जितनी दिखती है, उससे कहीं गहरी है लॉकडाउन की मार: नज़रिया इस पोस्ट को शेयर करें Facebook इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp इस पोस्ट को शेयर करें Messenger साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES भारत के गांवों और शहरों में कामगारों की बहुत बड़ी आबादी है. ये मजदूर ज्यादातर दिहाड़ी पर काम करते हैं. कुछ जगहों पर हर सप्ताह मज़दूरी मिलती है. जो दिहाड़ी मिलती है वह अमूमन काफी कम होती है. इससे मज़दूरों का गुज़ारा बड़ी मुश्किल से हो पाता है. खाना, रहना और कपड़े का ख़र्च ही पूरा नहीं हो पाता, बचत की बात तो दूर की कौड़ी है.भारत में ज्यादातर मासिक वेतन वाले लोगों के भी लिए बचत करना आसान नहीं है. लॉकडाउन को लगभग छह सप्ताह हो गए हैं और इस बीच दिहाड़ी मज़दूरों के हालात पर काफी चिंता जताई जा रही है. यह स्वाभाविक ही है क्योंकि लॉकडाउन की वजह से उन्हें काम नहीं मिल रहा है. उनकी कमाई ख़त्म हो गई है. विज्ञापन इसमें शायद ही कोई शक हो कि इन दिहाड़ी मज़दूरों की बड़ी तादाद दयनीय हालत में पहुंच गई है. आप सोच सकते हैं कि लॉकडाउन के इन दिनों में जब ह...