अफ़ग़ानिस्तान पर जयशकंर ने चीन और रूस के सामने कही अहम बात- प्रेस रिव्यू

 


जयशंकर

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अफ़ग़ानिस्तान में तेज़ी से बदल रहे हालात पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत ने बुधवार को कहा है कि दुनिया ताक़त और हिंसा के दम पर सत्ता हथियाने के ख़िलाफ़ है और 'जल्द से जल्द होने वाली शांतिवार्ता ही एकमात्र हल है.'

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने डूशानबे में संघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के दौरान ये बात कही है.

ताजिकिस्तान के डूशानबे में चल रहे एससीओ के सम्मेलन में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़, चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी भी शामिल थे.

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एस जयशंकर ने अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर किए गए कई ट्वीट में कहा है, ''दुनिया, इस इलाक़े और अफ़ग़ानिस्तान के लोग सभी यही चाहते हैं- एक स्वतंत्र, तटस्थ, एकजुट, शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक और समृद्ध राष्ट्र... अफ़ग़ानिस्तान का भविष्य उसका अतीत नहीं हो सकता है. एक नई पीढ़ी की उम्मीदें अलग हैं. हमें उन्हें निराश नहीं करना चाहिए.''

जयशंकर ने कहा, ''दुनिया हिंसा और ताक़त के दम पर सत्ता हथियाने के ख़िलाफ़ है. वो कभी इस तरह के कृत्यों को स्वीकार नहीं करेगी. एक स्वीकार्य समझौता ज़रूरी है जो दोहा प्रक्रिया (क़तर में चल रही बातचीत), मॉस्को फॉर्मेट (रूस के नेतृत्व में चल रही बातचीत) और इंस्ताबुंल प्रक्रिया (तुर्की के नेतृत्व में चल रही बातचीत) को प्रतिबिंबित करे.'

चीन

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जयशंकर ने कहा कि सरकारी प्रतिनिधियों और नागरिकों पर हमले रुकने चाहिए और बातचीत से संकट का समाधान निकलना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में सभी जातीय समूहों के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए और पड़ोसियों को आतंकवाद, चरमपंथ और अलगाववाद से ख़तरा ना हो.

पाकिस्तान की तरफ़ संकेत करते हुए जयशंकर ने कहा कि 'बहुत गंभीरता से काम करने की ज़रूरत है क्योंकि कुछ ताक़तें बिलDकुल अलग एजेंडे के साथ काम कर रही हैं.'

भारत ने कंधार से अपने वाणिज्यिक दूतावास से कर्मचारियों को वापस बुला लिया है और वह मज़ार-ए-शरीफ़ के हालात पर नज़र रखे हुए हैं. भारत का यहाँ भी वाणिज्यिक दूतावास है.

इससे पहले भारत ने हेरात और जलालाबाद वाणिज्यिक दूतावास से अपने कर्मचारियों को बुला लिया था. वहीं काबुल में भारतीय दूतावास अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रहा है.

राहुल गांधी

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खड़गे के हाथ में होंगे कांग्रेस का समन्वय

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को अधीर रंजन चौधरी की जगह अन्य विपक्षी दलों से समन्वय का नेतृत्व करने के लिए कहा है.

बुधवार शाम को कांग्रेस के संसदीय रणनीति समूह की बैठक हुई. इसमें सोनिया गांधी ने समान विचार वाले दलों के साथ कांग्रेस के समन्वय को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर की.

पार्टी के एक शीर्ष अधिकारी ने अख़बार को बताया, 'सोनिया गांधी ने ये ज़िम्मेदारी अब मल्लिकार्जुन खड़गे को दी है, आमतौर पर ये ज़िम्मेदारी विपक्ष के नेता के पास रहती है.'

कयास लगाए जा रहे थे कि राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता की ज़िम्मेदारी संभाल सकते हैं, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अभी अधीर रंजन चौधरी के पास ही ये ज़िम्मेदारी रहेगी.

कांग्रेस

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बैठक में शामिल रहे एक वरिष्ठ नेता ने बताया, 'अभी चौधरी को बदलने का कोई संकेत नहीं है. लोकसभा में पार्टी के नेता के तौर पर कई मुद्दों पर उन्होंने अपनी राय ज़ाहिर की.'

