पटनाः बिहार सरकार ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी को क्यों तोड़ना चाहती है?
पटना में एक एलिवेटेड रोड के लिए ऐतिहासिक ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी के कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने के प्रस्ताव का जमकर विरोध हो रहा है.
दरअसल पटना मेडिकल कॉलेज को भारत का सबसे बड़ा अस्पताल (5462 बेड का) बनाने के लिए बिहार सरकार चाहती है कि अस्पताल तक पहुँचने का रास्ता भी सुगम हो. इसके लिए अशोक राजपथ पर कारगिल चौक से पटना एनआईटी तक एक एलिवेटेड सड़क बनाने का प्रस्ताव है.
वैसे तो प्रस्तावित रास्ते के बीच में अशोक राजपथ के किनारे की कई इमारतें आ रही हैं जिनको तोड़कर सड़क बनाए जाने की बात है, लेकिन उनमें से एक इमारत ख़ुदा बख़्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने का प्रस्ताव विवाद का केंद्र बन गया है.
प्रस्ताव के मुताबिक़ नई एलीविटेड सड़क के लिए लाइब्रेरी परिसर के 64 मीटर लंबे और छह मीटर चौड़े हिस्से को अधिगृहित किया जाना है. इसमें लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग रूम का पाँच मीटर चौड़ा और 12 मीटर लंबा हिस्सा शामिल है.
ख़ुदा बख़्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी की डायरेक्टर डॉ शाइस्ता बेदार कहती हैं, "हमारे पास लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने और परिसर का कुछ हिस्सा अधिगृहित करने के लिए एनओसी पास करने का काग़ज़ बिहार राज्य पुल निर्माण निगम की ओर से आया था जिसे हमनें नकारते हुए लौटा दिया है साथ ही इसे बचाने के लिए वैकल्पिक रास्ते भी सुझाए हैं."
तोड़ने पर सवाल क्यों?
लार्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को टूटने से बचाने की ज़रूरत पर डॉ. शाइस्ता कहती हैं, "1905 में बने इस रीडिंग रूम का ऐतिहासिक महत्व तो है ही साथ ही यह सालों से न केवल पटना बल्कि दुनिया के सैकडों- हज़ारों युवाओं के अध्ययन और शोध का केंद्र रहा है."
ख़ुदा बख़्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के रिकॉर्ड्स के मुताब़िक साल 1903 में भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्ज़न यहां आए थे.
डॉ शाइस्ता बताती हैं, "लार्ड कर्ज़न यहां की सामग्री को देखकर बहुत ख़ुश हुए थे. उनके ही सलाह और मार्गदर्शन से लाइब्रेरी के 40 वॉल्यूम डिसक्रिप्टिव कैटलॉग सर डेनिसन रॉस की देखरेख में बनवाए गए. वो कैटलॉग आज भी यहां के ट्रेज़ेरर की कुंजी है. बाद में लॉर्ड कर्ज़न के लाइब्रेरी में योगदान को याद रखने के लिए यह रीडिंग रूम बनवाया गया था."
डॉ शाइस्ता के मुताब़िक लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग रूम तोड़ने से सबसे अधिक नुक़सान पटना शहर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राओं को होगा.
वो बताती हैं कि जब तक कोविड का प्रोटोकॉल लागू नहीं था, यहां रोज़ सैकड़ों की संख्या में विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे. क्योंकि शहर में इस तरह की दूसरी कोई जगह नहीं बची है, जहां पढ़ाई का माहौल हो और पढ़ने के लिए इतनी सारी किताबें हों.
टूट जाएगा रीडिंग रूम तो कहाँ जाएंगे पढ़ने?
राज्य सरकार ने कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण लाइब्रेरी में बैठ कर पढ़ाई करने पर पाबंदियां लगा दी हैं लेकिन लाइब्रेरी के बाहर खड़े और कैट (CET) की तैयारी कर रहे राजाबाबु सिंह ने बताया, "मैं यहां साल 2016 से ही आ रहा हूं. मुझे पता भी था कि कोविड प्रोटोकॉल के कारण रीडिंग रूम बंद है, बावजूद इसके आया क्योंकि सरकार इसे तोड़ने की बात कह रही है. हम विद्यार्थियों ने तय किया है कि बंद रहने पर भी यहाँ ज़रूर आएंगे, ताकि यदि सरकार इसे तोड़ना भी चाहे तो हम नहीं टूटने दें."
