कुंभ भगदड़ः बीबीसी को दो और जगह भगदड़ की जानकारी ....
कुंभ भगदड़ः बीबीसी को दो और जगह भगदड़ की जानकारी, चश्मदीदों ने बताई आपबीती
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- दिलनवाज़ पाशा
- बीबीसी संवाददाता
चेतावनी: इस रिपोर्ट के कुछ विवरण विचलित कर सकते हैं.
क्या कुंभ में मौनी अमावस्या के दिन संगम नोज के पास हुई भगदड़ के अलावा कुछ और जगहों पर भी भगदड़ जैसे हालात बने थे? चश्मदीदों की मानें तो कम से और दो जगहों पर ऐसे हालात बने. इसमें लोगों की जान भी गई.
हालाँकि, संगम नोज़ की भगदड़ को कई दिन बीत गए हैं लेकिन प्रयागराज के अस्पतालों के मुर्दाघरों में रिश्तेदारों की तलाश में लोगों का पहुँचना जारी है.
मध्य प्रदेश से आए सत्यम प्रयागराज में अपने लापता पिता की तलाश में भटक रहे हैं. उनके पास एक बैग है. इसमें पानी की दो खाली बोतलें हैं.
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सत्यम गुस्से में दिखते हैं. स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल के मुर्दाघर से बाहर निकलते हुए उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, "अंदर कई शव हैं. आप बता दो भैया. आप बता दो हमें कि हमारा परिजन है यहाँ पर? हम ले जाएँगे भैया. नहीं चाहिए आपका पैसा. नहीं चाहिए कुछ".
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की मॉर्चरी के बाहर खड़े आमोद कुमार की आपबीती भी सत्यम जैसी ही है. वे प्रयागराज के सभी मुर्दाघर तलाश चुके हैं, सरकारी दफ़्तरों के चक्कर लगा चुके हैं.
उन्हें 29 जनवरी यानी मौनी अमावस्या के दिन लापता हुई अपनी रिश्तेदार रीता देवी के बारे में अभी तक कुछ नहीं पता चला है..
इसी बीच, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे कुंभ में बड़ी तादाद में लोगों का पहुंचना जारी है.
मेला प्रशासन के मुताबिक़, मौनी अमावस्या के दिन करोड़ों लोगों ने यहाँ स्नान किया. इसी दिन संगम नोज़ के पास भगदड़ हुई थी. उत्तर प्रदेश सरकार ने इसमें 30 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की थी.
मीडिया से बात करते हुए कुंभ मेले के डीआईजी वैभव कृष्णा ने बताया था, "दुर्भाग्यपूर्ण तरीक़े से तीस श्रद्धालुओं की दुखद मृत्यु हो गई है."
'गिर गया होता तो शायद ज़िंदा न होता'
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प्रशासन ने संगम नोज़ के पास हुई भगदड़ के बारे में माना है. हालाँकि, कई लोग यह दावा करते हैं कि उस दिन कुंभ में कम से कम दो अन्य जगह भी हालात बेक़ाबू हुए थे.
बीबीसी ने ऐसे कई चश्मदीदों से बात की जिन्होंने कुंभ सेक्टर-21 में समुद्रकूप मार्ग के पास हुई भगदड़ को देखा था. ये इलाक़ा प्रयागराज के झूँसी इलाक़े से सटा है.
चश्मदीदों के मुताबिक़, उस दिन यहाँ इतनी भीड़ थी कि लोगों के लिए आगे बढ़ना या पीछे हटना मुश्किल हो रहा था.
एक आश्रम में रुके पवन रात में क़रीब ढाई बजे गंगा स्नान करके लौट रहे थे. उस वक़्त वह यहाँ फँस गए थे. पवन बताते हैं कि किसी तरह से संघर्ष करते हुए यहाँ से निकल पाए.
