चीन ने वीगर मुसलमानों और दूसरे जातीय अल्पसंख्यकों के लिए अब एक नई नीति अपनाई है.
नौकरियों के बहाने वीगर मुसलमानों को तितर-बितर कर रहा है चीन
- जॉन सडवर्थ
- बीबीसी संवाददाता, बीजिंग
चीन ने वीगर मुसलमानों और दूसरे जातीय अल्पसंख्यकों के लिए अब एक नई नीति अपनाई है. इसके तहत अल्पसंख्यक समुदाय के इन लोगों को उनके घर से दूर नौकरियों पर भेजा जा रहा है. इस तरह उनके ही घर में उनकी आबादी कम करने की कोशिश हो रही है. बीबीसी ने इस संबंध में चीन सरकार की ओर से किए गए एक उच्चस्तरीय अध्ययन को देखा है.
चीन सरकार इस बात से इनकार करती है कि वह देश के सुदूर पश्चिमी इलाके में रहने वाली आबादी के स्वरूप में बदलाव की कोशिश कर रही है. उसका कहना है कि इस इलाके के लोगों को नौकरियों के लिए यहां से दूसरी जगह भेजने का मक़सद उनकी कमाई में इजाफ़ा करना है. इन इलाक़ों में वर्षों से जो बेरोज़गारी और गरीबी चली आ रही है, उसे खत्म करने के लिए लोगों को यहां से दूर नौकरियों पर भेजा जा रहा है.
लेकिन इस बारे में बीबीसी के पास जो सबूत हैं वे बताते हैं कि चीन के पूरे शिनजियांग प्रांत में जो रि-एजुकेशन कैंप बनाए गए हैं, उनमें लोगों को प्रताड़ित करने का बड़ा ख़तरा बना रहता है. इस नीति का मकसद अल्पसंख्यकों की जीवनशैली और सोच में बदलाव कर उन्हें मुख्यधारा की संस्कृति में मिला लेना भी है.
चीन की इस नीति को लेकर जो स्टडी हुई थी, उसे वहां के आला अधिकारियों के पास देखने के लिए भेजा गया था. लेकिन ग़लती से यह स्टडी रिपोर्ट इंटरनेट पर डाल दी गई. बीबीसी ने वीगरों और दूसरे अल्पसंख्यकों की आबादी के स्वरूप में बदलाव की कोशिश पर जो पड़ताल की है, उसका काफ़ी कुछ आधार यह स्टडी रिपोर्ट ही है. इसके अलावा प्रोपेगैंडा रिपोर्टों, लोगों के इंटरव्यू और पूरे चीन में फैक्टरियों का दौरा कर यह रिपोर्ट तैयार की गई है.
साथ ही बीबीसी ने स्थानांतरित किए गए वीगर श्रमिकों और पश्चिमी देशों के दो महत्वपूर्ण ब्रांड्स से इनके संभावित संबंधों के बारे में भी सवाल पूछे क्योंकि वैश्विक सप्लाई चेन में वीगरों से कराई जा रही 'जबरन मज़दूरी' की चिंता इस हद तक बढ़ गई है कि पूरी दुनिया में इस पर सवाल उठ रहे हैं.
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बीबीसी की टीम जब दक्षिण शिनजियांग के एक गांव में पहुंची तो लोग खेतों में सूखी घास इकट्ठा करते मिले. गांव के कुछ परिवार अपने सूप में फल और रोटियां रख रहे थे. पारंपरिक वीगर परिवारों में जिंदगी सूप काफ़ी महत्वपूर्ण स्थान रखता है.
लेकिन ताकलामाकन रेगिस्तान से आ रही गर्म हवाओं से मौसम बदल गया था और इससे ग्रामीणों की चिंता भी बढ़ गई थी.
सरकारी टीवी पर प्रोपेगंडा
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से चलाए जाने वाले चैनल पर एक रिपोर्ट दिखाई जा रही है. इस वीडियो में एक गांव दिखाई दे रहा है, गांवों के बीचोंबीच अधिकारियों का एक दल मौजूद है. अधिकारियों का यह ग्रुप एक लाल बैनर के नीचे बैठा हुआ है और बैनर पर दक्षिण शिनजियांग से 4000 किलोमीटर दूर अनहुई प्रांत में नौकरियों का विज्ञापन छपा है.
रिपोर्टर बता रहा है, "पूरे दो दिन के बाद भी गांव का एक भी आदमी नौकरी के दस्तावेजों पर दस्तख़्त करने नहीं आया. इसलिए अब अधिकारी घर-घर जाकर लोगों को नौकरी पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं."
