श्रीनगर मुठभेड़ में कारोबारियों की मौत से जुड़े पुलिस के दावे पर सवाल
- माजिद जहांगीर
- जम्मू से, बीबीसी हिंदी के लिए
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर में बीते सोमवार को एक विवादित मुठभेड़ में चार लोगों की मौत के बाद पुलिस ने चरमपंथियों के एक मॉड्यूल को सामने लाने का दावा किया है.
हालांकि, मारे गए चार लोगों में से तीन के परिजन पुलिस के इस दावे पर सवाल उठा रह हैं. परिजन ने मारे गए तीन लोगों को "निर्दोष" बताया है और उनके शवों को वापस करने की मांग की है.
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.
बीते सोमवार को पुलिस ने शाम के क़रीब छह बजे एक ट्वीट में बताया "श्रीनगर के हैदरपोरा में मुठभेड़ शुरू हो गई है, पुलिस और सुरक्षाकर्मी जुटे हैं."
कुछ समय बाद पुलिस ने एक चरमपंथी को मारने का दावा करते हुए एक दूसरे ट्वीट में बताया, "एक अज्ञात चरमपंथी को मारा गया है." कुछ ही समय के बाद पुलिस ने अपने एक और ट्वीट में बताया कि एक और अज्ञात चरमपंथी को मारा गया है.
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पुलिस ने देर रात एक और ट्वीट में कहा, "मकान का मालिक जो चरमपंथियों की गोली लगने से ज़ख़्मी हुआ था, उसकी मौत हो गई है. चरमपंथी मकान की ऊपरी मंज़िल पर छुपे हैं. सूचना के मुताबिक़ ये व्यक्ति चरमपंथियों का साथी था."
परिजन ने क्या कहा
मारे गए शख़्स अल्ताफ़ अहमद बट के भाई ने बीबीसी को बताया, "मेरा भाई बीते कई वर्षों से अपना काम कर रहा था. जहाँ उनकी दुकान थी वहां तो हमेशा सुरक्षाबल तैनात रहते हैं. ये उस दिन पांच बजे की घटना है. मेरा भाई अल्ताफ़ अहमद दुकान पर बैठा था. कुछ सुरक्षाकर्मी आ गए और उन्होंने उनसे कहा कि दुकान का शटर बंद करो. उसके बाद उन्हें पास में एक मोटरसाइकिल के शोरूम में ले गए और वहां उनको रखा और भी कई लोगों को वहां रखा."
"क़रीब तीस लोगों को इस शोरूम में रखा गया था. आमिर और मुदासिर को भी शोरूम में रखा गया था. फिर मेरे भाई को कहा कि तलाशी अभियान है और बिल्डिंग की तलाशी लेनी है. अल्ताफ़ अहमद साथ गए और बिल्डिंग की तलाशी ली. तलाशी लेकर वापस आ गए और फिर उनको शोरूम में बिठाया गया."
एक चश्मदीद ने बताया, "क़रीब पांच बजे दो गाड़ियों में पुलिस और सेना के लोग साधारण लिबास ड्रेस में आ गए और हम सब लोगों (क़रीब तीस लोग ) के मोबाइल फ़ोन छीने गए और पचास मीटर दूर एक मोटरसाइकिल शोरूम में रखा गया. हमारे मोबाइल फ़ोन कई घंटों के बाद वापस किए गए. अल्ताफ़ को दोबारा बिल्डिंग में ले जाया गया. इस बार अल्ताफ़ के साथ मुदासिर को भी ले जाया गया और बीस मिनटों के बाद हमने गोलियों की आवाज़ सुनी. उसके बाद वह वापस नहीं आए."
एक और चश्मदीद ने बताया, "पांच बजे के क़रीब फरान पहनकर ( कश्मीरी लिबास) कुछ सुरक्षाकर्मी आए, सबके फ़ोन छीने, कुछ समय के बाद अल्ताफ़ और मुदासिर को ले गए और कुछ समय के बाद फायरिंग हुई और दोनों वापस नहीं आए."
मुदासिर गुल की पत्नी हुमैरा गुल ने बुधवार को श्रीनगर में प्रदर्शन कर मांग की है कि ये साबित किया जाए कि उनके पति चरमपंथियों की मदद करते थे. हुमैरा गुल ने बताया कि उनके पति एक डेंटिस्ट थे और उनका पूरा नाम डॉक्टर मुदासिर गुल है.
'चरमपंथियों के ख़िलाफ़ काम किया'
सोमवार की घटना में 24 वर्ष के आमिर मगरे की भी मौत हुई जो डॉक्टर मुदासिर गुल के पास एक हेल्पर के रूप में काम करते थे. आमिर के पिता अब्दुल लतीफ़ मगरे ने बीबीसी को बताया कि वो इस साल मई से मुदासिर गुल के पास काम करते थे.
उन्होंने बताया "मेरा बेटा देवबंद दारुलउलूम में पढ़ता था. जब कोरोना का पहला लॉकडाउन हुआ तो आमिर वापस घर लौट आया था. उसके बाद वह डॉक्टर गुल के पास काम के लिए श्रीनगर गया. मेरी बेटी और दामादा उसी बिल्डिंग में किराए पर रहते थे जहाँ डॉक्टर गुल का दफ्तर था. उनके ज़रिए आमिर को काम मिला. पुलिस ने घटना के दूसरे दिन हमें फ़ोन कर श्रीनगर बुलाया और बेटे की पहचान करवाई. मैंने जब आधार कार्ड देखा तो वह मेरा बेटे का था. पुलिस ने कहा कि बेटे की लाश नहीं मिलेगी क्योंकि वह चरमपंथी था."
