सिर्फ उसका नाम दिशा नहीं है बल्कि वाकई वह दिशा है.
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दिशा रवि को मिली जमानत, अदालत का यादगार फैसला
जज ने लिखा - एक उदासीन और बेहद विनम्र जनता के मुकाबले जागरूक और मुखर जनता एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र का संकेत
जज ने लिखा है कि विचारों में मतभेद, असहमति, विचारों में भिन्नता और यहां तक कि घोर आपत्ति राज्य की नीतियों में वस्तुनिष्ठता लाने के पहचाने हुए और विधिक औज़ार हैं. एक उदासीन और बेहद विनम्र जनता के मुकाबले जागरूक और मुखर जनता एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र का संकेत है.
भारत की 5000 साल पुरानी सभ्यता कभी भी अलग अलग विचारों की विरोधी नहीं रही. इस सिलसिले में फैसले में ऋग्वेद के एक श्लोक को भी उद्धृत किया गया जिसका अर्थ है हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों. सिर्फ़ मौखिक दावे के अलावा मेरे संज्ञान में ऐसा कोई सबूत नहीं लाया गया जो इस दावे की तस्दीक करता हो कि आरोपी या उनके कथित सह साज़िशकर्ताओं की शैतानी साज़िश के बाद किसी भी भारतीय दूतावास में किसी तरह की कोई हिंसा हुई हो.
किसानों को आतंकवादी कहना, किसानों के लिए आवाज़ उठाना आतंकवादी के साथ हो जाना यह कभी नहीं हुआ. किसानों को मिला यह अपमान तमाम चुनावों में हार जीत के बाद भी उनके सीने से चिपका रहेगा. वे भले धर्म के आधार पर बंट जाएं या जाति के आधार पर बिखर जाएं लेकिन उन्हें याद रखेगा कि गोदी मीडिया और सत्ता ने उन्हें आतंकवादी कहा था. जज राणा ने लिखा है कि सरकार की शान में गुस्ताखी पर किसी पर देशद्रोह के आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं. दिशा रवि को ज़मानत मिल गई है. बल्कि जेल में डालकर डराने के खेल को आज नई दिशा मिली है.
सत्ता के दलदल से निकली हर दलील उसी दलदल में जा फंसी है. सात दिनों तक जेल में रहकर दिशा ने उन सभी को आज दिशाहीन कर दिया जो उसे आतंकवादी साबित करने के जुनून में विवेकहीन हो चुके थे. यह इशारा है किसान आंदोलन का. वह कृषि कानूनों के विरोध से कहीं ज़्यादा सरकार और समाज के विवेक का इम्तिहान ले रहा है. किसी को फंसा देना कितना आसान हो गया था कभी पत्रकार, कभी फ़िल्मकार, जिसे मन है उसके खिलाफ गोदी मीडिया को लगा दो, उलूल जुलूल के आरोप गढ़ दो और जेल में पहुंचा दो. यह खेल खत्म नहीं होगा आगे भी जारी रहेगा लेकिन आज इस खेल का भांडा फूट गया है. किसानों के बहकाने के मंत्र का पता लगाने के खेल का भंडा. क्या किसानों को बहकाने के इन दो चार मंत्र को क्या टूल किट कहा जा सकता है? कई महीने से सरकार कृषि कानूनों के फायदे गिना रही है, प्रधानमंत्री कई भाषण दे चुके हैं, और उन्हीं की पार्टी के कार्यकर्ता समझ नहीं पाए कि किसानों को समझाना कैसे है? समझ नहीं रहे तो बहकाना कैसे है? सोमवार को गुरुग्राम में बीजेपी के चिन्तन शिविर में अध्यक्ष ओपी धनखड़ और मंच की तरफ मुखातिब होकर एक जिज्ञासु कार्यकर्ता ने यह कह दिया कि “माननीय अध्यक्ष जी आप वाली बात सही है कि समझाने से नहीं मानेंगे और ना ही समझाने की कोशिश करें, बहकाने पड़ेंगे. बहकाने के 2-4 मंत्र और दे दो, ताकि बहका सकें. इसकी वीडियो रिकार्डिंग कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर दी.