राजाबाबु के साथ-साथ वहां मौजूद दूसरे छात्रों ने भी लार्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने को लेकर सवाल उठाए.
अपना नाम बिना बताए एक छात्रा ने कहा, "मौजूदा सरकार की यह नीति रही है कि पुरानी चीज़ों को ख़त्म कर दो. और उसके जगह पर नई चीज़ें बना दो. बिहार का नया और पुराना संग्रहालय इसका सबसे बेहतर उदाहरण है."
लाइब्रेरी का इतिहास
रिकार्ड्स के मुताबिक़ ख़ुदा बख़्श पब्लिक ओरिएंटल लाइब्रेरी की स्थापना सन 1891 में ख़ान बहादुर ख़ुदा बख़्श ने चार हज़ार पांडुलिपियों के साथ की थी. इनमें से 1400 पांडुलिपियां ख़ुदा बख़्श को उनके पिता मौलवी मोहम्मद बख़्श से मिली थीं.
इस पुस्तकालय में कुछ ऐसी पांडुलिपियाँ, पुस्तकें और चित्र हैं जो दुनियाभर में और कहीं नहीं हैं. उन्हीं में से एक है. तारीख़-ए-ख़ानदान-ए-तैमूरिया. यह चित्रित पांडुलिपि है जिसे 1577-78 में लिखा गया था.
इतिहासकार इम्तियाज़ अहमद कहते हैं, "यह पांडुलिपि साल 2010-11 में यूनेस्को के मेमोरिज ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल हो चुकी है. इसमें इरान और भारत में तैमूर और उनके उत्तराधिकारियों का इतिहास बताया गया है."
डॉ इम्तियाज़ अहमद लाइब्रेरी के और दुर्लभ संग्रह के बारे में बताते हैं, "यहां अमोरनामा की एकमात्र प्रति है. मिनिएचर पेंटिंग का यह संग्रह 16वीं शताब्दी में बना. इस पर मुग़ल बादशाह शाहजहां की मुहर है."
इस लाइब्रेरी की सबसे पुरानी किताब मानव और पशुओं की सर्जरी के बारे में है जिसे 12वीं शताब्दी में लिखा गया था.
यहां 14वीं सदी के ख्यातिलब्ध शायर हाफ़िज़ का एक दुर्लभ संग्रह भी है जिसकी कुछ लाइनें हिन्दी की क्लासिक फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म में भी इस्तेमाल की गई हैं.
साल 1969 में भारत की संसद ने इस पुस्तकालय को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में चुना था.
यादों का रिश्ता
ख़ुदा बख़्श पब्लिक ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी की डायरेक्टर डॉ शाइस्ता बेदार के मुताबिक़ लाइब्रेरी में फ़िलहाल 21 हज़ार से अधिक पांडुलिपियां और चार लाख से अधिक प्रकाशित पुस्तकें हैं.
डॉ शाइस्ता कहती हैं, "यहां का संग्रह इतना विशाल और उपयोगी है कि न केवल पटना और बिहार बल्कि दुनियाभर के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और पढ़ने-लिखने वाले लोगों से इसका नाता है."
पटना के पालिगंज के विधायक संदीप सौरव जेएनयू के पूर्व छात्र नेता और शोधार्थी रहे हैं और वर्तमान में विधानसभा पुस्तकालय समिति के सदस्य भी हैं.
संदीप बताते हैं, "जब तक पटना में रहकर मैंने पढ़ाई की, तब तक इस लाइब्रेरी का नियमित पाठक रहा. जेएनयू की प्रवेश परीक्षा की तैयारियों में यहां की गई पढ़ाई की महत्वपूर्ण भूमिका रही. मेरे जैसे हज़ारों छात्र होंगे जिन्होंने इस पुस्तकालय में पढ़ाई की है."
