किसान ट्रैक्टर परेड हिंसा: एक देश, दो परेड, किसान और जवान के बीच ठिठका गणतंत्र
- विकास त्रिवेदी
- बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
26 जनवरी. दोपहर क़रीब एक बजे. एक तेज़ भागता लड़का आईटीओ चौराहे की ओर आकर चिल्लाता है- ''ओए चलो ओए, अपने बंदे नू मार दिया.''
हाथों में रॉड और डंडे लिए ट्रैक्टरों से उतरे प्रदर्शनकारी नई दिल्ली स्टेशन की ओर जाने वाली सड़क की ओर बढ़ते हैं. क़रीब 200 मीटर की दूरी पर आंध्र एजुकेशन सोसाइटी के बाहर नीले रंग का एक ट्रैक्टर पलटा पड़ा है.
पास में ही एक शव तिरंगे से ढँका रखा है, गणतंत्र दिवस का तिरंगा इस तरह काम आएगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा होगा. पास पहुंची शुरुआती भीड़ चेहरे से तिरंगा हटाती है.
प्रदर्शनकारी शव की जेब में पहचान के लिए क़ागज खोजते हैं. मोबाइल मिलता है. शव के अंगूठे को लगाकर फ़ोन का लॉक खोलने की कोशिश होती है. लॉक नहीं खुलता है.
कोई कहता है- फे़स लॉक लगा रखा है. फ़ोन को शव के चेहरे के पास लाया जाता है. फे़स लॉक तब भी नहीं खुलता है. चेहरे पर बहे खून का थक्का अब भी गीला है.
एक गणतंत्र, दो चेहरे
कुछ पलों बाद रोता हुआ एक लड़का आकर शव को गले लगाता है. वहाँ जुटे नए लोग बताते हैं- मरने वाले का नाम नवरीत सिंह है. इससे ज़्यादा पहचान पूछने पर गुस्साए लोग गाली के साथ जवाब देते हैं, ''तुझे तार भेजना है क्या? गोली लगी है, दिख नहीं रहा.''
प्रदर्शनकारी कुछ देर बाद नवरीत के शव को आईटीओ चौराहे पर लाकर रख देते हैं. प्रदर्शनकारियों की भीड़ से भरे लालकिले से क़रीब ढाई किलोमीटर दूर ये वही आईटीओ चौराहा है, जहाँ कुछ मिनट पहले आँसू गैस के गोलों की आवाज़ गूंज रही थी.
इसी चौराहे से क़रीब तीन किलोमीटर दूर तीन घंटे पहले राजपथ पर भी तोप के गोलों की आवाज़ गूँज रही थी. इन दोनों आवाज़ों को जिस तारीख़ के धागे ने जोड़ा हुआ था, उस पर गणतंत्र दिवस लिखा था.
कुछ देर पहले राजपथ पर जिस हिंदुस्तान की झाँकी देखते हुए हेलिकॉप्टर्स ने फूल बरसाए थे, कुछ देर बाद उसी हिंदुस्तान की दूसरी घायल कर देने वाली झाँकी दिल्ली के लाल किले, अक्षरधाम, नांगलोई और आईटीओ पर देखने को मिली थी.
एक गणतंत्र के दो चेहरे, जिसका शिकार पुलिसवाले भी हुए और प्रदर्शनकारी भी. ये कहानी इन दोनों परेड को क़रीब से देखने की आँखों देखी है. 25 जनवरी की रात से 26 जनवरी की हिंसक झड़प तक.
दिल्ली जो एक शहर था...
25 जनवरी की रात. ग़ाज़ीपुर बॉर्डर.
दिल्ली के आनंद विहार की तरफ़ से ट्रैक्टर ग़ाज़ीपुर बॉर्डर की तरफ़ बढ़ रहे हैं. 'किसान एकता ज़िंदाबाद' के नारों के साथ ट्रैक्टरों पर तेज़ आवाज़ में देशभक्ति के गीत बज रहे हैं.
ग़ाज़ीपुर फ्लाइओवर के नीचे रिक्शा किनारे लगाकर रवि फुटपाथ पर सोने जा रहे हैं. पूछने पर वो कहते हैं, ''किसान का आंदोलन है यहां पर. मोदी के चक्कर में कर रहे हैं.''
