कोविड-19 वैक्सीन कितनी सुरक्षित है?
भारत में कोविड-19 से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान जारी है. भारत में लोगों को दो तरह की वैक्सीन दी जा रही है. एक का नाम है कोविशील्ड जिसे एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने इसका उत्पादन किया. और दूसरा टीका है भारतीय कंपनी भारत बायोटेक द्वारा बनाया गया कोवैक्सीन.
ब्रिटेन समेत कई अन्य देशों में भी लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है. ब्रिटेन में ऑक्सफ़र्ड-एस्ट्राज़ेनेका और फाइज़र-बायोएनटेक की वैक्सीन लगाई जा रही है.
जहां जो भी वैक्सीन लगाई जा रही है, वहां के नियामकों ने उसे सुरक्षित बताया है. हालांकि कुछ लोगों में वैक्सीन लेने के बाद मामूली रीएक्शन देखे गए हैं.
कैसे पता चलता है कि वैक्सीन सुरक्षित है?
वैक्सीन के लिए पहले लैब में सेफ्टी ट्रायल शुरू किए जाते हैं, जिसके तहत कोशिकाओं और जानवरों पर परीक्षण और टेस्ट किए जाते हैं. इसके बाद इंसानों पर अध्ययन होते हैं.
सिद्धांत ये है कि छोटे स्तर पर शुरू करो और परीक्षण के अगले स्तर पर तभी जाओ जब सुरक्षा को लेकर कोई चिंताएं ना रहें.
ट्रायल की क्या भूमिका होती है?
लैब का सेफ्टी डेटा ठीक रहता है तो वैज्ञानिक वैक्सीन के असर का पता लगाने के लिए आगे बढ़ सकते हैं.
इसका मतलब फिर वॉलंटियर के बड़े समूह पर परीक्षण किए जाते हैं. जैसे फाइज़र-बायोएनटेक के मामले में क़रीब 40 हज़ार लोगों पर परीक्षण किए गए. आधों को वैक्सीन दी गई और आधों को एक प्लेसबो जैब. रिसर्चरों और भाग लेने वाले लोगों को नतीजे आने तक नहीं बताया गया था कि कौन-सा समूह कौन है, ताकि पूर्वाग्रह से बचा जा सके.
पूरे काम और निष्कर्ष को स्वतंत्र रूप से जांचा गया और सत्यापित किया गया.
कोविड वैक्सीन के परीक्षण बहुत तेज़ गति से किए गए, लेकिन पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया.
वहीं ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन का ट्रायल उस वक़्त जांच के लिए कुछ देर के लिए रोक दिया गया था जब एक प्रतिभागी की मौत हो गई थी. ये प्रतिभागी हज़ारों प्रतिभागियों में से एक था. बताया गया कि मौत की वजह वैक्सीन नहीं थी, जिसके बाद ट्रायल फिर शुरू कर दिया गया था.
हालांकि भारत की स्वदेशी कोवैक्सीन के डेटा की कमी को लेकर शुरू में चिंताएं जताई गई थीं, लेकिन मार्च में इस वैक्सीन को बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने दावा किया था कि तीसरे चरण के ट्रायल में कोवैक्सीन की प्रभावकारिता 81% पाई गई.
आईसीएमआर के साथ मिलकर कोवैक्सीन को विकसित करने वाली भारत बायोटेक कंपनी के मुताबिक़, तीसरे चरण के अध्ययन में 18-98 साल की बीच की उम्र के 25,800 लोगों ने हिस्सा लिया. इनमें 60 साल से ज़्यादा उम्र के 2,433 और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे 4,500 लोग थे.
क्या वैक्सीन से साइड-इफ़ेक्ट हो सकता है?
वैक्सीन आपको कोई बीमारी नहीं देती. बल्कि आपके शरीर के इम्यून सिस्टम को उस संक्रमण की पहचान करना और उससे लड़ना सिखाती है, जिसके ख़िलाफ़ सुरक्षा देने के लिए उस वैक्सीन को तैयार किया गया है.
वैक्सीन के बाद कुछ लोगों को हल्के लक्षण झेलने पड़ सकते हैं. ये कोई बीमारी नहीं होती, बल्कि वैक्सीन के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया होती है.
10 में से एक व्यक्ति को जो सामान्य रिएक्शन हो सकता है और आम तौर पर कुछ दिन में ठीक हो जाता है, जैसे - बांह में दर्द होना, सरदर्द या बुख़ार होना, ठंड लगना, थकान होना, बीमार और कमज़ोर महसूस करना, सिर चकराना, मांसपेशियों में दर्द महसूस होना.
क्या एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन से खून के थक्के जमने का ख़तरा है?
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका लगवाने के बाद चंद लोगों के दिमाग में असामान्य खून के थक्के होने का पता चला है.
इसके चलते जर्मनी, फ्रांस और कनाडा जैसे देशों ने इसे लेकर प्रतिबंध लगा दिए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी का कहना है कि वैक्सीन के फायदे किसी भी जोखिम से ज़्यादा हैं.
दुनिया भर के वैज्ञानिक और दवा सुरक्षा नियामक पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इस वैक्सीन से सच में ऐसे स्ट्रोक हो रहे हैं, इससे कितना बड़ा ख़तरा हो सकता है और टीकाकरण अभियानों के लिए इनका क्या मतलब है.