ख़ुदा बख़्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी की यादों की किताब में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सीवी रमन जैसी शख्सियतों के दौरे भी दर्ज हैं.
लाइब्रेरी की डायरेक्टर डॉ शाइस्ता जब विज़िटर्स बुक दिखा रही थीं तब उनके चेहरे पर गौरव का बोध साफ़ दिख रहा था.
उन्होंने बताया, "1925 में महात्मा गांधी जब पुस्तकालय में आए थे तो यहां का संग्रह देखकर इतना ख़ुश हुए कि विज़िटर्स बुक में लिखा, 'यह feast for eyes है."
बचाने के लिए बना है मोर्चा
ख़ुदा बख़्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के परिसर को अधिगृहित नहीं करने और लार्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को बचाने के लिए आवाज़ें उठ रही हैं.
विधानसभा की पुस्तकालय समिति भी सरकार के इस प्रस्ताव पर सवाल खड़े कर रही है.
समिति के अध्यक्ष सीपीआईएमएल के विधायक सुदामा प्रसाद बीबीसी से कहते हैं, "सबसे पहला सवाल तो ये कि सरकार की ओर से ऐसा प्रस्ताव बिना पुस्तकालय समिति की जानकारी में तैयार कैसे कर लिया गया. ये बताता है कि सरकार के लोग इसे लेकर कितने सीरियस हैं."
सुदामा प्रसाद के मुताबिक़ इस लाइब्रेरी को चाहने वाले राज्य भर के सैकड़ों बुद्धिजीवियों ने मिलकर "ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी बचाव संघर्ष मोर्चा" बनाया है.
मोर्चा से जुड़े लोगों ने मिलकर अशोक राजपथ पर मानव श्रृंखला बनाकर सरकार के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज कराया.
सुदामा प्रसाद ने कहा, "ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी बचाव संघर्ष मोर्चा के सदस्यों ने 13 अप्रैल को पटना में एक बैठक की और तय किया कि पहले सरकार से बात कर वैकल्पिक रास्ता तलाशने की कोशिश करेंगे और अगर फिर भी बात नहीं बनी तो मोर्चा अदालत जाएगा. लेकिन ख़ुदा बख़्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी पर कोई आंच नहीं आने देंगे."
क्या विकास के नाम पर टूटेगा धरोहर?
ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी की डायरेक्टर डॉ शाइस्ता बातचीत में बार-बार अपने उन सुझावों का ज़िक्र करती हैं जो उन्होंने पथ निर्माण विभाग और राज्य पुल निर्माण निगम को दिए हैं.
उन सुझावों के अनुसार नई बनने वाली एलिवेटेड सड़क को लाइब्रेरी से पहले ही बाएं मोड़कर गंगा पाथ वे से जोड़ देने पर भी पीएमसीएच पहुंचा जा सकता है. लाइब्रेरी प्रबंधन की ओर से ऐसे तीन रास्ते सुझाए गए हैं.
ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी को चाहने वाने लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या विकल्पों पर विचार कर लाइब्रेरी से पहले सड़क को मोड़ा जाएगा या फिर विकास का नया मॉडल बनाने के लिए धरोहर को तोड़ दिया जाएगा?
पथ निर्माण विभाग के प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा बीबीसी से कहते हैं, "हम भी नहीं चाहते कि लाइब्रेरी का कोई भी हिस्सा प्रभावित हो. अपने धरोहरों को बचाने को लेकर सरकार सीरियस है."
अमृत लाल मीणा आगे कहते हैं, "लाइब्रेरी प्रबंधन ने सड़क को गंगा की तरफ़ मोड़ने के जो सुझाव दिए हैं उसपर विचार किया जा रहा है. जब तक उनकी सहमति नहीं होती तबतक किसी तरह का काम नहीं होगा."
अमृत लाल मीणा ने बातचीत में भरोसा दिलाया, "पथ निर्माण विभाग और बिहार सरकार ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी के हर हिस्से के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है. इसके लिए ज़रूरत पड़ी तो नई सड़क का रास्ता लाइब्रेरी से पहले मोड़ा भी जा सकता है."
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