रवि कई सालों से दिल्ली में हैं लेकिन कभी भी 26 जनवरी की परेड न देखी और न ही गणतंत्र दिवस के बारे में जानते हैं. हाँ, वो इतना जानते हैं कि खा-पीकर 250 रुपये बच गए.
कुछ ही दूरी पर बड़ौत से आए रविंदर सिंह ट्रैक्टर पर बैठे-बैठे कहते हैं, ''मैं तो दिल्ली से आया घुसके. मना कर दिया था कि ट्रैक्टर में डीजल ना मिलेगा. मेरे पास तीन ट्रैक्टर भरे खड़े थे. उनमें से तेल निकाल लाया. 26 जनवरी को एक परेड वहाँ निकलेगी और एक हम निकालेंगे. हमें तो अपनी परेड का उत्साह ज़्यादा है.''
मीडिया के लिए गाली देते हुए रविंदर सिंह ने कहा, ''जो यू-ट्यूबर हैं वो तो किसानों की बातें दिखा देते हैं. लेकिन जितने बड़े चैनल हैं वो सारे बिकाऊ हैं. कितने किसान भाई मरे, किसी ने दिखाया? अगर पुलिस ने हमें जाने नहीं दिया तो आर-पार है इबके. या तो वे नहीं या हम नहीं.''
'लाल किले पर तिरंगा फहराएंगे'
कुछ दूरी पर बेंगलुरु में इंटेल कंपनी में काम करने की बात करने वाले विनीत कुमार मिले. वो ट्रैफ़िक को संभालने के लिए वॉलेंटियर का काम कर रहे हैं.
विनीत कहते हैं कि उनका पीएम मोदी से मोहभंग हो चुका है, ''मैं सच्ची बता रहा हूं मैंने मोदी जी का प्रचार किया था. हमने वोट दिया लेकिन अब मैं यहाँ खड़ा हूँ.''
मुज़फ़्फ़रनगर से तीन दिन पहले आए विनय के ट्रैक्टर पर गाना बज रहा है. ''रे बर्गर और पिज्जे खाण वालों, कदी सोचा जिस धोरे तम खाण जाओ उस धोरे अनाज कित आवे. गेंहू किसान ते. चावल किसान दे. बर्गर किसान ते, पिज्जे किसान ते.''
विनय कहते हैं, ''यहाँ न आएँ तो बताओ हम घर बैठके क्या करें? ये इंतज़ार करें कि कब यो सरकार जूं की तूं उनके सामने पहुंचा दें. बनियों की बना दें? हम करें और वो ले जाएं?''
रिपब्लिक डे पर ही क्यों दिल्ली जाना है? विनय ने कहा, ''वहाँ पर तिरंगा फहराया जाएगा न. लाल किले पर हम ही जाकर फहराएंगे तिरंगा.''
लाल किला तो किसान परेड का रूट ही नहीं है और किसान नेता भी तैयार नहीं हैं.
ये सुनकर विनय जवाब देते हैं, ''कल परेड तो आप हमारी ट्रैक्टरों की देखियो. कल जो रैली रहेगी तुम देखियो, अलग ही रहेगी.''
विनय ने फ़ोन में 26 जनवरी को बजाने वाले गानों की लिस्ट में एक गाने को बजाते हैं- हक़ लेकर जावांगे....
यहां से आगे बढ़ने पर कुछ युवा पीएम मोदी के नाम से तुकबंदी करके गालियाँ दे रहे हैं. एक टीवी के पत्रकार और अब यू-ट्यूबर पत्रकार का वीडियो किसान मोबाइल पर देख रहे हैं.
उत्तर प्रदेश पुलिस की जैकेट पहने कुछ पुलिसकर्मी ट्रैक्टर पर बैठे हैं. सवाल पूछने पर वो कहते हैं- हम पुलिस से नहीं हैं, इनके मिलने वाले हैं.
ट्रैक्टर से स्टंट की तैयारी...
रात के साढ़े दस बज रहे हैं.
सड़क की दूसरी तरफ़ किसानों का मंच है. किसान नेता राकेश टिकैत भीड़ से घिरे हुए हैं. काफी सारे लोग राकेश टिकैत के साथ सेल्फ़ी लेने के लिए टूट पड़ रहे हैं.
