किसान ट्रैक्टर परेड हिंसा: एक देश, दो परेड, किसान और जवान के बीच ठिठका गणतंत्र
विकास त्रिवेदी बीबीसी संवाददाता, दिल्ली इमेज स्रोत, VIKSA TRIVEDI/BBC 26 जनवरी. दोपहर क़रीब एक बजे. एक तेज़ भागता लड़का आईटीओ चौराहे की ओर आकर चिल्लाता है- ''ओए चलो ओए, अपने बंदे नू मार दिया.'' हाथों में रॉड और डंडे लिए ट्रैक्टरों से उतरे प्रदर्शनकारी नई दिल्ली स्टेशन की ओर जाने वाली सड़क की ओर बढ़ते हैं. क़रीब 200 मीटर की दूरी पर आंध्र एजुकेशन सोसाइटी के बाहर नीले रंग का एक ट्रैक्टर पलटा पड़ा है. पास में ही एक शव तिरंगे से ढँका रखा है, गणतंत्र दिवस का तिरंगा इस तरह काम आएगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा होगा. पास पहुंची शुरुआती भीड़ चेहरे से तिरंगा हटाती है. प्रदर्शनकारी शव की जेब में पहचान के लिए क़ागज खोजते हैं. मोबाइल मिलता है. शव के अंगूठे को लगाकर फ़ोन का लॉक खोलने की कोशिश होती है. लॉक नहीं खुलता है. विज्ञापन कोई कहता है- फे़स लॉक लगा रखा है. फ़ोन को शव के चेहरे के पास लाया जाता है. फे़स लॉक तब भी नहीं खुलता है. चेहरे पर बहे खून का थक्का अब भी गीला है. छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें और ये भी पढ़ें किसान ट्रैक्टर परेड का आंखों देखा हाल, जानिए क्या हुआ? किसानों की ट...