क़तर में शूरा काउंसिल की सिफ़ारिशें भारतीय कामगारों की मुश्किलें बढ़ाएगी?
- प्रवीण शर्मा
- बीबीसी हिंदी के लिए
क़तर की शूरा काउंसिल ने प्रवासी मज़दूरों को लेकर कुछ ऐसी सिफारिशें की हैं, जिन्हें अगर लागू किया गया तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.
क़तर ने छह महीने पहले ही बड़े सुधार लागू किए थे और शूरा काउंसिल की सिफ़ारिशों को लागू किए जाने पर ये सुधार एक तरह से ख़ारिज हो जाएँगे.
क़तर में बड़ी तादाद में भारतीय लोग काम करते हैं और इन सुधारों के आने के बाद इस तबके को काफ़ी राहत मिली थी. लेकिन, अब शूरा काउंसिल की सिफ़ारिशों में विदेशी कर्मचारियों को लेकर किए गए सुधारों में बदलावों की बात की गई है.
इसका असर भारतीयों पर भी पड़ेगा.
क्या हैं शूरा काउंसिल की सिफारिशें?
इन सिफ़ारिशों में मज़दूर जिस कंपनी में आ रहा है, उसके वित्तीय और क़ानूनी दर्जे को सुनिश्चित किए जाने की बात की गई है.
इन सिफ़ारिशों में ये भी कहा गया है कि क़तर में रहने के दौरान कोई भी कर्मचारी तीन से अधिक बार कंपनी नहीं बदल सकता है.
एक सिफ़ारिश ये भी की गई है कि हर साल किसी एक कंपनी के 15 फ़ीसदी कर्मचारियों को ही कंपनी बदलने की इजाज़त दी जा सकती है.
कंपनी या नियोक्ता बदलने की मंज़ूरी किसी एक कंपनी के लिए एक साल में उसके 15 फ़ीसदी से ज़्यादा कर्मचारियों को नहीं मिलनी चाहिए.
इसमें ये भी कहा गया है कि सरकारी या अर्ध-सरकारी कॉन्ट्रैक्ट को लागू करने के लिए मज़दूरों को नियुक्त करते समय कॉन्ट्रैक्ट के पूरा होने की अवधि से पहले कंपनी बदलने की मंज़ूरी तब तक नहीं मिलेगी, जब तक कि इसके लिए कंपनी अपनी मंज़ूरी न दे दे. इसमें ये भी कहा गया है कि वीज़ा को कॉन्ट्रैक्ट से लिंक किया जाना चाहिए.
सिफ़ारिश के मुताबिक़, क़तर छोड़कर जाने वालों को कंपनी से एग्जिट परमिट लेना अब 10 फ़ीसदी वर्कर्स के लिए ज़रूरी होना चाहिए. पहले ये शर्त केवल पाँच फ़ीसदी कर्मचारियों के लिए ही थी.
शूरा काउंसिल की इन विवादित सिफ़ारिशों में कहा गया है कि कॉन्ट्रैक्ट अवधि के दौरान कोई माइग्रेंट वर्कर अपनी नौकरी नहीं बदल पाएगा.
इसके अलावा, इसमें किसी वर्कर के नौकरी बदलने की संख्या पर भी पाबंदी लगा दी गई है. साथ ही इसमें किसी कंपनी के कितने फ़ीसदी वर्कर्स को नौकरी बदलने की मंज़ूरी दी जा सकती है, इसे लेकर भी सिफ़ारिश की गई हैं.
इसमें ऐसे एग्जिट परमिट की ज़रूरत वाले वर्कर्स की संख्या को भी बढ़ा दिया गया है.
साथ ही इन सिफ़ारिशों में मांग की गई है कि अवैध मज़दूरों पर सख़्त कार्रवाई की जाए.
शूरा काउंसिल की इन सिफ़ारिशों को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है.
शूरा काउंसिल की अहमियत
दूसरी ओर, लेबर मिनिस्टर यूसुफ़ बिन मोहम्मद अल-ओथमैन फखरो शूरा काउंसिल के सदस्यों को भरोसा दिला चुके हैं कि "स्पॉन्सरशिप ट्रांसफ़र के नियम और प्रक्रियाएँ हैं, जिनमें सभी पक्षों के अधिकारों को सुरक्षित रखा जाएगा."
