चीन आख़िर कोरोना को लेकर अब तक इतना सख़्त क्यों बना हुआ है?
- स्टीफ़न मैकडोनेल
- बीबीसी न्यूज़, बीजिंग
पूरी दुनिया में लोग लॉकडाउन के बाद की ज़िंदगी के अभ्यस्त हो रहे हैं. कोरोना वैक्सीन के आ जाने के बाद प्रतिबंधों में ढील दी गई है. लेकिन चीन, जहां से कोरोना फैलना शुरू हुआ, वहां अभी भी इसे लेकर एक सख़्त नीति बनी हुई है.
एक व्यक्ति कुछ पूछने के लिए एक फ़ाइव स्टार होटल में गया तो उसे दो हफ़्तों के लिए क्वारंटीन कर दिया गया. वो इसलिए कि होटल के एक गेस्ट का संपर्क कोरोना के कुछ संक्रमितों से था.
एक हाईस्पीड ट्रेन के चालक दल के एक सदस्य का किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ नजदीकी संपर्क था. इसलिए उस ट्रेन के सभी यात्रियों को सामूहिक परीक्षण के लिए क्वारंटीन कर दिया गया.
शंघाई डिज़्नीलैंड में गए 33,863 लोगों का अचानक ही कोरोना टेस्ट करवाना पड़ा, क्योंकि एक दिन पहले वहां पहुंचे एक गेस्ट कोरोना संक्रमित पाए गए थे.
इस तरह चीन अपने यहां ज़ीरो-कोविड वाली स्थिति को स्थायी बनाने की कोशिश कर रहा है. चीन कोरोना महामारी से निपटने के लिए प्रतिबंध लगाने वाला दुनिया का पहला देश था. और लगता है कि वो इन प्रतिबंधों में ढील देने वाले कुछ अंतिम देशों में होगा.
जब आप चीन के आम नागरिकों से बात करते हैं, तो आप पाएंगे कि वहां के अधिकांश लोग वायरस को नियंत्रित करने वाले सख़्त उपायों को लेकर परेशान नहीं हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें सुरक्षित रखने के लिए ऐसा किया जा रहा है.
मैंने एक महिला से पूछा कि क्या चीन में गतिविधियों को तेज़ी से खोल देना चाहिए, तो उन्होंने कहा कि जब तक महामारी ठीक से ख़त्म नहीं हो जाती, तब तक इंतज़ार करना हमारे लिए बेहतर होगा, क्योंकि सुरक्षा सबसे अहम है.
वहीं काम ख़त्म करके अपने घर जा रही एक दूसरी महिला ने मुझे बताया कि वायरस के बारे में अभी पूरी जानकारी नहीं मिल पायी है और वैक्सीन में सुधार की गुंजाइश है. ऐसे में ख़ुलेपन को रोकना अभी सबसे अच्छा उपाय है.
अब से कुछ वक़्त पहले, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और सिंगापुर जैसे दूसरे देश भी कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रहे थे. और तब वहां के शहरों को वायरस का प्रसार रुकने तक लॉकडाउन में रखा गया. ऐसा करने का मकसद वायरस के स्थानीय प्रसार को शून्य करना था.
इस नज़रिए को दो चीज़ों ने बदल दिया. पहली चीज़ ये कि वायरस का डेल्टा संस्करण सामने आया, जिसे नियंत्रित करना बहुत कठिन था. और दूसरी अहम बात बड़ी तादाद में लोगों का टीकाकरण हो जाना रही.
अधिकांश लोगों के टीकाकरण का मतलब ये हुआ कि लोग अभी भी वायरस के संपर्क में आ सकते हैं, लेकिन उन्हें अस्पताल जाने की ज़रूरत नहीं रह गई. इसका नतीजा, ये हुआ कि अब हर जगह सीमाओं को अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए खोला जा रहा है.
हालांकि चीन में विदेशियों के लिए वीज़ा पाना अभी कठिन बना हुआ है. साथ ही, चीनी नागरिकों के पासपोर्ट पुराने हो जाने के बाद भी अपडेट नहीं हो रहे.