अब इस तरह के वीडियो सामने आएंगे कि किसानों को बहकाने के मंत्र दे दिए जाएं तो किसानों के लिए समझना और मुश्किल हो जाएगा. वे यही पता लगाते रहेंगे कि समझाने के नाम पर बहकाया जा रहा है या बहकाने के नाम पर समझाया जा रहा है. इस वीडियो से पता चलता है कि आम कार्यकर्ता खुद को कितना मुश्किल में पा रहा है. उसे भी बहकाने के टूलकिट की ज़रूरत है. किसान आंदोलन को बहकाने के कितने प्रयास हुए लेकिन बहकाया नहीं जा सका. ऐसा नहीं है कि किसान सचेत नहीं हैं. पश्चिम यूपी की तमाम महापंचायतों में 2013 के दंगों की बात हो रही है और अफसोस ज़ाहिर किया जा रहा है. इसी संदर्भ में किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा था कि सभी किसान अपने घरों में बाबा साहब अम्बेडकर की फ़ोटो लगाएं और सभी मजदूर घरों में चौधरी छोटूराम के फोटो लगाएं.
19 फरवरी को हिसार के बरवाला में दलित सम्मेलन हूआ. इस सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए किसान नेता गुरनाम सिंह ने कहा था कि उनकी लड़ाई सरकार से ही नहीं, पूंजीपतियों से है. सरकार जाति के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर लड़वाती आई है, इन साज़िशों को समझना होगा.इन बयानों से लग रहा है कि किसान नेता उन सभी पहलुओं के बारे में सोच रहे हैं जिनसे किसी आंदोलन को खत्म कर दिया जाता है. बहकाने के इन तमाम मंत्रों की काट पहले से पेश कर रहे हैं. गुरनाम सिंह ने मज़दूरों से भी कहा था कि यह देश की आर्थिक आज़ादी बचाने का धर्म युद्ध है. वे भी किसान आंदोलन का साथ दें. 22 फरवरी को सोनीपत के खरखौदा ब्लाक में किसानों की पंचायत में सभी जाति के लोग शामिल हुए. इसका मतलब है कि किसान अपने आंदोलन को हर तरह से जोड़कर रखने के प्रयास में जुटे हैं. किसान आंदोलन में यह भी तय हुआ है कि 27 फरवरी को गुरु रविदास जयंती के मौके पर मज़दूर किसान एकता दिवस मनाया जाएगा. 27 फरवरी को शहीद चंद्रशेखर आज़ाद का शहादत दिवस भी है. इसका मतलब है कि किसान आंदोलन खुद को हर तरह से जोड़ जोड़ कर व्यापक बनाने में लगा हुआ है.
बहकाने के मंत्र से अच्छा होता सम्मान के साथ संवाद का मंत्र खोजा जाता और उसी पर यकीन रखा जाता. सरकार ने बातचीत का प्रस्ताव देकर लगता है कोशिशें छोड़ दी हैं और अपने सांसदों और कार्यकर्ताओं पर यह ज़िम्मेदारी डाल दी है कि वे गांवों में जाकर किसानों को समझाएं. जिस काम में बड़े बड़े नेता फेल हो गए हैं उस काम में कार्यकर्ताओं को पास होने के लिए भेजा जा रहा है. बीजेपी के नेता खाप के प्रधानों से मुलाकात कर रहे हैं.
रविवार को बीजेपी सांसद संजीव बलियान शामली गए. संजीव बलियान खाप के प्रधानों से मुलाकात कर रहे हैं. बुढ़ियान खाप के बाबा सचिन कालखंडे ने मिलने से इनकार कर दिया तो यहां इस गांव में बत्तीसा खाप के प्रधान से चौधरी बाबा सूरजमल से कृषि कानूनों पर बात करने. लेकिन यहां संजीव बलियान को भारी विरोध का सामना करना पड़ा.बीजेपी के विरोध में नारे लगाए गए. जब लोगों को पता चला कि मंत्री आने वाले हैं तो गांव के रास्ते को ट्रैक्टर ट्राली से जाम कर दिया. किसी तरह उन्हें हटाकर सांसदों का काफिला गांव में प्रवेश किया लेकिन बीजेपी के विरोध में नारे लगने लगे. नारेबाज़ी के दौरान संजीव बालियान और ग्रामीणों में नोंकझोंक भी हुई.