शिनजियांग में वीगर, कज़ाख़ और अन्य अल्पसंख्यकों को फैक्ट्री और मैनुअल लेबर नौकरियों में स्थानांतरित करने के लिए चीन के बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जा रहे हैं जिसके प्रबल फुटेज सामने आए हैं. ये नौकरियां अक्सर घरों से काफी दूर होती हैं.
हालांकि इस वीडियो का प्रसारण 2017 में हुआ था. लेकिन यह वही समय है जब वीगरों, कजाख और दूसरे अल्पसंख्यकों को उनके घर से दूर-दराज के इलाकों में बनी फैक्टरियों में काम पर लगाने की नीति ने जोर पकड़ी था. अब तक यह वीडियो अंतरराष्ट्रीय खबरों की रिपोर्ट नहीं किया है.
वीडियो में एक अधिकारी को एक ऐसे पिता से बात करते दिखाया गया है जो अपनी बेटी बुजेनेप को इतनी दूर भेजने को राजी नहीं दिख रहा है. यह शख्स कह रहा है, " देख लीजिये, हो सकता है कोई और जाने को तैयार हो जाए,". आखिर में लड़की का पिता गिड़गिड़ाते हुए कहा कहता है, ''हम यहां रोज़ी-रोटी चला ले रहे हैं, हमें ऐसे ही रहने दीजिये. हम इस ज़िंदगी से संतुष्ट हैं."
"अगर और लोग जाएंगे तब मैं जाऊंगी"
अधिकारी सीधे 19 साल की बुजेनेप से बात करते हैं. वह कहते हैं कि अगर वह यहीं रह गई तो कुछ दिनों में उसकी शादी हो जाएगी. फिर वह यहां से कभी निकल नहीं पाएगी.
अधिकारी कहते हैं, "एक बार सोच लो, क्या तुम जाना चाहोगी".
कड़ी सरकारी निगरानी और सरकारी टीवी के पत्रकारों के सामने लड़की से उसकी मर्जी पूछी जा रही है. लेकिन लड़की ना में सिर हिलाती है. वह कहती हैं, मैं नहीं जाऊंगी. लेकिन उस पर दबाव जारी है. आखिरकार लड़की टूट जाती है. रोने लगती है. कहती है, " अगर और लोग जाएंगे तो मैं जाऊंगी."
यह फिल्म एक आंसूओं से भरी विदाई दृश्य के साथ खत्म होती है. गांव की मांओं और बेटियों के बिछड़ने का दृश्य दिखाया जाता है. बुजेनेप और उसी की तरह दूर-दराज़ के इलाकों में नौकरियों के लिए "तैयार" किए गए दूसरे नए लोग अपना परिवार छोड़ रहे हैं. साथ में अपनी संस्कृति भी.
प्रोफेसर लॉरा मर्फ़ी ब्रिटेन की शेफील्ड हॉलम यूनिवर्सिटी में मानवाधिकार और समकालीन गुलामी से जुड़े विषय की प्रोफ़ेसर हैं. वह शिनजियांग में 2004 से लेकर 2005 तक रह चुकी हैं. इसके बाद भी वह यहां का दौरा करती रही हैं.
लॉरा बीबीसी से कहती हैं, " यह वीडियो गौर करने लायक है. चीन सरकार लगातार यह कह रही है कि लोग अपनी मर्जी से उसके इन कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं. लेकिन इस वीडियो से साफ़ पता चलता है कि दबाव डालने का एक पूरा सिस्टम है. ऐसी व्यवस्था बनाई गई है कि लोग विरोध न कर सकें. "
" इस वीडियो से यह भी दिखता है कि इस प्रोग्राम का एक छिपा हुआ मक़सद है.''
उन्होंने कहा, " हालांकि कहानी यह बनाई गई है कि इस तरह के कार्यक्रमों का मक़सद लोगों को गरीबी से निकालना है. लेकिन यह एक ऐसा अभियान है जो लोगों की जिंदगी पूरी तरह बदल देता है. उन्हें उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है. आबादी तितर-बितर कर दी जाती है.लोगों की भाषा बदल जाती है. परिवार का ढांचा बदल जाता है और इससे गरीबी घटने के बजाय बढ़ने की आशंका पैदा हो जाती है. "
वीगरों की सांस्कृतिक ख़त्म करने की कोशिश
शिनजियांग में शासन करने के चीन के नज़रिये में एक बड़ा बदलाव 2013-14 से दिखा. 2013 में बीजिंग में राहगीरों, बसों-ट्रेनों से यात्रा करने वालों पर बड़े भयावह हमले हुए थे. कहा जाता है कि ये हमले वीगर मुस्लिम अलगाववादियों ने किए थे.