भले और देशों में लोग "वायरस के साथ जीने लगे" हैं, लेकिन चीन में ऐसा नहीं हो रहा. वहां डेल्टा वैरिएंट के संक्रमण का एक और दौर अभी चल रहा है. आधिकारिक आंकड़े यदि सही हैं, तो अक्टूबर से अब तक चीन में 1,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं.
हालांकि ये आंकड़े बहुत अधिक नहीं है, पर वहां के 21 राज्य चीन कोरोना से प्रभावित हैं. ये इसलिए भी मायने रखता है कि कुछेक मामले मिलने पर भी चीन उतना ही सख़्त कदम उठाएगा, जैसे कि सैकड़ों या हजारों मामले मिलने पर उठाता.
'संक्रमण का एक भी मामला स्वीकार नहीं'
प्रशासन ने इस नज़रिए को बदलने की कोई कोशिश नहीं की. यहां तक कि चीन के कुछ वैज्ञानिकों ने भी इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया.
हांगकांग यूनिवर्सिटी के एक वायरोलॉजिस्ट और सरकार के सलाहकार प्रोफ़ेसर गुआन यी ने न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (जो संक्रमण का पता लगाते हैं) से एंटीबॉडी टेस्ट (जो टीकों का असर समझने में मदद कर सकते हैं) की ओर जाने की गुज़ारिश की.
फ़ीनिक्स टीवी को दिए एक साक्षात्कार में गुआन यी ने कहा कि इस बात की कोई संभावना नहीं है कि लंबे समय में 'शून्य-संक्रमण' की रणनीति कोरोना संक्रमण को पूरी तरह ख़त्म करने में मददगार होगी.
उन्होंने कहा, "वायरस अब स्थायी हो चुका है. ये इन्फ़्लूएंजा जैसा ही है, जो लंबे समय तक इंसानों में फैलता रहेगा."
यह संकल्पना दूसरे देशों को हैरान नहीं करने वाली है. लेकिन चीन की सरकार ने संक्रमण के हर नई उछाल के साथ इसे शून्य तक ले जाने की कोशिश की है. इसे बदलना काफ़ी कठिन है.
ये पूछे जाने पर कि चीन के टीके वायरस के म्यूटेंट स्ट्रेन के ख़िलाफ़ कितनी कारगर होंगे, प्रो. गुआन ने कहा कि इसका जवाब वैक्सीन उत्पादकों को देना चाहिए.
चीन की सरकार के निर्देशों पर सवाल उठाने वाले शिक्षाविदों में वो अब अकेले नहीं हैं. न्यूयॉर्क के काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के डॉ. हौंग यानज़ोंग कहते हैं कि एक प्रमुख समस्या ये है कि वैक्सीन से वो हासिल नहीं हो सकता, जैसा चीन की सरकार चाहती है.
बीबीसी को उन्होंने बताया, "टीकों के असर यानी संक्रमण रोकने की क्षमता को लेकर वे आश्वस्त नहीं हैं. वो इसलिए कि सबसे अच्छे टीके भी वास्तव में संक्रमण नहीं रोक सकते. लेकिन बिल्कुल भी बरदाश्त न करने की नीति कहती है कि हम एक भी संक्रमण स्वीकार नहीं कर सकते."
डॉ. हौंग ने बताया कि चीन की सरकार ने लोगों को अपनी सफलता की कहानी बताते हुए ख़ुद को एक राजनीतिक और वैचारिक बंधन में बंधा पाया है.
वो कहते हैं, "बिल्कुल बरदाश्त न करने की रणनीति भी आधिकारिक नैरेटिव का हिस्सा है. इससे चीन की राजनीतिक व्यवस्था के टॉप पर बैठे लोगों को महामारी से जूझने के मॉडल की सफलता का दावा किया जा सके. इसलिए यदि इस रणनीति को छोड़ देने पर मामले यदि बढ़ते हैं तो लोग फिर इस मॉडल पर सवाल उठाएंगे."
'पाबंदियों के कारण कई लाख हैं'
आने वाले वक़्त में बीजिंग में कई बड़े आयोजन होने वाले हैं. अधिकारियों की बड़ी चाह है कि ऐसे कार्यक्रम कोरोना प्रकोप से मुक्त वातावरण में आयोजित हो.