उन्होंने यह भी कहा है कि ट्रांसफ़र मांगने वाले वर्कर्स की संख्या कम है और इसमें भी जिनके अनुरोध को मंज़ूरी दी गई है, वह संख्या और भी कम है.
इस बयान से सुधारों के लागू होने पर शक पैदा हो रहा है. लेबर मिनिस्टर इस बात पर भी ज़ोर दे चुके हैं कि हालाँकि, क़ानून मज़दूरों को नियोक्ता को बदलने के अनुरोध जमा करने का अधिकार देता है, लेकिन संबंधित पक्षों से बातचीत के बाद ही इसे मंज़ूर या ख़ारिज किया जा सकता है.
मध्य पूर्व मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं, "शूरा काउंसिल एक सलाहकार परिषद है. ये अलग-अलग मसलों पर सरकार को सलाह देती है, लेकिन असली ताक़त राजा के हाथ में ही है."
वे कहते हैं, हालांकि, कई बार शूरा काउंसिल की सरकार के साथ तकरार भी होती रहती है. ये काउंसिल लोगों के हितों के मसले पर बात करती है. ये काउंसिल कई दफ़ा एक दबाव समूह के तौर पर भी काम करती है. इस वजह से क़तर में इसकी अहमियत बढ़ती जा रही है.
आगा कहते हैं कि इनकी प्रक्रिया काफ़ी हद तक लोकतांत्रिक होती है, ऐसे में आने वाले वक़्त में ये एक असेंबली की शक्ल भी ले सकती है.
बेहद अहम हैं क़तर के सुधार
कमर आगा कहते हैं कि क़तर के सुधार बेहद अहम हैं. अभी तक खाड़ी देशों में श्रम क़ानून नियोक्ताओं के पक्ष में थे, पहली बार क़तर ने इन्हें मज़दूरों के लिए ज़्यादा अनुकूल बनाया जा रहा है. अब मज़दूरों को काफ़ी ज़्यादा अधिकार मिल गए हैं.
आगा कहते हैं, "लेकिन, इनकी वजह से क़तर में बड़ी परेशानी पैदा हो गई. लोग जल्दी-जल्दी नौकरी छोड़कर जाने लगे. इसके अलावा, एग्जिट वीज़ा की मंज़ूरी होने से कर्मचारी दुबई या सऊदी अरब नौकरी करने जाने लगे."
पहले क़तर में विदेशी कामगारों के पासपोर्ट नियोक्ता के पास रहते थे, लेकिन, क़तर ने यह नियम बनाया कि विदेश से आने वाले कर्मचारियों के पासपोर्ट उन्हीं के पास रहेंगे. ये नियम भी कामगारों के लिए बड़ा फ़ायदेमंद था.
भारत से भी बड़ी तादाद में मज़दूर और हर तरह के कर्मचारी क़तर जाते थे और उनके लिए ये सुधार एक बड़े फ़ायदे के तौर पर सामने आए थे.
छोटे स्तर के मज़दूरों, ख़ासतौर पर घरेलू कामकाज करने वाले और दूसरे कर्मचारियों के मामले में नौकरियाँ बदलना और दूसरे देशों को जाने से क़तर के लोगों को काफ़ी परेशानी होने लगी और इसकी बड़ी शिकायतें वहाँ आ रही थीं.
आगा कहते हैं, "इसके चलते शूरा काउंसिल ने फ़ैसला किया कि जो लोग क़तर आ रहे हैं, उन्हें कम से कम दो साल एक कंपनी में काम करना पड़ेगा."
2022 में क़तर में फुटबॉल के सबसे बड़े इवेंट फ़ीफ़ा विश्व कप का आयोजन होना है. ऐसे में क़तर पर अपने यहाँ श्रमिक क़ानूनों को उदार बनाने का दबाव था.
हालाँकि, इन सुधारों के पीछे दूसरी वजहें भी हैं.
आगा कहते हैं, "क़तर एक उदारवादी मुल्क के तौर पर उभर रहा है और वहाँ का शासक वर्ग काफ़ी लिबरल है. दूसरी ओर, क़तर के आम लोग और एंप्लॉयर्स बड़े तौर पर रूढ़िवादी हैं. ऐसे में दोनों के बीच एक विरोधाभास लंबे वक़्त से चल रहा है. ऐसा ही कुवैत में देखने को मिलता है."
