बीजेपी ने तमाम प्रलोभन देकर पार्टी में शामिल किया था. वह धोखेबाज़ पार्टी है. यहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कोई विकल्प नहीं है. हम उनकी विकास योजनाओं में शरीक होना चाहते हैं. हमने टीएमसी को बदनाम किया है. हम टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन अब घर लौटना चाहते हैं."
पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक रूप से माफ़ी क्यों मांग रहे हैं बीजेपी के कुछ कार्यकर्ता?
- प्रभाकर मणि तिवारी
- बीबीसी हिंदी के लिए, कोलकाता से
मुकुल राय की टीएमसी में वापसी के बाद ऐसे लोगों की भीड़ बढ़ गई है जो बीजेपी से टीएमसी में वापस लौटना चाहते हैं. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बीजेपी के कुछ कार्यकर्ता सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगते हुए टीएमसी में वापसी की गुहार लगा रहे हैं.
ऐसी स्थिति क्यों हैं, इस पर बीजेपी के राज्य यूनिट के लोगों का कहना है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का आतंक. लेकिन टीएमसी का जवाब है कि लोगों को अब अपनी ग़लती का अहसास हो गया है.
बीजेपी के बड़े नेताओं की वापसी या ऐसा करने के इच्छुक नेताओं की सूची लगातार लंबी होने के बीच ही राज्य के विभिन्न इलाकों में बीजेपी के ज़मीनी कार्यकर्ता भी टीएमसी में लौटने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए वो सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने के अलावा टीएमसी के प्रति निष्ठा की शपथ ले रहे हैं.
बीरभूम ज़िले के सैंथिया में लोग उस समय हैरत में पड़ गए जब बीजेपी कार्यकर्ताओं का समूह अलग-अलग बैटरी-चालित रिक्शे (टोटो) पर सवार होकर सड़कों पर अपनी ग़लतियों के लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगते नजर आए. वह ग़लती थी चुनाव से पहले टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल होना.
अब चुनाव नतीजों के बाद उपजी परिस्थिति में उनको अपने इलाके में रहने के लिए माफ़ी मांग कर घर वापसी करना ही एकमात्र उपाय नज़र आ रहा है. हाल में इस इलाके में क़रीब तीन सौ कार्यकर्ता शपथ लेकर टीएमसी में दोबारा शामिल हो गए हैं.
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कारोबारियों को धमकी
इसी तरह हुगली ज़िले के धनियाखाली इलाके में एक दुकानदार बाप्पा कर की दुकान बीते दो मई से ही बंद थी. वह भी चुनाव के कुछ दिनों पहले टीएमसी से बीजेपी में गए थे. लेकिन दुकान आख़िर बंद क्यों थी?
बीजेपी नेताओं का आरोप है कि उन्हें धमकी दी गई थी कि बीजेपी के साथ रहने पर दुकान नहीं खोलने दी जाएगी.
आख़िर बाप्पा ने सार्वजनिक रूप से माफ़ीनामा पढ़ा और टीएमसी के प्रति निष्ठा बरतने की शपथ ली. उसके बाद उसे दुकान खोलने की अनुमति मिल गई है. ज़िला प्रशासन या पुलिस ने इस मामले पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है.
लेकिन राज्यपाल जगदीप धनखड़ और बीजेपी के स्थानीय नेता इसे टीएमसी के बढ़ते आतंक का सबूत बता रहे हैं.
बीरभूम ज़िले के ही बोलपुर में लाउडस्पीकर के जरिए माफ़ी मांग रह बीजेपी कार्यकर्ताओं का कहना था, "हमें बीजेपी ने तमाम प्रलोभन देकर पार्टी में शामिल किया था. वह धोखेबाज़ पार्टी है. यहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कोई विकल्प नहीं है. हम उनकी विकास योजनाओं में शरीक होना चाहते हैं. हमने टीएमसी को बदनाम किया है. हम टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन अब घर लौटना चाहते हैं."
उन लोगों का कहना था कि हम ग़लती से बीजेपी में शामिल हुए थे. अब इस ग़लती को सुधारना चाहते हैं. उन कार्यकर्ताओं में शामिल मुकुल मंडल कहते हैं, "हमने बीजेपी का चरित्र समझने में ग़लती की थी. ममता बनर्जी के विकास कार्यों के समर्थन के लिए हम टीएमसी में लौट रहे हैं."
घर वापसी के लिए आयोजित समारोह में टीएमसी नेता तुषार कांति मंडल ने पहले उन 67 परिवारों को शपथ दिलाई और उसके बाद शुद्धिकरण समारोह आयोजित किया गया. उस शपथ पत्र में लिखा था, "बीजेपी में जाकर हमने ग़लती की थी. अब से टीएमसी में ही रहेंगे."
इस मौके पर टीएमसी में लौटने वाले वनग्राम पंचायत के प्रसेनजित साहा का कहना था, "वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले लाभपुर इलाके के तत्कालीन टीएमसी विधायक मनीरुल इस्लाम समेत कई नेता बीजेपी में शामिल हो गए थे. मैं भी उसी समय बीजेपी में चला गया था. लेकिन अब वहां रहना मुश्किल है."
आरोप-प्रत्यारोप
बीजेपी के बीरभूम ज़िला अध्यक्ष ध्रुव साहा कहते हैं, "इन लोगों को बीजेपी में शामिल होने की सजा भुगतनी पड़ रही थी. उनको तमाम सरकारी सुविधाओं और योजनाओं से वंचित कर दिया गया था. उनलोगों ने स्वेच्छा से नहीं बल्कि मजबूरी और दबाव में ही टीएमसी में शामिल होने का फ़ैसला लिया है."
