कोरोना का इलाज || उस रात डॉक्टर साहब को कोई इंजेक्शन लगाया गया, लेकिन हमें नहीं बताया कि कौन सा इंजेक्शन है. पूछने पर भी नहीं बताया. दूसरे दिन सुबह फिर इंजेक्शन लगा दिया. वहाँ रात में हमने जो देखा, वो बेहद डरावना था. रात भर मरीज़ चिल्लाते रहते थे. कोई उन्हें देखने वाला नहीं था. बीच-बीच में जब नर्स आती थी या डॉक्टर आते थे, तो डाँटकर चुप करा देते थे या कोई इंजेक्शन दे देते थे. उनमें से कई लोग सुबह सफ़ेद कपड़े में लपेटकर बाहर कर दिए जाते थे, यानी उनकी मौत हो चुकी होती थी."
कोरोना: प्रयागराज के एक अस्पताल में पढ़ा चुके डॉक्टर ने कैसे बेबसी में तोड़ा दम
- समीरात्मज मिश्र
- बीबीबी हिंदी के लिए
"इलाहाबाद शहर के जिस स्वरूपरानी अस्पताल में पाँच दशक तक मेरे पति ने लोगों का इलाज किया और जिनके पढ़ाए हुए तमाम डॉक्टर इसी अस्पताल में हों, उन्हें इस कोविड बीमारी की वजह से एक डॉक्टर तक देखने वाला न मिला और मेरे सामने उन्होंने दम तोड़ दिया. डॉक्टर होने के बावजूद, मैं ख़ुद उनकी कोई मदद न कर सकी."
प्रयागराज की नामी डॉक्टर रमा मिश्रा फ़ोन पर यह बताते हुए रो पड़ती हैं. उनकी बेबसी सिर्फ़ इसी बात को लेकर नहीं है कि उनके पति ने उनकी आँखों के सामने अस्पताल की कथित लापरवाही, डॉक्टरों और कर्मचारियों की उपेक्षा और संसाधनों के अभाव में दम तोड़ दिया, बल्कि इसलिए भी है कि उन चार रातों में उन्होंने इसी तरह दम तोड़ते हुए दर्जनों लोगों को देखा.
80 वर्षीया डॉक्टर रमा मिश्रा प्रयागराज की चर्चित महिला रोग विशेषज्ञ हैं और इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में प्रोफ़ेसर रही हैं. स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल इसी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध है. उनके पति डॉक्टर जेके मिश्रा और वो दोनों ही लोग पिछले हफ़्ते कोरोना संक्रमित होने के बाद स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में भर्ती हुए थे.
डॉक्टर रमा मिश्रा बताती हैं, "कोविड रिपोर्ट पॉज़िटिव आने के बाद पहले हम लोग होम क्वारंटीन में ही रहे, लेकिन उनका ऑक्सीजन लेवल कम था. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने ही सलाह दी कि अस्पताल में भर्ती करा दीजिए. हालाँकि अस्पताल में बेड की भी बहुत क़िल्लत थी, लेकिन हमारे जानने वाले डॉक्टरों ने बेड का तो इंतज़ाम कर दिया, लेकिन उसके बाद के जो हालात थे, वो बेहद डरावने थे."
डॉक्टर रमा मिश्रा और उनके पति डॉक्टर जेके मिश्रा 13 अप्रैल को अस्पताल गए. अस्पताल के कोविड वॉर्ड में सिर्फ़ एक ही बेड मिल सका. डॉक्टर रमा मिश्रा ने बताया कि उस रात वो फ़र्श पर ही पड़ी रहीं, क्योंकि उन्हें अगले दिन ही बेड मिल सका.
वो कहती हैं, "मझे बेड नहीं मिला. हालाँकि मुझे ऑक्सीजन की भी ज़रूरत नहीं थी और मेरी रिपोर्ट पॉज़िटिव होने के बावजूद मेरी तबीयत ख़राब नहीं थी. उस रात डॉक्टर साहब को कोई इंजेक्शन लगाया गया, लेकिन हमें नहीं बताया कि कौन सा इंजेक्शन है. पूछने पर भी नहीं बताया. दूसरे दिन सुबह फिर इंजेक्शन लगा दिया. वहाँ रात में हमने जो देखा, वो बेहद डरावना था. रात भर मरीज़ चिल्लाते रहते थे. कोई उन्हें देखने वाला नहीं था. बीच-बीच में जब नर्स आती थी या डॉक्टर आते थे, तो डाँटकर चुप करा देते थे या कोई इंजेक्शन दे देते थे. उनमें से कई लोग सुबह सफ़ेद कपड़े में लपेटकर बाहर कर दिए जाते थे, यानी उनकी मौत हो चुकी होती थी."
अस्पताल में हुआ क्या?
प्रयागराज में मम्फ़ोर्डगंज के रहने वाले डॉक्टर जगदीश कुमार मिश्रा और उनकी पत्नी डॉक्टर रमा मिश्रा ने एक मार्च को शहर के ही बेली अस्पताल में कोरोना वैक्सीन की पहली डोज़ लगवाई थी. सात अप्रैल को दोनों ने दूसरी डोज़ लगवाई लेकिन इसके बावजूद दोनों संक्रमित हो गए.
