ब्रेस्ट कैंसर को ‘राष्ट्रीय’ या ‘बेहद ज़रूरी' मामला नहीं मानता केंद्र - प्रेस रिव्यू


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केंद्र सरकार की नज़र में ब्रेस्ट कैंसर 'राष्ट्रीय' या 'अति' आवश्यक या बेहद ज़रूरी मामला नहीं है.

'द हिंदू' ने इस संबंध में छापी गई खब़र में लिखा है कि सरकार के आकलन के मुताबिक महिलाओं में कैंसर के सबसे ज्यादा मामले ब्रेस्ट कैंसर के हैं लेकिन उसकी नज़र में ये 'राष्ट्रीय' या 'अति' आवश्यक मामला नहीं है.

अख़बार ने इस बारे में केरल हाई कोर्ट में चल रहे एक मामले का हवाला दिया है.

केरल हाई कोर्ट में चल रहे एक मुकदमे में एक मरीज़ (अब दिवंगत) सरोजा राधाकृष्णन ने कहा था कि वो एक किस्म के ब्रेस्ट कैंसर 'ल्यूमिनल ए' से पीड़ित हैं. यह कैंसर सबसे ज्यादा आक्रामक है और ज्यादातर ब्रेस्ट कैंसर के मामले इसी के होते हैं.

इस साल जनवरी में उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि उनके इलाज के लिए रिबोसिक्लिब दवा की सिफारिश की गई थी. लेकिन ये काफी मंहगी है क्योंकि इस पर पेटेंट है और भारत की जेनेरिक दवा निर्माता कंपनियां इसे नहीं बना सकतीं. ये दवा बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी नोवार्टिस बनाती है.

याचिकाकर्ता ने कहा था कि उनकी और उनके पति की संयुक्त मासिक आय 74,400 रुपये है, जबकि रिबोसिक्लिब की कीमत 58,140 रुपये है.

महंगी दवा की वजह से उनके स्वास्थ्य के अधिकार पर असर पड़ा है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है.

इस साल जून में केरल हाई कोर्ट ने डीपीआईआईटी से रिबोसिक्लिब के 'अनिवार्य लाइसेंस' पर पुनर्विचार करने को कहा.

डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड यानी डीपीआईआईटी दवा की कीमतें तय करता है.

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दवा पर 30 फ़ीसदी का ट्रेड कैप

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नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया और स्वास्थ्य मंत्रालय की मीटिंग के बाद डीपीआईआईटी ने फैसला किया कि इस दवा के अनिवार्य लाइसेंस के लिए जो जरूरी हालात होने चाहिए वे नहीं हैं.

डीपीआईआईटी ने यह फैसला स्वास्थ्य मंत्रालय की उस टिप्पणी के आधार पर लिया, जिसमें कहा गया था रिबोसिक्लिब उन 42 दवाओं में शामिल है जिस पर 30 फीसदी का 'ट्रेड कैप' लगा है. इसके अलावा ऐसे 'दावेदार' भी नहीं हैं जो ये कह रहे हैं कि ये दवा देश में बनाई जाए.

'द हिंदू' ने कहा है कि केरल कोर्ट में जमा किए दस्तावेजों में उसने सरकार के इस जवाब को देखा है.

भारत सरकार के कानून के मुताबिक अगर सरकार यह समझती है कि बड़ी संख्या में लोगों को किसी दवा की ज़रूरत है और वो इसे हासिल नहीं कर पा रहे हैं या फिर कोई 'राष्ट्रीय ज़रूरत' या कोई स्वास्थ्य संकट का मामला हो तो पेटेंट और गैर पेटेंट दवाओं को देश में बनाने का 'अनिवार्य लाइसेंस' दिया जा सकता है.

'द हिंदू' ने लिखा है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के दिसंबर 2022 के आंकड़ों के मुताबिक देश की एक लाख महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के 100.5 मामले पाए गए हैं.

इस समय देश में ब्रेस्ट कैंसर के लगभग 1,82,000 मामले पाए गए हैं. 2030 तक ये मामले बढ़ कर ढाई लाख तक पहुंच सकते हैं.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक फिलहाल दुनिया में ब्रेस्ट कैंसर के 23 लाख मामलों का पता चला है. इससे 6,85,000 महिलाओं की मौत हो चुकी है.

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