तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन काबुल एयरपोर्ट क्यों चाहते हैं?
तुर्की ने अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल स्थित हामिद करज़ई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुरक्षा संभालने की पेशकश की है.
तुर्की की ओर से ये प्रस्ताव एक ऐसे समय आया है जब अफ़ग़ानिस्तान में स्थितियां दिनों-दिन बिगड़ती जा रही हैं.
अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद से लेकर हेरात और कंधार समेत कई बड़े शहरों में तालिबान के लड़ाके और अफ़ग़ान सैनिक आमने-सामने हैं और हिंसक संघर्ष जारी है.
इसके साथ ही तालिबान लड़ाकों ने पाकिस्तानी सीमा पर स्पिन बोल्डाक, ईरान सीमा पर शेख अबु नसर फरेही और इस्लाम काला समेत कुछ अन्य अहम सीमावर्ती चौकियों पर कब्जा जमा लिया है. अफ़ग़ान सेना इन चौकियों को वापस हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़, विशेषज्ञ तुर्की के इस प्रस्ताव को अमेरिका से रिश्ते सुधारने की दिशा में एक बेहद जोख़िम भरी कोशिश के रूप में देख रहे हैं.
क्यों अहम है काबुल एयरपोर्ट?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अगले महीने के अंत तक अफ़ग़ानिस्तान से अपनी पूरी सेना वापस बुलाने का आदेश जारी किया है. इस तरह अमेरिकी सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान में 20 साल से जारी अपना दख़ल ख़त्म करने की घोषणा की है. अमेरिकी सेना ने चरणबद्ध ढंग से अफ़ग़ानिस्तान छोड़ना शुरू कर दिया है.
इसके साथ ही तालिबान लड़ाके तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है.
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति भवन समेत तमाम दूतावासों के नज़दीक स्थित ये हवाई अड्डा रणनीतिक रूप से काफ़ी अहम है.
सरल शब्दों में कहें तो ये एयरपोर्ट अफ़ग़ानिस्तान को दुनिया से जोड़ने का काम करता है.
ये एयरपोर्ट इस युद्धग्रस्त मुल्क तक मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए एक सुरक्षित रास्ता देता है.
टर्किश न्यूज़ वेबसाइट डेली सबाह के मुताबिक़, ये एयरपोर्ट संवेदनशील स्थिति पैदा होने पर विदेशी राजनयिकों को सुरक्षित बाहर निकालने का एकमात्र विकल्प है.
इस एयरपोर्ट पर तालिबान लड़ाकों का कब्जा होते ही अफ़ग़ानिस्तान एक हद तक दुनिया से कट जाएगा.
अचानक आए इस प्रस्ताव की वजह से पिछले महीने जून में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन को नेटो सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से पहली मुलाक़ात में ही बेहतर तालमेल बिठाने का मौक़ा मिला.
इस प्रस्ताव से अर्दोआन के दो उद्देश्य बताए जा रहे हैं.
पहला उद्देश्य पश्चिमी सहयोगियों के साथ एक ख़राब संबंधों में गर्मजोशी लाना और दूसरा उद्देश्य मानवीय सहायता पहुँचाने का रास्ता खुला रखकर शरणार्थी संकट से बचना है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी से जर्मन फाउंडेशन फ्रीडरिक एबर्ट स्टिफटंग की अफ़ग़ानिस्तान निदेशक मेगडालेना क्रिच ने कहा है, "अफ़ग़ानिस्तान की स्थिरता में तुर्की के हित जुड़े हुए हैं."
हालांकि, तुर्की के अधिकारी इस मिशन के राजनयिक पहलुओं को ज़्यादा अहमियत न देकर अफ़ग़ानिस्तान में यातनाओं को कम करने पर ज़ोर देते हैं.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़, तुर्की के एक राजनयिक सूत्र ने कहा है कि "हमारा उद्देश्य ये है कि अफ़ग़ानिस्तान बाहरी दुनिया के लिए बंद न हो जाए और ये अलग-थलग न पड़ जाए."
संयुक्त राष्ट्र ने इसी महीने बताया है कि लगभग 1.8 करोड़ लोग या आधी अफ़ग़ान आबादी को मदद की ज़रूरत है. इसके साथ ही पाँच साल से कम उम्र के बच्चों की आधी आबादी अति कुपोषित है.
हालांकि, अमेरिकी सरकार अभी भी तुर्की को इस अस्थिर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखती है.
लेकिन तुर्की की ओर से रूसी मिसाइल डिफेंस सिस्टम ख़रीदने के बाद से दोनों देशों के संबंधों में तनाव देखा गया है.
अभी नहीं हुआ अंतिम फ़ैसला?