13 अप्रैल को दोनों लोगों को स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में भर्ती कराया गया जहाँ डा. जगदीश कुमार मिश्रा की शुक्रवार दोपहर बाद मौत हो गई. डॉक्टर रमा मिश्रा कहती हैं कि डॉक्टर जेके मिश्रा स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय के सबसे पहले हाउस सर्जन थे और बाद में सर्जरी विभाग के अध्यक्ष बने. डॉक्टर रमा मिश्रा ख़ुद भी स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में स्त्री एवं प्रसूति विभाग में प्रोफ़ेसर रही हैं.
डॉक्टर रमा मिश्रा कहती हैं, "अस्पताल में कोरोना के नोडल ऑफ़िसर डॉक्टर मोहित जैन भी हमारे जूनियर रहे हैं. भर्ती होने के अगले दिन वो यहाँ आए, तो हमें देखकर चौंक गए. हँसते हुए हमसे बोले कि अरे आप लोग कैसे यहाँ आ गए? कुछ देर तक रहे, हाल-चाल लिया लेकिन उन्होंने भी कुछ नहीं बताया कि आपको क्या हुआ है और यहाँ क्या ट्रीटमेंट दिया जा रहा है. उसके बाद फिर वो एक बार भी देखने नहीं आए."
डॉक्टर रमा मिश्रा कहती हैं कि वॉर्ड के भीतर, ख़ासकर रात में कोई नहीं रहता था, वॉर्ड ब्वॉय भी नहीं. वो कहती हैं, "रात में सिर्फ़ एक जूनियर डॉक्टर आते थे. वो भी केवल ऑक्सीजन का लेवेल देखकर चले जाते थे. पहले दिन एक डॉक्टर सचदेवा थे, जो हमारे डॉक्टर साहब के जूनियर थे. वो तीन फ़ीट की दूरी पर खड़े होकर हाल-चाल लेकर चले गए और फिर वापस नहीं आए. थोड़ी देर बाद एक और डॉक्टर आए. उन्होंने हमें मेदांता जाने की सलाह दी."
डॉक्टर रमा मिश्रा के मुताबिक़, इसी तरीक़े से तीन दिन तक चलता रहा और 16 अप्रैल को डॉक्टर जेके मिश्रा की तबीयत ज़्यादा ख़राब हो गई, "ऑक्सीजन लेवेल लगातार कम हो रहा था. एक इंस्ट्रूमेंट और लगाया गया तो उससे उनकी साँस रुकने लगी. फिर हमने उसे हटवाया लेकिन बलगम से ख़ून आने लगा. हमने वहाँ मौजूद एक व्यक्ति से इस बारे में कहा तो उसने लापरवाही से जवाब दिया कि ये सब तो इस बीमारी में होना ही है. मैं चिल्लाने लगी कि आप लोग कुछ करिए, वेंटिलेटर पर रखिए लेकिन डॉक्टर बोले कि यहाँ वेंटिलेटर ही नहीं है. डॉक्टर शक्ति जैन जो हमारी जूनियर थी, वो भाग कर ऊपर वॉर्ड में गई और वहाँ उन्होंने बेड की व्यवस्था कराई. जब तक मैं लिफ़्ट से ऊपर पहुँची, तो देखा कि वो साँस ही नहीं ले रहे हैं. वेंटिलेटर लाने और उसे कनेक्ट करने में इतना समय लग गया कि उतनी देर में उनकी जान चली गई."
डॉक्टर रमा मिश्रा अस्पताल के कर्मचारियों और डॉक्टरों की लापरवाही और उनके कथित ख़राब व्यवहार को लेकर भी व्यथित हैं. वो कहती हैं, "हमें तो कई डॉक्टर जानने वाले थे, तब यह हाल था. जो आम मरीज़ थे उनकी सुनने वाला तो छोड़िए, उन्हें कुछ कहने पर ऐसे डाँटा जाता था, जैसे उन्होंने इन लोगों का कुछ ले रखा हो. अस्पताल में न तो कोई सुविधा है और न ही वहाँ स्टाफ़ है. मैं सच बताऊँ, तो ये लोग यही सोच रहे थे कि जो यहाँ आया है, उसे अब मरना ही है."
संसाधनों की कमी से इनकार
हालाँकि स्वरूप रानी अस्पताल में कोविड के नोडल अधिकारी डॉक्टर मोहित जैन संसाधनों की कमी से इनकार करते हैं, लेकिन उनका कहना है कि अस्पताल में अब मरीज़ों की संख्या इतनी ज़्यादा हो रही है कि उसे सँभालना मुश्किल हो रहा है.
