भारत की नागरिकता क्यों छोड़ रहे हैं हज़ारों लोग || गृह मंत्रालय के मुताबिक़ साल 2021 में 163,370 लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी.
- शुभम किशोर
- बीबीसी संवाददाता
संसद में पेश किए गए दस्तावेज़ में कहा गया है कि इन लोगों ने "निजी वजहों" से नागरिकता छोड़ने का फ़ैसला किया है.
सबसे ज़्यादा 78,284 लोगों ने अमेरिकी नागरिकता के लिए भारत की नागरिकता छोड़ी. इसके बाद 23,533 लोगों ने ऑस्ट्रेलिया और 21,597 लोगों ने कनाडा की नागरिकता ली.
चीन में रह रहे 300 लोगों ने वहाँ की नागरिकता ले ली और 41 लोगों ने पाकिस्तान की. साल 2020 में नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या 85,256 थी और साल 2019 में 144,017 लोगों ने नागरिकता छोड़ी थी.
साल 2015 से 2020 के बीच आठ लाख से ज़्यादा लोगों ने नागरिकता छोड़ दी. 2020 में इन आंकड़ों में कमी देखने को मिली थी, लेकिन इसके पीछे की वजह कोरोना माना जा रहा है.
विदेशी मामलों के जानकार हर्ष पंत ने बीबीसी से कहा, "इस बार के आँकड़ों में बढ़त का कारण ये हो सकता है कि पिछले साल के कुछ ऐसे लोग जो कोरोना के कारण काम बंद होने से नागरिकता नहीं ले पाए, उन्हें भी इस साल नागरिकता मिली होगी."
आख़िर भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ क्यों रहे हैं? बीबीसी ने देश के बाहर रह रहे नागरिकता छोड़ चुके लोगों, छोड़ने की चाह रखने वालों और एक्सपर्ट्स से इन ट्रेंड पर बात की.
विदेशों में रहने के कई फ़ायदे
अमेरिका में रहने वालीं भावना (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि अगर भारत को अपनी नागरिकता छोड़ने की दर या फिर ब्रेन ड्रेन पर काबू करना है तो उसे कई क़दम उठाने होंगे. उनके मुताबिक़ इनमें बेहतर सुविधा, नए मौक़े से लेकर दोहरी नागरिकता पर विचार करना ज़रूरी है.
भावना साल 2003 में वहाँ नौकरी के सिलसिले में गई थीं. उन्हें वहाँ रहना अच्छा लगने लगा और उन्होंने वहीं बसने का फ़ैसला किया. उनकी बेटी वहीं पैदा हुई, फिर उन्होंने ग्रीन कार्ड का आवेदन किया और कुछ साल पहले उन्हें वहां कि नागरिकता मिल गई.
भावना कहती हैं, "यहाँ ज़िंदगी बहुत आसान है. स्टैंडर्ड ऑफ़ लिविंग बहुत अच्छा है. बच्चों की पढ़ाई अच्छे से हो जाती है. उन्हें मौक़े भी भारत से बेहतर मिलेंगे."
"इसके अलावा काम का माहौल बहुत अच्छा है. आप जितना काम करते हैं, उस हिसाब से अच्छे पैसे मिलते हैं."
वर्क प्लेस का माहौल
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बात सरहद पार
समाप्त
कनाडा में रहने वाले 25 साल के अभिनव आनंद की राय भी मिलती-जुलती है. उन्होंने वहीं से पढ़ाई की है और पिछले एक साल से नौकरी कर रहे हैं. वो अब भी भारतीय पासपोर्ट का ही इस्तेमाल करते हैं लेकिन भारत की नागरिकता छोड़ने के लिए तैयार हैं.
उनका भी मानना हैं कि काम करने का अच्छा माहौल एक वजह है, जिसके कारण वो भारत वापस नहीं जाना चाहते.
अभिनव कहते हैं, "यहाँ काम करने के घंटे निर्धारित हैं. वर्क प्लेस पर नियम और क़ानून का पालन होता है. आप जितना काम करते हैं ,उस हिसाब से आपको पैसे मिलते हैं. भारत में नियमों का इतने अच्छे तरीक़े से पालन नहीं होता. इसलिए मैं काम करने के लिए भारत नहीं जाना चाहूंगा और अगर काम मुझे किसी और देश में रह कर ही करना है, तो वहाँ कि नागरिकता लेने में क्या हर्ज़ है."
हर्ष पंत कहते हैं कि ज़्यादातर लोग बेहतर काम, पैसे और बेहतर ज़िदगी की तलाश में ही देश छोड़कर जाते हैं.
पंत के मुताबिक, "बड़े देशों में बेहतर सुविधाएं मिलती हैं लेकिन कई लोग छोटे देश भी जाते हैं. कई छोटे देश व्यापार के लिए बेहतर सुविधाएं देते हैं. कई लोगों के परिवार भी ऐसे देशों में बसे होते हैं, इसलिए वो उन्हीं से साथ वहाँ काम करने चले जाते हैं."
भावनात्मक जुड़ाव लेकिन फ़ायदे बहुत कम
हरेंद्र मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले 22 सालों से इसराइल में रह रहे हैं. उनका कहना कि वो भारत से भावनात्मक रूप इतने जुड़े हुए हैं कि वो यहाँ की नागरिकता नहीं छोड़ पा रहे. उनकी पत्नी इसराइल की हैं और उनके बच्चे वहीं पैदा हुए हैं और उनके पास वहाँ की नागरिकता है.
लेकिन वो कहते हैं कि भारतीय पासपोर्ट के कारण उन्हें बहुत दिक्क़तें होती हैं. ज़्यादातर देशों में जाने के लिए उन्हें वीज़ा लेना पड़ता है.