वह कहते हैं, "अगर मैं गिर गया होता तो शायद ज़िंदा न होता. बहुत घुटन महसूस हो रही थी यहाँ पर. मतलब लोग चिपके हुए थे. साँस लेने में भी दिक़्क़त आ रही थी."
'लोग प्यास के मारे तड़प रहे थे'
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धर्मगुरु अर्पित महाराज उल्टा किला चौराहे से सटे दास धर्म शिविर में रह रहे हैं. वह 29 जनवरी के दिन को याद करते हैं, "सुबह छह बजे के क़रीब मेरे साथियों ने मुझे जगाया. मैं देर तक सोया था क्योंकि मैं अखाड़ों के स्नान के बाद गंगा स्नान करने जाने वाला था. बाहर का मंज़र डराने वाला था. "
अर्पित महाराज बताते हैं, "लोग प्यास के मारे तड़प रहे थे. पानी पिला दो… एक घूँट पानी दे दो. चारो तरफ़ से लोग आ गए. इधर झूँसी से रास्ता उतर रहा है. यहाँ से लोग आ गए. उधर शास्त्री पुल से उतर कर लोग आ गए. इधर पीछे से यहाँ लोग आ गए. एकदम कसाकसी हो गई".
दास धर्म शिविर को जब बेहाल भीड़ के लिए खोला गया तो कुछ मिनट में ही कई हज़ार लोग इसमें घुस गए.
अर्पित महाराज कहते हैं, "एक महिला ने अपना बच्चा फेंकते हुए कहा- गुरुजी, मेरे बच्चे को बचा लीजिए. उन मुश्किल हालात में हमने सैकड़ों लोगों की मदद की".
'खुले आसमान के नीचे साँस न ले पाएँ'
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निशान सिंह भी इसी शिविर में रहकर कुंभ आ रहे श्रद्धालुओं की सेवा कर रहे हैं. उस रात वह भी भीड़ में फँसे थे. निशान सिंह बताते हैं, "महिलाएँ रो रही थीं- बचाओ-बचाओ. किसी तरीक़े से हमें बाहर निकालो. हमारे गुरु संत त्रिलोचन दर्शन दास ने कहा, भीतर आने दो. कोई परवाह नहीं."
दास शिविर में सेवा कर रहे अशोक त्यागी कहते हैं, "खुले के अंदर साँस न ले पाएँ… खुले आसमान के नीचे, यह पहली बार देखा. लोगों ने जूते, चप्पल, बैग, जिसका जो सामान था छोड़ गए. जान बचाना मुश्किल हो रहा था. लोग पानी के लिए तड़प रहे थे."
वह मंज़र इनकी आँखों में आँसू ला देता है
हफ़्ते की सबसे बड़ी न्यूज़ स्टोरी पर चर्चा: मुकेश शर्मा के साथ.
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यहीं सेक्टर-21 का कचरा ट्रांसफ़र स्टेशन है. यह अभी कचरे में आए जूते-चप्पलों, कपड़ों से भरा-पड़ा है. शिवनाथ कचरा ले जाने वाला ट्रक चलाते हैं. 29 जनवरी की सुबह का मंज़र याद करते हुए उनकी आँखें नम हो जाती हैं.
शिवनाथ बताते हैं, "हालात बहुत ख़राब थे. ऐसा लगा था कि जो लेटे हुए थे वह पूरी तरह से ख़त्म हो गए हैं. जो परिवार यहाँ थे, वह बिलख-बिलख कर रो रहे थे. कोई कह रहा था, यहाँ मेरा चाचा था. यहाँ मेरे माँ-बाप थे. यहाँ मेरी औरत थी. यहाँ मेरा भाई था… कोई नहीं मिला सर".
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कई चश्मदीदों ने यहाँ कई शव देखने का दावा किया है. एक चश्मदीद ने नाम न ज़ाहिर किए जाने की शर्त पर बताया कि उन्होंने "कम से कम चार शव एक ही जगह देखे थे".
