स्टेन स्वामी की मौत पर प्रतिक्रिया, कई लोगों ने उठाए सवाल, कहा, "हिरासत में मौत की ज़िम्मेदारी तय हो"
भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में न्यायिक हिरासत में रखे गए मानवाधिकार कार्यकर्ता फ़ादर स्टेन स्वामी की मौत के बाद राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय कई लोगों ने दुख जताया है.
स्टेन स्वामी के निधन के बाद सोशल मीडिया पर कई तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं.
ऐसी कुछ प्रतिक्रियाओं में उनकी मौत को "त्रासदी" बताया गया. कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि ये "हत्या" है और हिरासत में हुई स्टेन स्वामी की 'मौत की जवाबदेही तय करने की मांग' भी की है. स्वामी 84 साल के थे और बीते दो दिन से मुंबई के एक अस्पताल में लाइफ़ सपोर्ट पर थे.
भीमा कोरगॉंव हिंसा मामले में स्टेन स्वामी को राँची से बीते वर्ष हिरासत में लिया गया था. उन पर हिंसा भड़काने का मामला चल रहा था.
स्टेन स्वामी पर 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में शामिल होने और नक्सलियों के साथ संबंध होने के आरोप भी लगाए गए थे. उन पर ग़ैर क़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धाराएँ लगा कर एनआईए ने हिरासत में लिया था.
"न्याय और मानवता के हक़दार थे"
स्टेन स्वामी की मौत पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने संवेदना जताते हुए ट्वीट किया कि "वे न्याय और मानवता के हक़दार थे."
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वहीं पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा ने उनकी मौत को "हत्या" बताते हुए लिखा कि "हम जानते हैं कि कौन ज़िम्मेदार है."
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वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने लिखा कि "कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक व्यक्ति जिसने जीवन भर ग़रीबों-आदिवासियों की सेवा की और मानव अधिकारों की आवाज़ बना, उन्हें मृत्यु की घड़ी में भी न्याय एवं मानव अधिकारों से वंचित रखा गया."
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इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने फ़ादर स्टेन स्वामी के निधन को एक 'त्रासदी' बताया है.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, "उनकी त्रासद मौत ज्यूडिशियल मर्डर का केस है जिसके लिए गृह मंत्रालय और कोर्ट संयुक्त रूप से जवाबदेह हैं. "गुहा ने स्टेन स्वामी के काम को भी याद किया है. उन्होंने लिखा है, " फ़ादर स्टेन स्वामी पूरी ज़िंदगी वंचितों के लिए काम करते रहे."
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जेल में लगातार बीमार थे स्टेन स्वामी
हिरासत में लिए जाने के बाद महाराष्ट्र की तलोजा जेल में बंद किए गए स्टेन स्वामी ने बीते वर्ष जब अपनी बीमारी की वजह से एक याचिका में अदालत से 'स्ट्रॉ' और 'सिपर' की मांग की थी तो एनआईए ने अदालत को बताया था कि वो यह नहीं दे सकते.
दरअसल स्टेन स्वामी पार्किंसन्स डिज़ीज़ से ग्रसित थे. तंत्रिका तंत्र से जुड़े इस डिसऑर्डर में शरीर में अक्सर कँपकँपाहट होती है. मरीज़ का शरीर स्थिर नहीं रहता और संतुलन नहीं बना पाता. इसी वजह से स्टेन स्वामी को पानी का ग्लास पकड़ने में परेशानी होती थी.
पार्किंसन्स डिज़ीज़ के अलावा स्टेन स्वामी अपने दोनों कानों से सुनने की क्षमता लगभग खो चुके थे. कई बार वे जेल में गिर भी गए थे. साथ ही दो बार हर्निया के ऑपरेशन की वजह से उनके पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता था. ख़राब स्वास्थ्य की वजह से उन्हें जेल की अस्पताल में रखा गया था.
बीते कुछ महीनों से स्टेन स्वामी की तबीयत ख़राब होने की ख़बर लगातार आ रही थी. तबीयत ज़्यादा बिगड़ने पर उन्हें मुंबई में बांद्रा स्थित होली फैमिली हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. जहां सोमवार दोपहर उनका निधन हो गया.
"मौत की जवाबदेही तय की जानी चाहिए"
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने फादर स्टेन स्वामी के निधन पर दुख और आक्रोश प्रकट करते हुए लिखा, "बगैर किसी आरोप के यूएपीए लगा कर अक्तूबर 2020 से हिरासत में अमानवीय व्यवहार किया गया. हिरासत में हुई इस हत्या की जवाबदेही ज़रूर तय की जानी चाहिए."
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सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट करुणा नंदी लिखती हैं, "राज्य के हाथों क्रूर और अमानवीय व्यवहार सह कर उनकी मौत हिरासत में हुई. उनके प्रियजनों और सभी नागरिकों की जवाबदेही राज्य पर है. और उन व्यक्तियों की जिनके फ़ैसले ने उन्हें नुकसान पहुंचाया और मार डाला."
वहीं वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लिखा, "एक ताक़तवर भारतीय राज्य ने यूएपीए के तहत एक 84 वर्षीय बुज़ुर्ग को इसलिए गिरफ़्तार किया क्योंकि अपना जीवन आदिवासियों के बीच काम करते हुए बिताने के लिए उसने उन्हें आतंकवादी के रूप में देखा."
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भीमा कोरेगांव मामला
महाराष्ट्र के पुणे में भीमा कोरोगांव में 2018 में हुई हिंसा के सिलसिले में कई वामपंथी कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को गिरफ़्तार किया गया है.
भीमा कोरेगांव में अंग्रेज़ों की महार रेजीमेंट और पेशवा की सेना के बीच हुई लड़ाई में महार रेजीमेंट की जीत हुई थी.
दलित बहुल सेना की जीत की 200वीं वर्षगांठ के मौक़े पर यह हिंसा की घटना हुई थी.
उस घटना के साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद भी पुलिस अब तक कुछ भी साबित नहीं कर पाई है.
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