पश्चिम यूपी में बीजपी के नेताओं को लेकर नारेबाज़ी कोई दूसरा रूप न ले ले, इससे नुकसान किसान आंदोलन को ही होगा. उन पर हिंसा के आरोप लगेंगे. जैसा कि पहले भी हो चुका है. इस वक्त में जब पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन और महापंचायतों की सक्रियता उभार पर हो बीजेपी नेताओं के व्यक्तिगत मुलाकात जैसे कार्यक्रमों की चुनौतियां भी कम नहीं हैं. दूसरी तरफ यही किसान आंदोलन के लिए भी मुश्किल पैदा करेगा. सोमवार को मुजफ्फरनगर की बुढाना विधानसभा क्षेत्र के ऐतिहासिक गांव सोरम में विरोध ने तनाव का रूप ले लिया.
भाजपा सांसद संजीव बलियान और उनका काफिला सोरम गांव में एक तेरहवीं में शामिल होने पहुंचा था. किसान पंचायतों में ऐलान हुआ है कि तेरहवीं में बीजेपी के नेताओं को नहीं बुलाया जाए. संजीव बलियान के आते ही किसान जय जवान जय किसान और भाजपा मुर्दाबाद के नारे लगाने लग गए. बस किसानों पर लाठी-डंडों से हमला हो गया. जिसमें छह सात किसान घायल हो गए. ग्रामीणों का आरोप है कि भाजपा सांसद संजीव बालियान के लोगों ने हमला किया जबकि संजीव बलियान ने ट्विट किया है कि लोकदल के नेताओं ने उनके साथ बदतमीजी की और गाली गलौज की जिस पर स्थानीय निवासियों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और वहां से भगा दिया. इसके बाद सोरम गांव में ऐतिहासिक चौपाल पर ग्रामीणों द्वारा पंचायत की गई. पंचायत के बाद ग्रामीण शाहपुर थाने पहुंच गए और संजीव बालियान के समर्थकों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर थाने का घेराव कर दिया.
आज पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह सोरम गांव गए. उनकी इस यात्रा को इस तरह प्रचारित किया गया कि 83 साल की उम्र में भी अजीत सिंह किसानों के बीच आ रहे हैं. उन्होंने ट्विट किया कि किसानों के साथ गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं होगी. क्या पश्चिम यूपी में तनाव की संभावना तलाशी जा रही है? बेहतर है दोनों को एक दूसरे के रास्ते में नहीं आना चाहिए. कहीं ऐसा न हो एक दूसरे के विरोध करने के तरीके कुतर्क और तनाव में बदलते चले जाएं. शायद नरेश टिकैत इस बात को समझ रहे हैं. 22 तारीख को बुलंदशहर की महापंचायत में नरेश टिकैत ने कहा कि किसान गाज़ीपुर बार्डर पर जाना जारी रखें.
और आंदोलन को शांति पूर्ण तरीके से आगे बढ़ाएं. सरकार आंदोलन में हिंसा चाहती है और हिंसा की पूरी आशंका है. आंदोलन को सबसे पहले हिंसा कर दबाए जाने की कोशिश सरकार ने की. आगे भी ये कोशिश जारी रह सकती है. लेकिन आंदोलन में हिंसा नहीं होने देंगे.
आज सिंघु बॉर्डर पर पगड़ी संभाल दिवस मनाया गया है. शहीद भगत सिंह के परिवार के सदस्य इस मौके पर आमंत्रित किए गए थे. पगड़ी संभाल जट्टा.. इस गीत को आप जानते होंगे, पत्रकार लाला बांके दयाल ने इसकी रचना की है. 113 साल बाद यह गाना आज भी गूंज रहा है. 1907 में ब्रिटिश सरकार तीन किसान विरोधी कानून लेकर आई थी. दो कानून का संबंध राजस्व की वृद्धि से था और एक का ज़मीन अधिग्रहण से. बीबीसी हिन्दी में प्रो चमन लाल लिखते हैं कि अजीत सिंह ने इन कानूनों के विरोध में पंजाब में सभाएं करनी शुरू कर दीं. इन सभाओं में लाला लाजपत राय को बुलाया गया. इन सभाओं में भाषण देने के लिए अजीत सिंह पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ था. आंदोलन इतना ज़ोर पकड़ा कि कानून रद्द करने पड़े. अजीत सिंह और लाला लाजपत राय को बर्मा की जेल में भेज दिया गया. लोकमान्य तिलक ने अजीत सिंह को किसानों का राजा कहकर एक ताज पहनाया था. उन्हीं की याद में आज के दिन को किसानों के आत्मसम्मान के रूप में मनाया गया. इस मौके पर शहीद भगत सिंह के परिवार से जुड़े अभय संधु, तेजी संधु, अनुस्प्रिया संधु और गुरजीत कौर को सम्मानित किया गया. किसान इस आंदोलन को उस आंदोलन से जोड़कर देख रहे हैं. ग्रामीण जीवन में पगड़ी इज़्ज़त का प्रतीक है. आज उसी पर हमला हो रहा है. सहजानंद सरस्वती 20वीं शताब्दी के बहुत बड़े किसान नेता थे. 22 फ़रवरी को उनका जन्मदिन था. आज उसे भी मनाया गया. किसानों से कहा गया कि वे अपनी अपनी पगड़ी पहनकर आएं जो उनके इलाके में पहनी जाती है.
