अमेरिका का एक शहर जिसका प्रशासन है मुसलमानों के हाथ

 


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  • बीबीसी न्यूज़, मिशीगन
अमेरिका का हैमट्रैम्क शहर

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मिशीगन के हैमट्रैम्क शहर की गलियों से होकर गुज़रने पर लगता है जैसे आप पूरी दुनिया ही घूम रहे हों.

यहां पोलैंड का सॉसेज स्टोर, पूर्वी यूरोप की बेकरी, यमन का डिपार्टमेंटल स्टोर और बंगाली कपड़ों की दुकान सब एक कतार में दिखते हैं. वहीं चर्च की घंटियों और अज़ान की आवाज़ एक साथ आती है.

हैमट्रैम्क के 5 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में तीस से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं. दो वर्ग मील के इस शहर के बारे में कहा जाता है कि ये अपने आप में पूरी दुनिया है और यहां आकर ऐसा लगता भी है.

28 हज़ार की आबादी के इस मध्य-पश्चिमी शहर ने इस सप्ताह इतिहास रचा है. यहां की सिटी काउंसिल में सभी मुसलमान चयनित हुए हैं. यहां मेयर भी मुसलमान है. ये अमेरिका का पहला शहर बन गया है जहां का नगरीय प्रशासन मुसलमानों के हाथों में है.

एक समय यहां मुसलमानों को भेदभाव का सामना करना पड़ा था. अब वो यहां की बहुनस्लीय समुदाय का अहम हिस्सा बन चुके हैं. शहर की आधी आबादी इस समय मुसलमान है.

आर्थिक चुनौतियों और गंभीर सांस्कृतिक बहसों के बावजूद इस शहर के लोग शांति और प्यार से रहते हैं.

अमेरिका में विविधता बढ़ रही है और इस शहर को बेहतर भविष्य के उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन सवाल ये है कि क्या हैमट्रैम्क एक अपवाद बनकर रह जाएगा?

जर्मन प्रवासियों का ये शहर अमेरिका में पहला मुस्लिम बहुल शहर भी है.

यहां दुकानों के बाहर अरबी और बंगाली में बोर्ड लगे होते हैं. बांग्लादेशी कपड़े शान से बिकते हैं. यही नहीं मुसलमान शहरवासी पोलेंड के कस्टर्ड भरे डोनट पाज्क़ी खाने के लिए कतार में खड़े नज़र आते हैं.

अमेरिका का हैमट्रैम्क शहर

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'अलग है पहचान'

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डेट्रायट की सरहद से लगा ये शहर किसी दौर में अमेरिकी के कार उद्योग का केंद्र था. यहां जनरल मोटर्स के बड़े प्लांट थे जो 'मोटरसिटी' की सरहद से लगे थे. कैडिलैक की लग्ज़री कार एल्डोराडो 80 के दशक में हैमट्रैम्क के प्लांट से ही निकली थी.

बीसवीं शताब्दी में यहां पौलैंड से आए लोग बसे और इसे लिटिल वॉरसॉ कहा जाने लगा. 1987 में जब पोलौंड में जन्मे पोप जॉन पॉल द्वितीय ने अमेरिका का दौरा किया था तब वो यहां भी आए थे. 1970 के दशक में इस शहर में रहने वाले 90 फ़ीसदी लोग पोलैंड मूल के थे.

लेकिन अगले कुछ दशकों में जब अमेरिका के कार उद्योग का पतन होना शुरू हुआ तो पोलैंड मूल के अमीर युवा लोग यहां से बाहर जाने लगे. इस बदलाव ने हैमट्रैम्क को मिशीगन के सबसे ग़रीब शहरों में शामिल कर दिया. लेकिन यहां के सस्ती जीवनशैली ने प्रवासियों को ज़रूर अपनी ओर आकर्षित किया.

बीते तीस सालों में ये शहर फिर से बदल गया है. यहां अरब और एशियाई मूल के प्रवासी बड़ी संख्या में आ रहे हैं, ख़ासकर यमन और बांग्लादेश से. इस समय शहर की 42 फ़ीसदी आबादी ऐसी है जो अमेरिका के बाहर पैदा हुई. माना जाता है कि शहर में आधे से अधिक लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं.

हैमट्रैम्क की नई नगरीय सरकार शहर की बदलती आबादी को भी प्रतिबिंबित करती है. काउंसिल में अब दो बंगाली सदस्य हैं, तीन यमन मूल के अमेरिकी हैं जबकि एक पोलैंड मूल के हैं जिन्होंने हाल ही में इस्लाम को अपनाया है.