साहा कहते हैं कि इस घटना से साफ़ है कि लाभपुर में लोकतंत्र की कैसे हत्या की जा रही है. बीजेपी कार्यकर्ताओं को डरा-धमका कर टीएमसी में शामिल होने पर मजबूर किया जा रहा है. पुलिस और प्रशासन इन आरोपों पर कोई जवाब नहीं देती.
बीरभूम ज़िले के एक पुलिस अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "हमारे पास ज़ोर-जबरदस्ती की कोई शिकायत नहीं आई है. ऐसे में अगर कोई पार्टी बदलता है तो पुलिस क्या कर सकती है?"
उधर, लाभपुर के टीएमसी विधायक अभिजीत सिंह साहा के आरोपों को निराधार बताते हैं.
वे कहते हैं, "हमने किसी पर कोई दबाव नहीं डाला है. बीजेपी ही दबाव और प्रलोभन के सहारे लोगों को ग़लत रास्ते पर ले जाती है. बीजेपी कार्यकर्ता अपनी ग़लती पर पश्चाताप की वजह से माफ़ी मांग कर टीएमसी में लौटे हैं."
टीएमसी के बीरभूम ज़िला अध्यक्ष अणुब्रत मंडल कहते हैं, "हमें किसी को जबरन बुलाने की ज़रूरत ही नहीं है. बीजेपी और उसकी नीतियों से मोहभंग होने की वजह से लोग ख़ुद लौटना चाहते हैं."
हुगली का मामला
हुगली ज़िले में धनियाखाली के बेलमुड़ी ग्राम पंचायत के फीडर रोड पर दुकान चलाने वाले बाप्पा कर ने चुनाव से पहले भगवा पार्टी का दामन थामा था. लेकिन जिस दिन चुनाव का नतीजा निकला उसी दिन से उनकी मोबाइल की दुकान बंद थी.
आख़िर में बीते शुक्रवार को टीएमसी नेताओं-कार्यकर्ताओं की मौजदूगी में भरे बाजार में उन्होंने माफ़ीनामा पढ़ा और दोबारा टीएमसी में शामिल हो गए. उसके बाद उनकी दुकान खुल गई है.
क्या उन्होंने टीएमसी की धमकी की वजह से दुकान बंद रखी थी?
बाप्पा बताते हैं, "मैंने ख़ुद डर के मारे दुकान बंद कर दी थी. लेकिन रोजी-रोटी की दिक़्क़त होने लगी तो मैंने टीएमसी से इसे खोलने की अनुमति मांगी." वे इससे ज़्यादा बोलने को तैयार नहीं हैं.
टीएमसी के स्थानीय नेता और बेलमूड़ी के अंचल प्रमुख सुब्रत साहा कहते हैं, "हमने न तो जबरन किसी की दुकान बंद कराई है और न ही किसी को टीएमसी में लौटने पर मजबूर किया है. बाप्पा ने ख़ुद ही दुकान बंद रखी थी. वे पहले टीएमसी में ही थे. अपनी ग़लती मान कर लौटना चाहते थे. इसलिए हमने उनको पार्टी में शामिल कर लिया."
लेकिन धनियाखाली विधानसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार रहे तुषार मजूमदार आरोप लगाते हैं, "ज़िले में हर जगह यही चल रहा है. कई दुकानें बंद करा दी गई हैं. टीएमसी करने वालों को ही व्यापार करने की अनुमति दी जा रही है. बाप्पा का मामला भी अपवाद नहीं है. इलाके में बीजेपी के सैकड़ों समर्थक अब भी घर छोड़ कर दूसरी जगहों पर रह रहे हैं."
बीजेपी की युवा मोर्चा के हुगली जिला अध्यक्ष सुरेश साव भी यही आरोप लगाते हैं.
वह कहते हैं, "इलाके में टीएमसी वाला ही दुकान चला सकता है. टीएमसी ने कई लोगों के सामाजिक बायकाट की अपील की है. पुलिस का एक गुट भी इसे समर्थन दे रहा है."
वैसे हाईकोर्ट के निर्देश पर इलाक़े में 130 परिवार रविवार को ही लौटे हैं. यह लोग चुनाव नतीजों के बाद से ही टीएमसी के कथित आतंक और अत्याचार की वजह से घर छोड़ कर भाग गए थे.
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है, "जो जिस पार्टी में चाहे जाने के लिए स्वतंत्र है. यह लोग कोई गाय-भैंस तो हैं नहीं जिनको बांध कर रखा जाए. किसी के रहने या जाने से ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता."
घोष का यह बयान हालांकि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय समेत कई अन्य नेताओं के टीएमसी के शामिल होने के संदर्भ में है, लेकिन यह पार्टी के मौजूदा रवैए का भी संकेत है. पार्टी के सामने कुनबा बचाने की चुनौती है.
पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने बंगाल की ओर से मुंह मोड़ लिया है. प्रदेश के नेता फ़िलहाल असंतोष की चौतरफ़ा आवाज़ों से निपटने में ही व्यस्त हैं.
इस बीच, दिलीप घोष को यहां से हटा कर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने और यहां विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के लिए मैदान खुला छोड़ने की चर्चा भी जोर पकड़ रही है. हालांकि घोष ने इसकी पुष्टि करने से इनकार कर दिया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ख़ासकर मुकुल राय जैसे बड़े नेताओं के टीएमसी में लौटने और कई अन्य नेताओं के नाम लौटने वालों की सूची में होने की वजह से ज़मीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल तेज़ी से गिर रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "बंगाल में जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर राजनीतिक हिंसा का इतिहास बहुत पुराना है. गांव वालों को आख़िर रहना तो वहीं है. ऐसे में पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर लेने का दुस्साहस भला कौन करेगा?"
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