इस प्रस्ताव को लेकर तालिबान गुट के अलग-अलग पक्षों की प्रतिक्रियाएं आई हैं.
लेकिन तुर्की की न्यूज़ वेबसाइट डेली सबाह में प्रकाशित एक ख़बर के मुताबिक़, अब तक इस मुद्दे पर अंतिम सहमति नहीं बनी है.
इस ख़बर में बताया गया है, "सूत्रों के मुताबिक़, इस मुद्दे पर अमेरिका और उन तमाम मुल्कों से बातचीत जारी है, जिन्हें इस मिशन में हिस्सा लेना है."
डेली सबाह से बात करते हुए सूत्रों ने ये भी बताया है कि तुर्की की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ एयरपोर्ट के संचालन और सुरक्षा से जुड़ी होगी. एयरपोर्ट के आसपास के क्षेत्र की सुरक्षा अफ़ग़ान सुरक्षाकर्मियों के कंधों पर होगी.
तुर्की के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस मिशन में सभी की उचित भागीदारी होनी चाहिए क्योंकि "अफ़ग़ानिस्तान में राजनयिक मिशनों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए इस एयरपोर्ट का सुरक्षित और अबाध ढंग से चलते रहना ज़रूरी है."
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने नेटो की बैठक के दौरान कहा था कि इस मिशन में तुर्की, पाकिस्तान और हंगरी को भी शामिल करना चाहता है.
तालिबान गुट तैयार नहीं
तालिबान ने इस मामले में तुर्की को चेतावनी देते हुए कहा है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद काबुल एयरपोर्ट की सुरक्ष संभालने के फ़ैसले के काफ़ी गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं.
अमेरिकी न्यूज़ समूह ब्लूमबर्ग के मुताबिक़, तालिबान गुट के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहेद ने पिछले हफ़्ते तुर्की से कहा था कि ये क़दम "ग़लत सलाह, हमारी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन और हमारे राष्ट्रीय हितों के ख़िलाफ़ है."
हालांकि, अफ़ग़ान सरकार ने कहा है कि हवाई अड्डों की सुरक्षा करना अफ़ग़ान सुरक्षाकर्मियों का काम है लेकिन अगर किसी भी मित्र देश से उन्हें मदद मिलती है तो वह उसका स्वागत करती है.
अमेरिका ने क्या कहा था?
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सालिवन ने पिछले महीने बताया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के बीच हुई बैठक में इस बात पर सहमति बनी है कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी जवानों की वापसी के बाद तुर्की काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाएगा.
हालांकि, सालिवन ने बताया था कि तुर्की के रूस से एस-400 मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम ख़रीदने के मुद्दे को लेकर सहमति नहीं बन पाई है. नेटो सहयोगियों के बीच यह मुद्दा काफ़ी समय से तनाव की वजह बना हुआ है.
सालिवन ने बताया था कि सोमवार को नेटो सम्मेलन के दौरान बाइडन और अर्दोआन के बीच हुई बैठक में अफ़ग़ानिस्तान मुद्दे पर चर्चा हुई. अर्दोआन ने इस दौरान एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए अमेरिका का सहयोग मांगा था और बाइडन ने कहा था कि वो उन्हें हर मदद मुहैया कराने को लेकर प्रतिबद्ध हैं.
सालिवन ने अमेरिका की ओर से बैठक की पहली जानकारी देते हुए कहा था, "नेताओं की ओर से साफ़ प्रतिबद्धता जताते हुए कहा गया कि तुर्की हामिद करज़ई अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाएगा और हम इस पर काम कर रहे हैं कि इसे कैसे अंजाम दिया जाए."
तालिबान से नाराज़ अर्दोआन
तालिबान ने पिछले सप्ताह तुर्की की काबुल एयरपोर्ट का संचालन करने की पेशकश को 'घृणित' बताया था. तालिबान ने कहा था- "हम अपने देश में किसी भी विदेशी सेना की किसी भी रूप में मौजूदगी को कब्ज़ा मानते हैं." पिछले हफ़्ते सोमवार को तुर्की के राष्ट्रपति ने इस्तांबुल में पत्रकारों से इस विषय में बात करते हुए कहा कि तालिबान का रवैया सही नहीं है.
अर्दोआन ने कहा था, "हमारी नज़र में, तालिबान का रवैया वैसा नहीं है, जैसा एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान के साथ होना चाहिए." उन्होंने तालिबान से अपील की थी कि वो दुनिया को जल्द से जल्द दिखाए कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाल हो चुकी है. उन्होंने कहा था,"तालिबान को अपने ही भाइयों की ज़मीन से कब्ज़ा छोड़ देना चाहिए."
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