कुछ देर पहले 'किसान एकता ज़िंदाबाद' के नारे 'राकेश टिकैत एंड परिवार ज़िंदाबाद' के नारे में बदल चुके हैं.
एक ऐसे ही टिकैत फैन मोहम्मद आरिफ़ सेल्फ़ी लेने पर कहते हैं, ''देखकर जोश आ जावे है, नेता को देखकर खुशी मिलती है.''
भारी बाइक को सीधी उठाने से लेकर, बैक गियर में बढ़ते ट्रैक्टर को रोकने वाले बागपत के मोहसिन को लोगों ने घेरा हुआ है.
30 बीघा खेती के मालिक और पावर लिफ़्टर मोहसिन कहते हैं, ''जितना भी रूट है. उतने में कल स्टंट करेंगे. शांतिपूर्वक करेंगे. किसी का कोई विरोध नहीं होने का जी. जो भी करेंगे, सबसे अलग करेंगे शांति से.''
'वंचित भारत, मेरा भारत...'
''जेल में कितनी जगह है तेरे? भर ले कितनी जेल भरेगा. हम जेल गए तो क्रिमिनल को आंदोलनकारी बना देंगे. बह रहा है खू़न सड़क पर... पी ले कितना खू़न पिएगा.''
मुरादाबाद से आए कुछ कलाकार ढपली लेकर ये गीत गा रहे हैं. इस ढपली पर लिखा है- वंचित भारत, मेरा भारत.
इन्हीं कलाकारों में से एक मुरादाबाद से आईं निर्देश सिंह कहती हैं, ''26 जनवरी की किसान परेड की तैयारी औरतें भी कर रही हैं. अभी रात हो गई है तो सब सोने की तैयारी कर रही हैं. देखिए जहाँ पुरुष होता है वहां पित्तृसत्ता होती ही है लेकिन यहां तक औरतें आ गईं हैं तो आगे भी दिक़्क़त नहीं है. औरतें चौखट लांघ चुकी हैं.''
तभी वहां से गुज़रता कोई अजनबी लड़का निर्देश की ओर देखकर कहता है- क्या बता रही है ओए?
ग़ाज़ीपुर फ्लाईओवर पर कार से उतरा एक परिवार अपने बच्चों को नीचे ट्रैक्टरों का हुजूम दिखा रहा है.
गाज़ियाबाद में रहने वाले सुरप्रीत कौर और अमनदीप सिंह कहते हैं, ''हमने हर साल बच्चों को घर से हर साल परेड टीवी पर दिखाई है. लेकिन इस बार हम किसानों की परेड भी दिखाएंगे और गणतंत्र दिवस वाली भी. हमारे लिए तो ये परेड ख़ास है.''
दिल्ली की तरफ़ भारी संख्या में सुरक्षाबल तैनात हैं. स्कूल में राष्ट्रीय पर्व पढ़ाए जाते हैं. पहले शाहीन बाग़ और 25 जनवरी की रात तक ग़ाज़ीपुर का किसान आंदोलन सिलेबस में जुड़े नए राष्ट्रीय पर्व जान पड़ते हैं. इन पर्वों को मनाने वालों में सिंह भी हैं और मोहसिन भी.
मुरादाबाद वाले कलाकारों के गीत की लाइन याद आई- ''धर्म जात के नाम पर यहाँ दंगा करवाया जाता है.''
रात 12 बजे के बाद का वक़्त है. तारीख़ बदल चुकी है. सुबह जब भारत उठेगा तो दो परेड देखेगा. राजपथ और किसान परेड.
26 जनवरी की सुबह: राजपथ
राजपथ में वो रास्ता बंद है, जहां से परेड को निकलना है.
सुबह के क़रीब सात बज रहे हैं. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जहाँ बैठकर सलामी लेंगे, उस बुलेटप्रूफ़ ग्लास पर जमी धुंध को साफ़ किया जा रहा है ताकि जो देश की झाँकी हो, उनको साफ़ दिख सके.
देशभक्ति के गीत बज रहे हैं. जिनमें इस बार एक नया गीत- 'शेर हम गलवान के...' भी शामिल है.
परेड की जानकारी दे रही उद्घोषिका शुरू में ही सरदार पटेल के देश को जोड़ने और संविधान को लेकर डॉक्टर अंबेडकर का ज़िक्र करती है.