किसान आंदोलन में सहजानंद सरस्वती को याद करना, सर छोटू राम को याद करना सामान्य घटना नहीं है. किसान आंदोलन को यह बात समझ आ गई है कि आंदोलन लंबा चलेगा. इसे कई उतार चढ़ाव से गुज़रना है इसलिए वे अपने प्रतीकों के चुनाव में काफी सावधानी बरत रहे हैं. उन प्रतीकों की स्थापना कर रहे हैं जिनका संबंध खेती किसानी से रहा है. ऐसा नहीं है कि सर छोटू राम को लोग भूल गए थे, बल्कि याद करने की औपचारिकता से निकालकर उन्हें वापस लोगों की स्मृतियों में स्थापित किया जा रहा है और आंदोलन का चेहरा बनाया जा रहा है. ज़िंदा किया जा रहा है.
अक्टूबर 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने रोहतक के सांपला गांव में दीनबंधु सर छोटू राम की प्रतिमा का अनावरण किया था. तब प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रधानमंत्री के बयानों को ट्विट करते हुए लिखा था कि चौधरी साहब ने किसानों को फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम बनाया था. हमारी सरकार ने भी PM-AASHA शुरू किया है.
इसके तहत सरकार ने ये प्रबंध किया है कि अगर किसान को समर्थन मूल्य से कम कीमत बाज़ार में मिल रही है तो राज्य सरकार भरपाई कर सकें: PM
प्रधानमंत्री ने यही तो कहा न कि अगर किसान को समर्थन मूल्य से कम दाम मिलेगा तो राज्य सरकार भरपाई करे यानी प्रधानमंत्री भी न्यूनतम समर्थन मूल्य के गारंटी की बात कर रहे थे कि नहीं. यही तो आज किसान कह रहे हैं.
प्रियंका गांधी ने महापंचायत में कहा, “मेरे भाई राहुल गांधी ने शहीद किसानों के लिए मौन रखने के लिए कहा. सारा विपक्ष खड़ा हुआ पर सरकार का एक नेता नहीं खड़ा हुआ. ये अहंकारी और कायर प्रधानमंत्री भी है.ये पिछली सरकार को दोषी ठहराते हैं .शुक्र करिए कि पिछली सरकार ने कुछ बनाया था. आपने तो कुछ बनाया नहीं. जो पिछली सरकारों ने बनाया वो जनता के उद्योग इन्होंने बेच दिया. जब तक आप लड़ते रहेंगे तब तक मैं लड़ती रहूंगी भगवान श्री कृष्ण इस सरकार का अहंकार तोड़ेंगे इस सरकार का अहंकार हम तोड़ेंगे.”