वहीं, कचरा गाड़ी चलाने वाले चंद्रभान ने कचरे में एक शव ख़ुद देखने का दावा करते हुए बीबीसी हिंदी से कहा, "बॉडी... मैं इस चौराहे (उल्टा किला चौक) पर देखा. बारह बजे, वहाँ पर एक बॉडी देखा. वह बहुत बुज़ुर्ग था".
चंद्रभान बताते हैं कि वे अगले तीन दिनों तक सिर्फ़ भीड़ में लोगों का छूट गया सामान ही कचरे में ढोते रहे.
'हम गुमनामी में मर रहे हैं'
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इस जगह से क़रीब डेढ़ किलोमीटर दूर नगीना मिश्र का घर है. उनके परिवार के मुताबिक़ वह भोर में चार बजे के करीब यहाँ फँस गई थीं और ज़िंदा अपने घर नहीं लौट सकीं. उनके देवर गणेश चंद्र मिश्र, उस समय उनके साथ थे. उस मंज़र को याद करके उनकी आँखें नम हो जाती हैं.
गणेश चंद्र मिश्र कहते हैं, "लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़े जा रहे थे. जो गिर रहा था, उठ नहीं पा रहा था. मेरी भाभी गिरीं और उठ नहीं पाईं. मैं उन्हें उठा रहा था कि भीड़ ने मुझे भी गिरा दिया. मैं 100 नंबर- 112 नंबर पर फ़ोन करता रहा. वह बार-बार मेरी लोकेशन लेते लेकिन मदद के लिए कोई नहीं आया".
गणेश चंद्र मिश्र ने सुबह क़रीब छह बजे किसी तरह अपने घर संपर्क किया. उनके बेटे और उसके दोस्त उन्हें लेने के लिए पहुँचे. तब वह किसी तरह दोपहर एक बजे के क़रीब वहाँ से अपनी भाभी का शव लेकर निकल सके.
गणेश मिश्र कहते हैं, "अगर मैं 'बॉडी' की सुरक्षा में न होता तो 'बॉडी' मिलने या पहचानने लायक ही न होती. सरकार तो आईडेंटिफाई ही नहीं कर रही है कि ये लोग वहाँ मरे हैं. हम गुमनामी में मर रहे हैं. वहीं मरे हैं. हमारे पास सारे सुबूत हैं. सब कुछ है. लेकिन सरकार सिर्फ़ एक ही जगह को आइडेंटिफाई कर रही है- संगम नोज़".
गणेश मिश्र के बेटे आशुतोष अपनी ताई का शव उठाने अपने दोस्तों के साथ वहाँ पहुँचे थे. उन्होंने बताया, "वहाँ कोई सरकारी मदद नहीं पहुँची. न कोई एंबुलेंस न और कुछ.'' उनका सवाल है कि अगर मेडिकल की इतनी सुविधा है तो वह पहुँची क्यों नहीं.
भीड़ में फँसी थीं एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ियाँ
गणेश मिश्र दावा करते हैं कि एक महिला पुलिसकर्मी बार-बार उच्च अधिकारियों और कंट्रोल रूम को फ़ोन करके बता रही थी कि यहाँ स्थिति विकट हो रही है. उधर से न कोई जवाब आया और न मदद.
इस महिला कर्मी के कार पर खड़े होकर मदद की गुहार लगाते हुए कई वीडियो सामने आए हैं. कई चश्मदीदों ने बीबीसी हिंदी को बताया है कि किसी तरह की कोई मदद यहाँ नहीं पहुँच सकी थी.
हालाँकि, बीबीसी हिंदी ने उस दिन सुबह पौने ग्यारह बजे के कई ड्रोन फुटेज देखे हैं. इनमें एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ियाँ यहाँ भीड़ में फँसी नज़र आ रही हैं.