ट्विटर पर बीती रात #NehruEkBhool टॉप ट्रेंड्स में शामिल रहा था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजपथ पर आ चुके हैं. जैसे ही वो दर्शकों की तरफ़ हाथ हिलाते हैं, पास बैठे लोगों के चेहरे पर खुशी की झाँकी प्रदर्शित होती है.
ये खुशी उद्घोषिका की आवाज़ में भी झलकती है. लगभग राष्ट्रपति के अभिभाषण की ही तरह 'प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हुए अच्छे कामों' का कई बार ज़िक्र किया जाता है.
राष्ट्रपति के आने के बाद 21 तोपों की सलामी से ज़मीन हिलती हुई जान पड़ती है. हेलिकॉप्टर फूल बरसाते हैं और राजपथ की परेड शुरू होती है.
झाँकी राजपथ की और कंगना रनौत
कुछ झाँकियों के निकलने पर थोड़ी-थोड़ी देर पर सड़क साफ़ करने वाली मशीनें भी आती हैं. ये नज़ारा किसानों को रोकने के लिए प्रशासन की ओर से खोदी सड़कों से बिल्कुल अलग था.
दिल्ली की झाँकी में मंदिर के शंख, मस्जिद की अज़ान और गुरबानी सुनाई पड़ती है.
इस झाँकी के सिर्फ़ अजान वाले हिस्से को अभिनेत्री कंगना रनौत शेयर करते हुए ट्विटर पर सवाल करती हैं, ''ये भारत की राजधानी की झाँकी है. क्या ये किसी इस्लामिक या क्रिस्चन मजॉरिटी देश के गणतंत्र दिवस को हो सकता था? सोचो और पूछो...''
सोचने और पूछने के क्रम में राजपथ पर दिखी कुछ झाँकियां याद आईं.
पंजाब की झाँकी में गुरुद्वारा. उत्तराखंड की झाँकी में केदारनाथ मंदिर. महाराष्ट्र की झाँकी में संत परंपरा. गुजरात की झाँकी में सूर्य मंदिर. लद्दाख की झाँकी में बौद्ध मठ और आँध्र प्रदेश की झांकी में लेपाक्षी मंदिर.
उत्तर प्रदेश की झाँकी में राम मंदिर देखते ही दर्शकों की तालियों की आवाज़ तेज़ हो गई.
एक झाँकी में डांस करते हुए बच्चे भाग रहे हैं. किनारे से पीछे-पीछे भागते टीचर्स की साँस फूल रही है. महसूस हुआ कि ज़्यादा पढ़े लिखे लोगों के साँस फूलने की ये हिंदुस्तानी झाँकी कितनी सच्ची है.
परेड पूरा होने से पहले कई वायुसेना के विमान करतब दिखाते हैं. करतब दिखाता लड़ाकू विमान रफ़ाल आसमान में इतनी तेजी से गायब हुआ कि पता ही नहीं चला.
पीएम मोदी राष्ट्रपति को विदा करके दर्शकों की ओर फिर हाथ हिलाते हैं. कुछ सुरक्षाबल समेत दर्शक ''मोदी मोदी...मोदी मोदी..'' चिल्लाते हुए सेल्फ़ी लेने लगते हैं.
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''मोदी जी अच्छे लीडर हैं लेकिन...''
26 जनवरी को क़रीब 12 बजने वाले हैं.
राजपथ पर 'शोभायमान भारतीय' उठने लगते हैं.
बिहार के ज्योति और सुनील कहते हैं, ''परेड देखकर बहुत अच्छा लगा. किसानों की परेड भी होगी वो ऐतिहासिक होगी. किसानों और सरकार दोनों को बात करके समाधान निकालना चाहिए. पंजाब की झाँकी में किसानों का कुछ नहीं दिखा, ये तो नहीं कह सकते कि उसकी कमी थी. लेकिन हाँ, किसानों का परेड में कुछ होना चाहिए था. उनका अलग विरोध है वो अलग आकर्षित करेगा.''
अनुराशि अपनी कुछ और स्टूडेंट्स दोस्तों के साथ परेड ख़त्म होने के बाद तस्वीरें ले रही हैं. अनुराशि कहती हैं, ''परेड देखकर दिल भारी हो जाता है. मैं पॉलिटिक्ली एक्टिव नहीं हूँ लेकिन मैं मोदी जी के सारे फैसलों से सहमत हूं.''
