फ़लस्तीन के मुद्दे पर चुनौती देने वाला हमास कितना ताक़तवर है?
इसराइल को फ़लस्तीन के मुद्दे पर चुनौती देने वाला हमास कितना ताक़तवर है?
- जोनाथन मार्कस
- रक्षा और कूटनीतिक विशेषज
गज़ा पट्टी में इसराइल और फलस्तीन के बीच जो संघर्ष चल रहा है, उसका खामियाजा दोनों ही पक्षों को भुगतना पड़ रहा है. इस संघर्ष में दोनों ही तरफ़ लोगों की जानें गई हैं, नुक़सान हुआ है और लोग तकलीफ़ में हैं.
हालांकि सच यह भी है कि ये संघर्ष एक ग़ैर-बराबरी वाला मुक़ाबला है.
इसमें कोई शक़ नहीं कि इसराइल एक ताक़तवर मुल्क है. उसके पास एयर फोर्स है, एयर डिफेन्स सिस्टम है, सशस्त्र ड्रोन्स हैं और ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने का एक सिस्टम है जिससे वो जब चाहे गज़ा पट्टी में अपने टार्गेट को निशाना बना सकता है.
इसराइल भले ही इस बात पर ज़ोर दे रहा हो कि वो केवल उन्हीं ठिकानों को निशाना बना रहा है जिनका इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए किया जा रहा है लेकिन जिन इलाक़ों में हवाई हमले हुए हैं फ़लस्तीनियों की वहां इतनी सघन आबादी है कि हमास और 'इस्लामिक जिहाद ' जैसे संगठनों के ठिकानों से उन्हें अलग कर पाना बहुत मुश्किल है.
हमास और इस्लामिक जिहाद
कई बार तो ये ठिकाने आम लोगों की रिहाइश वाली इमारतों में छुपकर चलाए जाते हैं. ऐसे में आम लोगों की जान बचाना लगभग नामुमकिन हो जाता है.
हमास और 'इस्लामिक जिहाद' जैसे संगठन भले ही इस संघर्ष में कमज़ोर पक्ष लगते हों लेकिन उनके पास इतने हथियार तो ज़रूर हैं कि वे इसराइल पर हमला कर सकते हैं.
इसराइल पर हमला करने के लिए वे पहले भी कई तरीके आज़मा चुके हैं.
इसराइली सैनिकों ने पिछले दिनों गज़ा से उसकी सीमा में दाखिल होने की कोशिश कर रहे एक ड्रोन को मार गिराया था. माना जाता है कि वो ड्रोन हथियारों से लैस था.
इसराइली सेना के एक प्रवक्ता ने बताया कि एक 'एलीट हमास यूनिट' ने गज़ा पट्टी के दक्षिणी इलाके से एक सुरंग के ज़रिए इसराइल में घुसपैठ करने की कोशिश की थी.
गज़ा पट्टी के इलाक़े में
ऐसा लगता है कि इसराइल की सेना को पहले से हमास की इस कोशिश की भनक लग गई थी. इसराइली सेना के प्रवक्ता ने बताया था कि उन्होंने "उस सुरंग को नष्ट कर दिया."
इसमें कोई शक़ नहीं कि फ़लस्तीन के हथियारों के ज़खीरे में जो असलहा सबसे महत्वपूर्ण है, वो ज़मीन से ज़मीन पर मार करने वाली उसकी मिसाइलें हैं.
उसके पास ऐसी मिसाइलें भी अलग-अलग तरह की हैं. फ़लस्तीनी खेमे की तरफ़ से पिछले दिनों कोर्नेट गाइडेड एंटी टैंक मिसाइलों का इस्तेमाल भी देखा गया है.
माना जा रहा है कि ये मिसाइलें मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप से सुरंगों के ज़रिए उसे हासिल हुई हैं.
लेकिन हमास और 'इस्लामिक जिहाद' के पास हथियारों का जो ज़खीरा है, उसके एक बड़े हिस्से का निर्माण गज़ा पट्टी के इलाक़े में ही हो रहा है.