68 फ़ीसदी वोट हासिल करके अमीर ग़ालिब अमेरिका में पहले यमन मूल के मेयर बने हैं. 41 साल के ग़ालिब कहते हैं, "मुझे गर्व है और मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं लेकिन ये एक बड़ी ज़िम्मेदारी है."

यमन के एक गांव में पैदा हुए ग़ालिब 17 साल की उम्र में अमेरिका पहुंचे थे. उन्होंने हैमट्रैम्क के पास कार के प्लास्टिक के पुर्जे बनाने वाली एक फ़ैक्ट्री में काम शुरू किया था. बाद में उन्होंने अंग्रेज़ी सीखी और मेडिकल ट्रेनिंग हासिल की. अब वो हेल्थकेयर क्षेत्र में काम करते हैं.

काउंसिल के लिए चुनी गई अमांडा जैकोव्स्की कहती हैं, "ये कोई मेल्टिंग पॉट का सलाद बोल नहीं है बल्कि ये शहर सात परतों में बने केक जैसा है जिसकी हर परत की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान है, बावजूद इसके कि लोग एकदूसरे के साथ मिलजुल कर रह रहे हैं."

अमांडा काउंसिल के लिए चुनी गई हैं

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अमांडा काउंसिल के लिए चुनी गई हैं

'लोगों के बीच मतभेद भी हैं'

29 साल की जैकोवस्की कहती हैं, "जब आप एक दूसरे के इतने करीब रहते हैं तो आप आपसी मतभेदों से ऊपर उठ ही जाते हैं."

लेकिन ये शहर किसी 'डिज़्नीलैंड की तरह' नहीं है. 15 साल तक मेयर पद पर रही कैरेन माजेव्स्की कहती हैं कि ये एक छोटा,सा शहर है जहां लोगों के बीच मतभेद भी हैं.

2004 में मतदान के ज़रिए शहर में इस्लाम में प्रार्थना के आग्रह यानी अज़ान को अनुमति दी गई थी. तब कुछ तनाव भी पैदा हुआ था. कुछ शहरवासी ये भी कहते हैं कि मस्जिदों के नज़दीक बार पर प्रतिबंध लगाने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचती है.

6 साल पहले जब हैमट्रैम्क ने पहली मुस्लिम बहुल सरकार को चुना था तो दुनियाभर का मीडिया यहां आया था. उस समय कुछ मीडिया रिपोर्टों में इसे एक तनावपूर्ण शहर बताया गया था जहां भारी तादाद में प्रवासी आ रहे थे.

एक टीवी एंकर ने तो पूर्व मेयर माजेव्स्की से ये तक पूछा था कि क्या उन्हें मेयर बनते हुए डर लग रहा है. कुछ ने ये अंदेशा ज़ाहिर कर दिया था कि मुसलमान बहुल काउंसिल शहर में शरिया व्यवस्था घोषित कर सकती है.

माजेव्स्की कहती हैं, "यहां लोग इस तरह की बातों पर नज़रें फेर लेते हैं."

मुसलमान

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'मुसलमानों को लेकर राय नकारात्मक'

वो इस बात को लेकर संतुष्ट हैं कि यहां के लोग एकदूसरे का स्वागत करते हैं. वो कहती हैं कि ये सहज है कि नागरिकों ने उन लोगों को चुना जो उनकी संस्कृति और भाषा को बेहतर ढंग से समझते हैं.

अमेरिका में जनगणना विभाग लोगों के धर्म के आंकड़े नहीं जुटाता, लेकिन थिंकटैंक प्यू रिसर्च सेंटर का अनुमान है कि अमेरिका में क़रीब 38.5 लाख मुसलमान रहते हैं. यानी अमेरिका में मुसलमानों की कुल आबादी के क़रीब 1.1 फ़ीसदी है.

एक अनुमान के मुताबिक़ साल 2040 तक अमेरिका में ईसाइयों के बाद मुसलमान दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह बन जाएंगे.

अपनी बढ़ती मौजूदगी के बावजूद अमेरिका में मुसलमानों को कई तरह के पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है. 9/11 हमलों के बीस साल बाद भी मुसलमानों को इस्लाम के प्रति नफ़रत का सामना करना पड़ता है.

प्यू के शोध में शामिल होने वाले लगभग आधे युवा मुसलमानों का कहना था कि पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के मुस्लिम बहुल देशों के प्रवासियों के अमेरिका आने पर रोक लगाने के बाद उन्हें किसी ना किसी तरह से भेदभाव का सामना करना पड़ा था.

शोधकर्ताओं ने पाया कि अमेरिका के सभी धार्मिक समूहों में मुसलमानों को लेकर अमेरिकी जनता की राय सबसे नकारात्मक है.

