भारत-चीन सीमा विवादः क्या ‘एलएसी’ बन गया है ‘एलओसी’?
- सलमान रावी
- बीबीसी संवाददाता
भारत और चीन की सेना बीच पिछले साल गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से एलएसी यानी लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर तनाव पसरा हुआ है.
इस तनाव के चलते ही कुछ सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को चीन से लगी अपनी सीमा के पास बड़े पैमाने पर आधारभूत संरचना बढ़ाने की दिशा में उतनी ही तेज़ी से काम करना चाहिए जितनी तेज़ी से चीन ने किया है.
वैसे कुछ विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि भारत से लगी सीमा पर चीन ने सब कुछ अचानक नहीं किया है, बल्कि बीते दो दशक के दौरान उसने वहां धीरे-धीरे आधारभूत ढांचे तैयार किए हैं.
हाल ही में ब्लूमबर्ग में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत ने चीन से लगी सीमा पर सैनिकों की तादाद काफ़ी बढ़ा दी है. रिपोर्ट के मुताबिक़, "भारत ने चीन से लगी 'लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल' यानी 'एलएसी' पर पचास हज़ार अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया है.''
ब्लूमबर्ग ने उत्तर क्षेत्र के पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल डी एस हुडा के हवाले से कहा है कि दोनों तरफ़ से फ़ौजों की इतनी बड़ी तैनाती ही चिंताजनक है. उन्होंने कहा कि ऐसी सूरत में सीमा के दोनों छोर पर सेना के जवान अपना-अपना प्रभुत्व दिखाने की कोशिश करेंगे और इस क्रम में कोई छोटी-सी घटना भी स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर सकती है.
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हर 200 किलोमीटर पर हवाई पट्टी
सामरिक मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार अभिजीत मित्रा अय्यर ने बीबीसी से कहा, "देर से ही सही, भारत ने भी पिछले दो सालों से चीन से लगी सीमा पर काफ़ी काम करना शुरू किया है. हालांकि भारत और चीन की तुलना नहीं की जा सकती है."
वो कहते हैं, "चीन ने न केवल 'एलएसी' के साथ लगे अपने नियंत्रण वाले इलाकों में सड़कों का जाल बिछा दिया है, बल्कि उसने पूरी सीमा को हवाई पट्टियों से जोड़ने का काम भी किया है."
अय्यर चीन और भारत के बीच सामरिक मामलों पर लगातार अध्ययन करते रहे हैं. उनका कहना है कि चीन ने सीमावर्ती इलाकों पर प्रत्येक दो सौ किलोमीटर पर हवाई पट्टी बनायी है जहाँ से लड़ाकू विमान और हेलीकाप्टर उड़ान भर सकते हैं.
वो कहते हैं, "इतनी ऊँचाई पर ये सब कुछ विकसित करना निश्चित रूप से चीन की सैन्य शक्ति को मजबूती प्रदान करता है. सिर्फ़ तिब्बत के पठारी इलाकों में चीन ने हर 250 से 300 किलोमीटर की दूरी पर हवाई पट्टियां स्थापित की हैं जबकि अरुणाचल से लगे एलएसी के अपने नियंत्रण के इलाक़े में कहीं-कहीं पर इन हवाई पट्टियों की दूरी सिर्फ़ 100 से 150 किलोमीटर की है."
भारत के साथ लगी सीमा पर चीन की तरफ़ से कितने सैनिक तैनात हैं, इसका स्पष्ट पता नहीं है लेकिन भारतीय सैन्य खेमे में यह जानकारी ज़रूर पहुंची है कि चीन ने अपनी सैनिकों की मौजूदगी को कई गुना तक बढ़ाया है.
अय्यर कहते हैं, "पठार के दुर्गम इलाक़ों में लड़ाकू विमानों को तैनात करने और उन्हें बचाने के लिए 'बम प्रूफ बंकर' बनाए जाते हैं जो चीन ने किया है. इससे इन लड़ाकू विमानों को संभावित हमले की सूरत में बचाया जा सकता है. इसके अलावा सुरक्षा एजेंसियों को यह जानकारी भी मिली है कि चीन 'एलएसी' के इलाके में कई सुरंगें भी बना चुका है जिनका इस्तेमाल टैंकों और मिसाइल लाने ले जाने के काम में हो रहा है."
