राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को गलत ठहराने वाले इतिहासकार का निधन ।।

 

इतिहासकार डीएन झा का निधन, राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को बताया था निराशाजनक

इतिहासकार डीएन झा

जाने-माने इतिहासकार प्रोफेसर द्विजेंद्र नारायण झा का गुरुवार को देहांत हो गया है.

गुरुवार शाम उनके घर पर उनकी मौत हो गई. वो बीते कुछ वक्त से बीमार थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी हैं.

प्रोफ़ेसर द्विजेंद्र नारायण झा प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास के विशेषज्ञ माने जाते थे. वो भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के सदस्य भी थे.

अयोध्या में बने राम मंदिर पर आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद उन्होंने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में कोर्ट के फ़ैसले को निराशाजनक बताया था.

प्रोफ़ेसर डी.एन. झा उन चार इतिहासकारों में से एक थे जिन्होंने 'रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन' रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. अपनी इस रिपोर्ट में उन्होंने अपनी उस मान्यता को ख़ारिज किया था जिसमें कहा जाता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर था.

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला राम मंदिर के पक्ष में आने के बाद डीएन झा ने बीबीसी से कहा था, " इसमें हिंदुओं की आस्था को अहमियत दी गई है और फ़ैसले का आधार दोषपूर्ण पुरातत्व विज्ञान को बनाया गया है."

प्रोफ़ेसर डीएन झा 'द मिथ ऑफ़ होली काउ' नाम की अपनी किताब के लिए चर्चा में रह थे. ये किताब इतनी पॉपुलर हुई कि साल 2000 से लेकर साल 2017 के बीच इस किताब के 26 एडिशन छापे गए.

इस किताब में उन्होंने साबित किया कि प्राचीन भारत में गोमांस खाया जाता था और प्राचीन भारत में स्वर्ण युग था ये विचार उन्नीसवीं सदी के आख़िर में ही उपजा था.

उनका कहना था कि ऐतिहासिक साक्ष्य ये कहते हैं कि भारतीय इतिहास में कोई स्वर्ण युग नहीं था. प्राचीन काल को हम सामाजिक सद्भाव और संपन्नता का दौर नहीं मान सकते. इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि प्राचीन भारत में जाति व्यवस्था बहुत सख़्त थी.

गैर-ब्राह्मणों पर सामाजिक, क़ानूनी और आर्थिक रूप से पंगु बनाने वाली कई पाबंदियां लगाई जाती थीं. ख़ास तौर से शूद्र या अछूत इसके शिकार थे. इसकी वजह से प्राचीन भारतीय समाज में काफ़ी तनातनी रहती थी.

प्राचीन भारत में स्वर्ण युग था, ये विचार उन्नीसवीं सदी के आख़िर से उपजा था. बीसवीं सदी की शुरुआत में इतिहासकार ये कहने लगे कि गुप्त राजवंश ने राष्ट्रवाद को फिर से ज़िंदा किया. गुप्त शासकों के दौर को स्वर्ण युग कहा जाता है.

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