दूसरी ओर, क़तर जिस तरह से सऊदी अरब और यूएई के उसकी घेरेबंदी करने के मसले से निबटा है, उससे दुनियाभर में उसका क़द काफ़ी बढ़ गया है.
आगा कहते हैं, "क़तर ने इस घेरेबंदी के बावजूद सऊदी अरब के साथ अपने रिश्तों को ख़राब होने नहीं दिया है. और उसने ये पूरा संकट बेहद संजीदगी से हैंडल किया है. इससे दुनियाभर के मुस्लिम देश उससे प्रभावित हुए हैं. इसी वजह से क़तर ने अपने यहाँ लेबर रिफ़ॉर्म भी किए थे."
लेकिन, इसमें आने वाली परेशानियों के चलते क़तर की शूरा काउंसिल ने ये सिफ़ारिशें दी हैं.
सुधारों से खुश हैं भारतीय
क़तर के लिए पिछले 30-35 साल से प्लेसमेंट और रिक्रूटमेंट का काम कर रहे अंजुम ट्रैवल एजेंसी के मालिक अतहर सिद्दीक़ी कहते हैं कि जब ये सुधार हुए, वहाँ काम करने वाले भारतीय लोगों ने बड़ी राहत की साँस ली. वे कहते हैं, "ये उनके लिए आज़ादी जैसा है."
लेकिन, वे ये भी कहते हैं कि चूँकि इन सुधारों से क़तर की कंपनियों के लिए मुश्किलें पैदा हो रही थीं, इस वजह से इनमें संशोधन की माँग की जा रही थी. अब शूरा काउंसिल ने ये सिफ़ारिशें दी हैं, जिनमें कई बदलावों की मांग की गई है.
सिद्दीक़ी कहते हैं, "क़तर में पहले काम करने जाने वालों के पासपोर्ट स्पॉन्सरों (जिन्हें वहाँ कफ़ील कहा जाता है) के पास जमा कराया जाता था. अब ऐसा नहीं है. क़तर ने ऐसा करने वाली कंपनियों पर 50,000 रियाल (1 रियाल का मूल्य क़रीब 20 भारतीय रुपए के बराबर होता है) का जुर्माना रखा है. वर्कर्स के लिए ये एक बड़ी राहत है."
वे कहते हैं कि पहले किसी भी कर्मचारी के लिए क़तर छोड़ने के लिए स्पॉन्सर का दस्तख़त ज़रूरी होता था, इन सुधारों में इस नियम को हटा दिया गया है.
सिद्दीक़ी बताते हैं कि उनकी कंपनी पिछले 30-35 साल से क़तर के सरकारी विभागों में रिक्रूटमेंट कराती है.
एक बड़ा सुधार ट्रांसफ़र ऑफ़ स्पॉन्सर यानी दूसरी कंपनी से जुड़ने को लेकर किया गया था. सिद्दीक़ी कहते हैं, "मान लीजिए कि अगर आप कोई दूसरी कंपनी ज्वाइन करना चाहते हैं, तो उसके लिए स्पॉन्सर से एक एनओसी (अनापत्ति प्रमाणपत्र) लेना पड़ता था, अब इस शर्त को हटा दिया गया है. सीधे तौर पर आप पिछली कंपनी से कोई मंजूरी लिए बग़ैर दूसरी कंपनी जा सकते हैं." वे कहते हैं कि ये भारतीयों के लिए बड़े फ़ायदे थे.
बड़ी संख्या में हैं भारतीय कामगार
भारत को विदेश में बसे भारतीयों से हर साल तगड़ी कमाई होती है. विदेश में काम करने वाले भारतीय नागरिक हर साल काफ़ी रकम देश भेजते हैं. 2019 में भारतीयों ने 83.1 अरब डॉलर भारत भेजे थे और रेमिटेंस के मामले में भारत सबसे टॉप पर था.
रेमिटेंस की रकम में बड़ी हिस्सेदारी खाड़ी देशों में काम कर रहे भारतीयों की होती है. खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीयों ने 2019 में क़रीब 49 अरब डॉलर भारत भेजे थे.
खाड़ी देशों में क़रीब 93 लाख भारतीय काम करते हैं. सिद्दीक़ी कहते हैं कि क़तर में क़रीब 10 लाख भारतीय लोग रहते हैं.
गौरतलब है कि क़तर की कुल आबादी 27 लाख है. क़तर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस का निर्यातक है.
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