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने अपने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेंग वेन्बिंग के हवाले से लिखा है कि "चीन और भारत के बीच स्थिति सामान्य है और दोनों ही देशों के बीच सीमा पर स्थिति को और भी सामान्य बनाने के लिए बातचीत का सिलसिला जारी है."
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आपसी संबंधों में सुधार की उम्मीद?
शंघाई स्थित 'इंस्टिट्यूट फ़ॉर इंटरनेशनल स्टडीज़' के निदेशक ज़ाओ गेन्चेंग ने ग्लोबल टाइम्स से कहा है कि दोनों ही देशों को कमांडर स्तर की होने वाली 12वें दौर की वार्ता के लिए अच्छी तैयारी करनी चाहिए ताकि सीमा का विवाद ख़त्म हो सके और आपसी सम्बंधों में सुधार हो.
उन्होंने यह भी कहा कि यह अच्छी बात है कि दोनों देशों के बीच वार्ता के रास्ते बंद नहीं हुए हैं और दोनों ही देशों को इसका फ़ायदा उठाना चाहिए.
लेकिन सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हर्ष वी पंत मानते हैं कि "वार्ता असल में चीन की तरफ़ से दिया जाने वाला सबसे बड़ा झांसा है."
पंत के अनुसार 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा लगाते हुए चीन ने 1962 में युद्ध छेड़ा था. फिर पिछले पांच दशकों से भारत को लगता रहा कि पकिस्तान के साथ लगी सीमा ही सबसे ज़्यादा संवेदनशील है.
वो कहते हैं, "भारत ने अपनी सैन्य शक्ति को पाकिस्तान से होने वाले संभावित सुरक्षा के ख़तरों को देखते हुए ही पोज़िशन करता रहा है. जबकि चीन ने भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाए रखते हुए भी सीमा पर अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाना जारी रखा. पिछले दो दशकों में भारत राजनयिक संबंधों को सुधारने में लगा रहा और चीन ने सीमा पर अपनी गतिविधि जारी रखी. भारत मानता रहा कि चीन के साथ कोई ख़तरा नहीं है और सम्बंध बेहतर हैं. मगर यह सबसे बड़ी चूक रही और चीन भारतीय सीमा में अतिक्रमण करता रहा."
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चीन पर कैसे बढ़ेगा दबाव
जानकार मानते हैं कि चीन ने भारत को लेकर जो धारणा और रणनीति 1959 में बनायी थी, वो आज तक उसी पर क़ायम है. वो ये भी समझते हैं कि सेना के कमांडरों के स्तर पर होने वाली वार्ता बेशक जारी है, लेकिन उससे कोई समाधान निकलने वाला नहीं है. हालांकि अब ये चर्चा भी होने लगी है कि सीमा पर अगर भारत अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाना जारी रखे तो इस रणनीति का असर होगा.
हाल ही में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भारतीय सेना के मुखिया ने भी लद्दाख़ के इलाकों का दौरा किया और भारतीय सेना की स्थिति का जायज़ा लिया.
अय्यर कहते हैं कि अब जाकर भारत को ये अहसास हुआ है कि चीन की सेना से वैसी ही रणनीति से ही निपटा जा सकता है जैसी रणनीति चीन अपनाता रहा है.
वो कहते हैं कि भारत की सेना को इस तरह की रणनीति अपनाने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए कि अगर चीन भारत के अंदर फिर से घुसने की कोशिश करता है तो भारतीय फ़ौज भी 'एलएसी' को पार कर नए इलाक़े अपने क़ब्ज़े में ले सके.
'ग्लोबल टाइम्स' अख़बार के अनुसार इस साल की शुरुआत में ही चीन की सेना यानी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के 'शिन्जियांग मिलिट्री कमान' ने 'टाइप 15 श्रेणी के लाइट टैंक, हाउविटज़र, दूर तक मारक क्षमता रखने वाले रॉकेट लाँचर और एयर डिफेंस सिस्टम को, भारत से लगी सीमा पर तैनात करना शुरू कर दिया था.
इन सबको देखते हुए हर्ष पन्त का कहना है, "भारत को चाहिए कि वो अब एलएसी को ही 'एलओसी' यानी पाकिस्तान से लगी सीमा की तरह देखना शुरू कर दे और उसी हिसाब से फ़ौज को तैयार भी रखे क्योंकि 'एलएसी' ही अब नया 'एलओसी' बन गया है."
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