बुधवार को 90 मिनट चली बैठक में मॉनसून सत्र में उठाए जाने वाले मुद्दों पर भी चर्चा की गई है. इनमें मोदी सरकार की कोविड-19 प्रबंधन में हुई लापरवाहियां भी शामिल हैं.

इसके अलावा तेल के बढ़ते दाम, किसानों का प्रदर्शन और भारत चीन सीमा पर जारी विवाद को कांग्रेस ज़ोर शोर से उठाएगी. रफ़ाल विमानों की ख़रीद में हुआ कथित घोटाला भी संसद में गूंजेगा.

इस बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, वरिष्ठ नेता एके एंटनी, मल्लिकार्जुन खड़गे, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा, जयराम रमेश, केसी वेणुगोपाल आदि शामिल थे.

प्रशांत किशोर

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क्या कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं प्रशांत किशोर?

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कांग्रेस नेताओं में प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल होने की चर्चा है. एक दिन पहले ही किशोर ने सोनिया गांधी, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाक़ात की थी.

हालांकि ना ही प्रशांत किशोर और ना ही पार्टी के अन्य नेताओं ने उनके शामिल होने की पुष्टि की है. ये कयास पार्टी की ग्रीवांस सेल की प्रमुख और गांधी परिवार की क़रीबी मानी जाने वाली अर्चना डालमिया की ट्वीट के बाद लगाए गए. हालांकि डालमिया ने बाद में ट्वीट डिलीट कर दिया था.

डालमिया ने लिखा था, 'कांग्रेस परिवार में हार्दिक स्वागत है.'

प्रशांत किशोर इससे पहले उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब में कांग्रेस के लिए काम कर चुके हैं. कई मौक़ों पर उन्होंने पार्टी के काम करने के तरीक़ों की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की है.

पश्चिम बंगाल चुनावों में ममता बनर्जी की जीत और तमिलनाडु में डीएमके की जीत के बाद प्रशांत किशोर ने कहा था कि वो अब चुनावी अभियान में रणनीतिकार का काम छोड़ देंगे.

किशोर ने ममता बनर्जी के चुनावी अभियान की कमान संभाली थी जबकि उनकी टीम आई-पैक डीएमके का अभियान संभाल रही थी.

एनडीटीवी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, 'मैं अब वो नहीं करना चाहता जो मैं कर रहा हूँ. मैं पर्याप्त काम कर चुका हूँ. अब मेरे लिए ब्रेक लेने का समय है. मैं इस क्षेत्र से अलग होना चाहता हूँ.'

प्रशांत किशोर ने जनता दल यूनाइटेड में उपाध्यक्ष का पद संभाला था लेकिन नागरिकता संशोधन क़ानून पर उनका पक्ष पार्टी से अलग था. इसलिए उन्हें जदयू से निकाल दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट

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राष्ट्रद्रोह पर याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मांगी महाधिवक्ता से मदद

द टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ राष्ट्रद्रोह के मुद्दे पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल से मदद मांगी है.

रिटायर्ड मेजर जनरल एसजी वोमबाटकेरे ने आईपीसी 124ए के तहत राष्ट्रद्रोह के प्रावधान की संवैधानिक विवेचना की मांग की है.

पाँच दशक पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में आईपीसी की इस धारा को बरकरार रखा था. जनरल वोमबाटकेरे का तर्क है कि 124 ए संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी पर तर्कहीन प्रतिबंध है.

जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एस बोपन्ना की बैंच ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता पीबी सुरेश से कहा है कि याचिका की एक कॉपी महाधिवक्ता को सौंपी जाए. इस मुद्दे पर अदालत में आज फिर सुनवाई होगी.

मेजर वोमबाटकेरे कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हैं.

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के दौर में नागरिकों को अभिव्यक्ति की नई आज़ादी मिली है और वो सरकार के समर्थन में और सरकार के ख़िलाफ़ अपनी राय का इज़हार करते हैं.

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य बैंट ने जब 1962 के फ़ैसले में 124ए को बरकरार रखा था तब से लेकर अब तक अभिव्यक्ति की आज़ादी के मायने बदले हैं और इसी के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट को फिर से इसकी विवेचना करनी चाहिए.

मेजर वोमबाटकेरे का तर्क है कि सरकार 124ए का इस्तेमाल विरोध को दबाने के लिए कर रही है.

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