कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी के बेटे को थी कावासाकी बीमारी, ये क्या होती है?
कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी के बेटे को थी कावासाकी बीमारी, ये क्या होती है?
स्टैंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि उनके बेटे को कावासाकी नाम की बीमारी थी.
मुनव्वर फ़ारूक़ी ने यूट्यूब पर एक पॉडकास्ट 'सोशल मीडिया स्टार विद जेनिस' में यह जानकारी शेयर की.
इंटरव्यू के दौरान फ़ारूक़ी ने कहा कि उन्हें जब इस बीमारी के बारे में डॉक्टर ने बताया तब उनकी जेब में सिर्फ़ सात या आठ सौ रुपये थे, जबकि इलाज में इस्तेमाल किए जाने वाले एक इंजेक्शन की कीमत 25 हज़ार थी.
कावासाकी बीमारी की बात सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर मुनव्वर फ़ारूक़ी के फ़ैंस इस बीमारी को लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं. साथ ही इस बीमारी से जुड़े उनके कुछ सवाल भी हैं.
आइए जानते हैं इस बीमारी से जुड़ी जानकारी के बारे में.
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कावासाकी बीमारी क्या है?
दिल्ली स्थित अटल बिहारी बाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड आरएमएल हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक्स विभाग के प्रमुख डॉ. दिनेश कुमार ने कावासाकी बीमारी के बारे में बीबीसी से बात की.
वो बताते हैं, "कावासाकी बीमारी एक फेब्राइल यानी बुखार वाली बीमारी है, जिसका मुख्य रूप से असर दिल पर होता है."
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वो कहते हैं, "आम तौर पर ये बीमारी सबसे ज़्यादा एक साल से कम उम्र या एक से दो साल की उम्र के बच्चों में पाई जाती है. लेकिन पांच साल से कम उम्र के बच्चों में भी ये बीमारी होती है."
डॉ. दिनेश के अनुसार, "इस बीमारी का कोई कारण पता नहीं है. ये आमतौर पर सबसे पहले जापान, चीन और कोरिया में पाई गई और धीरे-धीरे इसके मामले पूरी दुनिया में आने लगे."
भारत में इस बीमारी के कितने मामले आए, इसका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं हैं.
अमेरिका के नेशनल सेंटर फ़ॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन के मुताबिक़, कावासाकी बीमारी मुख्य रूप से मध्यम और छोटी आर्टरीज़ (धमनियों) को प्रभावित करती है.
इसका बुरा असर कोरोनरी आर्टरीज़ पर पड़ता है. ये वो धमनियां हैं जो खून को दिल तक पहुंचाती हैं.
कावासाकी बीमारी (केडी) को म्यूकोक्यूटेनियस लिम्फ़ नोड सिंड्रोम के रूप में भी जाना जाता है.
बीते कुछ सालों में हुए शोध और अध्ययन बताते हैं कि कुछ ख़ास आनुवंशिक लक्षण, बीमारी होने की आशंका बढ़ा सकते हैं.
यह बीमारी पांच साल से कम उम्र के बच्चों में आमतौर पर पाई जाती है, लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकती. यहां तक कि युवाओं में भी. बीमारी के वक्त बच्चों में बुखार जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं.
कावासाकी बीमारी से जुड़ी पहली रिपोर्ट साल 1967 में जापान के बाल रोग विशेषज्ञ तोमिसाकु कावासाकी ने प्रकाशित की थी.
कावासाकी बीमारी के लक्षण
डॉ. दिनेश कुमार कहते हैं, "कावासाकी बीमारी में आमतौर पर बच्चों को बुखार आता है, जो कि चार से पांच दिनों तक रहता है."
"इस दौरान मुंह में छाले, म्यूकस मेम्ब्रेन का लाल पड़ जाना, होठों का फटना, होठों की क्रस्टिंग होना, हाथ-पैर में सूजन आना, चमड़ी का निकलना, गले में गांठें, आंखों की झिल्ली का लाल होना, ओरल कैविटी में छाले पड़ना और लाल होना, इस तरह के लक्षण अगर बुखार के साथ हों तो वो कावासाकी बीमारी हो सकती है."
डॉ. दिनेश का कहना है कि अगर सारे लक्षण न मिलें और कुछ लक्षण मिलें तो इसे इसे 'ए टिपिकल कावासाकी' बीमारी कहा जाता है.
डॉ दिनेश कहते हैं, "बहुत सारे बच्चे सिंपल आईवीआईजी लगाने से ठीक नहीं होते हैं. ऐसे में इसे रेजिस्टेंट कावासाकी कहते हैं. इसमें दोबारा आईवीआईजी दिया जाता है."
उनके मुताबिक़, आईवीआईजी इंसानों के सीरम से बनती है. इसे बनाने के लिए लोगों के खून का एक हिस्सा अलग किया जाता है, जिसमें कई सारी बीमारियों से लड़ने की क्षमताएं होती हैं.
डॉ. दिनेश कहते हैं, "आईवीआईजी इसलिए दिया जाता है क्योंकि 20 प्रतिशत मरीजों को कोरोनरी आर्टरी में सूजन आ जाती है. इसमें खून के थक्के जम सकते हैं और मरीज की मौत हो सकती है."
"इन मरीजों को हार्ट अटैक आ सकता है या वे दिल की बीमारी से ग्रसित रहेंगे या चल-फिर कम पाएंगे."