दिल्ली के गोल मार्केट से आए भागीरथ कुमार कहते हैं, ''परेड देखते वक़्त ये ख़याल आया कि किसानों को नहीं दिखाया गया. पीएम मोदी अच्छे लीडर हैं लेकिन थोड़ा किसानों का भी सोचना चाहिए.''
राजपथ से बाहर की दिल्ली...
परेड ख़त्म होते ही जैसे ही मैं राजपथ से थोड़ी दूरी पर आता हूं. इंटरनेट ऑन करते ही पता चलता है कि किसानों की परेड कई जगह हिंसक हो गई है. अक्षरधाम, नांगलोई और सिंघु बॉर्डर के पास पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प हुई है.
मैं ग़ाज़ीपुर की ओर बढ़ने लगता हूं. ज़्यादातर रास्ते बंद हैं. प्रगति मैदान और भैरो मंदिर की तरफ़ पुलिस ने रास्ता बंद किया हुआ है.
सराय काले ख़ाँ और इंद्रप्रस्थ पार्क की तरफ़ से ट्रैक्टर तेज़ी से आईटीओ की ओर बढ़ रहे हैं.
जेवर से ट्रैक्टर लेकर आए भीम राजपथ की परेड पर कहते हैं, ''अजी हम अपनी ही देख लें परेड.''
बुलंदशहर से आए किसान ट्रैक्टर रोककर कहते हैं, ''ग़ाज़ीपुर से आए हैं. पूरी दिल्ली जाएंगे. लाल किले जाएंगे...''
मैं टोकते हुए कहता हूं कि ये रूट नहीं था. जवाब मिला, ''रूट नहीं था तो क्या करें? बहरी सरकार सुन नहीं रही तो क्या करें? जो रूट नेताओं ने तय किया था उस पर बैरिकेडिंग लगा दिए गए. किसानों को उकसाया जा रहा है. लाल किले पर रुकना है हमें. सुविधा नहीं है उनके पास कि हमें रोक पाएं. वो होपलेस हो गए हैं.''
ट्रैक्टर के बोनट पर गमछा डालकर लेटे हुए एक व्यक्ति कहते हैं, ''भई सीधी बात यो है कि आरोप लगाया कि खालिस्तानी हैं. हम खालिस्तानी होते तो तिरंगा ना लहराते. कहने वाले देख लें कि ये सारी भीड़ किसानों की है. किराए की नहीं है.''
आईपी डिपो के पास बने बस स्टैंड पर एक वृद्ध जोड़ा बैठा हुआ है. पूछने पर जवाब मिला, ''हम तो 26 जनवरी वाली परेड देखने आए थे. वो इस बार आईटीओ आई नहीं. तो थककर सुस्ता रहे हैं. जाते-जाते किसानों की ही परेड देख ली.''
आईटीओ पर चार घंटे शव रखा रहा
दोपहर के एक बजे. आईटीओ पर पुलिस हेडक्वार्टर के सामने ट्रैक्टर्स भारी संख्या में मौजूद हैं.
प्रदर्शनकारियों में से कुछ हाथों में लोहे की रॉड लिए सड़क के बीच की बैरिकेडिंग तोड़ रहे हैं. मैंने जब वीडियो बनाने की कोशिश की तो वो फ़ोन छीनने लगे, गिरेबान पकड़कर बोलने लगे-हमारी वीडियो क्या बना रहा है? पुलिस की बना जाके जो मार रही है.
आईटीओ के मुख्य चौराहे की तरफ़ बढ़ने पर आंसू गैस के गोले पास आकर गिरते हैं. आँखों में लगती मिर्च जब अपना असर कुछ मिनट बाद कम करती है तो सामने से खू़न से सना एक कैमरापर्सन और एक लड़की रोती हुई लौटती दिखती है.
आईटीओ के चौराहे पर पुलिस ड्यूटी में तैनात कई डीटीसी बस टूटी हुई हैं. चौराहे पर प्रदर्शनकारी जमा हैं और प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन की ओर पुलिस बैरिकेड लगाए खड़ी है.