इसके बाद प्रियंका गांधी ने किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों की याद में दो मिनट का मौन रखा. मथुरा की महापंचायत में प्रियंका ने अपने भाषण में उन्हीं प्रतीकों चुना जिन प्रतीकों का चुनाव कभी या आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं. उनके ही प्रतीकों और तेवरों से प्रियंका गांधी ने घेरना शुरू किया. कहा कि ब्रज क्षेत्र की गौशालाओं का बुरा हाल है. गौवंश को न चारा मिल रहा है न पानी. सरकार ने गौशालाओं के नाम पर 200 करोड़ दिए, वो कहां गए. यहां 90 दिनों से किसान अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं. सरकार ने उनकी पिटाई की लेकिन उनकी सुनवाई नहीं की. प्रियंका गांधी कृषि कानूनों के अलावा गन्ने के बकाया भुगतान और आलू किसानों को दाम न मिलने का मुद्दा भी उठा रही हैं. सरकार ने क़ानून बनाते वक्त किसी किसान से नहीं पूछा. ये कानून नोटों की खेती करने वाले ने बनाया है. ये क़ानून उन खरबपतियों के लिए बनाया गया है. आप अपने गोवर्धन पर्वत को संभाल कर रखिए कहीं वो न बेंच दें. इनके मित्रों के लाखों करोड़ों का क़र्ज़ माफ़ हुआ. किसान का एक रूपया नहीं माफ़ हुआ. आपकी सुनवाई नहीं हो रही. आपका मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है.
प्रियंका गांधी जब भाषण दे रही थीं तभी राष्ट्रीय स्वर्ण परिषद के लोगों ने राजस्थान सरकार के खिलाफ नारे लगाने शुरू किए. मामला था कि बलात्कार की शिकार एक पीड़िता को न्याय नहीं मिल रहा है. प्रियंका खुद उसे मंच पर ले आईं.
उधर हरियाणा के करनाल में जेल में बंद नौदीप कौर से मिलने आम आदमी पार्टी के विधायक हरपाल चीमा, सरबजीत कौर मनुके और नेता अनमोल गगन मान पहुंचे. कोरोना के कारण इन्हें मिलने नहीं दिया गया. आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया है कि मार्च के महीने में पंजाब में किसान महा सम्मेलन करेगी. बाघा पुराना में एक महारैली होने जा रही है जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हिस्सा लेंगे. हरियाणा में कांग्रेस ने खट्टर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है. पुड्डुचेरी में कांग्रेस विश्वास प्रस्ताव हार गई और सरकार चली गई. किसान आंदोलन जितना भी एकजुट दिखने की कोशिश करे उसका सामना अंतर्विरोधों से हो ही जाता है. आज पंजाब में इसका एक रूप दिखा. किले की घटना के मामले में दिल्ली पुलिस जिस लक्खा सिधाणा की तलाश कर रही है, जिस पर एक लाख का इनाम घोषित किया है वो आज पंजाब की एक रैली में दिखा.
बठिंडा के मेहराज में एक रैली बुलाई गई थी. मेहराज मुख्यमंत्री मेहराज कैप्टन अमरिंदर सिंह का पैतृक गांव भी है. इसी के करीब है लक्खा सिधाणा का गांव सिधाणा. किसान मोर्चा ने दीप सिद्धु और लक्खा सिधाणा से खुद को अलग कर लिया है लेकिन पंजाब में इन्हें काफी समर्थन है. मेहराज की इस रैली में सिधाणा ने मांग रखी है कि दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किए गए लोगों को रिहा किया जाए. आज की इस रैली में नौजवानों की भीड़ देखी गई. इस रैली की घोषणा के बाद से बताया जा रहा था कि दिल्ली पुलिस ने अपनी रणनीति बना ली है ताकि सिधाणा को गिरफ़्तार किया जा सके. यहां तक कि पंजाब में दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच स्पेशल सेल की टीम बठिंडा में डेरा डाले हुए है. इसके बावजूद लक्खा सिधाणा ने इस रैली में भाषण दिया उसके ज़िंदाबाद के नारे लगे और सारी तैयारी के बाद भी गिरफ्तारी नहीं हुई. लक्खा केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को चेतावनी देता रहा. पर पुलिस जब गई थी तब गिरफ्तार क्यों नहीं किया? इसका जवाब आएगा भी नहीं. आता तो बेहतर रहता.
आज किसान आंदोलन को एक नई दिशा मिली है. किसान आंदोलन कह सकता है कि उसकी बात करने वाला अब आतंकवादी नहीं कहा जाएगा. इसके लिए बेंगलुरू की एक लड़की दिशा ए रवि ने कुर्बानी दी. भारत की आबो हवा की चिन्ता करने वाली इस लड़की ने सात दिनों तक बिना किसी गुनाह के सज़ा काटी है. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के दम पर राजनीति करने वाले रिश्तेदार और समाज के लोग आज उस दिशा से नज़रें चुरा रहें होंगे.
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