देश में तथाकथित आतंकवाद के असलियत का परदाफाश || 127 लोगों की कैरियर बर्बादी के बाद आज़ाद ||पढ़िए बीबीसी की खास रिपोर्ट ।। और समझिए असलियत
गुजरात: प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन से जुड़े 20 साल पुराने मामले में 127 लोग बरी
भारत में प्रतिबंधित इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) से कथित संबंध रखने के 20 साल पुराने एक मामले में सूरत की अदालत ने 127 मुसलमान कार्यकर्ताओं को बरी कर दिया है.
2001 में इस मामले में सूरत में 127 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था. ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में पुलिस ने इन्हें गिरफ़्तार किया था.
20 साल पुराने मामले इस मामले के सभी 127 अभियुक्तों को सूरत की एक अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी करने का फ़ैसला सुनाया है.
हालांकि इस मामले में सभी अभियुक्त ज़मानत पर रिहा थे. इनमें से पांच लोगों की मौत भी हो गई थी. मामले की अंतिम सुनवाई में सरकारी वकील नयनभाई सुखादवाला और बचाव पक्ष के वकील अब्दुल वहाब शेख शामिल हुए थे.
पुलिस की शिकायत के मुताबिक़ ये सभी इस्लामिक कार्यकर्ता सूरत में 2001 में अल्पसंख्यक शिक्षा के मुद्दे पर दो दिनों तक चलने वाले सेमिनार में भाग लेने आए थे. इन लोगों को प्रतिबंधिति संगठन इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) से कथित संलिप्तता के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
बचाव पक्ष के वकील अब्दुल वहाब शेख ने बीबीसी संवाददाता ऋषि बनर्जी से कहा, "पुलिस को जानकारी मिली थी कि जो लोग सूरत के राजश्री हॉल में एकत्रित हुए हैं वे सब सिमी के कार्यकर्ता हैं. पुलिस ने वहां छापा मार कर सुबह के दो बजे सभी लोगों को ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया."
उन्होंने बताया, "गिरफ़्तारी के बाद दाख़िल चार्जशीट में कहा गया कि गिरफ़्तारी के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों ने अनुमति दी थी, केंद्र सरकार के अधिकारियों ने नहीं दी थी. क़ानून की नज़र में कोई वैध मामला बन नहीं रहा था. पुलिस भी गिरफ़्तार लोगों को प्रतिबंधित संगठन सिमी से संबंध नहीं तलाश सकी."
शेख ने बताया, "एक साल जेल में बिताने के बाद उनमें से 120 लोगों को ज़मानत मिल गई थी. सात अभियुक्तों को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिली. इस मामले में 27 गवाहों की पेशी हुई."
बीबीसी ने अभियोजन पक्ष के वकील से भी उनका पक्ष जानने की कोशिश की. वकील नयनभाई सुखादवाला ने बीबीसी संवाददाता दीपलकुमार शाह को बताया, "हमलोग अभी फ़ैसले का अध्ययन कर रहे हैं, इसके बाद अपील करने के बारे में फ़ैसला लेंगे."
नयनभाई ने यह भी कहा कि अदालत ने चार्ज़शीट दाख़िल करने दी थी, अब 20 साल बाद सबको बरी किया है, ऐसे में राज्य सरकार चाहे तो इस मामले में अपील कर सकती हैं.
पुलिस शिकायत के मुताबिक़, दिसंबर, 2001 में दिल्ली के जामिय नगर स्थित ऑल इंडिया माइनॉरिटी एजुकेशन बोर्ड ने सूरत के राजश्री हॉल में दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया था.
इसमें अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक अधिकार को संवैधानिक ढांचे में लाने की बात पर विचार विमर्श होना चाहिए. इस सेमिनार में भारत के 10 राज्यों से 127 युवाओं ने हिस्सा लिया था.
सेमिनार 28 दिसंबर से शुरू होना था और पुलिस ने 27 दिसंबर की रात राजश्री हॉल में छापा मारकर 127 लोगों को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने यह भी कहा था कि लोगों की गिरफ्तारी के दौरान वहां से सिमी से संबंधित साहित्य भी बरामद किया गया था.
पुलिस ने दावा किया था कि उन्हें जानकारी मिली थी कि प्रतिबंधित इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) के कार्यकर्ता सूरत में 27 से 30 दिसंबर के बीच धार्मिक बैठक का आयोजन कर रहे हैं.
इस जांच में यह भी कहा गया कि अखिल भारतीय अल्पसंख्यक शिक्षा बोर्ड अपने स्तर पर भी जांच कर रहा है.
पुलिस के मुताबिक़, राजश्री हॉल की बुकिंग सूरत में सिमी के पूर्व अध्यक्ष अलिफ़भाई साजिद भाई मंसूरी ने की थी.
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