वर्ष 2005 में चरमपंथियों ने मगरे के घर पर हमला किया था जिसमें उनके भाई की मौत हो गई थी और मगरे खुद घायल हो गए थे. मगरे ने अपने बचाव में पत्थर मारकर एक चरमपंथी की हत्या भी की थी.
मगरे कहते हैं कि अगर ये सच साबित हुई कि उनका बेटा चरमपंथी था तो उनको और उनके परिवार को भी मार डाला जाए.
फिलहाल ज़िला रामबाण के ठिठरका इलाक़े के रहने वाले मगरे के घर पर सुरक्षाकर्मी तैनात हैं.
वो कहते हैं कि वह पूरी उम्र हिंदुस्तानी रहे हैं और सेना के साथ मिलकर चरमपंथियों के ख़िलाफ़ काम किया है.
पुलिस ने क्या बताया
हैदरपोरा में मारे गए चार लोगों को श्रीनगर से क़रीब 70 किलोमीटर दूर हिंदवारा में दफ़नाया गया है.
बीते दो-तीन वर्षों से पुलिस किसी भी मारे गए चरमपंथी की लाश परिजनों के हवाले नहीं करती है. मारे गए तीन लोगों के घरवालों ने शव वापस किए जाने की मांग की है.
कश्मीर के इंस्पेक्टर जनरल विजय कुमार ने मंगलवार को श्रीनगर में एक प्रेस सम्मेलन में बताया, "हम लोगों को पूरी लोकेशन की जानकारी नहीं थी. मकान मालिक और किरायेदार को बुलाया गया. मकान मालिक का नाम अल्ताफ़ अहमद डार है और जो वहाँ से बिज़नेस करते थे उसका नाम मुदासिर गुल है. दोनों ने दरवाज़े को खटखटाया लेकिन चरमपंथियों ने दरवाज़ा नहीं खोला. चरमपंथियों ने दरवाज़ा खोलकर अंधाधुंध फ़ायरिंग शुरू की."
"आत्मरक्षा में हमारी सर्च पार्टी ने भी फ़ायरिंग की और एनकाउंटर शुरू हो गया. फिर हम लोगों ने एनकाउंटर को रोका और कोशिश की कि वहां से दो आम नागरिकों को निकालें. लेकिन जिस जगह वह खड़े थे, वहां से निकलना बहुत मुश्किल था. चरमपंथियों की फायरिंग से दोनों ज़ख़्मी हो गए और मारे गए. एनकाउंटर में दो आतंकवादी मारे गए. उनमें से एक का नाम बिलाल उर्फ़ हैदर है जो पाकिस्तानी है और दूसरा स्थानीय है जो शायद बनिहाल या रामबाण का है. हम उनके घरवालों को बुला रहे हैं ताकि वह उनकी पहचान करें. "
विजय कुमार का कहना था कि अल्ताफ़ अहमद ने मुदासिर गुल को तीन कमरे किराए पर दिए थे. उन्होंने कहा, "मुदासिर गुल एक कारोबारी था और एक ग़ैर-क़ानूनी कॉल सेंटर चला रहा था. वहां से हमें बहुत सामान मिला है."
कुमार ने कहा कि उन्हें दो पिस्तौल, तीन मैगज़ीन, छह मोबाइल फ़ोन और कपड़े मिले हैं. विजय कुमार ने ये भी बताया कि मुदासिर बिज़नेस करने की आड़ में चरमपंथियों का मॉड्यूल चला रहे थे और दक्षिणी कश्मीर से उत्तरी कश्मीर तक चरमपंथियों को लाते थे और अपने घर में रखते थे.
उनका ये भी कहना था कि हाल ही में उनके एक पुलिसकर्मी को श्रीनगर के मुख्य इलाक़े में गोली मारी गई थी जिसमें मारा गया चरमपंथी शामिल था. कुमार का ये भी कहना था कि मुदासिर ही अपनी गाड़ी में उस चरमपंथी को हैदरपोरा अपने दफ्तर तक लाया था.
राजनीतिक दलों ने क्या कहा?
सीपीआई(एम) के नेता यूसफ़ तारिगामी ने हैदरपोरा मामले की न्यायिक जाँच की माँग की है और कहा है कि परिवारवालों को शव वापस किए जाएं.
पूर्व मख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ़्रेंस नेता उमर अब्दुल्लाह ने ट्वीट कर बताया है कि "हैदरपोरा एनकाउंटर में निष्पक्ष जाँच की ज़रूरत है. एनकाउंटर में मारे गए लोगों और एनकाउंटर के हवाले से कई सवाल उठ रहे हैं."
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पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने भी ट्वीट कर कहा है "निर्दोष नागरिकों को मानव ढाल के रूप में उपयोग करना, उन्हें क्रॉस फायरिंग में मारना और फिर आसानी से उन्हें ओजीडब्ल्यू के रूप में लेबल करना अब भारत सरकार की नियम पुस्तिका का हिस्सा है. यह आवश्यक है कि सच्चाई को सामने लाने और दण्ड से मुक्ति की इस प्रचलित संस्कृति को समाप्त करने के लिए एक विश्वसनीय न्यायिक जांच की जाए."
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