जाट मुसलमान एकता की बातें और मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के घाव
चिंकी सिन्हा बागपत और सिसौली से 5 घंटे पहले वे कहते हैं, "हम उस दंगे को भूल जाएं. वक्त जाटों और मुसलमानों के साथ आने का है. लेकिन उस खूंरेजी को कैसे भूल जाएं? मेरे ही गांव के 13 लोग मार डाले गए थे. किसी को सज़ा नहीं हुई. मुज़फ़्फ़रनगर दंगों ने यहां कई चीजें बदल कर रख दी हैं" रिज़वान सैफी यह सब बेहद धीमी आवाज में कह रहे थे. आवाज में कंपकंपाहट थी. जुबान लड़खड़ा रही थी. दंगों में उनके परिवार के छह लोग मारे गए थे. तब से वह अपने गांव नहीं लौट पाए हैं. अब भी वह मुज़फ़्फ़रनगर की पुनर्वास बस्ती में रह रहे हैं. नाम है- जन्नत कॉलोनी. किसान आंदोलन के दौरान राकेश टिकैत की भावुक अपील के बाद मीडिया को पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों में एक नई एकता दिख रही है. कई मीडिया विश्लेषणों में कहा जा रहा है इस नई एकता में उत्तर प्रदेश में सत्ता पलटने की क्षमता है. लेकिन बहुत सारे लोगों की आंखों के सामने अब भी दंगों के दौरान हुई भयानक हिंसा की तस्वीरें नाच रही हैं. इन दंगों ने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी है. वे याद करते हैं कि कैसे दंगों के दौरान पड़ोसी ही एक दूसरे के ख़ून के प्यासे ...