जिस साल और जिस महीने इस देश में संविधान लागू हुआ था, उसी साल और उसी महीने वे पैदा हुए थे. लेकिन उन्होंने आख़िरी सांस ऐसे समय में ली, जब बहुत सारे लोगों को यह फ़िक्र सता रही है कि यह संविधान ख़तरे में तो नहीं है?
राहत इंदौरी: 'लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना' प्रियदर्शन वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए 11 अगस्त 2020 इस पोस्ट को शेयर करें Email इस पोस्ट को शेयर करें Facebook इस पोस्ट को शेयर करें Twitter इस पोस्ट को शेयर करें Whatsapp Image copyright @RAHATINDORIOFFICIAL जिस साल और जिस महीने इस देश में संविधान लागू हुआ था, उसी साल और उसी महीने वे पैदा हुए थे. लेकिन उन्होंने आख़िरी सांस ऐसे समय में ली, जब बहुत सारे लोगों को यह फ़िक्र सता रही है कि यह संविधान ख़तरे में तो नहीं है? राहत इंदौरी के इस तरह जाने की विडंबनाएं कई हैं. मंगलवार सुबह ही उन्होंने ट्वीट कर जानकारी दी कि उन्हें कोरोना है- यह भी ताकीद की कि कोई उन्हें या उनके परिवारवालों को फ़ोन न करे, वे ख़ुद अपनी तबीयत का हाल सोशल मीडिया पर डालते रहेंगे. शाम होते-होते ख़बर आ गई कि वे इस दुनिया को छोड़कर चले गए. एक वैश्विक महामारी के आगे इंसानी बेबसी की बहुत आम मालूम पड़ने वाली इस मिसाल के बहुत तकलीफ़देह मायने हैं. राहत इंदौरी के न रहने से कुछ उर्दू शायरी फीकी पड़ गई है, कुछ इंदौर फीका पड़ गया है ...