चीन इसका जवाब वीगरों को कैंप में रख कर नौकरी के नाम पर उन्हें दूर भेज कर दे रहा है. सरकार के इस अभियान का सबसे बड़ा मक़सद वीगरों की अपनी संस्कृति के प्रति 'पुरानी' वफ़ादारी'' को खत्म करना है. साथ ही यह इस्लाम में उनकी आस्था को भी ख़त्म करना चाहता है. इसके बजाय वह उन्हें 'आधुनिक' भौतिक पहचान से जोड़ना चाहता है. उन्हें जबरदस्ती कम्युनिस्ट पार्टी का वफ़ादार बनाया जा रहा है.
दरअसल चीन के वीगरों को वहां की हान संस्कृति में मिलाने का जो व्यापक मक़सद है, उसका पता जॉब ट्रांसफर स्कीम की स्टडी से चल जाता है. यह बारीक स्टडी खुद चीनी सरकार ने ही कराई है. यह स्टडी कुछ आला चीनी अधिकारियों के बीच सर्कुलेट हुई है. बीबीसी ने यह स्टडी देखी है.
यह स्टडी शिनजियांग के होतान शहर में 2018 में किए गए एक फ़ील्ड वर्क पर आधारित है. इंटरनेट पर गलती से डाल देने की वजह से यह रिपोर्ट दिसंबर 2019 में सार्वजनिक हो गई. हालांकि कुछ महीनों के बाद इसे इंटरनेट से हटा लिया गया.
रिपोर्ट चीनी शहर तियानजिन की नानकाई यूनिवर्सिटी के एकेडेमिक्स के एक समूह ने लिखी थी.
इसमें कहा गया है, " श्रमिकों को सामूहिक रूप से एक जगह से दूसरी जगह ले जाना वीगर अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा की संस्कृति में घुलाने-मिलाने, उन्हें प्रभावित करने और का महत्वपूर्ण तरीका है. इससे उनकी 'सोच में बदलाव' लाया जाता है. वीगरों को उनकी जमीन से उखाड़ कर किसी जगह या कहीं दूसरे चीनी प्रांत में बसाने उनकी जनसंख्या का कम हो जाती है.
दरअसल यह रिपोर्ट एक वीगर रिसर्चर ने खोजी थी. इससे पहले कि यूनिवर्सिटी को अपनी गलती का पता चलता उसका आर्कावाइव्ड वर्जन (चीनी में) सेव कर लिया गया था.
व़ॉशिंगटन स्थित विकटिम्स ऑफ कम्यूनिज्म मेमोरियल फाउंडेशन में सीनियर फेलो एद्रियन जेंज़ ने रिपोर्ट पर अपना विश्लेषण लिखा है. इसमें इसका अंग्रेजी अनुवाद भी दिया हुआ है.
जेंज़ ने बीबीसी से एक इंटव्यू में कहा, " यह आधिकारिक स्रोत है. इसे प्रमुख एकेडेमिक्स और उन पूर्व सरकारी अधिकारियों ने लिखा है, जिनकी खुद शिनजियांग में काफ़ी पहुंच रही है."
वह कहते हैं, " मेरी नजर में तो इस रिपोर्ट में सबसे चौंकानी वाली स्वीकृति तो यह है कि यहां की अतिरिक्त आबादी को श्रमिकों के तौर पर यहां से बाहर भेजा जा रहा है ताकि उनकी अपनी ज़मीन पर आबादी का घनत्व कम किया जा सके. "
जेंज़ के विश्लेषण में यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम के पूर्व वरिष्ठ सलाहकार इरिन फरेल रोज़नबर्ग की कानूनी राय भी शामिल है. उनका कहना है कि नानकाई यूनिवर्सिटी की इस रिपोर्ट से वीगरों पर अत्याचारों का पता चलता है. रिपोर्ट लोगों को ज़ोर ज़बरदस्ती से बाहर भेजने और उन्हें उत्पीड़ित करने जैसे अपराधों का सबूत मुहैया कराने का 'विश्वसनीय आधार' है.
चीनी विदेश मंत्री ने एक लिखित बयान में कहा है, " यह रिपोर्ट सिर्फ़ लेखक के निजी विचार को ज़ाहिर करती है. इस रिपोर्ट में ज्यादातर बातें तथ्यों से मेल नहीं खाती."
