ये नहीं पता है कि इन व्यक्ति ने विदेशी दौरा किया था या नहीं.
तो क्या वुहान पशु बाज़ार से नहीं फैला वायरस...
Sars-CoV-2 के बारे में जो एक बात अब तक पता नहीं चल पाई है वो ये नहीं है कि ये जानवरों से इंसानों में कब आया, बल्कि ये है कि इस वायरस ने लोगों को संक्रमित करना कब शुरू किया.
जानकारों का कहना है कि अब तक महामारी का केंद्र वुहान के जानवरों के बाज़ार को माना जा रहा है जहां जीवित और मृत जंगली जानवरों का व्यवसाय होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि शुरुआती दौर में संक्रमण के जो मामले दर्ज किए गए उनमें से बड़ी संख्या में मामले इस बाज़ार से जुड़े थे. लेकिन इस बात को लेकर शोधकर्ता अनिश्चित हैं कि ये वायरस वहां से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के शरीर में फैलना शुरू हुआ.
हॉन्ग कॉन्ग यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजिस्ट युएन क्वॉक-युंग ने बीबीसी को बताया, "अगर आप मुझसे पूछेंगे तो मेरी राय है कि इस बात की संभावना है कि वायरस उन बाज़ारों से फैलना शुरू हुआ जहां जंगली जानवरों की खरीद-बिक्री होती है."
कोरोना वायरस को लेकर चीन ने भी अपनी टाइमलाइन को थोड़ा पीछे किया है. तेज़ी से पैर फैला रहे किसी वायरस की शुरुआत से जुड़ी जांच के दौरान ऐसा करना कोई बड़ी बात नहीं है.
चीन के वुहान में डॉक्टरों द्वारा की गई एक स्टडी के अनुसार यहां कोरोना के पहले मामले की पहचान दिसंबर की पहली तारीख को हुई थी और इसका नाता जानवरों के बाज़ार से नहीं था. ये स्टडी मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित की गई थी.
कुछ जानकार कहते हैं कि महामारी फैलाने की क्षमता रखने वाला वायरस, बिना पहचान में आए महीनों तक दुनिया भर में मौजूद रहे, ऐसा संभव नहीं है.
लेकिन ये संभव है कि उत्तर गोलार्ध में विशेषकर सर्दियों के दौरान ये वायरस पहचान में आया हो और पहले से मौजूद रहा हो.
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