डॉ. दिनेश बताते हैं, "इन 20 प्रतिशत मरीजों को बचाने के लिए कावासाकी बीमारी से ग्रसित सभी बच्चों को आईवीआईजी दिया जाता है. क्योंकि हमारे पास ऐसी कोई पद्धति नहीं है जिससे हम पता लगा सकें कि वो 20 प्रतिशत मरीज़ कौन हैं."
क्या है इलाज?
डॉ दिनेश बताते हैं, "ये बीमारी काफ़ी ख़तरनाक है. आमतौर पर डॉक्टर आम बुखार के तौर पर इसका इलाज करते हैं. और अगर किसी बुखार के साथ इस तरह के लक्षण हैं या मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड की आशंका के साथ अगले चार पांच दिनों में ये लक्षण दिखने लगते हैं तो तब हम इसे कावासाकी बीमारी मानते हैं."
डॉ़ दिनेश कहते हैं, "इसका इलाज सिंपल है लेकिन महंगा है. इसमें बच्चे को आईवीआईजी के इंजेक्शन देते हैं, ये काफ़ी महंगा होता है. एक ग्राम आईवीआईजी दस से पंद्रह हज़ार रुपये का होता है."
"इसे शरीर के वज़न के हिसाब से देते हैं. छोटे बच्चों का वज़न कम होता है इसलिए कम खर्च आता है, जबकि बड़े बच्चों के लिए ये दवा महंगी पड़ती है."
अमेरिका के नेशनल सेंटर फ़ॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन के मुताबिक़ कावासाकी के इलाज के दौरान कोरोनरी धमनियों के सूजन को कम करने की कोशिश होती है.
इस बीमारी के दो से चार हफ्ते बाद कोरोनरी आर्टरी एन्यूरिज्म (सीएए) का जोखिम चरम पर होता है. इसमें कोरोनरी धमनियों का आकार सामान्य से डेढ़ गुना अधिक बढ़ जाता है.
कावासाकी के इलाज के दौरान मरीजों को दस से बारह घंटों में आईवीआईजी और एस्पिरिन की हाई डोज़ (एएसए) दी जाती है.
मुनव्वर फ़ारूक़ी ने क्या बताया?
इंटरव्यू के दौरान मुनव्वर फ़ारूक़ी ने कहा, "मेरा बेटा जब डेढ़ साल का था तब वो तीन-चार दिन बीमार हुआ, उस समय मैं विरार (मुंबई) में रहता था. तीन-चार दिन वो बीमार रहा, डॉक्टर ने दवाई दी, लेकिन वो ठीक नहीं हुआ."
"पांचवें दिन हम उसे लेकर गए, जब उसके सारे टेस्ट वगैरह हुए तो पता चला कि उसे कावासाकी बीमारी है. इस बीमारी की वजह से दिल के पास सूजन आ जाती है."
मुनव्वर ने कहा, "इसके बाद मैंने गूगल किया और बीमारी के बारे में जाना. ये बीमारी बहुत रेयर है, जो कि दस लाख बच्चों में एक को होती है."
"डॉक्टर ने बोला कि इसके लिए एक इलाज है, जिसमें दवा इंजेक्ट की जाती है. इसमें तीन इंजेक्शन दिए जाते हैं और वो किसी मशीन से लगते हैं. ये मशीन भी उनके पास नहीं थी."
मुनव्वर फ़ारूक़ी ने कहा, "एक इंजेक्शन 25 हज़ार का था. उस वक्त मेरे जेब में सात सौ या आठ सौ रुपये थे और बैंक अकाउंट में तो कुछ भी नहीं थे. जब मुझे ये पता चला तो मैंने कहा ठीक है, मैं लेकर आता हूं."
"मैंने मुस्कुराते हुए बहुत ही नॉर्मली रिएक्ट किया. डॉक्टर के सामने भी मैं शर्मिंदा नहीं होना चाह रहा था. मैंने उनके सामने भी ऐसे बर्ताव किया कि ठीक है मैं बस अभी दे दूंगा 75 हज़ार."
उन्होंने आगे कहा, "मैं बहुत नॉर्मली सीढ़ी से उतरा और हॉस्पिटल के बाहर आधा घंटा एक ही जगह पर खड़ा रहा. इस दौरान मैं कुछ भी नहीं सोच रहा था. एकदम ब्लैंक था."
"ज़िंदगी में मैं अगर कहीं डरा हूं तो उस वक्त डरा कि ये तो पॉसिबल ही नहीं है, मैं इतना पैसा कहां से लाऊं. उस वक्त ऐसा था कि ये पल मेरी ज़िंदगी का सबसे कठिन पल है."
मुनव्वर फ़ारूक़ी बताते हैं, "मैं जहां पर पहले काम करता था, उनसे बात की, सब कुछ बताया. उन्होंने कहा ठीक है आ जा. फिर मैं विरार से मुंबई सेंट्रल ट्रेन से गया और तीन घंटे के भीतर मैं पैसे और इंजेक्शन लेकर जैसे मुस्कुराते हुए हॉस्पिटल से निकला था वैसे ही वापस लौटा."
"लेकिन मुझे याद है कि मैं किस हाल में गया था और जब मैं पैसे लेकर आया तो तब भी कितनी शर्मिंदगी में मैं आ रहा हूं. पूरा टाइम मैं सिर्फ ये सोच रहा हूं कि पैसों की कमी नहीं आने दूंगा कभी भी."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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