सबसे निकट फ़रवरी में होने वाला शीतकालीन ओलंपिक है. अभी टिकटों की बिक्री शुरू नहीं हुई है, लेकिन स्टेडियम में दर्शकों को बुलाने का लक्ष्य है.
वहीं अगले साल के अक्टूबर में कम्युनिस्ट पार्टी की पांच साल पर होने वाला अधिवेशन है. उम्मीद है कि इसी अधिवेशन में शी जिनपिंग के ऐतिहासिक तीसरे कार्यालय पर मुहर लग जाएगी. बेशक़ हमेशा कुछ न कुछ होता ही रहेगा.
इस रणनीति को अपनाने की एक और वजह ये बताई जा रही है कि शी जिनपिंग की सरकार देश में विदेशी प्रभाव को कम करना चाहती है. और महामारी ने इस लक्ष्य को पाने का एक अच्छा बहाना दिया है.
सोशल मीडिया पर डाले गए कई पोस्ट में राष्ट्रवादियों ने "चीन के" काम करने के तरीके पर अंतरराष्ट्रीय असर होने की निंदा की है.
निश्चित तौर पर सरकार का जोर अब "सुधार और खुलेपन" के सिद्धांत पर न होकर कम्युनिस्ट पार्टी और उनके नेता शी जिनपिंग को हर चीज के केंद्र में रखने पर हो गया है.
बीबीसी ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन से पूछा कि दूसरे देश अपनी सीमाएं खोल रहे हैं, लेकिन चीन ऐसा कब कर रहा है. इस पर उन्होंने जवाब दिया कि चीन दूसरे देशों के अनुभव को देखकर नए वैरिएंट्स के बारे में विज्ञान की राय के अनुसार अपने फ़ैसले लेगा.
इस तरह, यहां की सत्ता में बैठे लोगों के क़रीब विशेषज्ञ शून्य-संक्रमण की रणनीति के हाल-फिलहाल ख़त्म होने का कोई संकेत नहीं दे रहे हैं. वास्तव में, संकेत इसके बिल्कुल विपरीत हैं.
सरकार जल्द पाबंदियां हटाने के मूड में नहीं
डॉ. झोंग नानशान को चीन में चिकित्सा जगत के हीरो के तौर पर देखा जाता है. सांस की बीमारी के इस विशेषज्ञ ने 2003 में उस समय की सरकार की मान्यता को चुनौती देकर पूरी दुनिया में प्रसिद्धि हासिल की थी. सरकार का मानना था कि सार्स वायरस का प्रकोप बहुत गंभीर नहीं है.
अब लोग और अधिकारी भी उनकी बात को गौर से सुनते हैं कि वो क्या कह रहे हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि कोरोना पर चीन के सख़्त कदम "लंबे समय तक" बने रहेंगे.
उन्होंने कहा, ''कोरोना से मरने वालों की 2 फ़ीसदी की वैश्विक दर चीन के लिए बहुत अधिक है, भले इसके टीके अब उपलब्ध हैं. बहुत जल्दी सब कुछ खोल देने की लागत उपयोगी नहीं थी. चीन "कोरोना के साथ जीने" की दूसरे देशों की नीति को गौर से देख रहा होगा.''
ये मानना भी ज़रूरी है कि चीन के अधिकारी अपने दृष्टिकोण में रूढ़िवादी हो सकते हैं. ये भी हो सकता है कि वे देश को "फिर से खोलने" की योजना बना रहे हों पर कोई जल्दबाज़ी में न हों.
जो लोग चीन आना या वहां से बाहर जाना चाहते हैं, उनके लिए इंतज़ार करने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं है. भले मध्य और उच्च वर्ग के लोग दुनिया में घूमने की आज़ादी की कमी का दुख मना रहे हों, लेकिन वहां के आम लोग स्वस्थ रहने के लिए सरकार को अपने फ़ैसले लेने की अनुमति देने के लिए तैयार हैं.
इस बीच, बड़े पैमाने पर टेस्टिंग, क्वारंटीन, आवाजाही पर नियंत्रण, ऊंचे स्तर की निगरानी के साथ सख़्त लॉकडाउन की नीति चीन के लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बना रहेगा.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
Comments