ईरान से मदद
गज़ा पट्टी में विविधतापूर्ण और परिष्कृत किस्म के हथियारों को बनाने की क्षमता कहां से आई, इसे लेकर इसराइल और बाहर के विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी तकनीक उनके पास ईरान से पहुंची है.
उनका कहना है कि गज़ा पट्टी में इसकी इंडस्ट्री ईरान की मदद से ही खड़ी हुई है. यही वजह है कि इसराइली हमलों का मुख्य निशाना हथियारों की ये फैक्ट्रियां और उनके भंडार हैं.
हमास के पास कितनी मिसाइलों का स्टॉक है, इसका अनुमान लगाना नामुमकिन है.
ये बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि हमास के पास हज़ारों की संख्या में अलग-अलग तरह के हथियार हैं.
हालांकि इसराइल की सेना के पास इसे लेकर ज़रूर अनुमान होंगे लेकिन उन्होंने इसे सार्वजनिक तौर पर कभी साझा नहीं किया है.
'क़ास्सम' और 'क़ुद्स 101' मिसाइलें
हमास की क्षमता को लेकर इसराइली प्रवक्ता ने केवल इतना कहा है कि "हमास इस तरह के हमले का सामना काफी लंबे समय तक कर सकता है."
इधर फ़लस्तीनी पक्ष की तरफ़ से अभी तक कई तरह की मिसाइलें दागी गई हैं. लेकिन इनमें से कोई भी ऐसा नहीं है कि जिसे डिज़ाइन के मामले में नया कहा जा सकता हो.
लेकिन जो बात अभी तक सामने आई है, वो ये है कि फ़लस्तीन की तरफ़ से दाग़ी जा रही मिसाइलें पहले से ज़्यादा दूरी तक मार कर सकती हैं और वे अधिक विस्फोटकों से लैस हैं.
हमास की इन मिसाइलों के नाम को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति है. लेकिन ऐसा लगता है कि उसके पास कम दूरी तक मार कर सकने वाली 'क़ास्सम' मिसाइलों का बड़ा स्टॉक है. ये मिसाइलें 10 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं.
इसके अलावा हमास के पास 'क़ुद्स 101' मिसाइलें भी बड़ी संख्या में हैं जो 16 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं. उसके पास 55 किलोमीटर की दूरी तक मार करने में सक्षम 'ग्रैड सिस्टम' और 'सेजिल 55' मिसाइलें भी हैं.
मोर्टार हमले की क्षमता
हमास के पास छोटी दूरी तक मार कर सकने में सक्षम मिसाइलों के अलावा मोर्टार हमले की भी ताकत है.
पर बात यहीं खत्म नहीं होती. हमास की ताक़त केवल कम दूरी तक मार कर सकने वाली मिसाइलें ही नहीं हैं. उसके निशाने की जद में इसराइल के भीतर दो सौ किलोमीटर दूर तक के ठिकाने आ सकते हैं.
इन मिसाइलों में एम-75 (मारक क्षमता: 75 किलोमीटर), फज्र (100 किलोमीटर), आर-160 (120 किलोमीटर) और कुछ एम-302 प्रक्षेपास्त्र भी हैं.
इसलिए ये साफ़ है कि हमास के पास ऐसे हथियार हैं जो यरूशलम और तेल अवीव दोनों को ही टार्गेट बना सकते हैं.
इतना ही नहीं इसराइल का पूरा तटवर्ती इलाक़ा जहां इसराइली लोगों की बड़ी आबादी रहती है और उसके प्रमुख ठिकाने मौजूद हैं, हमास के हमलों की जद में आ सकते हैं.
'आयरन डोम एंटी मिसाइल सिस्टम'
इसराइली सेना ने बताया है कि पिछले तीन दिनों में 1,000 से ज्यादा मिसाइलें या रॉकेट इसराइल पर दाग़े गए हैं. इनमें तक़रीबन दो सौ मिसाइलें गज़ा पट्टी के इलाक़े में ही गिर गए.
इससे पता चलता है कि गज़ा पट्टी में जिन हथियारों का निर्माण हो रहा है, उसकी गुणवत्ता क्या हैं और उसके साथ क्या समस्याएं हैं.