हैमट्रैम्क में बनी एक कलाकृति जिसमें महिला हिजाब पहने दिख रही है
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हैमट्रैम्क में बनी एक कलाकृति जिसमें महिला हिजाब पहने दिख रही है

आधे से अधिक अमेरिकी लोगों का कहना है कि वो व्यक्तिगत तौर पर किसी मुसलमान को नहीं जानते हैं. लेकिन जो लोग व्यक्तिगत तौर पर मुसलमानों को जानते हैं उनकी राय है कि इस्लाम दूसरे धर्मों के मुक़ाबले हिंसा को अधिक प्रेरित नहीं करता है.

हैमट्रैम्क शहर इस बात का उदाहरण है कि व्यक्तिगत संबंध इस्लामोफ़ोबिया को ख़त्म कर सकते हैं.

9/11 हमलों के कुछ दिन बाद जब शहाब अहमद ने काउंसिल के सदस्य का पर्चा भरा तो उन्हें बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

बंगाली मूल के अमेरिकी शहाब अहमद कहते हैं, "शहर में पर्चे लगे थे जिन पर लिखा था कि मैं बीसवां हाईजैकर हूं जो विमानों तक नहीं पहुंच पाया था."

अहमद वो चुनाव तो हार गए लेकिन उन्होंने घर-घर जाकर अपना परिचय दिया. दो साल बाद उन्हें काउंसिल के लिए चुन लिया गया. वो शहर की काउंसिल में पहले मुसलमान सदस्य थे. उसके बाद से शहर में मुसलमानों के प्रति समर्थन बढ़ता ही गया है.

एकजुट हुए लोग

2017 में जब ट्रंप ने मुसलमान बहुल देशों से प्रवासियों के आने पर रोक लगाई तो हैमट्रैम्क के लोगों ने इसका विरोध किया.

'हैमट्रैम्क यूएसए' डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म के सह-निर्देशक रज़ी जाफ़री कहते हैं "एक तरह से इससे लोग एकजुट हुए क्योंकि लोगों को लगा कि अगर आपको हैमट्रैम्क में रहना है तो एकजुट रहना होगा."

देश की राष्ट्रीय राजनीति में भी अब मुसलमानों की मौजूदगी बढ़ी है. 2007 में डेमोक्रेट नेता कीथ एलिसन मिनोसेटा से कांग्रेस पहुंचे और पहले मुसलमान सांसद बने. लेकिन दूसरे शहरों की तरह ही यहां भी गंभीर और उत्तेजक सांस्कृतिक बहसें हो रही हैं.

जून में जब शहर प्रशासन ने सिटी सेंटर के बाहर समलैंगिक झंडे को फहराने की अनुमति दी तो कई लोगों ने इसका विरोध किया.

उस वक्त घरों और दुकानों के बाहर लहरा रहे कई सतरंगी झंडों को फाड़ दिया गया.

पूर्व मेयर मेजेव्स्की के कपड़ा स्टोर के बाहर लगा झंडा भी फाड़ दिया गया था वो कहती हैं, "ये लोगों को एक चिंताजनक संदेश देता है."

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9/11 के बाद हेट क्राइम के शिकार हुए सिख की कहानी

गांजे की वजह से भी यहां विवाद हुआ है. हैमट्रैम्क में गांजे बेचने वाली तीन डिस्पेंसरी खुलने से सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि कैथोलिक ईसाई भी नाराज़ हुए हैं.

वहीं कुछ लोग मुसलमान समुदायों में महिलाओं की राजनीति में कम भागीदारी को लेकर भी चिंतित हैं.

मेयर पद का चुनाव जीतने के बाद हुए जश्न में लोग कबाब और बकलावा खाते हुए नए मेयर के साथ जश्न मना रहे थे. करीब सौ लोगों की इस भीड़ में एक भी महिला नहीं थी.

ग़ालिब कहते हैं कि उनके अभियान में महिलाओं ने हिस्सा लिया था लेकिन महिलाओं और पुरुषों का अलग-अलग रहना इस्लामी संस्कृति का हिस्सा है.

ग़ालिब कहते हैं कि अब बड़ी तादाद में युवा मुसलमान अमेरिकी लाइफस्टाइल अपना रहे हैं.

हैमट्रैम्क के सामने आर्थिक चुनौतियां भी हैं. शहर की लगभग आधी आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे है. यहां का इंफ्रास्ट्रक्चर पुराना हो रहा है, और शहर की नई सरकार को इन चुनौतियों का सामना करना होगा.

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