विदेश मंत्रालय ने कहा, " हमें उम्मीद है कि पत्रकार शिनजियांग पर अपनी रिपोर्टिंग के लिए सिर्फ चीन सरकार की ओर से जारी की गई आधिकारिक रिपोर्ट को ही आधार बनाएंगे."
नानकाई रिपोर्ट के लेखकों ने बड़े उत्साह से गरीबी से लड़ने की उस कोशिश के बारे में लिखा है, जिसके तहत श्रमिकों को उनकी "मर्जी के आधार पर काम करने की गारंटी" दी गई है. इसके तहत वे "कभी भी काम की जगह या फैक्टरियों को छोड़ कर वापस" लौट सकते हैं. इस पर कोई पाबंदी नहीं है. लेकिन ये दावे खुद ही उन्हीं के दिए ब्योरे से मेल नहीं खाते. जमीन पर यह नीति कुछ दूसरे तरीके से काम करती है.
इसमें ऐसे "टारगेट" दिए गए हैं, जिन्हें पूरा करना है. इस स्टडी के दौरान सिर्फ़ होतान से ही ढाई लाख से ज्यादा श्रमिक बाहर भेजे जा चुके थे. यह वहां की कुल कामकाजी आबादी का 20 फीसदी है.
अधिकारियों पर इस टारगेट को पूरा करने का दबाव रहता है. इस अभियान के तहत 'हर गांव' में भर्ती केंद्र बनाए गए हैं. अधिकारियों को " लोगों को सामूहिक रूप से तैयार करने" और घर-घर घूमने का निर्देश दिया गया है. 19 साल की बुजेनेप के मामले से पता चल जाता है लोगों पर किस तरह का दबाव बनाया जाता है.
इसके साथ ही हर चरण पर नियंत्रण के संकेत मिलेंगे. जितने लोगों को बाहर ले जाया जाता है उन्हें 'राजनीतिक विचारों' के बारे में पढ़ाया जाता है. फिर उन्हें समूहों में फैक्टरियों में भेजा जाता है. कभी कभी तो उन्हें 'सैकड़ों की तादाद में भेजा जाता है'. सुरक्षा बंदोबस्त और बाकी इंतज़ाम के लिए उनके साथ पार्टी काडर होते हैं. उन्हें उनकी अगुआई में भेजा जाता है.
जो किसान अपनी जमीन और पशुओं का झुंड छोड़ कर नहीं जाना चाहते उन्हें सरकार की सेंट्रल स्कीमों में भेजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इन स्कीमों के तहत उनकी जमीनों और मवेशियों की देखरेख की जाती है.
एक बार फैक्टरियों में अपने नए काम पर पहुंचने के बाद खुद इन श्रमिकों को "एक सेंट्रल मैनेजमेंट" सिस्टम में डाल दिया जाता है. अधिकारी भी इनके साथ "खाते और रहते" हैं.
लेकिन रिपोर्ट यह भी बताती है कि इस सिस्टम के मूल में ही भारी भेदभाव है. यह भेदभाव अक्सर इसके प्रभावी तौर पर लागू करने की राह में अड़चन बन जाता है. मिसाल के तौर पर पूर्वी चीन में स्थानीय पुलिस ट्रेनों से आने वाले झुंड के झुंड आ रहे वीगरों से इतने चौकन्ने हो जाते हैं कि कभी-कभी उन्हें वापस भेज देते है.
रिपोर्ट में कई जगहों पर इस बात की भी चेतावनी दी गई है कि शिनजियांग में चीन जिन नीतियों पर चल रहा है वे नीतियां बहुत ज्यादा सख़्ती की ओर बढ़ सकती हैं. इसमें कहा गया है कि रि-एजुकेशन शिविरों में रखे गए लोगों की संख्या, चरमपंथी गतिविधियों के संदिग्ध लोगों की तुलना में कई ज्यादा हो सकती है.
रिपोर्ट में कहा गया है, " पूरी वीगर आबादी को दंगाई नहीं माना जाना चाहिए".
चीन के पूर्वी प्रांत अनहुई के हुवायेबे शहर के एक ग्रे इंडस्ट्रियल एस्टेट में हुआफु टेक्सटाइल कंपनी है. टीवी रिपोर्ट में जिस 19 साल की लड़की बुजेनेप की कहानी दिखाई गई थी उन्हें इसी फ़ैक्ट्री में काम करने के लिए लाया गया है.
जब बीबीसी ने यहां का दौरा किया तो इस पांच मंजिला डॉरमेटरी में वीगर लोगों के रहने के काफ़ी कम निशान दिखे. सिर्फ एक खुली खिड़की पर कुछ जोड़े जूते रखे हुए थे.