इसके कुछ देर बाद इसी चौराहे पर मृतक नवदीप सिंह की लाश को लाकर प्रदर्शनकारियों ने रख दिया है. दोपहर के दो बज रहे हैं.
कई प्रदर्शनकारी ये दावा करते हैं, ''ट्रैक्टर लेकर जा रहा था. पहले टायर में गोली मारी. फिर सिर में गोली मारी.''
ट्रैक्टर के दिख रहे टायर पर गोली का कोई निशान मुझे नहीं दिखा. 26 जनवरी की रात पुलिस के हवाले से जारी सीसीटीवी फुटेज में नवरीत का ट्रैक्टर पुलिस बैरिकेड से टकराकर पलटता दिखता है. नवरीत सिंह की मौत की वजह के बारे में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बयान मेल नहीं खाते.
महात्मा गांधी की मुस्कान और हिंसा
प्रदर्शनकारी नवरीत के शव के पास पत्रकारों के जाते ही चिल्लाने और खदेड़ने लगते हैं.
अक्सर सरकार समर्थकों के निशाने पर रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार और टीवी एंकर शव के पास खड़े हैं. प्रदर्शनकारी उनसे बदसलूकी कर रहे हैं और 'गोदी मीडिया' कहकर चिल्ला रहे हैं.
मैं उन वरिष्ठ पत्रकार से हटने के लिए कहता हूं. वो झुंझलाकर इंग्लिश में कहते हैं- मैं 30 सालों से पत्रकारिता इसलिए नहीं कर रहा हूं कि ये लोग मुझे अपना काम ना करने दें. मैं यहाँ से नहीं हटूंगा. बात करने आया हूं...
थोड़ी दूरी पर पुलिस हेडक्वॉर्टर के बाहर लगी विशाल तस्वीर में पत्रकार महात्मा गांधी मुस्कुराते हुए दिख रहे हैं. नीचे सड़क पर हिंसा हो रही है.
भारतीय मीडिया के कई बड़े चैनल पुलिस बैरिकेडिंग के पीछे खड़े होकर लाइव कर रहे हैं. पुलिसवालों की ओर से पत्रकारों को प्रदर्शनकारियों के पास सुरक्षा के चलते जाने से मना किया जा रहा है.
नवरीत के शव के पास जुटे लोग 'सतनाम वाहेगुरु, सतनाम वाहेगुरु' पढ़ रहे हैं.
कुछ गुस्साए प्रदर्शनकारी पुलिस को चुनौती देते नज़र आ रहे हैं. यहीं से कुछ दूरी पर लाल किले में प्रदर्शनकारियों के झंडा फहराने की ख़बरें टीवी पर लाइव चल रही हैं.
इसी दौरान रिकॉर्ड हुए कई वीडियो जिनमें पुलिस कहीं लोगों को बचाती दिख रही है और कहीं खुद प्रदर्शनकारियों से पिटती दिख रही है... 26 जनवरी की रात तक सामने आ जाते हैं.
शाम साढ़े बजे के क़रीब नवरीत के शव को मिनी ट्रॉली में रखकर ग़ाज़ीपुर बॉर्डर और फिर घर भेजने के लिए रवाना कर दिया गया है.
आईटीओ के बाहर खड़े सभी ट्रैक्टर ग़ाज़ीपुर लौटने लगे हैं. काँच बिखरी सड़क खाली हो चुकी है.
पुलिसवाले भी तैनाती वाली जगह से सुस्ताते हुए लौट रहे हैं. एक पुलिस का जवान चलते हुए मुझसे कहता है- 36 घंटे से खड़े हैं. ना खाने का ठिकाना ना पीने का. अब भी घर थोड़ी जा रहे हैं.
राजपथ पर उद्घोषिका सेना के जवानों के आने पर कुछ ऐसा कहती थी कि सरहद पर दुश्मनों से लोहा लेने वाले हमारे बहादुर जवान....
गणतंत्र दिवस की ओर परेड से दूर कुछ जवान सरहद पर नहीं, देश की राजधानी में लोहा ले रहे थे... पर किसी बाहरी दुश्मन से नहीं.
26 जनवरी की देर रात लौटते हुए इंडिया गेट के किनारे तिरंगों से बनी बाउंड्री दिखती है. नवरीत के शव पर पर भी तिरंगा लिपटा हुआ था.
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