क्या वैक्सीन की वजह से थक्के जम रहे हैं? इस वक़्त हमारे पास इस सवाल का जवाब नहीं है.
सेफ्टी डेटा की समीक्षा कर रही यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) ने कहा है कि "ये साबित नहीं हुआ है, लेकिन ये संभव है."
संस्था पता लगाएगी कि थक्के जमना साइड-इफेक्ट है या एक संयोग जो अपने आप हो गया.
वैक्सीन या इलाज को मंज़ूरी कौन देता है?
भारत में किसी वैक्सीन को तभी मंज़ूरी मिलती है, जब तथ्यों के आधार पर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) ये फ़ैसला करता है कि वैक्सीन इस्तेमाल के लिए सुरक्षित और असरदार है.
इसी तरह अन्य देशों में भी नियामक होते हैं जो वैक्सीन के इस्तेमाल को मंज़ूरी देते हैं. जैसे ब्रिटेन में एमएचआरए की सहमति के बाद किसी वैक्सीन को मंज़ूरी मिलती है.
मंज़ूरी के बाद भी वैक्सीन के असर पर नज़र रखी जाती है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आगे इसका कोई दुष्प्रभाव या दीर्घकालिक जोखिम नहीं है. इसके बाद किन लोगों को पहले वैक्सीन दी जानी है, ये सरकारें तय करती हैं.
कोविड वैक्सीन में क्या होता है?
फाइज़र-बायोएनटेक की वैक्सीन (और मॉडर्ना) इम्यून रिस्पॉन्स के लिए कुछ आनुवंशिक कोड का इस्तेमाल करती है और इसे mRNA वैक्सीन कहा जाता है.
ये मानव कोशिकाओं में बदलाव नहीं करता है, बल्कि शरीर को कोविड के ख़िलाफ़ इम्यूनिटी बनाने का निर्देश देता है.
ऑक्सफ़र्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन में एक ऐसे वायरस का उपयोग किया जाता है, जिससे कोई नुक़सान नहीं होता और जो कोविड वायरस की तरह ही दिखता है.
वैक्सीन में कभी-कभी एल्युमिनियम जैसे अन्य तत्व होते हैं, जो वैक्सीन को स्थिर या अधिक प्रभावी बनाते हैं.
वैक्सीन एलर्जी का क्या?
बहुत कम मामलों में एलर्जिक रिएक्शन होते हैं. जो वैक्सीन इस्तेमाल के लिए मंज़ूर हो जाती है, उसे स्टोर करने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री के बारे में भी जानकारी उपलब्ध होती है.
एनएचआरए ने बताया है कि जिन लोगों को फाइज़र-बायोएनटेक वैक्सीन दी गई उनमें से कुछ कम लोगों में गंभीर एलर्जिक रिएक्शन देखने को मिले हैं. उनका कहना है कि जिन लोगों को इस वैक्सीन में मौजूद किसी सामग्री से एलर्जिक रिएक्शन की हिस्ट्री रही है, उन्हें एहतियात के तौर पर अभी ये वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए.
ये सावधानी भी रखनी चाहिए कि सोशल मीडिया के ज़रिए एंटी-वैक्सीन कहानियां फैलाई जा रही हैं. ये पोस्ट किसी वैज्ञानिक सलाह पर आधारित नहीं है (या इनमें कई तथ्य ग़लत हैं).
अगर पहले से कोविड हो चुका हो तो?
अगर किसी को पहले कोरोना संक्रमण हो चुका है तो भी उन्हें वैक्सीन दी जा सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्राकृतिक इम्यूनिटी ज़्यादा वक़्त तक नहीं रह सकती और वैक्सीन से ज़्यादा सुरक्षा मिल सकती है.
कहा जाता है कि जिन लोगों को "लॉन्ग" कोविड रहा है उन्हें भी वैक्सीन देना कोई चिंता की बात नहीं है. लेकिन जो लोग अभी वायरस से संक्रमित है, उन्हें ठीक होने के बाद ही वैक्सीन दी जानी चाहिए.
क्या इनमें पशु उत्पाद या एल्कोहल है?
कुछ वैक्सीन, जैसे शिगल्स (एक तरह का इन्फेक्शन) की वैक्सीन और बच्चों के नेज़ल फ्लू की वैक्सीन में सूअर की चर्बी होती है.
फाइज़र, मॉडर्ना और एस्ट्राज़ेनेका की कोविड वैक्सीन में सूअर की चर्बी या कोई और पशु उत्पाद नहीं होता है. ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि इसमें नगण्य मात्रा में एल्कोहल है - जो ब्रेड में इस्तेमाल होने वाली मात्रा से ज़्यादा नहीं है.
अगर सभी को वैक्सीन लग जाती है तो क्या मुझे सोचने की ज़रूरत है?
इस बात के वैज्ञानिक सबूत हैं कि टीकाकरण गंभीर संक्रमणों से सबसे अच्छा बचाव है. कोविड-19 वैक्सीन लोगों को बहुत बीमार होने से बचा सकता है.
हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि वैक्सीन लोगों को कोविड-19 फैलाने से रोकने के मामले में कितनी सुरक्षा देती है. अगर वैक्सीन ये अच्छे से कर पाती हैं तो पर्याप्त लोगों को वैक्सीन लगाकर बीमारी को रोका जा सकता है.
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