गेट पर पूछने पर सिक्योरिटी गार्ड ने कहा कि वीगर श्रमिक "वापस अपने घर चले गए हैं". चूंकि सरकार ने कोविड नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश लागू किए हैं इसलिए वे वापस चले गए हैं. और हुआफु ने हमेशा कहा कि कंपनी में इस समय शिनजियांग कोई श्रमिक काम नहीं कर रहा है.
बीबीसी ने की पड़ताल
लेकिन बीबीसी को एमेज़न यूके की वेबसाइट पर हुआफु यार्न से बने तकिये के खोल बिकते दिखे. हालांकि इस बात की पुष्टि करना संभव नहीं है कि ये तकिये के खोल उसी फैक्टरी में बने हैं, जहां हम गए थे. या फिर ये कंपनी की दूसरी फैक्टरियों में बने हैं.
एमेज़न ने बीबीसी से कहा कि वह बंधुआ मजदूरों के इस्तेमाल को बर्दाश्त नहीं करता. जहां भी लगता है कि कोई प्रोडक्ट इसके सप्लाई चेन के मानकों से मेल नहीं खाता वहां वह इसे अपनी बिक्री से हटा देती है.
बीबीसी ने इस रिपोर्ट के लिए चीन में मौजूद छह अंतररराष्ट्रीय पत्रकारों के समूह के साथ मिल कर काम किया. इसके तहत छह फैक्टरियों का दौरा किया गया.
गुआंगझाऊ प्रांत के दोनज्जुआन लुझाऊ शूज फैक्टरी में एक कामगार ने कहा कि वीगर अलग डॉरमिटरी में रहते हैं. उनकी अपनी कैंटीन होती है. एक दूसरे स्थानीय व्यक्ति ने रिपोर्टरों से कहा कि कंपनी स्केचर्स के लिए जूते बनाती है.
यह फ़ैक्टरी पहले से ही इस अमेरिकी कंपनी से जुड़ी रही है. कई अपुष्ट सोशल मीडिया वीडियो में कथित तौर पर दिखाया गया है कि वीगर कामगार स्केचर्स के प्रोडक्ट बनाते हैं. इन वीडियो में यह भी कहा गया है कि कई ऑनलाइन चीनी बिजनेस डायरेक्ट्री में इसे बतौर उदाहरण पेश किया गया है.
इस मामले पर स्केचर्स ने कहा, " बंधुआ मजदूरी के मामले में इसकी ज़ीरो टॉलरेंस की नीति है."
लेकिन उसने इस बात का जवाब नहीं दिया कि वह डोनज्जुआन लुझाऊ से सप्लाई लेती है या नहीं. डोनज्जुन लुझाऊ से हमने प्रतिक्रिया मांगी. लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया.
फैक्टरियों के सामने जो इंटरव्यू रिकार्ड किए गए उनसे पता चलता है कि खाली समय में श्रमिकों को फैक्ट्री से बाहर जाने की इजाजत दी जाती है. लेकिन जब हमने कुछ और फैक्टरियों का दौरा किया तो प्रमाण कुछ मिले-जुले थे.
दो मामलों में रिपोर्टरों को कुछ पाबंदियों के बारे में बताया गया. लेकिन वुहान की एक फैक्टरी में हान पंथ को मानने वाले एक चीनी कर्मचारी ने बीबीसी से कहा कि उसके साथ काम कर रहे 200 के लगभग वीगर सहकर्मियों को बिल्कुल भी बाहर जाने की इजाज़त नहीं है.
टीवी पर घर छोड़ते हुए दिखाए जाने के तीन महीने बाद बुजेनेप की राजनीतिक शिक्षा की ट्रेनिंग शुरू हुई. टीवी क्रू एक बार फिर उससे मिला. इस बार यह मुलाकात अनहुई में हुआफु टेक्सटाइल कंपनी में हुई. इस बार भी रिपोर्ट में अहम बात वीगरों को मुख्यधारा में मिलाने की ही की गई.
रिपोर्ट के एक दृश्य में बुजेनेप को आंसू पोंछते दिखाया गया. इसमें वह किसी गलती पर डांट खाने के बाद रो रही है. लेकिन फिर दिखाया गया कि धीरे-धीरे उसमें बदलाव आ रहा है.
बुजेनेप के बारे में रिपोर्ट में कमेंट्री चल रही थी, "कमजोर सहमी सी वह लड़की जो पहले कुछ नहीं बोलती थी और अपना सिर झुकाए रखती थी, अब धीरे-धीरे अपने काम में महारत हासिल करती जा रही है. जीवनशैली बदल रही है और सोच भी."
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