सदियाँ हुसैन की हैं ज़माना हुसैन का



 आज आशुरा-ए-मुहर्रम है आज के ही दिन 1378 वर्ष पूर्व इराक के शहर कर्बला के मैदान में पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने अपने 72 प्रियजनों के साथ सत्य और न्याय तथा इस्लाम धर्म की रक्षा के लिए जो कुर्बानी दी थी उसे भुलाया नहीं जा सकता उन्होंने अपने और 72 लोगों को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दिया था और ये संदेश दिया था कि तुम जियो तो सिर्फ अल्लाह के लिए और करो तो उसी के लिए, इसलिए कि सबसे मुलवान जीवन वह है जो अल्लाह की राह में कुर्बान कर दी जाए।


 मनुष्यता और न्याय के हित में अपना सब कुछ लुटाकर भी कर्बला में हजरत इमाम हुसैन ने जिस अदम्य साहस की रोशनी फैलाई, वह सदियों से न्याय और उच्च जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ रहे लोगों की राह रौशन करती आ रही है। कहा भी जाता है कि ‘कत्ले हुसैन असल में मरगे यजीद हैं ध् इस्लाम जिन्दा होता है हर कर्बला के बाद।‘ इमाम हुसैन का वह बलिदान दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ही नहीं, संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। हुसैन महज मुसलमानों के नहीं, हम सबके हैं। 


 इस्लाम के प्रसार के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था - ‘मेरा विश्वास है कि इस्लाम का विस्तार उसके अनुयायियों की तलवार के जोर पर नहीं, इमाम हुसैन के सर्वोच्च बलिदान की वजह से हुआ।‘ नेल्सन मंडेला ने अपने एक संस्मरण में लिखा है - ‘कैद में मैं बीस साल से ज्यादा वक्त गुजार चुका था। एक रात मुझे ख्याल आया कि मैं सरकार की शर्तों को मानकर उसके आगे आत्मसमर्पण कर यातना से मुक्त हो जाऊं, लेकिन तभी मुझे इमाम हुसैन और करबला की याद आई। उनकी याद ने मुझे वह रूहानी ताकत दी कि मैं उन विपरीत परिस्थितियों में भी स्वतंत्रता के अधिकार के लिए खड़ा रह सका।‘ लोग सही कहते हैं कि न्याय के पक्ष में संघर्ष करने वाले लोगों की अंतरात्मा में इमाम हुसैन आज भी जिन्दा हैं, मगर यजीद भी अभी कहां मरा है ? यजीद अब एक व्यक्ति का नहीं, एक अन्यायी और बर्बर सोच और मानसिकता का नाम है। दुनिया में जहां कहीं भी आतंक, अन्याय, बर्बरता, अपराध और हिंसा है, यजीद वहां-वहां मौजूद है। यही वजह है कि हुसैन हर दौर में प्रासंगिक हैं। मुहर्रम उनके मातम में अपने हाथों अपना ही खून बहाने का नहीं, उनके बलिदान से प्रेरणा लेते हुए मनुष्यता, समानता, अमन, न्याय और अधिकार के लिए उठ खड़े होने का अवसर भी है और चुनौती भी।

 दुनिया में आज तक कोई ऐसा न कर सका 

 जो कर्बला में करके दिखाया हुसैन ने 

 मांगा था हाथ यजीद ने इनकार कर दिया 

 सर तो दिया, न सर को झुकाया हुसैन ने ।

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 एक पल की भी बस हुकुमत यज़ीद की

 सदियाँ हुसैन की हैं ज़माना हुसैन का।


अशरफ अस्थानवी

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