इसराइली सेना का कहना है कि इसराइल की तरफ़ आने वाली 90 फीसदी मिसाइलों का रास्ता उसका 'आयरन डोम एंटी मिसाइल सिस्टम' रोक लेता है.
हालांकि एक बार ऐसा भी हुआ है कि अश्कलोन शहर की रक्षा के लिए तैनात ये एंटी मिसाइल सिस्टम तकनीकी ख़राबी के कारण काम नहीं कर रहा था.
यानी जिस एंटी मिसाइल सिस्टम की तकनीकी कामयाबी की मिसाल दी जाती है, वो भी फूल-प्रूफ़ नहीं है.
ज़मीनी सैन्य कार्रवाई
मिसाइल से होने वाले हमलों का सामना करने के लिए आपके पास बेहद सीमित विकल्प होते हैं. आप मिसाइल रोधी प्रतिरक्षा प्रणाली (एयर डिफेन्स सिस्टम) तैनात कर सकते हैं. आप इसके भंडार और निर्माण केंद्रों को निशाना बना सकते हैं.
ज़मीन पर सैन्य अभियान के ज़रिए मिसाइल लॉन्च करने वालों को इतना पीछे धकेला जा सकता है जहां से वे प्रभावी रूप से निशाना लेने की स्थिति में न हों. लेकिन इस मामले में ये संभव होता हुआ नहीं लग रहा है.
फ़लस्तीनियों के साथ दिक्कत ये है कि उनके पास रणनीतिक गहराई की कमी है और बचने के लिए कोई ठिकाना नहीं है. यहां वे जोखिम की स्थिति में हैं. मिसाइल हमलों को रोकने के लिए इसराइल की ओर से ज़मीनी सैनिक कार्रवाई संभव है.
लेकिन साल 2014 में जब इसराइल ने आख़िरी बार गज़ा में बड़ी सैन्य कार्रवाई की थी तो जानोमाल का बहुत नुक़सान हुआ था और इस बार भी इसकी आशंका है.
उस सैनिक अभियान में 2,251 फ़लस्तीनी लोग मारे गए थे जिनमें 1,462 आम शहरी थे. इसराइल की तरफ़ से उसके 67 सैनिक और छह आम लोग मारे गए थे.
फ़लस्तीन का राजनीतिक नेतृत्व
इसराइल और फ़लस्तीन के बीच फिलहाल जो संघर्ष चल रहा है, उससे दोनों ही पक्षों को कुछ हासिल होता हुआ नहीं दिख रहा है.
ज़्यादा से ज़्यादा यही देखा जा रहा है कि अगले राउंड की गोलाबारी से पहले थोड़े समय के लिए ये लगता है कि लड़ाई थम गई है.
बहुत से लोगों का ये कहना है कि यरुशलम के तनाव की वजह से इसराइल और फ़लस्तीन के बीच हिंसा का ताज़ा दौर शुरू हुआ है.
इस बात पर फिर से सबका ध्यान गया है कि इसराइल और फलस्तीन के बीच जारी विवाद को हमेशा के लिए नज़रअंदाज करके नहीं रखा जा सकता है.
लेकिन हाल के दिनों में अरब देशों की सरकारें इसराइल के साथ अमन के समझौते कर रही हैं और फ़लस्तीन का राजनीतिक नेतृत्व इतना बंटा हुआ पहले कभी भी नहीं रहा. ऐसे में इसराइल के मौजूदा नेतृत्व के एजेंडे में ये मुद्दा दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता.
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वास्तविक शांति कैसे स्थापित हो, इस दिशा में कोई प्रगति दिखाई नहीं देती है.
इसके लिए ज़मीन पर मौजूद संबद्ध पक्षों के बीच आगे बढ़ने की ललक और दूसरे देशों की तरफ़ से इस दिशा में पहल की ज़रूरत है.
लेकिन शांति की राह पर आगे बढ़ने के लिए ये शर्त साकार होते हुए नहीं दिखाई देती है.
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(जोनाथन मार्कस विदेश मामलों के विशेषज्ञ हैं. वे बीबीसी के पूर्व रक्षा एवं कूटनीतिक संवाददाता हैं.)
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