कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद CAA के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की तैयारी – प्रेस रिव्यू
तीन कृषि क़ानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद एक बार फिर नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) को लेकर बहस शुरू हो गई है.
अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिंदू' के मुताबिक़, असम में CAA के ख़िलाफ़ कई समूह फिर से जाग उठे हैं और 12 दिसंबर को प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं.
CAA के तहत अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले ग़ैर मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान है जो 31 दिसंबर 2014 तक इन देशों को छोड़ चुके हैं.
कुछ संगठनों ने फिर से CAA के ख़िलाफ़ आंदोलन करने का फ़ैसला किया है, दिसंबर 2019 में इस आंदोलन में हुई पुलिस गोलीबारी में कम से कम पांच लोगों की जानें गई थीं.
इन प्रदर्शनों में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और सामाजिक कार्यकर्ता से विधायक बने अखिल गोगोई की कृषक मुक्ति संग्राम समिति (KMSS) और एक राजनीतिक दल असम जातीय परिषद भी शामिल होगा.
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AASU के सलाहकार समुज्जल के. भट्टाचार्य ने कहा कि विरोध प्रदर्शनों को लेकर किसानों की दृढ़ता उनके लिए सबक़ है जो CAA विरोधी प्रदर्शन कर रहे हैं जो कि कोविड-19 महामारी के कारण रुक गया था.
20 नवंबर को उन्होंने पत्रकारों से कहा, "हम ज़रूर चाहेंगे कि CAA को केंद्र सरकार समाप्त कर दे क्योंकि यह संविधान के ख़िलाफ़ होने के अलावा उत्तर पूर्व में हमारे स्थानीय समुदायों की पहचान के लिए एक गंभीर ख़तरा है."
उत्तर भारत के किसानों की तारीफ़ करते हुए गोगोई ने सभी संगठनों से अपील की है कि वो साथ मिलकर CAA के ख़िलाफ़ आंदोलन को दोबारा शुरू करें.
2019 में आंदोलन के ख़िलाफ़ द कॉर्डिनेशन कमिटि अगेंस्ट CAA बनी थी जिसने 12 दिसंबर को CAA के ख़िलाफ़ आंदोलन के दो साल पूरे होने के मौक़े पर प्रदर्शन आयोजित किया है.
CAA को वापस लेने की गुहार सिर्फ़ असम के समूह ही नहीं लगा रहे हैं. जमियत उलेमा ए हिंद और अमरोहा से सांसद दानिश अली ने भी यही मांग की है.
इन मांगों पर बोलते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख़्तार अब्बासी नक़वी ने कहा है कि फिर से 'सांप्रदायिक राजनीति' की शुरुआत हो चुकी है.
रामपुर में एक शादी समारोह में उन्होंने कहा कि इस क़ानून का उद्देश्य सिर्फ़ पड़ोसी देशों से आने वाले प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना है न कि भारतीयों से नागरिकता छीनना.
प्रवासी मज़दूरों के आंकड़े के लिए ये कर रही है मोदी सरकार
देश में अनौपचारिक क्षेत्र के 8.43 करोड़ श्रमिक अपने आधार नंबर से ई-श्रम पोर्टल पर अपनी जानकारियां दर्ज करा चुके हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, अब केंद्र सरकार राज्यों के साथ संपर्क में है और उसने यह सुनिश्चित करने को कहा है कि इन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ मिले और नौकरी ढूंढने के मौक़े में मदद मिले.
इससे इन श्रमिकों का आंकड़ा 'उन्नति' वेबसाइट से लिंक किया जाएगा जो कि काम दिलाने का एक प्रस्तावित प्लेटफ़ॉर्म है.
एक अधिकारी ने वेबसाइट को यह भी बताया कि 38 करोड़ रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा जब पूरा हो जाएगा तो यह देश में प्रवासी मज़दूरों के आंकड़े को भी कुछ साफ़ करेगा और उनके बारे में भी बताया गया जो पहले संगठित क्षेत्र के साथ थे.
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "शुरुआत में ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के दौरान एक सवाल था कि क्या श्रमिक प्रवासी मज़दूर हैं लेकिन इसे बाद में हटा दिया गया. अब जब रजिस्ट्रेशन अंतिम स्टेज में पहुंचेगा तो इस आंकड़े का विश्लेषण करते हुए इसमें अंतर घर के पते और काम के पते से लगाया जाएगा. अगर काम का पता गृह नगर से बाहर है तो उसे प्रवासी मज़दूर की श्रेणी में रखा जाएगा."
आईटी पैनल की फर्ज़ी ख़बरों पर क़ानून बनाने की सिफ़ारिश
सूचना और प्रौद्योगिकी (आईटी) को लेकर संसदीय पैनल ने पारंपरिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए कई सुधारों की सिफ़ारिश की है. इसके बाद संसद के शीतकालीन सत्र में सूचना एवं प्रोद्यौगिकी से जुड़ी एक ख़ास रिपोर्ट पेश हो सकती है.
हिंदी अख़बार 'अमर उजाला' के मुताबिक़, मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आइटी पैनल ने अपनी रिपोर्ट में 'राष्ट्र विरोधी' रवैये को परिभाषित करने से लेकर टेलीविज़न रेटिंग बिंदुओं का मूल्यांकन करने और नकली समाचारों से निपटने के लिए क़ानून पेश करने के लिए एक बेहतर प्रणाली को शामिल किया है.
एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि पैनल ने अपनी रिपोर्ट में पेड न्यूज़, फेक न्यूज़, टीआरपी के साथ छेड़छाड़, मीडिया ट्रायल्स, पक्षपात रिपोर्टिंग जैसे मामलों का ज़िक्र किया है.
फेक न्यूज के मामलों के जानकार ने बताया कि फेक न्यूज़ ने मीडिया की विश्वसनीयता पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है, यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है और अगर स्वस्थ लोकतंत्र को सही से चलाना है तो यह केवल मीडिया की तरफ से सही जानकारी के प्रसार से ही संभव है.
खबरों के अनुसार, मीडिया सेक्टर के लिए बन रहे कानून में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को कवर किया जाएगा. कहा जा रहा है कि प्रस्तावित कानून, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, डिजिटल मीडिया, सिनेमा और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी लागू किया जाएगा.
कृषि क़ानूनों की वापसी पर बुधवार को लगेगी कैबिनेट में मुहर
कृषि क़ानूनों की वापसी की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए तैयार मसौदे पर आने वाले बुधवार को होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मुहर लग सकती है.
'दैनिक जागरण' लिखता है कि इस बीच कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन की अगुवाई करने वाले किसान संगठनों के समूह संयुक्त किसान मोर्चा ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखा और वार्ता बहाल करने के साथ छह मांगें रखीं.
केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में कृषि मंत्रालय की ओर से इस बारे में प्रस्ताव प्रस्ताव रखा जाएगा, जिस पर मंज़ूरी मिलने की संभावना है.
प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार क़ानून वापसी की बाकी प्रक्रिया 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में पूरी हो जाएगी. सरकार की इस तैयारी के बावजूद आंदोलनकारी संगठनों ने क़ानूनों की संसद में वापसी तक आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है.
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