एक उदाहरण देते हुए वो कहते हैं, "मुझे लंदन जाने के लिए वीज़ा की ज़रूरत पड़ती है लेकिन अगर आपके पास इसराइल का पासपोर्ट है तो आप बिना वीज़ा के वहाँ जा सकते हैं. इसलिए वीज़ा का आवेदन करने के लिए यहाँ कोई ऑफ़िस भी नहीं है. वीज़ा का ठप्पा लगाने के लिए किसी को इस्तांबुल जाना पड़ेगा. वहाँ आने जाने का खर्चा भी बहुत होगा. इसलिए ये चीज़े परेशान करती हैं."
वह कहते हैं, "मैं भारत से इतना जुड़ा हुआ हूँ कि वहाँ कि नागरिकता नहीं छोड़ना चाहता, लेकिन इसके अलावा मुझे कोई फ़ायदा नहीं होता."
भारत के पासपोर्ट पर आप बिना वीज़ा के अभी 60 देशों में जा सकते हैं. दूसरे कई देशों की तुलना में ये काफ़ी कम है. पासपोर्ट रैंकिंग में भारत 199 की लिस्ट में अभी 87 नंबर पर है.
दोहरी नागरिकता की ज़रूरत?
हरेंद्र मिश्रा कहते हैं कि भारत अगर दोहरी नागरिकता का प्रावधान लाता है तो नागरिकता छोड़ने वालों में कमी आ जाएगी.
अभिनव आनंद भी ऐसा कहते हैं कि वो दूसरे देश की नागरिकता लेने की कोशिश में हैं, लेकिन उनका कहना है कि ये क़दम वो मजबूरी में उठा रहे हैं.
वो कहते हैं, "मैं जिस में पैदा हुआ वहाँ की नागरिकता मेरे पास हमेशा होनी चाहिए. लेकिन भारत दोहरी नागरिकता की इजाज़त नहीं देता इसलिए मेरे पास नागरिकता छोड़ने के अलावा विकल्प नहीं है. मेरे साथ कई ऐसे लोग हैं जो अपनी नागरिकता इसलिए छोड़ देंगे क्योंकि भारत में उन्हें दोहरी नागरिकता नहीं मिल सकती."
भावना अब अपनी नागरिकता छोड़ चुकी हैं. उनके पास ओसीआई कार्ड है लेकिन उनका कहना है कि उनके पास दो नागरिकताएं होतीं तो वो बेहतर होता.
क्या है ओआईसी कार्ड
भारत में दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं है. यानी कि अगर आप किसी और देश की नागरिकता चाहते हैं तो आपको भारत की नागरिकता छोड़नी होगी.
विदेश में बसे और वहाँ की नागरिकता ले चुके भारतीय लोगों के लिए एक ख़ास तरह की सुविधा का नाम है ओसीआई कार्ड. ओसीआई का मतलब है--ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ़ इंडिया.
दरअसल, दुनिया के कई देशों में दोहरी नागरिकता की सुविधा है, लेकिन भारतीय नागरिकता क़ानून के मुताबिक़ अगर कोई व्यक्ति किसी और देश की नागरिकता ले लेता है तो उसे अपनी भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है. ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है जो अमरीका, ब्रिटेन या कनाडा जैसे देशों की नागरिकता ले चुके हैं लेकिन उनका भारत से जुड़ाव बना हुआ है.
इन लोगों को भारत की नागरिकता छोड़ने के बाद, भारत आने के लिए वीज़ा लेना पड़ता था. ऐसे ही लोगों की सुविधा का ख्याल करते हुए 2003 में भारत सरकार पीआईओ कार्ड का प्रावधान किया.
पीआईओ का मतलब है- पर्सन ऑफ़ इंडियन ओरिजिन. यह कार्ड पासपोर्ट की ही तरह दस साल के लिए जारी किया जाता था.
इसके बाद भारत सरकार ने प्रवासी भारतीय दिवस के मौक़े पर 2006 में हैदराबाद में ओसीआई कार्ड देने की घोषणा की.
काफ़ी समय तक पीआईओ और ओसीआई कार्ड दोनों ही चलन में रहे लेकिन 2015 में पीआईओ का प्रावधान ख़त्म करके सरकार ने ओसीआई कार्ड का चलन जारी रखने की घोषणा की.
ओसीआई एक तरह से भारत में जीवन भर रहने, काम करने और सभी तरह के आर्थिक लेन-देन करने की सुविधा देता है, साथ ही ओसीआई धारक व्यक्ति जब चाहे बिना वीज़ा के भारत आ सकता है. ओसीआई कार्ड जीवन भर के लिए मान्य होता है.
भारतीय गृह मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक़, ओसीआई कार्ड के धारकों के पास भारतीय नागरिकों की तरह सभी अधिकार हैं लेकिन चार चीज़ें वे नहीं कर सकते-
- चुनाव नहीं लड़ सकते
- वोट नहीं डाल सकते
- सरकारी नौकरी या संवैधानिक पद पर नहीं हो सकते
- खेती वाली ज़मीन नहीं ख़रीद सकते.
क्या आने वाले सालों में बढ़ेगी संख्या?
वर्तमान के आर्थिक हालात को देखते हुए पंत कहते हैं कि आने वाले कुछ सालों में इस संख्या में कमी आ सकती है.
वो कहते हैं, "भारत के आर्थिक हालात दूसरे देशों से हालात की तुलना में बेहतर हैं. अभी यहाँ और मौक़े आएंगे. इसलिए लोग भारत में रहना चाहेंगे. हाँ जिन लोगों ने अमेरिका में ग्रीन कार्ड अप्लाई कर रखा है, वो नागरिकता लेने से पीछे नहीं हटेंगे.''
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