बीबीसी से बातचीत में डॉक्टर मोहित जैन कहते हैं, "सबसे बड़ी दिक़्क़त ये है कि जो मरीज़ आ रहे हैं, वो बहुत ही गंभीर हालत में आ रहे हैं. जिनका ऑक्सीजन लेवेल 25-30 तक हो जा रहा है. इस समय हमारे अस्पताल में 500 से ज़्यादा लोग हैं, जिनमें कई ऐसे हैं जो गंभीर हैं. ऐसी स्थिति में आने वालों के लिए हमारे पास इलाज के लिए बहुत कुछ बचता ही नहीं है. हमारे पास मरीज़ अगर सही समय पर आ जाए, तो हम हर तरह का इलाज करने में सक्षम हैं."
डॉक्टर मोहित जैन कहते हैं कि लोग लक्षण दिखने के बावजूद कई दिनों तक अपने घरों पर ही रहते हैं और जब हालत गंभीर होने लगती है, तब अस्पताल आते हैं. उनके मुताबिक, पहले के जो नॉर्म्स बनाए गए थे, उस हिसाब से हमारे पास संसाधन थे, लेकिन अब जो स्थिति है वह बहुत ही विस्फोटक है, इस हिसाब से तो संसाधन सोचा भी नहीं गया था.
हालाँकि सच्चाई यह भी है कि कोविड टेस्ट के लिए लोग भटक रहे हैं और जिनका टेस्ट हो भी रहा है, रिपोर्ट मिलने में तीन से चार दिन का समय लग रहा है. विडंबना यह है कि इस दौरान मरीज़ की हालत ख़राब हो रही है, लेकिन उसे अस्पताल में रिपोर्ट न होने की वजह से जगह नहीं मिल रही है और दूसरी ओर, उसकी वजह से संक्रमण दूसरों तक भी पहुँच रहा है.
डॉक्टर जेके मिश्रा की मौत के संबंध में डॉक्रट मोहित जैन कहते हैं कि उनकी मौत कार्डियक अरेस्ट से हुई है. वो कहते हैं, "मैडम मेरी भी सीनियर रही हैं. अभी उनके पति की मौत हुई है, तो उनकी शिकायतें ज़रूर होंगी लेकिन हमने उनके इलाज में कोई कमी नहीं की. मैं ख़ुद कई बार उनके पास गया. पाँच मिनट पहले तक ठीक थे. अचानक जिस स्थिति में वो बीमार हुए और उनकी मृत्यु हुई, उस स्थिति में किसी भी अस्पताल में नहीं बचाए जा सकते थे."
प्रयागराज की स्थिति क्या है?
प्रयागराज शहर इस समय लखनऊ के बाद उत्तर प्रदेश का सबसे ज़्यादा कोरोना संक्रमण वाला ज़िला बना हुआ है, जहाँ हर दिन सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, औसतन 10 से ज़्यादा लोगों की मौत हो रही है और सैकड़ों की संख्या में संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं. यहाँ कोरोना जाँच करा रहा हर पाँचवाँ व्यक्ति संक्रमित पाया जा रहा है.
रविवार को भी 1711 लोग यहाँ संक्रमित पाए गए, जबकि 15 लोगों की इलाज के दौरान मौत हो गई. अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी है, जिसके चलते कई लोगों की जान जा रही है.
कोविड अस्पताल से जुड़े प्रयागराज के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मौतों के जो आँकड़े आ रहे हैं, वो वास्तविक मौतों की तुलना में कुछ भी नहीं हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक, शहर के अलग-श्मशान घाटों पर हर दिन 100 से ज़्यादा लाशें जल रही हैं और इनमें ज़्यादातर की मौत कोरोना से हो रही है. हालाँकि प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इसकी पुष्टि नहीं करते हैं.
डॉक्टर मोहित जैन भले ही सब कुछ ठीक होने की बात कह रहे हों, लेकिन डॉक्टर रमा मिश्रा के मुताबिक़, यहाँ जो हालात हैं, उनमें ज़रा भी गंभीर मरीज़ का बच पाना मुश्किल है.
वो कहती हैं, "अस्पताल में लोगों को ज़बरन रख रहे हैं. लापरवाही बहुत ज़्यादा है और संसाधन बिल्कुल नहीं हैं. सिर्फ़ तीन वेंटिलेटर थे, वो भी ज़रूरत पड़ने पर काम नहीं कर रहे हैं. दवा वग़ैरह तो दे रहे हैं, लेकिन धांधली बहुत है. मैं चाहती हूँ कि अन्य मरीज़ों को अगर बचाना है, तो इस अस्पताल में कम से कम 15-20 डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाए, भले ही वो चार-चार घंटे ही ड्यूटी करें. गंभीर मरीज़ मरेंगे, लेकिन कम से कम अस्पताल में होने के बावजूद उन्हें देखा तो जाए, समय पर इलाज तो मिल जाए."
डॉक्टर रमा मिश्रा की दूसरी कोविड रिपोर्ट 17 अप्रैल को नेगेटिव आई और रात में वो अपने घर आ गईं. उनका कहना है कि कोविड वॉर्डों को पूरी तरह से बंद नहीं होना चाहिए बल्कि कम से कम एक ओर शीशा होना चाहिए ताकि अंदर क्या हो रहा है, ये मरीज़ के परिजन भी जान सकें.
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