ऐरावत मार्ग पर उस दिन क्या हुआ
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समुद्रकूप चौराहे (उल्टा किला चौक) से क़रीब एक किलोमीटर दूर ऐरावत मार्ग पर भी मौनी अमावस्या के दिन भगदड़ जैसे हालात बने थे. बीबीसी हिंदी ने इसके कई वीडियो देखे हैं. चश्मदीद यहाँ भी कई मौत होने के दावे कर रहे हैं.
एक महिला चश्मदीद ने बीबीसी से कहा, "यहाँ कई मौतें हुई थीं. हम मुश्किल से बच सके".
बीबीसी हिंदी ने ऐरावत द्वार के पास रिकॉर्ड किया गया एक वीडियो देखा है. इसमें कम से कम चार शव नज़र आए. बताया गया कि यह वीडियो उस दिन सुबह सात बजकर पंद्रह मिनट पर रिकॉर्ड किया गया था.
यहाँ मौजूद रहे एक चश्मदीद ने रात और मौनी अमावस्या की सुबह का मंज़र बताते हुए बीबीसी से कहा, "यहाँ इतनी भीड़ थी कि पूछो मत. हद से ज़्यादा भीड़ थी. आप हमारी बाउंड्री की टीन की कंडीशन देख लीजिए. पब्लिक तोड़कर घुस गई थी. रात में पता नहीं चला. सुबह होते ही पता चला, यहाँ कई लोग हताहत हुए".
दूसरे कई चश्मदीदों की तरह एक और चश्मदीद ने नाम न ज़ाहिर होने की शर्त पर बताया, "जो हताहत हुए वे यहाँ लोहे की चादर की साइड पर दिखे थे. सुबह दस-ग्यारह बजे के बीच प्रशासन की गाड़ियाँ उन्हें लेकर गईं".
प्रशासन का क्या कहना है
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प्रशासन का कहना है कि 29 जनवरी यानी मौनी अमावस्या के दिन संगम नोज़ के अलावा जिन दूसरी जगहों पर हादसे और मौतें होने का दावा किया जा रहा है, उनकी पुष्टि और जाँच की जा रही है.
बीबीसी हिंदी से फ़ोन पर बात करते हुए मेलाधिकारी विजय किरन आनंद ने कहा, "मेला क्षेत्र में जो संगम नोज़ की घटना हुई थी, उसके संबंध में हमने ऑलरेडी मीडिया में बताया हुआ है. शेष जगह पर... शेष जितनी भी डेथ्स हुई हैं... मेडिकल कॉलेज में रिपोर्ट हुई है... उनकी पुष्टि की जा रही है. उनका क्या कारण रहा, उनके परिजनों से मिलकर पता किया जा रहा है."
इसके बाद हमने मेलाधिकारी विजय किरण आनंद से मिलकर भी उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही. हालाँकि, उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार करते हुए कहा कि वह पहले ही बीबीसी को फ़ोन पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं.
हमने उनसे ये भी जानना चाहा कि क्या मौनी अमावस्या के दिन अनुमान से अधिक भीड़ यहाँ पहुँची थी. उन्होंने इसकी भी कोई जानकारी नहीं दी.
यूपी सरकार ने मौनी अमावस्या पर दस करोड़ लोगों के पहुँचने का अनुमान लगाया था.
कुंभ प्रशासन ने मौनी अमावस्या के दिन शाम चार बजे तक ही करीब छह करोड़ लोगों के स्नान करने का आँकड़ा भी जारी किया था.
उत्तर प्रदेश सरकार ने कुंभ के दौरान हुई भगदड़ में मरने वालों के परिजनों के लिए पच्चीस लाख रुपए का मुआवज़ा देने की घोषणा की है.
मौनी अमावस्या के दिन जान गँवाने वाले कई लोगों के अंतिम संस्कार हो चुके हैं. लेकिन कई के परिजनों को अब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिला है कि उनके अपनों के साथ उस दिन आख़िर क्या हुआ था. वे आज भी परेशान हाल इंतज़ार कर रहे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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